#ग़ज़ल
#देश_से_मुहब्बत_की ।
माँ पिता ने सही नसीहत की,
इसलिए देश से मुहब्बत की ।
हक़ मिला ही नहीं हमें जायज़,
सीढ़ियां जब चढ़ीं अदालत की ।
आप ही तो यहाँ के मालिक थे,
आपने किस लिए बग़ावत की ।
आपकी हर सलाह मानी फिर,
क्या हुआ आपने खिलाफत की ।
आ गए तुम किसी की बातों में,
और अपनों से ही अदावत की ।
हार कर सीख मिल गयी लेकिन,
चाल समझी नहीं सियासत की ।
ये पड़ोसी बुरी नियत वाले,
ये समझ आइ तो नदामत की ।
अवधेश
27032020
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