संस्मरण /लघुकथा
खुशी
आज की ही बात है मैं अपनी छत पर टहल रहा था, मेरी नज़र घर के पीछे के खाली मैदान में लगभग 150 मीटर दूरी पर एक कचरा बीनने वाले लड़के पर चली गयी, वो अपने एक हाथ में एक प्लास्टिक का खाली कट्टा लिए था और दूसरे हाथ से यहाँ-वहाँ बिखरे कचरे में से कुछ उठाता, देखता और किसी चीज को कट्टे में डालता और किसी चीज को वापिस फेंक देता । दूसरे घरों के पीछे से इसी तरह प्लास्टिक या लोहे की छोटी छोटी चीजें वो अपने कट्टे में डालता हुआ मेरे घर के पीछे की तरफ आ रहा था ।
मैं सोचने लगा कि ये जिन चीजों को उठाने के लिए झुकता है फिर उठाकर कट्टे में डालता है उनके वजन के हिसाब से एक बार झुकने, उठाने, कट्टे में डालने और आगे बढ़ने में इसको मुश्किल से 50 पैसे की चीज मिल पाती होगी यानि दिन भर भी अगर ये काम करेगा तो ज्यादा से ज्यादा 100 रुपये इसे मिल पाते होंगे । आजकल कचरा गाड़ी गली-गली में आती हैं तो बैसे भी कचरा घर के बाहर डालना बंद हो गया है और कुछ लोग तो प्लास्टिक और लोहे की छोटी- छोटी चीजों को इकट्ठा करके कबाड़ी वालों को बेचते हैं । टहलते हुए और ये सब विचार करते हुए मुझे छत पर ही एक प्लास्टिक की पुरानी बाल्टी दिखी, मैंने सोचा कि ये बाल्टी अब पुरानी हो गयी है और कुछ ही दिन बाद बदलनी ही पड़ेगी, ये विचार आते ही मैंने प्लास्टिक की वो बाल्टी छत से घर के पीछे इस तरह से फेंकी कि वो लड़का मुझे फेंकते हुए न देखे । मैं दूसरे घरों के पीछे से उसे अपने घर के पीछे बढ़ते हुए अपनी छत से ही इस तरह देख रहा था कि उसकी निगाह मुझ पर न पड़े । मैंने देखा कि कचरा बीनने वाला वो लड़का जब मेरे घर के पीछे आया और उसकी नजर उस प्लास्टिक की बाल्टी पर पड़ी तो उसके कदम थोड़े तेज हो गए, उसने प्लास्टिक की बाल्टी को पैर से तोड़ा और उसके टुकड़ों को कट्टे में रख लिया । मैं उसे देख रहा था, उसकी बॉडी लैंग्वेज और चेहरे के भाव से उसको मिली खुशी बता रही थी कि एक बार की मेहनत में 50 पैसे की जगह अगर 5 रुपये मिल जाएं तो कितनी खुशी होती है ।
उसकी खुशी देखकर मुझे भी खुशी हो रही थी, ये खुशियां ऐसे ही फैलती रहें ।
अवधेश-27052020
खुशी
आज की ही बात है मैं अपनी छत पर टहल रहा था, मेरी नज़र घर के पीछे के खाली मैदान में लगभग 150 मीटर दूरी पर एक कचरा बीनने वाले लड़के पर चली गयी, वो अपने एक हाथ में एक प्लास्टिक का खाली कट्टा लिए था और दूसरे हाथ से यहाँ-वहाँ बिखरे कचरे में से कुछ उठाता, देखता और किसी चीज को कट्टे में डालता और किसी चीज को वापिस फेंक देता । दूसरे घरों के पीछे से इसी तरह प्लास्टिक या लोहे की छोटी छोटी चीजें वो अपने कट्टे में डालता हुआ मेरे घर के पीछे की तरफ आ रहा था ।
मैं सोचने लगा कि ये जिन चीजों को उठाने के लिए झुकता है फिर उठाकर कट्टे में डालता है उनके वजन के हिसाब से एक बार झुकने, उठाने, कट्टे में डालने और आगे बढ़ने में इसको मुश्किल से 50 पैसे की चीज मिल पाती होगी यानि दिन भर भी अगर ये काम करेगा तो ज्यादा से ज्यादा 100 रुपये इसे मिल पाते होंगे । आजकल कचरा गाड़ी गली-गली में आती हैं तो बैसे भी कचरा घर के बाहर डालना बंद हो गया है और कुछ लोग तो प्लास्टिक और लोहे की छोटी- छोटी चीजों को इकट्ठा करके कबाड़ी वालों को बेचते हैं । टहलते हुए और ये सब विचार करते हुए मुझे छत पर ही एक प्लास्टिक की पुरानी बाल्टी दिखी, मैंने सोचा कि ये बाल्टी अब पुरानी हो गयी है और कुछ ही दिन बाद बदलनी ही पड़ेगी, ये विचार आते ही मैंने प्लास्टिक की वो बाल्टी छत से घर के पीछे इस तरह से फेंकी कि वो लड़का मुझे फेंकते हुए न देखे । मैं दूसरे घरों के पीछे से उसे अपने घर के पीछे बढ़ते हुए अपनी छत से ही इस तरह देख रहा था कि उसकी निगाह मुझ पर न पड़े । मैंने देखा कि कचरा बीनने वाला वो लड़का जब मेरे घर के पीछे आया और उसकी नजर उस प्लास्टिक की बाल्टी पर पड़ी तो उसके कदम थोड़े तेज हो गए, उसने प्लास्टिक की बाल्टी को पैर से तोड़ा और उसके टुकड़ों को कट्टे में रख लिया । मैं उसे देख रहा था, उसकी बॉडी लैंग्वेज और चेहरे के भाव से उसको मिली खुशी बता रही थी कि एक बार की मेहनत में 50 पैसे की जगह अगर 5 रुपये मिल जाएं तो कितनी खुशी होती है ।
उसकी खुशी देखकर मुझे भी खुशी हो रही थी, ये खुशियां ऐसे ही फैलती रहें ।
अवधेश-27052020
No comments:
Post a Comment