ग़ज़ल
कहीं और दिल को लगाया कहाँ है ।
कभी आपको भी भुलाया कहाँ है ।
कहीं और दिल को लगाया कहाँ है ।
सही है मुसीबत हमीं ने अकेले,
कभी आपको भी रुलाया कहाँ है ।
सहे जो सितम वो हमीं जानते हैं,
हुआ दर्द दिल में दिखाया कहाँ है ।
रखा ख्याल आराम का हमारे,
कभी नींद से भी जगाया कहाँ है ।
मुझे छोड़ कर माँ गयी तो किसी ने,
कभी गोद में भी सुलाया कहाँ है ।
कभी तो बताना हमें भी जरा तुम,
कमाया हुआ धन छिपाया कहाँ है ।
कभी रेत का जो घरौंदा बनाया,
बनाकर उसे फिर मिटाया कहाँ हैं ।
उड़ा आंधियों में पुराना घरौंदा,
अभी घर नया बसाया कहाँ है ।
रहो आप अंदर निकलना न बाहर,
अभी वायरस को भगाया कहाँ है ।
सुनो क्या कहा है वज़ीरे वतन ने,
क़दम एहतियाती उठाया कहाँ है ।
लड़ाई बड़ी है उठो और सोचो,
बिगुल जंग का बजाया कहाँ है ।
रहो देखते चाँद जो है ज़मीं पे,
अभी उसने पर्दा गिराया कहाँ है ।
अवधेश
24032020
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