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परिचय

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Monday, June 8, 2020

गेंहूँ की बालियों से

गेंहूँ की बालियों से 

बरक़त बहुत बड़ी है देखो शराबियों से ।
मंडी भरी हुयी है गुंडे मवालियों से ।

ठंडक मिली तुम्हें जो कुछ देर ही रहेगी,
फिर से निकल के सूरज आएगा बदलियों से ।

ख़ुशबू बिखर रही है रस भी भरा हुआ है,
मिलना जरूर होगा फूलों का तितलियों से ।

लगता मुझे यही है कुछ चाहती वो कहना, 
फ़िर आज आ रही है आवाज़ चूड़ियों से ।

सीना फुला के चौड़ा सरहद पे हम खड़े थे,
माँ को बचा रहे थे दुश्मन की गोलियों से ।

गर हो हक़ीम तो फिर क्या मर्ज़ है मुझे वो,
छूकर जरा बताना तुम नब्ज़ उंगलियों से ।

ऊँची खड़ी इमारत इस बात की निशानी,
रोटी हुयी थी चोरी जनता की थालियों से ।

चक्कर लगा रहे हैं आशिक़ मियाँ गली में,
झाँको ज़रा कभी तो बाहर भी खिड़कियों से ।

गाड़ा बहा पसीना खेती किसान ने की,
सोना निकल रहा है गेंहूँ की बालियों से ।

अवधेश सक्सेना-08062020

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