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परिचय

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Monday, June 22, 2020

ग़ज़ल सम्हलना चाहिए था ।

ग़ज़ल सम्हलना चाहिए था । 
 पुराना घर बदलना चाहिए था । 
नई दुनिया बसाना चाहिए था । 
 मुहब्बत थी अगर हमसे कभी तो, 
उन्हें इज़हार करना चाहिए था । 
 सदर पे आ गयी कितनी चमक है, 
शहर को भी निखरना चाहिए था ।
 खिले हैं फूल गुलशन में सनम के, 
उन्हें अब तो सँवरना चाहिए था । 
 पतंगा जल रहा था प्यार में जब, 
शमाँ को भी पिघलना चाहिए था । 
 तुम्हारे बात करने से हुआ क्या, 
नतीजा भी निकलना चाहिए था । 
 लगी ठोकर गिरे कच्ची सड़क पे, 
तुम्हें खुद ही सम्हलना चाहिए था । 

 अवधेश सक्सेना- शिवपुरी मध्य प्रदेश

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