ग़ज़ल
दिल तो मिलाओ कभी
तुम हमें भी तसल्ली दिलाओ कभी ।
जाम आंखों से अपनी पिलाओ कभी ।
सोचते आ गए दूर हम रूठ कर ,
पास आकर हमें तुम मनाओ कभी ।
वो गरीबों के चूल्हे बुझा ना सके,
आग सीने में ऐसी जलाओ कभी ।
जल रहे हों पड़ोसी के घर भी अगर,
दौड़ कर आग तुम भी बुझाओ कभी ।
हम नहीं हैं किसी और के मान लो,
दिल से अपने बहम ये मिटाओ कभी ।
तोहफ़ा प्यार का सौंपना है तुम्हें,
घर पे अपने हमें तुम बुलाओ कभी ।
मान लो बात बिल्कुल सही है यही,
झूठ डर को यहाँ से भगाओ कभी ।
फैलती जा रही है यहाँ भुखमरी,
तुम भी भूखे को रोटी ख़िलाओ कभी ।
हाथ से हाथ को गर मिलाना न हो,
एक दूजे से दिल तो मिलाओ कभी ।
अवधेश 31032020
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