#ग़ज़ल
पत्थर हटाते रहो
तुम कदम आगे अपने बढ़ाते रहो ।
देश को दुश्मनों से बचाते रहो ।
कुछ नहीं ये समझ पा रहे बात को,
इनसे बेकार भेजा खपाते रहो ।
बाप से एक बच्चा यही कह रहा,
गोद में ले मुझे तुम झुलाते रहो ।
मर मिटेंगे हँसी पर तुम्हारी सनम,
तुम अदाओं से अपनी लुभाते रहो ।
बस इबादत समझ कर खुदा की इसे,
इश्क को हुस्न से तुम मिलाते रहो ।
आसमाँ को अगर नापना हो उन्हें,
पंख देकर उन्हें तुम उड़ाते रहो ।
आ रहे जो मुसाफ़िर बड़ी दूर से,
प्यास उनकी हमेशा बुझाते रहो ।
मंजिलों की तरफ जा रहे जो बढ़े,
राह की उनके पत्थर हटाते रहो ।
अवधेश-19042020
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