ग़ज़ल
ये सबक बढ़िया मिला ।
जब किया उन पर भरोसा तब हमें धोखा मिला ।
जो हुआ सो हो गया पर ये सबक बढ़िया मिला ।
गर्व से सर को उठाया और हिम्मत बढ़ गयी,
जब रक्षा बंधन मनाने बहन से भइया मिला ।
कब मिला चाहा मुझे क्या मांगते थे क्या मिला,
बारिशों की ख्वाहिशें थीं रेत का दरिया मिला ।
ठीक होता ही नहीं देता बहुत ही दर्द ये,
चोट से दिल पर हमारे घाव जो गहरा मिला ।
जब लगा झटका किसी दिल पर यहाँ कुछ जोर का,
छू लिया जिसका शिखर पर्वत वही हिलता मिला ।
दौर ये आया नया हर इक दबा कुछ बोझ से,
बांटते दुख साथ किसके जो मिला रोता मिला ।
ये नशा मदहोश करता होश वालों को यहाँ,
जो मिला वह प्रेम रस का जाम ही पीता मिला ।
आग नफरत की लगी किसने जहर घोला यहाँ,
देश में कैसी हवा है जो मिला जलता मिला ।
काम धंधा कुछ नहीं मिलता युवाओं को यहाँ,
पेट भरने को यहाँ तुमको नया वादा मिला ।
अवधेश awadhesh
11032020
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