ग़ज़ल
देखो जरा नज़ारे
कुदरत के तोहफे हैं देखो जरा नज़ारे ।
कितने हसीन लगते रातों में चाँद तारे ।
पर्यावरण बिगाड़ा परिणाम सामने हैं,
ख़तरे में ज़िंदगी है इंशा की आज प्यारे ।
वो चाहता यही है दुनिया में सब सुखी हों,
समझा नहीं कोई जो उसने किये इशारे ।
किश्ती फ़ंसी हुई है भँवर में आज उनकी,
नादान नाख़ुदा है कैसे मिलें किनारे ।
हम तो यहाँ हमेशा सच के लिए लड़े थे,
दुश्मन से जीत आए पर दोस्तों से हारे ।
जिन पर हमें भरोसा उनसे अटूट बंधन,
वो छोड़ कर गए क्यों हमको बिना सहारे ।
कोयल सुना रही है बोली बड़ी सुरीली
बादल खुशी से पागल धरती उसे पुकारे ।
अवधेश-13042020
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