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परिचय

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Monday, June 1, 2020

अहसास पर्वत के

ग़ज़ल
अहसास पर्वत के ।

नदी छूकर निकलती है कभी अहसास पर्वत के ।
गली से वो गुजरती है बने किस्से मुहब्बत के ।

कभी होंगे यहाँ सच भी दिखे जो ख्वाब रातों में,
खुदा पूरे करेगा जो पले अरमान चाहत के ।

वही बदमाश जो करते यहाँ पर खूब बदमाशी,
दिखे वो आज सड़कों पर बने पुतले शराफत के ।

बनाया था कभी जिनको बहुत ही खास हमराही,
वही तो अब बजाते हैं बिगुल तगड़ी बगावत के ।

कभी ईमानदारी की नहीं उम्मीद यहाँ रखना,
किसे दें दोष अब दस्तूर बदले सब सियासत के ।

नहीं कुछ पास इनके जेब भी खाली मकाँ कच्चे,
गरीबों के इरादे हैं बड़ी ऊंची इमारत के ।

किसानों की मुसीबत का नहीं अंदाज़ है तुमको,
हुई बारिश गिरे ओले सुनो ये दर्द आफत के ।

यहाँ कुछ भी करो तुम झूठ या सच के सहारे से,
सभी को मानना है फैसले उसकी अदालत के ।
अवधेश awadhesh
12032020

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