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परिचय

 नाम -इंजी. अवधेश कुमार सक्सेना पिता का नाम- स्व.श्री मुरारी लाल सक्सेना शैक्षणिक योग्यता - DCE(Hons.),B.E.(Civil), MA ( Sociology), LL.B., ...

Sunday, May 31, 2020

वो मनाता भी नहीं ।

ग़ज़ल
वो मनाता भी नहीं ।
अब रुलाकर वो मनाता भी नहीं ।
वो सितमगर अब सताता भी नहीं ।

अब किसी को भी यहाँ पर डर नहीं,
सामने सर वो झुकाता भी नहीं ।

क्यों बनाते अब नए रिश्ते यहाँ,
कोई'अब रिश्ते निभाता भी नहीं ।

जो हमें देते खुशी वो तो कभी,
गीत खुशी के सुनाता भी नहीं ।

था कभी उसका यहाँ जो दबदबा,
वो वही जलवा दिखाता भी नहीं ।

तुम करो खुलकर यहां बातें सभी,
अब हमारे बीच तो पर्दा भी नहीं ।

दर्द अपने सब छुपा कर रखे,
अब हमें वो कुछ बताता भी नहीं ।
अवधेश
17032020

गुनगुनाते रहे हैं

ग़ज़ल
गुनगुनाते रहे हैं 

मुहब्बत के' गाने सुनाते रहे हैं ।
ग़ज़ल जो लिखी गुनगुनाते रहे हैं ।

मिले वो हमें थे खिले फूल दिल में,
जुदा हो के' हमको रुलाते रहे हैं ।

दुखों को हमारे भगाने हमें वो,
सुना के लतीफे हँसाते रहे हैं ।

यहां बेवफाई रगों में है' जिनकी,
वफ़ा वो मेरी आजमाते रहे हैं ।

सभी हों फ़िदा इस वतन पर दिलों से,
हमेशा अलख हम जगाते रहे हैं ।

कभी कोई' उनको बुलाता नहीं है,
हमीं हैं जो' उनको बुलाते रहे हैं ।

कभी जो मिले थे हुए दूर पर वो,
ख्वाबों में आकर सताते रहे हैं ।

नहीं चाहिए कुछ हमें तो किसी से,
सभी काम उनके कराते रहे हैं ।

कभी वो किसी बात पर रूठ जाता,
उसे रूठने पर मनाते रहे हैं ।

मिली जो मुहब्बत कभी चाहने से,
वो' आंसू खुशी के बहाते रहे हैं ।

नहीं चाहते दिल किसी को दिखाते,
वो दिल को हमारे चुराते रहे हैं ।

कहीं हो न जाए अदावत किसी से,
सुरों में सुरों को मिलाते रहे हैं ।
अवधेश-17032020

प्यार के सिलसिले हो गए

ग़ज़ल
प्यार के सिलसिले हो गए ।

पेड़ सूखे हरे हो गए ।
प्यार के सिलसिले हो गए ।

हम चले थे अकेले कभी,
साथ अब काफिले हो गए ।

कल तलक साथ थे आज वो,
आमने सामने हो गए ।

सूख कर रो रही थी नदी,
अब वहाँ जलजले हो गए ।

थे कभी पास में और अब,
बीच में फासले हो गए ।

आग थी जो लगी बुझ गयी,
आब के बुलबुले हो गए ।

रूप उनका निखरता रहा,
हम मगर साँवले हो गए । 
अवधेश 
19032020

ये पर्दा हटा दो ।


ग़ज़ल
ये पर्दा हटा दो ।

छुपाओ न चहरा ये पर्दा हटा दो ।
छलकता नशा रूप का जो पिला दो ।

बुरा कुछ न होगा भरोसा रखो तुम,
बहम भी न पालो कुशंका मिटा दो,

चलो आज फिर से करें दोस्ती हम,
हमारी तरफ हाथ अपना बढ़ा दो ।

