#ग़ज़ल #gazal #शायरी #shayri
चाँद तो बढ़ता रहा ।
आसमाँ में चाँद तो बढ़ता रहा ।
नूर उनका दिन व दिन घटता रहा ।
सुन रहे थे वो बड़े ही ध्यान से,
प्यार की मैं ये ग़ज़ल पढ़ता रहा ।
रुक गए तुम बीच में ही हारकर,
जिंदगी का काफिला चलता रहा ।
जो बहुत ही कीमती होता यहाँ,
वो समय यूँ ही मेरा कटता रहा ।
मानना उनको नहीं था कुछ कभी
जो मुझे कहना था मैं कहता रहा ।
चोट दिल पर जब लगी तड़पा गयी,
दर्द मुझको जो मिला सहता गया ।
आग नफरत की लगी तो सब जला,
ये धुंआ तो देर तक उठता रहा ।
सच नहीं बिकता कभी अब यहाँ,
झूठ इस बाजार में बिकता रहा ।
ये नदी तो सूख कर थम सी गयी,
प्यार का दरिया मगर बहता रहा ।
#अवधेश #awadhesh
08032020
No comments:
Post a Comment