ग़ज़ल
ये पर्दा हटा दो ।
छुपाओ न चहरा ये पर्दा हटा दो ।
छलकता नशा रूप का जो पिला दो ।
बुरा कुछ न होगा भरोसा रखो तुम,
बहम भी न पालो कुशंका मिटा दो,
चलो आज फिर से करें दोस्ती हम,
हमारी तरफ हाथ अपना बढ़ा दो ।
चलो तो जरा आज ये काम कर दो,
नदी और प्यासे समंदर मिला दो ।
दिलों को चुराना अगर हो सके तो,
कभी तो हुनर ये हमें भी सिखा दो ।
किया ही नहीं आज तक जो किसी ने,
वही तुम यहाँ आज कर के दिखा दो ।
भले ही सरोवर में कीचड़ भरी है,
चलो फूल उसमें कमल का खिला दो ।
खड़ीं जो इमारत निशानी बदी की,
चलो उनकी मजबूत नीवें हिला दो
मिले जो कभी एक मौका अगर तो,
शहीदों में तुम नाम अपना लिखा दो ।
अवधेश
19032020
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