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परिचय

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Sunday, May 31, 2020

जनता को रुलाते देखा



ग़ज़ल
जनता को रुलाते देखा ।

उसको  नश्तर हरे जख्मों पे चुभाते देखा ।
जब भी देखा उसे जनता को रुलाते देखा ।

मेरे सीने में लगी आग बुझेगी कैसे,
जब गरीबों पे सितम उसको ढहाते देखा ।

जो कभी खाक यहाँ छान गुजर करता था,
अब उसे मैंने यहां पैसा बहाते देखा ।

जिनके हाथों में है धन और भुजा की ताकत,
आज उनको ही  हुकूमत को चलाते देखा ।

आज फिर साथ किसी और के वो आए, 
जब भी देखा है उन्हें सिर्फ जलाते देखा ।

चैन की नींद हमें आज सुला ही देगी,
दूर से आज उन्हें पास में आते देखा ।

देख कर प्यार भरा साथ मेरा मन झूमा,
जब मिलन गीत उन्हें आज भी गाते देखा ।

अवधेश
25032020




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