ग़ज़ल
प्यार के सिलसिले हो गए ।
पेड़ सूखे हरे हो गए ।
प्यार के सिलसिले हो गए ।
हम चले थे अकेले कभी,
साथ अब काफिले हो गए ।
कल तलक साथ थे आज वो,
आमने सामने हो गए ।
सूख कर रो रही थी नदी,
अब वहाँ जलजले हो गए ।
थे कभी पास में और अब,
बीच में फासले हो गए ।
आग थी जो लगी बुझ गयी,
आब के बुलबुले हो गए ।
रूप उनका निखरता रहा,
हम मगर साँवले हो गए ।
अवधेश
19032020
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