ग़ज़ल- हर जंग जीतते हैं ।
इस ज़िंदगी में बुज़दिल इंसान हारते हैं ।
हिम्मत करें यहाँ जो हर जंग जीतते हैं ।
मजदूर काम करके बिंदास सो रहे हैं,
ऊँचे मकान वाले रातों में जागते हैं ।
रस्ते यहीं खड़े हैं मंज़िल बदल रहीं हैं ।
थक हार के मुसाफ़िर आराम चाहते हैं ।
खांसी ज़ुकाम भी अब हमको डरा रहे हैं ।
बस दूर से हमारा सब हाल पूछते हैं ।
मेला लगा हुआ था साथी बिछड़ गए थे,
बरसों हुए उन्हें हम नाकाम ढूंढते हैं ।
इस देश में करोड़ों बेरोज़गार रहते,
उन के गुजारे लायक़ हम काम मांगते हैं ।
जब से तुम्हें मिले हैं हम होश खो चुके हैं,
कर कर के इश्क तुमसे दीवाने हो गए हैं ।
यादें हमें पुरानी बेहद ही आ रहीं हैं,
आँखे खुलीं हुयीं हैं आँसू रुला रहे हैं ।
अब देश के लिए ही मरना हमें पड़ेगा,
जो फ़र्ज़ हैं हमारे हमको बुला रहे हैं ।
अवधेश -03042020
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