ग़ज़ल
पर्दा बस निगाहों का रहे ।
हौसला ऊँची उड़ानों का रहे ।
आसमाँ तो बस परिंदों का रहे ।
जो ख़ुदा से माँग कर हमको मिला,
आपका ये साथ जन्मों का रहे ।
कामयाबी वो मिले जो चाहिए,
इल्म हमको गर किताबों का रहे ।
क्या बिगाड़े दूसरा कोई कभी,
ख़ौलता जो खून रिश्तों का रहे ।
मिल रहा है माल खाने को तुम्हे,
ख़्याल बुझती आग चूल्हों का रहे ।
फूल काँटें दूसरे सब फैंक दो,
बाग़ अपना बस गुलाबों का रहे ।
शर्म इज़्ज़त के लिए तुम ये करो,
आड़ पर्दा बस निगाहों का रहे ।
अवधेश-05062020
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