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परिचय

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Monday, June 22, 2020

ग़ज़ल ज़ख्म दिखाया नहीं गया ।

ग़ज़ल 
 ज़ख्म दिखाया नहीं गया । 

सपना पराई आँख सजाया नहीं गया । 
गहरा मिला जो ज़ख्म दिखाया नहीं गया । 

पैदल चले मुक़ाम की मीलों तलाश में, 
अब तक हमारे पाँव का छाला नहीं गया । 

वो जब निकल रहे थे हमारी गली से तो, 
चाहा बहुत बुलाते बुलाया नहीं गया ।  

कोई भी शख़्स ख़ास हमें याद ही नहीं, 
दिलचोर बेवफ़ा को भुलाया नहीं गया । 

जिसने कभी ज़रा भी हमारी नहीं सुनी, 
उसको मगर नज़र से गिराया नहीं गया । 

आहों भरी पुकार थी उस बेजुबान की, 
मरना किसी चरिंदा का देखा नहीं गया । 

इक चाँद ज़िंदगी से ज़रा दूर क्या हुआ, 
सूरज उगे हज़ार अँधेरा नहीं गया । 

मरता रहा किसान सभी देखते रहे, 
उसको किसी मदद से बचाया नहीं गया । 

बर्बाद हम हुए थे किसी हुस्न पर कभी, 
वादा किया जो प्यार में तोड़ा नहीं गया ।

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