ग़ज़ल
संवरने की ज़रूरत क्या है
अब नई राह पे चलने की ज़रूरत क्या है ।
मिल गया सब तो भटकने की ज़रूरत क्या है ।
जब ख़तरनाक हुयी आज हवा है बाहर,
बेवज़ह घर से निलकने की ज़रूरत क्या है ।
जब यहाँ फैल रही है आग नफ़रत वाली,
गीत फ़िर प्यार के लिखने की ज़रूरत क्या है ।
जो नहीं सुनते कभी बात तुम्हारी दिल से,
उन दिलोजान से मिलने की ज़रूरत क्या है ।
चाँद खुद रूप तुम्हारा देख शर्माता है,
फिर तुम्हे सजने संवरने की ज़रूरत क्या है ।
अवधेश 16052020
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