#ग़ज़ल
न वो मौसम हवाओं के ।
न खिलते फूल बागों में न मौसम वो हवाओं के,
कभी जो दिन यहाँ थे वो कहाँ हैं अब बहारों के ।
तटों की रेत पर जैसे लिखा था वो मिटा डाला,
भुला डाले किये थे जो कभी वादे वफ़ाओं के ।
जरूरत है तभी उनका हमें अब साथ चाहिये,
चला करते कभी हम थे बिना उनके सहारों के ।
हंसो तो फूल झरते हैं, लटें क्या खूब लगती हैं,
"दिवाने हो गए हम भी तुम्हारी इन अदाओं के ।"
दुखों के बाद आते हैं सुखों के पल यहाँ साथी,
नदी की धार क्या जाने दुखों को इन किनारों के ।
शराफत का तकाजा है यहां बदमाश को छोड़ो,
लगे हैं दाग पक्के आज बस्ती में शरीफों के ।
किसी का घर जला घर का दिया भी तो बुझा डाला,
तुम्हारा फायदा इस में लुटे अरमां गरीबों के ।
खुदा को मानते हो तो न मानो और बातों को,
खुदा की बस इवादत हो न जाओ दर मजारों के ।
#अवधेश #awadhesh
01032020
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