चलो तो जरा आज ये काम कर दो,
नदी और प्यासे समंदर मिला दो ।

दिलों को चुराना अगर हो सके तो,
कभी तो हुनर ये हमें भी सिखा दो ।

किया ही नहीं आज तक जो किसी ने,
वही तुम यहाँ आज कर के दिखा दो ।

भले ही सरोवर में कीचड़ भरी है,
चलो फूल उसमें कमल का खिला दो ।

खड़ीं जो इमारत निशानी बदी की,
चलो उनकी मजबूत नीवें हिला दो 

मिले जो कभी एक मौका अगर तो,
शहीदों में तुम नाम अपना लिखा दो ।
अवधेश
19032020



कोरोना पर गीत

कोरोना पर एक गीत-
चैन से सोना नहीं ।
आ गयी जो ये मुसीबत, तुम कभी रोना नहीं ।
हाथ पर रख हाथ तुम यूँ, बैठकर रहना नहीं ।

अब इसे भी है मिटाना, ठान लेना अब सभी,
जब तलक भी ये न भागे, चैन से सोना नहीं ।

हाथ धोकर तुम इसे भी, साफ करते ही रहो,
दूर अपनो से अभी तुम, डेढ़ मीटर पर रहो ।

गर जरूरी हो नहीं तो, काम पर जाना नहीं ।
छींकना तो बाँह पर ही, हाथ में रुमाल हो,

खाँसना तो सावधानी, साथ में हर हाल हो ।
अब नमस्ते ही करो बस, हाथ मिलवाना नहीं ।

ताप हो खांसी उठे या, सांस भी भारी लगे,
नाक से पानी बहे या, कोइ बीमारी लगे ।

फोन करना डॉक्टर को, खुद दवा खाना नहीं ।
चीन से आया यहाँ पर, देश में चिंता विकट,

कर सकेगा क्या हमारा, आ नहीं सकता निकट ।
योग वालों को यहाँ हो, रोग कोरोना नहीं ।

की अगर यात्रा विदेशी, या मिला रोगी कहीं,
वो रहे घर साथ में ही, हो जिसे कोविड कहीं ।

हो अलग जाना सभी से, अब कहीं जाना नहीं ।
कुछ दिनों की बात है बस, तुम जरा धीरज रखो,

मानते जिसको उसी के, पैर पर नीरज रखो ।
कुछ बुरा होगा नहीं ये, मान घबराना नहीं ।
अवधेश

मत कहना भगवान नहीं है

ग़ज़ल
मत कहना भगवान नहीं है ।

जिसकी कोई आन नहीं है ।
उसकी कोई शान नहीं है ।

बिक जाए जो कुछ पैसों में 
इतनी सस्ती जान नहीं है ।

गुरबत ने क्या हालत कर दी,
घर में कुछ सामान नहीं है ।

सबको बस अपने से मतलब
भारत है जापान नहीं है ।

पैदा करने वालों का भी, 
घर मे ही सम्मान नहीं है ।

जो सोचा था वो पाया है,
कुछ बाक़ी अरमान नहीं है ।

फाइल जिनकी टेबल पर है,
उनसे तो पहचान नहीं है ।

घर से बाहर जाएं कैसे,
सरकारी फरमान नहीं है ।

बुझ जाए जिससे ये दीपक,
ऐसा तो तूफान नहीं है ।

उसकी मर्जी से सब होता,
मत कहना भगवान नहीं है ।
अवधेश
20032020

कुछ अशआर

कुछ अशआर -
हाथों को कुछ काम दिलाना,
मुश्किल है आसान नहीं है ।
आवादी से ही रौनक है,
ये बस्ती वीरान नहीं है ।
जनता को कैसे समझाएं
उनको ये भी ज्ञान नहीं है । 
जनता का क्या हाल यहां है,
सरकारों को ध्यान नहीं है ।
अवधेश
20032020

