मेरी मौलिक विधा प्रियामृतावधेश में
आम
जब
मुझको
मिला वही
परिचित गरीब
रास्ते में ठहर
हम बात कर रहे थे
आम के पेड़ के नीचे
एक कच्चा आम गिरा वहाँ
जैसे मुझे छूने की चाह में
उसी ने रुकवाया था राह में
पेड़ भी आकर्षित हुए हैं
देखो मेरी आभा से
पर उस आम का भाग्य
मैंने उसे दिया
उस गरीब को
गरीब खुश
हम खुश
अब
अवधेश-05062020
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