ग़ज़ल
गुनगुनाते रहे हैं
मुहब्बत के' गाने सुनाते रहे हैं ।
ग़ज़ल जो लिखी गुनगुनाते रहे हैं ।
मिले वो हमें थे खिले फूल दिल में,
जुदा हो के' हमको रुलाते रहे हैं ।
दुखों को हमारे भगाने हमें वो,
सुना के लतीफे हँसाते रहे हैं ।
यहां बेवफाई रगों में है' जिनकी,
वफ़ा वो मेरी आजमाते रहे हैं ।
सभी हों फ़िदा इस वतन पर दिलों से,
हमेशा अलख हम जगाते रहे हैं ।
कभी कोई' उनको बुलाता नहीं है,
हमीं हैं जो' उनको बुलाते रहे हैं ।
कभी जो मिले थे हुए दूर पर वो,
ख्वाबों में आकर सताते रहे हैं ।
नहीं चाहिए कुछ हमें तो किसी से,
सभी काम उनके कराते रहे हैं ।
कभी वो किसी बात पर रूठ जाता,
उसे रूठने पर मनाते रहे हैं ।
मिली जो मुहब्बत कभी चाहने से,
वो' आंसू खुशी के बहाते रहे हैं ।
नहीं चाहते दिल किसी को दिखाते,
वो दिल को हमारे चुराते रहे हैं ।
कहीं हो न जाए अदावत किसी से,
सुरों में सुरों को मिलाते रहे हैं ।
अवधेश-17032020
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