ग़ज़ल
वो मनाता भी नहीं ।
अब रुलाकर वो मनाता भी नहीं ।
वो सितमगर अब सताता भी नहीं ।
अब किसी को भी यहाँ पर डर नहीं,
सामने सर वो झुकाता भी नहीं ।
क्यों बनाते अब नए रिश्ते यहाँ,
कोई'अब रिश्ते निभाता भी नहीं ।
जो हमें देते खुशी वो तो कभी,
गीत खुशी के सुनाता भी नहीं ।
था कभी उसका यहाँ जो दबदबा,
वो वही जलवा दिखाता भी नहीं ।
तुम करो खुलकर यहां बातें सभी,
अब हमारे बीच तो पर्दा भी नहीं ।
दर्द अपने सब छुपा कर रखे,
अब हमें वो कुछ बताता भी नहीं ।
अवधेश
17032020
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