हास्य व्यंग्य रचना है ।
तुझ से आशा पाली है ।
मीठी बातें करती वो, दिखती भोली भाली है ।
सूरत जिसकी गोरी है, मंशा उसकी काली है ।
कैसी वो बातें करते, सुनकर होता है अचरज,
ज्ञानी वो बन जाते हैं, जिनकी डिग्री जाली है ।
घर में हैं बंदी जैसे, भाजी से रोटी खाते,
बाहर जाना है मुश्किल, जेलर तो घरवाली है ।
बागों की रौनक गायब, सब कुछ लगता है उजड़ा,
खिलने वाले फूलों को, मसले खुद अब माली है ।
कहते हम अच्छी बातें,जिनमें उनका ही हित हो,
पर ऐसा लगता उनको, दे दी जैसे गाली है ।
छेड़ा-छाड़ी वो करते, जोरों से सब पर हँसते,
रिश्ता हो ऐसा जैसे, जनता उनकी साली है ।
उम्मीदें उनसे रखना,छोड़ो अब क्या है रक्खा,
वो क्या दे सकते हमको,जिनका डब्बा खाली है ।
खोले हैं अब मयखाने,पैसा इनसे ही मिलता,
पीने वालों का क्या है,गिरने उनको नाली है ।
इनकी झूठी बातें भी, मानी सच ही हैं जाती,
जय-जय करती है जनता, आदत ऐसी डाली है ।
मजदूरों की हालत अब, कैसे सुधरे बोलो तो,
सब्जी रोटी को तरसे, खाली-खाली थाली है ।
सत्ता से बाहर हैं जो, लगते वो सूखे सूखे,
सत्ताधीशों को देखो, गालों पर क्या लाली है ।
भारत माता की जय हो, तेरा वैभव कम न हो,
तेरे हर वासी ने अब, तुझ से आशा पाली है ।
ग़ज़लें लिख दीं ऐसी हमने,सबको खुश कर देंगीं ये,
पढ़ने सुनने वालों ने, जमकर ठोकी ताली है ।
अवधेश-25052020
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