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परिचय

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Friday, June 26, 2020

छंद मुक्त मैं तो कब से हूँ तैयार

#छंद_मुक्त #रचना 
 #मैं_तो_कब_से_हूँ_तैयार 

 मैं जब खोलता हूँ, 
अपने दिल का, दरवाजा । 
 रखता हूँ ध्यान, 
आवाज न हो, ज़्यादा । 
 पर उन्हें आहट, 
हो ही जाती है । 
 उनके दिल का, 
दरवाजा, 
खुलने की आवाज, 
मुझे आती है । 
 सोचता हूँ, 
 कोई दो जगह, 
कैसे रहता है । 
 जो दिल के अंदर है, 
वही बाहर भी है । 
 उसका भी दिल है, 
उस दिल का भी, 
दरवाजा है ।
मुझे यक़ीन है, 
मैं भी, 
दो जगह रहता हूँ,
यहाँ भी हूँ,
और उनके,
दिल में भी । 
 उन्हें भी यकीन है, 
पर कह नहीं पाते, 
कैसे कहें, 
कहे बिना, 
कैसे रहें । 
 दिल के अंदर जो हैं, 
उनसे कहता रहता हूँ । 
 चलो चार कदम तुम भी,
 चलूँ चार कदम मैं भी ।
 वो जो बाहर हैं, 
वो अगर चल दें कदम चार, 
मैं तो कब से हूँ तैयार । 
 मैं जो उस दिल में हूँ, 
वो जो इस दिल में हैं,
मिल पाएंगे,
अगर दिल हमारे, 
पास हों । 
 हम भी,
आस-पास नहीं, 
पास-पास हों । 

 अवधेश सक्सेना-27062020

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