रंगत बदलती जा रही है


ग़ज़ल
रंगत बदलती जा रही है ।

मेरी आदत सुधरती जा रही है ।
तेरी रंगत बदलती जा रही है ।

बला की खूबसूरत है  हसीना,
नजर उस पर फिसलती जा रही है ।

जिसे पैदल नहीं देखा कभी था,
सड़क पर वो मटकती जा रही है ।

कभी थी धुंधली किस्मत हमारी,
दिनों दिन अब चमकती जा रही है ।

किया था राज जिसने देश भर में,
वही सत्ता सिमटती जा रही है ।

कभी सुख थे अभी दुख की घड़ी है,
घड़ी वो भी गुजरती जा रही है ।

डरी सहमी हुयी तूफान से जो,
वो सीने से लिपटती जा रही है ।

किये जो पाप तूने देख उनसे,
भरी मटकी छलकती जा रही है ।

बगीचे में लगी है रोक फिर भी,
कली खिलकर महकती जा रही है ।
अवधेश 
22032020

गीत हमने खुशी के गाए हैं ।

ग़ज़ल 
गीत हमने खुशी के गाए हैं ।

गीत हमने खुशी के गाए हैं । 
प्यार के फूल ही खिलाए हैं ।

अब दबा कर रखी नहीं जाती, 
बात दिल की जुबां पर लाए हैं ।

आज कुछ खास बात है देखो,
वो हमें देख मुस्कुराए हैं ।

प्यार ही प्यार बांटते हैं हम,
इस लिए ही जहाँ में आए हैं ।

देखना तो जरा नजर भर कर,
दिल ज़िगर भी निकाल लाए हैं ।

ऐ शहीदो सलाम भारत का,
याद में हम शमां जलाए हैं ।

जीत की ये खुशी मिली देखो,
चेहरे आज खिलखिलाए हैं ।

रौब झाड़ा कभी बड़ा हम पर,
अब वही रोए गिड़गिड़ाए हैं ।

इस जमाने से क्या हमें हासिल,
हम जमाने के ही सताए हैं ।

ये नशा है शराब का या फिर,
जाम आंखों से जो पिलाए हैं ।

अब न जाना किसी गलत पथ पर,
पाठ हमने यही पढ़ाए हैं ।
अवधेश
23032020

कहीं और दिल को लगाया कहाँ है ।

ग़ज़ल
कहीं और दिल को लगाया कहाँ है ।

कभी आपको भी भुलाया कहाँ है ।
कहीं और दिल को लगाया कहाँ है ।

सही है मुसीबत हमीं ने अकेले,
कभी आपको भी रुलाया कहाँ है ।

सहे जो सितम वो हमीं जानते हैं,
हुआ दर्द दिल में दिखाया कहाँ है ।

रखा ख्याल आराम का हमारे,
कभी नींद से भी जगाया कहाँ है ।

मुझे छोड़ कर माँ गयी तो किसी ने,
कभी गोद में भी सुलाया कहाँ है ।

कभी तो बताना हमें भी जरा तुम, 
कमाया हुआ धन छिपाया कहाँ है ।

कभी रेत का जो घरौंदा बनाया,
बनाकर उसे फिर मिटाया कहाँ हैं ।

उड़ा आंधियों में पुराना घरौंदा,
अभी घर नया बसाया कहाँ है ।

रहो आप अंदर निकलना न बाहर,
अभी वायरस को भगाया कहाँ है ।

सुनो क्या कहा है वज़ीरे वतन ने, 
क़दम एहतियाती उठाया कहाँ है ।

लड़ाई बड़ी है उठो और सोचो,
बिगुल जंग का बजाया कहाँ है ।

रहो देखते चाँद जो है ज़मीं पे,
अभी उसने पर्दा गिराया कहाँ है ।
अवधेश
24032020

जनता को रुलाते देखा



ग़ज़ल
जनता को रुलाते देखा ।

उसको  नश्तर हरे जख्मों पे चुभाते देखा ।
जब भी देखा उसे जनता को रुलाते देखा ।

मेरे सीने में लगी आग बुझेगी कैसे,
जब गरीबों पे सितम उसको ढहाते देखा ।

जो कभी खाक यहाँ छान गुजर करता था,
अब उसे मैंने यहां पैसा बहाते देखा ।

जिनके हाथों में है धन और भुजा की ताकत,
आज उनको ही  हुकूमत को चलाते देखा ।

आज फिर साथ किसी और के वो आए, 
जब भी देखा है उन्हें सिर्फ जलाते देखा ।

चैन की नींद हमें आज सुला ही देगी,
दूर से आज उन्हें पास में आते देखा ।

देख कर प्यार भरा साथ मेरा मन झूमा,
जब मिलन गीत उन्हें आज भी गाते देखा ।

अवधेश
25032020




प्रियामृतावधेश डॉक्टर

#प्रियामृतावधेश #priyamritaawadhesh

ये
डॉक्टर
ही हैं जो
भगवान रूप 
में   पूजे  जाते 
सबका करें उपचार
और बचाते ये जीवन 
ये ही निभाते अपना धर्म 
आओ  अब इनकी  मदद  करें  हम ।
सब छोड़ कर अलग-थलग रहें हम ।
वायरस का इलाज नहीं है
इससे  दूरी  ही  बचाव
संकट जो आया है
इसको टलने दो
धैर्य रखो बस
भय छोड़ो
मानो 
ये

