कुछ दोहे-
चारण भाटों से सदा, खुश रहते सरकार ।
शोषण दमन दिखे नहीं, बने हैं पत्रकार ।
नेतन की विरुदावली, लिख रहे कलमकार ।
मजदूर यहाँ मर रहे, औरन की जयकार ।
दीन विचारा क्या करे, डरे बेरोजगार ।
कुछ भी कह सकते नहीं, लुप्त हुए अधिकार ।
व्यापारी अब क्या करे, चौपट है व्यापार ।
दुकानें भी बंद हुयीं, रो रहे दुकनदार ।
घर-घर में चर्चा चली, क्या होगा इस बार ।
अब क्या करें क्या न करें, होगा सोच विचार ।
अवधेश-12052020
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