ग़ज़ल
रंगत बदलती जा रही है ।
मेरी आदत सुधरती जा रही है ।
तेरी रंगत बदलती जा रही है ।
बला की खूबसूरत है हसीना,
नजर उस पर फिसलती जा रही है ।
जिसे पैदल नहीं देखा कभी था,
सड़क पर वो मटकती जा रही है ।
कभी थी धुंधली किस्मत हमारी,
दिनों दिन अब चमकती जा रही है ।
किया था राज जिसने देश भर में,
वही सत्ता सिमटती जा रही है ।
कभी सुख थे अभी दुख की घड़ी है,
घड़ी वो भी गुजरती जा रही है ।
डरी सहमी हुयी तूफान से जो,
वो सीने से लिपटती जा रही है ।
किये जो पाप तूने देख उनसे,
भरी मटकी छलकती जा रही है ।
बगीचे में लगी है रोक फिर भी,
कली खिलकर महकती जा रही है ।
अवधेश
22032020
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