अवधेश
26032020
Awadhesh Kumar Saxena

देश से मुहब्बत की

#ग़ज़ल 
#देश_से_मुहब्बत_की ।

माँ पिता ने सही नसीहत की,
इसलिए देश से मुहब्बत की ।

हक़ मिला ही नहीं हमें जायज़,
सीढ़ियां जब चढ़ीं अदालत की ।

आप ही तो यहाँ के मालिक थे,
आपने किस लिए बग़ावत की ।

आपकी हर सलाह मानी फिर,
क्या हुआ आपने खिलाफत की ।

आ गए तुम किसी की बातों में,
और अपनों से ही अदावत की ।

हार कर सीख मिल गयी लेकिन,
चाल समझी नहीं सियासत की ।

ये पड़ोसी बुरी नियत वाले,
ये समझ आइ तो नदामत की ।
अवधेश 
27032020

हमें देख वो मुस्कुराने लगे हैं

ग़ज़ल 
हमें देख वो मुस्कुराने लगे हैं ।

लिखे गीत जो गुनगुनाने लगे हैं ।
हमें देख वो मुस्कुराने लगे हैं ।

चली आज कैसी हवा हर तरफ से,
परिंदे भी पेड़ों से जाने लगे हैं ।

पढ़ाया लिखाया बढाया जिन्हें भी,
हमें वो ककहरा सिखाने लगे हैं ।

नदी बह रही थी बड़े वेग से जो,
उसे बांधने में ज़माने लगे हैं ।

फसल ये खड़ी है तरसती हुई सी,
इसे अब्र भी अब सताने लगे हैं ।

मुसीबत बड़ी दर पे आयी हमारे,
घरों में घुसे बिलबिलाने लगे हैं ।

हुए गर परेशान उनको न ग़म है,
हमारी दुआ आज़माने लगे हैं।

अवधेश
27032020

बाग में फूलों के जैसे तितलियां

ग़ज़ल 
बाग में फूलों के जैसे तितलियां ।

बाग में फूलों के जैसे तितलियां ।
बाप के दिल में रहें ये बेटियाँ ।

छोड़ कर यूँ चल दिये हमको यहाँ,
कुछ तो होंगी आपकी मजबूरियां ।

जानकर हमने नहीं ऐसा किया,
माफ कर देना हमारी गलतियां ।

बुझ नहीं सकता कभी मेरा दिया,
तेज कितनी भी चलें ये आँधियाँ ।

तुम न आए बाज आदत से कभी,
लग गयीं हैं आज फिर पाबन्दियाँ ।

इस हवा तूफान से बरपा कहर, 
डूबने को  हैं हमारी कश्तियाँ ।

चाँद तारे छुप गए जाने कहाँ,
कड़कड़ाती हैं चमकती बिजलियां ।

राज कितने भी छुपाओ चुप रहो,
बोलती हैं अब यहाँ खामोशियाँ ।

जीतना उससे बड़ा मुश्किल हुआ,
जान ली उसने सभी कमजोरियां ।

अवधेश
28032020

मुक्तक

#मुक्तक 

मैं तो हर पल बस तेरी ही, 
यादों में खोया रहता हूँ ।

दिल के ज़ख्मों को सीने की, 
नामुमकिन कोशिश करता हूँ ।

