गेंहूँ की बालियों से
बरक़त बहुत बड़ी है देखो शराबियों से ।
मंडी भरी हुयी है गुंडे मवालियों से ।
ठंडक मिली तुम्हें जो कुछ देर ही रहेगी,
फिर से निकल के सूरज आएगा बदलियों से ।
ख़ुशबू बिखर रही है रस भी भरा हुआ है,
मिलना जरूर होगा फूलों का तितलियों से ।
लगता मुझे यही है कुछ चाहती वो कहना,
फ़िर आज आ रही है आवाज़ चूड़ियों से ।
सीना फुला के चौड़ा सरहद पे हम खड़े थे,
माँ को बचा रहे थे दुश्मन की गोलियों से ।
गर हो हक़ीम तो फिर क्या मर्ज़ है मुझे वो,
छूकर जरा बताना तुम नब्ज़ उंगलियों से ।
ऊँची खड़ी इमारत इस बात की निशानी,
रोटी हुयी थी चोरी जनता की थालियों से ।
चक्कर लगा रहे हैं आशिक़ मियाँ गली में,
झाँको ज़रा कभी तो बाहर भी खिड़कियों से ।
गाड़ा बहा पसीना खेती किसान ने की,
सोना निकल रहा है गेंहूँ की बालियों से ।
अवधेश सक्सेना-08062020
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