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परिचय

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Monday, June 1, 2020

वो आया निखरकर ही ।

ग़ज़ल
वो आया निखरकर ही ।

चुराया चांद से जो नूर वो आया निखरकर ही ।
कली से फूल बन खुशबू बिखेरी खुद बिखरकर ही ।

किये वादे वफ़ा के पर ढहाये फिर सितम हम पर, 
मिली उसको सजा पर वो रहा फिर भी सितमगर ही ।

अमीरी की न चाहत है न दुख उसको गरीबी का,
फकीरी में यहां झूमे करे मस्ती कलंदर ही ।

खराबी भी रखो तुम आदतों में ये जरूरी है,
अगर खारा न होता तो सभी पीते समंदर ही ।

हमारा दिल चुराया जिस किसी भी चोर ने छुपकर, 
मिलेगा दम हमें उस चोर को तो अब पकड़कर ही ।

करो दुनिया यही अपनी यहाँ पर जीत कर फिर से,
अगर तुम जीतते हो आज कहलाओ  सिकन्दर ही ।

बड़ी मुश्किल घड़ी है और मैं इसमें बुरा फंसा, 
मिलेगा चैन मुझको तो यहाँ से अब निकलकर ही ।

नहीं मिलती अगर इज्जत सियासत में इसे छोड़ो,
कभी तुम जीत गर चाहो मिले पाला बदलकर ही ।

सड़ेगा पान भूलेंगे पढ़ा  रोटी जलेगी ही,
अड़ेगा भी यहां घोड़ा बचें ये सब पलटकर ही ।
अवधेश
16032020

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