ग़ज़ल
वीर मरते नहीं ।
चोट कितनी लगे आह भरते नहीं ।
देश पे जान दे वीर मरते नहीं ।
हक़ मिला गर नहीं छीन कर ले लिया,
हम ज़माने से फरियाद करते नहीं ।
वो नहीं अब करें बात मीठी कभी,
सुर्ख कोमल लबों से फूल झरते नहीं ।
आपदा तो हमें देती मौके नए,
हम कभी भी चुनौती से डरते नहीं ।
माँस के बिना भूख से लड़ मरे,
जंगली शेर हैं घास चरते नहीं ।
अवधेश
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