संस्मरण
जा पर कृपा राम की-2
एक बालक जिसकी उम्र उस समय लगभग 9-10 साल थी, अपने दोस्तों के साथ खेलता था तो दोस्तों के नए-नए कपड़े और कई तरह की नई-नई चीजें देखकर अपनी गरीबी के वारे में सोचकर मन मसोस कर रह जाता था, उसके सबसे खास दोस्त जिसके साथ उसका ज्यादातर समय खेलकूद में निकलता था, संपन्न परिवार का था । उस दोस्त के पिताजी ने दोस्त को एक नई साइकल दिलवाई जिसे ये दोस्त बहुत जल्दी चलाना सीख गया और एक दिन इस बालक को भी सायकल के डंडे पर बिठाकर बाजार ले गया, इसे भी नई सायकल पर बैठने में बहुत मजा आ रहा था । दोनों दोस्त बाजार से जब लौट रहे थे तो संकरे रास्ते पर जैसे ही एक पुलिया के पास पहुँचे तो सामने से एक ट्रक आ रहा था, पुलिया की पैरापिट वॉल और ट्रक के बीच लगभग 2 फीट जगह थी जिसमें इनकी सायकल आगे बढ़ रही थी, इस बालक के दोस्त का संतुलन बिगड़ा और सायकल ट्रक के नीचे आ गयी, सायकल चला रहा इस बालक का दोस्त तो पैरापिट वॉल पकड़ कर खड़ा रह गया लेकिन डंडे पर बैठा ये बालक सायकल के साथ नीचे गिर गया, सायकल ट्रक के अगले पहिये के आगे निकलने के बाद गिरी थी और पिछला पहिया सायकल और इस बालक तक जैसे ही आया, बालक को भगवान याद आ गए, ट्रक रुक चुका था, ट्रक ड्राइवर ने साइड ग्लास में सायकल गिरते देख ली थी । ट्रक रुकने पर ये बालक भी जल्दी से उठ खड़ा हुआ और सायकल उठाकर दोनों दोस्त अत्यंत घबराए हुए वहां से आगे बढे तो ट्रक ड्राइवर की डांट भी खानी पड़ी । अब दोनों दोस्तों का डर के मारे बुरा हाल था, इस बालक के सायकल वाले दोस्त को बहुत डर लग रहा था कि ये घर पर बता देगा तो उसे बहुत डांट पड़ेगी, उसने इस बालक से घर पर न बताने को कहा । ये बालक दोस्ती निभाने के लिए हर बात मानने को तैयार था, कई दिनों तक घटना की भयावहता के बारे में दिमाग में विचार आते रहे लेकिन उसने घटना के वारे में किसी को नहीं बताया । इस बालक ने भी सायकल चलाना सीखने के लिए घर की पुरानी सायकल निकाली जिसकी सीट पर बैठना संभव नहीं था लेकिन कैंची बनाकर एक हाथ से हेंडिल और दूसरे से सीट पकड़कर एक पैर अंदर डालकर पैडल पर रखा और दूसरा पैर जमीन से टिकाते हुए ढालू सड़क पर चल दिया और बिना किसी सहायता के अपने आप पहले ही दिन सायकल चलाना सीख गया, उसके बाद तो दोस्तों के साथ उनकी नई सायकलों के बीच ये अपनी पुरानी सायकल चलाते हुए आनंदित होता था ।
15 -16 साल की उम्र में इंजीनियरिंग के प्रथम वर्ष में जब NCC जॉइन की तो EME बटालियन होने से मिलिट्री ट्रक के इंजन की वर्किंग और ट्रक ड्राइविंग सीखी, इस बालक पर ईश्वरीय कृपा के परिणाम ये रहे कि पहले ही दिन ग्राउंड में संतुलन के साथ अपने इंस्ट्रक्टर को ट्रक चलाकर बता दिया जबकि अन्य कैडेट को इस स्थिति तक आने में 15 दिन लग गए ।
जा पर कृपा राम की होई ।
ता पर कृपा करें सब कोई ।
अवधेश सक्सेना
शिवपुरी मध्य प्रदेश
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