एक फ़िल्म का दृश्य है -
एक बिछुड़ा हुआ प्रेमी लंबे समय पश्चात जब अपनी प्रेमिका को देखता है तो वह पुरानी यादों में जाकर अपनी प्रेमिका को क्या कहना चाहता है ।
गीत
कहाँ तब चैन आता था
हमारे बिन तुम्हें भी तो कहाँ तब चैन आता था ।
घड़ी दो चार पल को भी रहा ना दूर जाता था ।
किसी झूठे बहाने से हमारे सामने आना,
अदाएं खूब दिखलाना, खिलाना प्यार से खाना
हमें छूकर चले जाना हमें भी खूब भाता था ।
हमारे बिन तुम्हें भी तो कहाँ तब चैन आता था ।
हमें अपना बना तुमने कहीं का भी नहीं छोड़ा ।
निभाने प्यार का रिश्ता नया रिश्ता नहीं जोड़ा ।
मगर वो मुँह लिया मोड़ा हमीं से जो लजाता था ।
हमारे बिन तुम्हें भी तो कहाँ तब चैन आता था ।
तुम्हारे सुर्ख लव पर जब खिली मुस्कान रहती थी ।
हमारी जान में ही तब तुम्हारी जान रहती थी ।
हमारे दर्द सहती थी अगर कोई सताता था ।
हमारे बिन तुम्हें भी तो कहाँ तब चैन आता था ।
कहा करतीं हमें जो तुम कि जिंदा रह नहीं सकतीं ।
हुई हमसे जुदाई तो ज़रा भी सह नहीं सकतीं ।
कभी कुछ कह नहीं सकतीं ख़ुदा जब भी मिलाता था ।
हमारे बिन तुम्हें भी तो कहाँ तब चैन आता था ।
सँवरती और सजती थीं हमें खुश देख कर हँसतीं।
खुली बाँहे लिए आतीं हमें ही घेर ख़ुद फँसतीं ।
हमीं पर तंज भी कसतीं हमें कितना सुहाता था ।
हमारे बिन तुम्हें भी तो कहाँ तब चैन आता था ।
अवधेश सक्सेना -09062020
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