पत्थर दिल वालों की ज़ालिम,
दुनिया ने बस नफ़रत की है,

नश्तर चुभते तो हैं पर मैं,
गहरी चोटों को सहता हूँ ।

अवधेश
29032020

अगर हमसे मुहब्बत है

ग़ज़ल
अगर हमसे मुहब्बत है ।

हमारा हाल तो पूछो अगर हमसे मुहब्बत है ।
जरा सा पास भी आओ दिखा दो कितनी चाहत है ।

वफ़ा तुमको न आती थी चलो हम भूल जाते हैं,
नहीं शिकवा कोई तुमसे नहीं कोई शिक़ायत है ।      

जहाँ भर में डरे है सब नहीं मिलते किसी से अब,
कभी जो पास होते थे वहीं अब ये मफ़ासत है ।

अगर तुम चाहते हो देश की सेवा अभी करना,
करो बस ये रहो घर में यही मेरी नसीहत है । 

न ताले हैं न लॉकप है न पहने हथकड़ी कोई,
खुले में घूमते गुंडे  बताने को हिरासत है ।

मिला है उस्तरा जिसको वही बंदर नचाता है,
कभी सीधा कभी उल्टा करे उसकी हिमाक़त है,      

सहारा हम बने जिसके उसी ने अब यहां देखो, 
हमारी बात ठुकराई सरासर जो ज़लालत है ।

बलाएं क्या बिगाड़ेंगीं हमेशा ये भरोसा हो, 
रहो महफ़ूज तुम जब तक हमारा सर सलामत है ।     

करो तुम भी मदद उसकी जिसे इसकी जरूरत हो,
नज़र में है खुदा के सब यही उसकी इबादत है ।

अवधेश 
30032020

सूरत दिलनशीं की

ग़ज़ल
सूरत दिलनशीं की ।

जिसे चाहा उसी ने दुश्मनी की ।
जरूरत ही नहीं अब दोस्ती की ।

ढलेगा दिन नहीं तो रात कैसी,
जरूरत मौत को है जिंदगी की

पतंगा मिट गया शम्मा पे जल के,
हुआ बरवाद जिसने आशिक़ी की ।

अमावस रोशनी को ही हराती,
यहाँ खुद चाँद ने ही तीरगी की ।

समंदर में नदी पूरी समाती 
मिटे जिस पर उसी की तिश्नगी की ।

हमें सच झूठ का अंतर पता है,
हमारे साथ तुमने दिल्लगी की ।

ज़मीं पर चाँद देखा था कभी जो,
हमें है याद सूरत दिलनशीं की ।

अवधेश
31032020

जन्मदिन हम मनाते हैं


मेरे कवि मित्र दिनेश जी के जन्म दिन पर 
मैंने एक गीत लिखा है 
उन्हें  शुभकामनाओं सहित सप्रेम समर्पित करता हूँ ।

जनमदिन हम मनाते हैं ।

चलो हम गीत गाते हैं, सभी ख़ुशियाँ मनाते हैं ।
दिनों के ईश का मिलके, जनमदिन हम मनाते हैं ।

करें कविता लिखें गज़लें,निज़ामत मंच की कर लें,
सभी को चाहने वाले, सभी से दिल लगाते हैं ।

