किस्सा नहीं है ।
खुली आँखों दिखा सपना नहीं है ।
हकीकत की वयां किस्सा नहीं है ।
समंदर इश्क़ का गहरा बहुत है,
जो डूबा आज तक उबरा नहीं है ।
सभी अपने लिए ही जी रहे हैं,
यहाँ कोई मेरा अपना नहीं है ।
बिठाना चाहते हम आसमाँ पे,
तुम्हारा कद मगर ऊँचा नहीं है ।
चमकता आसमाँ में आज जैसे,
सितारा आपसा देखा नहीं है ।
किए हैं क़त्ल उसने मुस्कुरा के,
कहीं इस बात की चर्चा नहीं है ।
बने थे ख़ास रिश्ते जो हमारे,
निभाना पर उन्हें आता नहीं है ।
अवधेश सक्सेना-27062020
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