ग़ज़ल
ज़िन्दगी
जा रही है शान से गुज़र ज़िन्दगी ।
कर रही है हमेशा सफर जिंदगी ।
दूर के मुसाफ़िर कहाँ रुक गए,
जा रही है कहाँ छोड़कर ज़िन्दगी ।
ढूंढते हम रहे रोशनी के लिए,
अब न जाने मिलेगी किधर ज़िन्दगी ।
तुम चलो तो ज़रा कुछ क़दम साथ में,
सामने आएगी फिर नज़र ज़िन्दगी ।
मिल मिलाकर समेटे रहो तुम इसे,
अब न जाए कहीं फिर बिखर ज़िन्दगी ।
वक्त की कद्रदानी हमेशा करो,
जाने किस वक्त जाए ठहर ज़िन्दगी ।
इक तरफ़ प्यार है और सब इक तरफ,
या इधर ज़िन्दगी या उधर ज़िन्दगी ।
अवधेश-30042020
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