करें जो तंज सिस्टम पर, रखें चौकस नजर सब पर,
हमारा इल्म बढ़ता है, अलख  ऐसा जगाते हैं ।

बुलंदी पर रहें हर दम, मिलें इनको न कोई गम,
लिखी जो आज दिल से वो,मधुर कविता सुनाते हैं ।

दुआ करते खुदा से हम, खुशी उनकी नहीं हो कम,
निरोगी हो जियें हर पल, हमें रस्ता दिखाते हैं ।
अवधेश
31032020

दिल तो मिलाओ कभी

ग़ज़ल 
दिल तो मिलाओ कभी

तुम हमें भी तसल्ली दिलाओ कभी ।
जाम आंखों से अपनी पिलाओ कभी ।

सोचते आ गए दूर हम रूठ कर ,
पास आकर हमें तुम मनाओ कभी ।

वो गरीबों के चूल्हे बुझा ना सके,
आग सीने में ऐसी जलाओ कभी ।

जल रहे हों पड़ोसी के घर भी अगर,
दौड़ कर आग तुम भी बुझाओ कभी ।

हम नहीं हैं किसी और के मान लो,
दिल से अपने बहम ये मिटाओ कभी ।

तोहफ़ा प्यार का सौंपना है तुम्हें,
घर पे अपने हमें तुम बुलाओ कभी ।

मान लो बात बिल्कुल सही है यही,
झूठ डर को यहाँ से भगाओ कभी ।

फैलती जा रही है  यहाँ भुखमरी, 
तुम भी भूखे को रोटी ख़िलाओ कभी ।

हाथ से हाथ को गर मिलाना न हो,
एक दूजे से दिल तो मिलाओ कभी ।
अवधेश 31032020

क़तआ

क़तआ

कभी मांगते थे मुझे तुम खुदा से ।
दुआ कर बचाते मुझे आपदा से ।
हुआ क्या तुम्हें ये कभी तो बताओ,
सफ़ीना यही पूछता नाख़ुदा से ।

अवधेश
01042020

आँखें

ग़ज़ल
आँखें

होंठ सीकर भी बोलतीं आँखें ।
राज दिल के भी खोलतीं आँखें ।

जब रहा ही नहीं कोई दिल में,
याद में किसकी फिर बहीं आंखें ।

वो किसी बात पर हुआ गुस्सा, 
तेज तूफान देखती रहीं आँखें ।

चोट दिल को मेरे लगी ऐसी,
देख पत्थर सी हो गयीं आँखें ।

जब रखा हाथ सिर पे उसने,
आँसुओं संग रो रहीं आँखें । 

झाँक के देख लें हमारा दिल,
उनको ऐसी मिलीं नहीं आँखें ।

झील सी लग रहीं नशे की जो,
आज ऐसी हमें दिखीं आँखे ।

अवधेश-03042020






हर जंग जीतते हैं

ग़ज़ल- हर जंग जीतते हैं ।

इस ज़िंदगी में बुज़दिल इंसान हारते हैं ।
हिम्मत करें यहाँ जो हर जंग जीतते हैं ।

मजदूर काम करके बिंदास सो रहे हैं,
ऊँचे मकान वाले रातों में जागते हैं ।

रस्ते यहीं खड़े हैं मंज़िल बदल रहीं हैं ।
थक हार के मुसाफ़िर आराम चाहते हैं ।

खांसी ज़ुकाम भी अब हमको डरा रहे हैं ।
बस दूर से हमारा सब हाल पूछते हैं ।

मेला लगा हुआ था साथी बिछड़ गए थे, 
बरसों हुए उन्हें हम नाकाम ढूंढते हैं ।

इस देश में करोड़ों बेरोज़गार रहते,
उन के गुजारे लायक़ हम काम मांगते हैं ।

जब से तुम्हें मिले हैं हम होश खो चुके हैं,
कर कर के इश्क तुमसे दीवाने हो गए हैं ।

