ज़ख्म दिखाया नहीं गया ।
सपना पराई आँख सजाया नहीं गया ।
गहरा मिला जो ज़ख्म दिखाया नहीं गया ।
पैदल चले मुक़ाम की मीलों तलाश में,
अब तक हमारे पाँव का छाला नहीं गया ।
वो जब निकल रहे थे हमारी गली से तो,
चाहा बहुत बुलाते बुलाया नहीं गया ।
कोई भी शख़्स ख़ास हमें याद ही नहीं,
दिलचोर बेवफ़ा को भुलाया नहीं गया ।
जिसने कभी ज़रा भी हमारी नहीं सुनी,
उसको मगर नज़र से गिराया नहीं गया ।
आहों भरी पुकार थी उस बेजुबान की,
मरना किसी चरिंदा का देखा नहीं गया ।
इक चाँद ज़िंदगी से ज़रा दूर क्या हुआ,
सूरज उगे हज़ार अँधेरा नहीं गया ।
मरता रहा किसान सभी देखते रहे,
उसको किसी मदद से बचाया नहीं गया ।
बर्बाद हम हुए थे किसी हुस्न पर कभी,
वादा किया जो प्यार में तोड़ा नहीं गया ।
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