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परिचय

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Sunday, May 31, 2020

सूरत दिलनशीं की

ग़ज़ल
सूरत दिलनशीं की ।

जिसे चाहा उसी ने दुश्मनी की ।
जरूरत ही नहीं अब दोस्ती की ।

ढलेगा दिन नहीं तो रात कैसी,
जरूरत मौत को है जिंदगी की

पतंगा मिट गया शम्मा पे जल के,
हुआ बरवाद जिसने आशिक़ी की ।

अमावस रोशनी को ही हराती,
यहाँ खुद चाँद ने ही तीरगी की ।

समंदर में नदी पूरी समाती 
मिटे जिस पर उसी की तिश्नगी की ।

हमें सच झूठ का अंतर पता है,
हमारे साथ तुमने दिल्लगी की ।

ज़मीं पर चाँद देखा था कभी जो,
हमें है याद सूरत दिलनशीं की ।

अवधेश
31032020

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