ग़ज़ल
जनता को रुलाते देखा ।
उसको नश्तर हरे जख्मों पे चुभाते देखा ।
जब भी देखा उसे जनता को रुलाते देखा ।
मेरे सीने में लगी आग बुझेगी कैसे,
जब गरीबों पे सितम उसको ढहाते देखा ।
जो कभी खाक यहाँ छान गुजर करता था,
अब उसे मैंने यहां पैसा बहाते देखा ।
जिनके हाथों में है धन और भुजा की ताकत,
आज उनको ही हुकूमत को चलाते देखा ।
आज फिर साथ किसी और के वो आए,
जब भी देखा है उन्हें सिर्फ जलाते देखा ।
चैन की नींद हमें आज सुला ही देगी,
दूर से आज उन्हें पास में आते देखा ।
देख कर प्यार भरा साथ मेरा मन झूमा,
जब मिलन गीत उन्हें आज भी गाते देखा ।
अवधेश
25032020
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