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परिचय

 नाम -इंजी. अवधेश कुमार सक्सेना पिता का नाम- स्व.श्री मुरारी लाल सक्सेना शैक्षणिक योग्यता - DCE(Hons.),B.E.(Civil), MA ( Sociology), LL.B., ...

Tuesday, June 2, 2020

जीवन संघर्ष -संस्मरण

संस्मरण
जीवन संघर्ष 

5 वर्ष 10 माह का बच्चा उस रात अपनी माँ की गोद में लेटा था, माँ की आंखों में आंसू थे, पास ही 14 वर्षीय बड़ा भाई भी बैठा था,  कमरे में आस-पड़ोस के कई लोग मौजूद थे, एक खटिया पर उस मासूम बच्चे के पिता लेटे थे जिनकी निगाह इन बच्चों की तरफ ही थी, उन्हें पत्नी और  बच्चों के भविष्य की चिंता थी पर वो बड़े ध्यान से गीता सुन रहे थे, उनके भाई समान मित्र पास में बैठे गीता सुना रहे थे । दिन में ही अस्पताल से उन्हें घर भेज दिया गया था, डॉक्टर्स ने असमर्थता बता दी थी, घर में पलीं 2 गाय लाली और श्यामा भी उनका हाथ लगवा कर ब्राह्मण को दान कर दीं गयीं थीं । इन गायों का दूध, दही और माखन  बच्चों की माँ बच्चों को नियमित देतीं थीं । चूल्हे के लिए लकड़ियां लेकर आने वाली सहरिया जन जाति की महिला को लकड़ी के पैसों के साथ छाछ भी बच्चों की माँ दिया करती थीं, कई वार साड़ी, कपड़े, खाद्य पदार्थ देते हुए भी माँ को बच्चों ने देखा था । मासूम बच्चा उस काली रात को कभी भुला नहीं सकता, गीता के 18 अध्याय सुनने के बाद 4 बजे उसके पिता परलोक गमन कर चुके थे । 
माँ और दो बेटे लंबे जीवन संघर्ष के लिए तैयार थे, मकान के 2 कमरे किराए पर देने पड़े, बच्चों ने माँ के साथ बचपन से ही जिम्मेदारी लेना शुरू कर दिया, आठबीं क्लास में पढ़ने वाले बड़े बच्चे ने प्रिंटिंग प्रेस पर काम किया, टाइपिंग सीखी और मेहनत के साथ कई छोटे-छोटे काम कर गुजर बसर लायक पैसे कमाना शुरू किए, छोटा बच्चा माँ के हर काम में हाथ बंटाने लगा, कुंए से पानी भरना, ईंधन के लिए कंडे थापने के लिए गोबर के  तसले भर कर सिर पर रखकर लाना, दीवालों और फर्स की लिपाई-पुताई के लिए मिट्टी लाना, दुकान पर बैठना, कागज के लिफाफे बनाकर बेचना जैसे काम किये । छोटे बच्चे की उम्र जब लगभग 13-14 वर्ष थी तब घर से लगभग 1 किलोमीटर दूरी पर ही एक नई शुगर फेक्ट्री खुली, शुगर फेक्ट्री में काम करने के लिए मजदूरों की जरूरत थी, मोहल्ले के कई युवा फेक्ट्री में काम पर जाने लगे, घर की मुश्किलों को दूर करने के लिए इस छोटे बच्चे ने भी फेक्ट्री की नाईट शिफ्ट में काम करने की सोची, दिन में स्कूल और दूसरे काम भी जरूरी थे, फेक्ट्री के गेट पर मजदूरों की लाइन लगती थी और एक मेट या मैनेजर टाइप का व्यक्ति मजदूरों को देखकर सिलेक्ट या रिजेक्ट करता था, छोटे बच्चे की उम्र के और भी बच्चे थे, जिनमें से कई को रिजेक्ट कर दिया था, लाइन में लगा ये बच्चा भगवान से प्रार्थना कर रहा था कि उसे सिलेक्ट कर लिया जाए, पैसों के अभाव में कई तरह की परेशानियों का सामना करते हुए परिवार को कुछ तो सहायता मिलेगी । अपने नम्बर की प्रतीक्षा करते हुए उसके मन में न जाने क्या क्या विचार आ रहे थे, रिजेक्ट होने की  शंका थी लेकिन भगवान से जो प्रार्थना कर रहा था उस पर भरोसा था, जब नम्बर आया तो सिलेक्ट करने वाले ने उसे देखा और रिजेक्ट करने की मुद्रा बनाई लेकिन फिर अचानक कुछ सोचते हुए उसे सिलेक्ट कर दिया । उस बच्चे की खुशी  का ठिकाना नहीं था । उस छोटे बच्चे को ट्रक से गन्ने उतारकर सिर पर रख के फेक्ट्री के अंदर ले जाना और गन्ने का रस निकालने वाली मशीन तक ले जाना जैसे काम रात में करने पड़े । घर की जरूरतों को पूरा करने के लिए वो बच्चा हर मुश्किल काम करने को हमेशा तैयार जो था ।
उस माँ की कठिन तपस्या, संघर्ष और हर पल भगवान की प्रार्थना में लगे रहते हुए काम करते रहने के सुखद परिणाम ये रहे कि बड़ा बेटा बैंक में मैनेजर और छोटा बेटा इंजीनियर बनके प्रथम श्रेणी अधिकारी के पद पर पहुंचा और इस इंजीनियर का बेटा भी आई ए एस की परीक्षा पास करके भारत सरकार का प्रथम श्रेणी अधिकारी बन गया है ।
अवधेश-03062020

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