छम छम करती वो जब आती,
मन मंदिर झंकाती ।
गाल गुलाबी नैन शराबी,
चाल चले मदमाती ।
चोटी लंबी होंठ रसीले,
प्रेमारस छलकाती ।
माथा चमके बिंदी ऐसी,
घर भर को दमकाती ।
नाक सजी है नथ सोने की,
रूप किरण बिखराती ।
कान झूमते मोती बाला,
स्वर लहरी फैलाती ।
हार गले का है हीरे का,
रहे ध्यान भटकाती ।
सजी कलाई कंगन चूड़ी,
छन छन छन छनकाती ।
माँग भरे है वो सिंदूरी,
गर्वित हो इठलाती ।
मेंहदी लगे जब हाथों में,
रंग देख मुस्काती ।
बोले मुँह में मिश्री घोले,
मधुर भजन भी गाती ।
लेप लगाती चंदन का वो,
गौर बदन महकाती ।
उसका आना सब मिल जाना,
हृदय प्रेम भर जाती ।
सूखे मन को सिंचित करने,
रूप धार बरसाती ।
अवधेश सक्सेना-24062020 शिवपुरी मध्य प्रदेश
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