ग़ज़ल
अगर हमसे मुहब्बत है ।
हमारा हाल तो पूछो अगर हमसे मुहब्बत है ।
जरा सा पास भी आओ दिखा दो कितनी चाहत है ।
वफ़ा तुमको न आती थी चलो हम भूल जाते हैं,
नहीं शिकवा कोई तुमसे नहीं कोई शिक़ायत है ।
जहाँ भर में डरे है सब नहीं मिलते किसी से अब,
कभी जो पास होते थे वहीं अब ये मफ़ासत है ।
अगर तुम चाहते हो देश की सेवा अभी करना,
करो बस ये रहो घर में यही मेरी नसीहत है ।
न ताले हैं न लॉकप है न पहने हथकड़ी कोई,
खुले में घूमते गुंडे बताने को हिरासत है ।
मिला है उस्तरा जिसको वही बंदर नचाता है,
कभी सीधा कभी उल्टा करे उसकी हिमाक़त है,
सहारा हम बने जिसके उसी ने अब यहां देखो,
हमारी बात ठुकराई सरासर जो ज़लालत है ।
बलाएं क्या बिगाड़ेंगीं हमेशा ये भरोसा हो,
रहो महफ़ूज तुम जब तक हमारा सर सलामत है ।
करो तुम भी मदद उसकी जिसे इसकी जरूरत हो,
नज़र में है खुदा के सब यही उसकी इबादत है ।
अवधेश
30032020
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