ग़ज़ल
ये खुशी कैसे कहूँ ।
खूबसूरत वो हसीना कब मिली कैसे कहूँ ।
वो मिली तो सब मिला है ये खुशी कैसे कहूँ ।
गम मिले इतने यहाँ पर जिंदगी मुश्किल हुयी,
इस सिसकती जिंदगी को जिंदगी कैसे कहूँ ।
चाँद लाया चाँदनी पर साथ लाया ज्वार भी,
तीरगी मन में रहे तो रोशनी कैसे कहूँ ।
सुन नहीं पाते कभी जो इक जरा सी बात भी,
उन से इस मासूम से दिल की लगी कैसे कहूँ ।
आज फिर यादें पुरानी अब मुझे आने लगीं,
जो सुनी उस रात मैंने रागिनी कैसे कहूँ ।
तुम कभी तो पास से भी देखना मजदूर को,
पाँव में छाले पड़े हैं बेबसी कैसे कहूँ ।
ये गरीबी और शोषण देख सकता मैं नहीं,
आग सीने में लगी थी वो बुझी कैसे कहूँ ।
अवधेश -23052020
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