बस इक ख़ुदा से डरते हैं ।
हम तो बस इक ख़ुदा से डरते हैं ।
अब नहीं हम जफ़ा से डरते हैं ।
चोट दिल पे लगी है अपनों से,
दोस्तों की वफ़ा से डरते हैं ।
काम हमसे बिगड़ नहीं जाए,
सिर्फ़ अपनी ख़ता से डरते हैं ।
क़त्ल कर देते हुस्न वाले ही,
क़ातिलाना अदा से डरते हैं ।
ज़ुर्म उनसे कभी नहीं होता,
जो ख़ुदा की सज़ा से डरते हैं ।
डूब कर जो शराब को पीते,
वो कहाँ मैकदा से डरते हैं ।
खींच कर जो हमें गिरा देती,
रात की उस सदा से डरते हैं ।
आँधियों का मुक़ाबला करते,
नफ़रतों की हवा से डरते हैं ।
सौंप कश्ती जिसे चले हम थे,
अब उसी नाख़ुदा से डरते हैं ।
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