ममता का रंग नहीं होता,
ये तो पानी जैसी है ।
बच्चों को दूध पिलाती माँ,
मिलती सानी जैसी है ।
देवों का वास रहे इसमें,
पालें इसको गोपाला,
माँ कहती गाय हमारी माँ,
फिर तो नानी जैसी है ।
कंडों को थाप मिले ईंधन,
घर को लीपें गोबर से ।
रोगी गौ मूत्र अगर पीले,
अच्छा हो वो भीतर से ।
गायों का ध्यान रखा करते,
भारत में खुशहाली है,
सदियों से रोज मिला करती,
रोटी इसको हर घर से ।
खाने को काट रहे इसको,
दंडित हों वो भारत में ।
जो कोई कष्ट इसे देगा,
दुख पाता हर हालत में ।
अब तो कानून बने ऐसा,
गायों का संरक्षण हो,
माता जो गाय हमारी है,
सुख देती हर चाहत में ।
अवधेश-15062020
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