ग़ज़ल
गंगा में नहाया जाए
हर मुसीबत से इन्हें आज बचाया जाए ।
इन गरीबों को घरों में ही बसाया जाए ।
अब हक़ीक़त को बयां करके सभी के आगे,
सोए जज़्बात को लोगों के जगाया जाए ।
दुश्मनी छोड़ मिलो तुम भी गले आपस में,
खून अब और न यहाँ पे बहाया जाए ।
जो ठसक और अकड़ में ही रहा करते,
उँगलियों पे उन्हें भी तो नचाया जाए ।
हो गए काम हमारे भी सभी पूरे तो,
अब चलो चैन से गंगा में नहाया जाए ।
अवधेश-01062020
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