ग़ज़ल
हमें देख वो मुस्कुराने लगे हैं ।
लिखे गीत जो गुनगुनाने लगे हैं ।
हमें देख वो मुस्कुराने लगे हैं ।
चली आज कैसी हवा हर तरफ से,
परिंदे भी पेड़ों से जाने लगे हैं ।
पढ़ाया लिखाया बढाया जिन्हें भी,
हमें वो ककहरा सिखाने लगे हैं ।
नदी बह रही थी बड़े वेग से जो,
उसे बांधने में ज़माने लगे हैं ।
फसल ये खड़ी है तरसती हुई सी,
इसे अब्र भी अब सताने लगे हैं ।
मुसीबत बड़ी दर पे आयी हमारे,
घरों में घुसे बिलबिलाने लगे हैं ।
हुए गर परेशान उनको न ग़म है,
हमारी दुआ आज़माने लगे हैं।
अवधेश
27032020
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