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परिचय

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Tuesday, June 23, 2020

सार छंद मन मंदिर झंकाती

सार छंद में एक श्रृंगार गीत 
 छम छम करती वो जब आती, मन मंदिर झंकाती । 
गाल गुलाबी नैन शराबी, चाल चले मदमाती । 

 चोटी लंबी होंठ रसीले, प्रेमारस छलकाती । 
माथा चमके बिंदी ऐसी, घर भर को दमकाती । 

 नाक सजी है नथ सोने की, रूप किरण बिखराती । 
कान झूमते मोती बाला, स्वर लहरी फैलाती । 

 हार गले का है हीरे का, रहे ध्यान भटकाती । 
सजी कलाई कंगन चूड़ी, छन छन छन छनकाती । 
 
माँग भरे है वो सिंदूरी, गर्वित हो इठलाती । 
मेंहदी लगे जब हाथों में, रंग देख मुस्काती । 
 
बोले मुँह में मिश्री घोले, मधुर भजन भी गाती । 
लेप लगाती चंदन का वो, गौर बदन महकाती । 
 
उसका आना सब मिल जाना, हृदय प्रेम भर जाती । 
सूखे मन को सिंचित करने, रूप धार बरसाती । 

 अवधेश सक्सेना-24062020 शिवपुरी मध्य प्रदेश

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