यादें हमें पुरानी बेहद ही आ रहीं हैं,
आँखे खुलीं हुयीं हैं आँसू रुला रहे हैं ।

अब देश के लिए ही मरना हमें पड़ेगा,
जो फ़र्ज़ हैं हमारे हमको  बुला रहे हैं ।
अवधेश -03042020

तुझे मैं चाँद ला दूँगा

तुझे मैं चाँद ला दूँगा ।

जरूरत हो बता देना तुझे मैं चाँद ला दूँगा ।
तेरी इक मुस्कुराहट पर बहारें मैं लुटा दूँगा ।

कभी कोई परेशानी तुझे छूने न पाएगी,
तेरे कदमों में दुनिया की सभी चीज़ें बिछा दूँगा ।

तुझे जब देखता हूँ मैं नहीं फ़िर होश रहता है,
मिले जो तू अकेली तो तुझे मैं दिल दिखा दूंगा ।

तेरी साँसों से महकेगी कभी बगिया मेरे तन की,
रहे जिसमें ख़ुशी से तू महल ऐसा बना दूँगा ।

मुझे पूरा भरोसा है ख़ुदा जोड़ी बनाता है,
दुआ होगी जहाँ पूरी वहीं मैं सर झुका दूँगा ।

बनेगी तू मेरी दुल्हन नज़ारा क्या गज़ब होगा ।
तेरी मैं मांग सिंदूरी सितारों से सजा दूँगा ।

करूँगा वो कभी भी जो किसी ने ना किया होगा,
मुहब्बत का नशा ऐसा तुझे भी मैं पिला दूँगा ।

अवधेश-05042020






मामला क्या है

ग़ज़ल 
मामला क्या है ।

पूछना था कि मामला क्या है ।
जानते ही न  बोलना क्या है ।

तुम जिओ जिंदगी निडर हो कर, 
रोज मरने से फ़ायदा क्या है ।

जो सज़ा पे सज़ा मिली मुझको,
तू बता तो मेरी ख़ता क्या है ।

तुम चले जा रहे जिन्हें पाने, 
मंजिलों का पूछा पता क्या है ।

जीतने के लिए कभी जानो,
क्या सही और क़ायदा क्या है ।

चाँद चक्कर लगा रहा जिसके,
उस ज़मीं ने उसे कहा क्या है ।

मैं नहीं मानता ख़ुदा उसको,
और ना  जानता सजा क्या है ।

अवधेश-06042020












अकेले सफ़र में

ग़ज़ल 
अकेले सफ़र में ।

चले जा रहे हैं अकेले सफ़र में ।
मिलेगा कभी साथ सूनी डगर में ।

इबादत यही हम करेंगे ख़ुदा से,
रहें वो हमेशा हमारी नज़र  में ।

खिजां जा रही है चमन गा रहा है,
नए आ रहे देख पत्ते शजर में ।

रुकेंगे यहाँ चार दिन ही मुसाफ़िर,
ठिकाना अगर हो कहीं इस शहर में ।

अकेले नहीं पा लिया राज तुमने,
मिरे हाथ शामिल रहे इस ज़फ़र में ।

मुहब्बत कभी हो अगर एक से हो,
खुदा को करो याद शामो सहर में ।

करेंगे अलग काम कुछ जो यहाँ पर,
रहेंगे वही तो हमेशा खबर में ।

अवधेश-07042020







रिश्ता नहीं निभाया है

ग़ज़ल
रिश्ता नहीं निभाया है ।

झूठ की नींव पर बनाया है ।
तुमने रिश्ता नहीं निभाया है ।

डूबता अब कहीं मेरा सूरज,
आस का इक दिया जलाया है ।

बात कुछ तो कहीं हुयी होगी,
आज उसने हमें बुलाया है ।

हम दिलाते जिसे खुशी उसने,
बेबजह ही हमें रुलाया है ।

ख्वाब में आ रही परी कोई,
माँ ने लोरी सुना सुलाया है ।

जो नहीं दिख रहा कहीं भी पर,
ख़ौप से उसने ही डराया है ।

छोड़ कर तुम अलग हुए हमको,
दूसरों ने हमें बचाया है ।

अवधेश-08042020


आदमी मैं आम था

ग़ज़ल
आदमी मैं आम था ।

ज़ुर्म करके बच गया वो मेरे सर इल्ज़ाम था ।
जान की बाज़ी लगा दी  क्या मिला ईनाम था ।

