#मैं_तो_कब_से_हूँ_तैयार
मैं जब खोलता हूँ,
अपने दिल का,
दरवाजा ।
रखता हूँ ध्यान,
आवाज न हो,
ज़्यादा ।
पर उन्हें आहट,
हो ही जाती है ।
उनके दिल का,
दरवाजा,
खुलने की आवाज,
मुझे आती है ।
सोचता हूँ,
कोई दो जगह,
कैसे रहता है ।
जो दिल के अंदर है,
वही बाहर भी है ।
उसका भी दिल है,
उस दिल का भी,
दरवाजा है ।
मुझे यक़ीन है,
मैं भी,
दो जगह रहता हूँ,
यहाँ भी हूँ,
और उनके,
दिल में भी ।
उन्हें भी यकीन है,
पर कह नहीं पाते,
कैसे कहें,
कहे बिना,
कैसे रहें ।
दिल के अंदर जो हैं,
उनसे कहता रहता हूँ ।
चलो चार कदम तुम भी,
चलूँ चार कदम मैं भी ।
वो जो बाहर हैं,
वो अगर चल दें कदम चार,
मैं तो कब से हूँ तैयार ।
मैं जो उस दिल में हूँ,
वो जो इस दिल में हैं,
मिल पाएंगे,
अगर दिल हमारे,
पास हों ।
हम भी,
आस-पास नहीं,
पास-पास हों ।
अवधेश सक्सेना-27062020
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