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परिचय

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Tuesday, June 9, 2020

जा पर कृपा राम की -1


संस्मरण 
जा पर कृपा राम की -1
एक 9 वर्ष का बालक घर से लगभग 400 मीटर दूरी पर स्थित मंदिर परिसर में बने हुए चोपड़ा में तैरना सीखने के लिए एक दिन अपने हम उम्र दोस्तों  के साथ गया था, उस दिन पहला ही दिन था, उसके दोस्तों में से 2-3 दोस्त तैरना सीख चुके थे, वह जब चोपड़ा में दूसरे बच्चों को तैरते हुए देखता था तो उसकी भी इच्छा होती थी कि वो तैरना सीखे, उसने भी दोस्तों के साथ तैरना सीखने के लिए जाना उचित समझा था । घर में माँ काम में लगीं रहतीं थीं, बड़े भाई किसी काम के लिए निकल जाते थे, पिता के परलोकगामी होने के बाद केवल माँ और भाई ही थे जिनका थोड़ा डर रहता था, लेकिन दोस्तों के साथ खेलने के बहाने घर से निकल कर बच्चे कहाँ जा रहे हैं ये घर वाले नहीं समझ पाते ।
चोपड़ा जैसा कि नाम से स्पष्ट होता है एक चौकोर आकार का मानव निर्मित पानी का ताल, सरोवर या स्रोत होता है, जिसमें भूजल भरा रहता है । मंदिर में चूंकि एक कुँआ भी है इसलिए चोपड़ा को उस समय केवल नहाने के लिए ही उपयोग किया जाता था । मोहल्ले के बड़े बड़े बच्चे इसमें तैरते रहते थे । चारों ओर सीढ़ियां बनीं थीं जिनमें उतरते हुए कम गहराई से अधिक गहराई में पहुंच जाते थे, एक सीढ़ी उतरना यानि एक फुट उतरना 5 सीढ़ी उतरने पर बड़े बच्चे भी डूब जाएं इतनी गहराई थी और सीढ़ियों के बाद बीच में हाथी डूबने जितनी गहराई थी । 
उस बालक को पानी की गहराई और गहराई के डर की पूरी जानकारी थी । 
एक तरफ की सीढ़ियों के बाद एक दालान बनी थी उस दालान का फर्स लेबल ऐसा था कि उस पर बस 2-3 फ़ीट पानी ही रहता था, बच्चे इसी दालान में पहुंचकर तैरना सीखते थे, लेकिन दालान तक पहुंचने के लिए किसी की सहायता लेनी पड़ती थी, दालान और पहली सीढ़ी के बीच की दूरी इतनी थी कि छोटे बच्चे सीधे दालान में नहीं पहुंच सकते थे । 
उस बालक के साथी दालान में पहुंच गए और तैरने के लिए दालान के कम पानी में इधर-उधर हाथ पैर चलाते हुए तैरना सीखने में लग गए ।
उस बालक ने भी कपड़े उतारकर एक तरफ रखे और अति उत्साह में दालान तक पहुंचने के लिए बिना किसी की मदद लिए सीढ़ियों पर उतरना शुरू कर दिया, पहली सीढ़ी, दूसरी और तीसरी सीढ़ी तक पानी गले तक आ गया तो उसने सोचा कि अब थोड़ा आगे बढ़कर दालान तक पहुंच जाऊंगा लेकिन अचानक जैसे ही पैर उठे वो पानी में डूबने लगा, पानी मुंह से अंदर जाने लगा और उसे लगा कि अब बचना मुश्किल है, माँ और भगवान राम याद आ गए, इतने में ही किसी ने पकड़ कर जोर से ऊपर उठा लिया और पानी के बाहर कर दिया और डांट लगाई, देखा तो वो मोहल्ले के ही उस बालक से उम्र में 6-7 साल बड़े लड़के  थे और चोपड़ा में घण्टों तैरना उनका शौक था, उन्होंने बताया कि उनकी नज़र अचानक उस पर पड़ गयी थी और वो तेजी से तैरते हुए आए और उसे पानी में से ऊपर उठा लिया । उसके बाद उन्होंने उस बालक को दालान तक पहुंचा दिया और उस बालक ने उसी दिन तैरना सीख लिया । इसके बाद शहर के बड़े बड़े तालाबों में कूदना, तैरना, गोता मारना उस बालक की दिनचर्या में शामिल हो गया । एक बार एक साधु को एक तालाब में पानी की सतह पर आराम से लेटे देखा तो उस बालक ने भी अभ्यास किया और ये कला भी सीख ली, अभी भी ये बालक कितने भी गहरे पानी की सतह पर बिना हाथ पैर चलाए घण्टों तक या जब तक चाहे सुखासन या पद्मासन में लेटे रह सकता है ।
वो बालक आज भी उन देवदूत को याद रखता है और हृदय से आदर और सम्मान देता है जिनकी बजह से उसका जीवन बच गया था ।
तुलसी दास ने सच ही लिखा है -
जा पर कृपा राम की होई ।
ता पर कृपा करहिं सब कोई ।

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