ग़ज़ल
मील के पत्थर ।
मील के पत्थर बने हम रास्ता दिखला रहे हैं ।
इक जगह पर ही खड़े हैं, मंज़िलें मिलवा रहे हैं ।
सामने से आ रहे जो उन सभी को दें सलामी,
देखते हम चाल सबकी खैर हम मनवा रहे हैं ।
आ गए थे पास इतने दूरियाँ सब मिट गयीं,
फ़िर अचानक क्या हुआ जो छोड़ के वो जा रहे हैं ।
तुम मिले ख़ुशियाँ मिलीं थीं जो बिछड़ कर तुम गए तो,
ये जहाँ वीरान लगता गीत ग़म के गा रहे हैं ।
हो सके तो लौट आना हम यहीँ पर ही मिलेंगे,
फ़िर तुम्हीं से ही मिलन के ख़्याल मन भरमा रहे हैं ।
ज़िन्दगी कैसी पहेली जो समझ आती नहीं है,
जो ख़ुदा ने की इनायत हम इसे सुलझा रहे हैं ।
प्यार में धोखा मिला है चाँद भी देगा गवाही,
अब अदालत में ख़ुदा की हम मुक़दमा ला रहे हैं ।
अवधेश-16062020
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