ग़ज़ल
मिलेगी ख़ुशी कभी ।
पथराई आँख में भी दिखेगी नमी कभी ।
जब तुम सुनोगे बात हमारी कही कभी ।
दिल पर पड़े निशान हमारे मिटे नहीं,
आती तो होगी याद उसे भी कभी कभी ।
नापाक हरकतों से पड़ोसी कहाँ रुके,
हम आँख फोड़ देंगे इधर जो उठी कभी ।
बिखरा जो आसपास तुम्हारे हसीन है,
क्या वो शबाब देख ग़ज़ल भी लिखी कभी ।
नफ़रत भरी हवा से भड़कती रही यहाँ,
कितनी बुझाई आग बता क्या बुझी कभी ।
ये हाल देख देश के क्या कुछ हुआ नहीं,
क्या आग इंकलाब की दिल में जली कभी ।
ग़म और मुश्किलों में सदा ज़िन्दगी कटी,
उम्मीद बरकरार मिलेगी ख़ुशी कभी ।
अवधेश-21042020
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