आल्हा /वीर छंद में महारानी लक्ष्मी बाई के बलिदान दिवस पर पुण्य स्मरण
गणपति हो तुम बुद्धि प्रदाता,
ये लो लड्डू मेवा पान ।
प्रथम आपको ही हम पूजें,
रखो हमारा पूरा ध्यान ।
शारद माता के चरणों में,
शीश नवाकर मांगे ज्ञान ।
शुद्ध करो माँ लेखन वाणी,
रहे हमारी ऊंची शान ।
मणिकर्णिका नाम था प्यारा,
मनु कहते जो करते प्यार ।
कहते बाजीराव छबीली,
मिला पिता का खूब दुलार ।
शस्त्रों शास्त्रों की शिक्षा तो,
बचपन में ही ली भरपूर ।
मनु के कौशल की चर्चा तो,
होती रहती थी सब दूर ।
था गंगाधर राव मराठा,
जिसका था झांसी पर राज ।
मिलन हुआ मनु का राजा से,
बजे विवाह सुरीले साज ।
हुआ नाम अब लक्ष्मी बाई,
झांसी की रानी विख्यात ।
माँ बनी इक पुत्र की रानी,
बीत रहे सुख से दिन रात ।
काल चक्र कुछ ऐसा घूमा,
पुत्र जिया न महीना चार ।
राज काज सम्हाले रानी,
गंगाधर रहते बीमार ।
दत्तक पुत्र लिया रानी ने,
नाम रखा दामोदर राव ।
रानी पर विपदाएं टूटीं,
बचे नहीं गंगाधर राव ।
हड़प नीति से अंग्रेजों ने,
झाँसी पर कर दिया प्रहार ।
अंग्रेज अदालत में हारे,
जब्त किया पर कोष अपार ।
काट दिया रानी का ख़र्चा,
जिसका हुआ बुरा परिणाम ।
छोड़ा किला महल में आई,
किये वहीं से सारे काम ।
आज़ादी की प्रथम लड़ाई,
रानी ने की थी प्रारंभ ।
लोह चने थे पड़े चबाने,
अंग्रेजों का टूटा दम्भ ।
अपनी झाँसी कभी न दूँगी,
रानी का गूंजा ऐलान ।
बनी लड़ाकू नारी सेना,
झलकारी जिसकी कप्तान ।
अंग्रेजों ने हमला बोला,
रानी भी करती प्रतिघात ।
काल्पी पहुँची थी फिर रानी,
बिगड़े ज़्यादा जब हालात ।
मिले वहाँ पर तात्या टोपे,
योद्धा थे जो बड़े महान ।
युद्ध गुरिल्ला की शैली से,
जीते सारे रण मैदान ।
तात्या रानी की सेना ने,
किया ग्वालियर पर अधिकार ।
आई फिर अंग्रेजी सेना,
रानी करती थी प्रतिकार ।
बनी महा रण चंडी रानी,
दुश्मन मारे कई हजार ।
लहू पिया जिसने गोरों का,
चमक रही थी वो तलवार ।
विजय जरा सी दूर खड़ी थी,
अंग्रेजों में हाहाकार ।
हुआ तभी रानी से धोखा,
छूट गया पल में संसार ।
आज़ादी की वो चिंगारी,
रानी का था जो संग्राम ।
भड़क उठी थी ऐसी ज्वाला,
कर दी अंग्रेजों की शाम ।
रानी तुमको याद रखेगा,
देश हमेशा हिंदुस्तान ।
नमन तुम्हें सौ बार करेंगे,
अमर तुम्हारा है बलिदान ।
अवधेश सक्सेना
शिवपुरी मध्य प्रदेश
18062020
(महारानी लक्ष्मी बाई का बलिदान दिवस)
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