आपने समझा नहीं वो क्या हमारे बीच था,
आपसे जो सिलसिले थे इश्क उसका नाम था ।

आग लगती पेट में तो बांध कपड़ा सो रहे,
वो समय भी था हमारे हाथ में जब काम था ।

पी रहे थे सब वहाँ साकी के हाथों झूम कर,
हम परेशां थे हमारे हाथ खाली जाम था ।

दूर इतने हो गए वो रास्ता मुश्किल हुआ,
वो नहीं थे पास उनका ख्याल सुबहो-शाम था । 

देख लो बाज़ार का क्या हाल है अपने यहाँ,
माल जो घटिया बना उसका ही ऊंचा दाम था ।

खास लोगों ने यहाँ पर जीत ली दुनिया मेरी,
मैं नहीं कोई सिकन्दर आदमी मैं आम था ।

अवधेश-09042020


मुक्तक

मुक्तक

कमल नयनों में उन्होंने लगाया चोर के काजल ।
पहन कर आ गए जब सामने बजने लगी पायल ।
मुझे जिसने बनाया है दिवाना इन  अदाओं से,
नजर मुझ पर पड़ी सम्हालने फ़िर वो लगे आँचल ।
 
अवधेश- 10042020

शिक़ायत क्या

ग़ज़ल
शिकायत क्या ।

जो किया वो नहीं ख़िलाफ़त क्या ।
अब इसी को कहें सियासत क्या ।

दिखते हैं जो हसीन रातों में,
ख़्वाब होते भी हैं हक़ीक़त क्या ।

जेठ में तप रहे खड़े पर्वत,
तुम समझते इसे हरारत क्या ।

आंधियों में जले दिया उसको, 
है बड़ी कोई मुसीबत क्या ।

हिंदुओ और मुस्लिमों सोचो,
भाइयों से नहीं मुहब्बत क्या ।

मान इंसानियत बड़ा मजहब,
इससे अच्छी भला नसीहत क्या ।

हर खुशी तो यहाँ मिली तुझ से,
जिंदगी अब मुझे शिकायत क्या ।

अवधेश-12042020





देखो ज़रा नज़ारे

ग़ज़ल 
देखो जरा नज़ारे

कुदरत के तोहफे हैं देखो जरा नज़ारे ।
कितने हसीन लगते रातों में चाँद तारे ।

पर्यावरण बिगाड़ा परिणाम सामने हैं,
ख़तरे में ज़िंदगी है इंशा की आज प्यारे ।

वो चाहता यही है दुनिया में सब सुखी हों,
समझा नहीं कोई जो उसने किये इशारे ।

किश्ती फ़ंसी हुई है भँवर में आज उनकी,
नादान नाख़ुदा है कैसे मिलें किनारे ।

हम तो यहाँ हमेशा सच के लिए लड़े थे,
दुश्मन से जीत आए पर दोस्तों से हारे ।

जिन पर हमें भरोसा उनसे अटूट बंधन,
वो छोड़ कर गए क्यों हमको बिना सहारे ।

कोयल सुना रही है बोली बड़ी सुरीली 
बादल खुशी से पागल धरती उसे पुकारे ।
अवधेश-13042020

आराम मत करना गीत

गीत
आराम मत करना 
मुझे गर चाहते हो तो मुझे बदनाम मत करना ।
हमारे बीच की बातें कभी तुम आम मत करना ।

जुदाई की कभी बातें जुबाँ पर तुम नहीं लाना ।
मुहब्बत है अगर सच्ची कभी तुम छोड़ मत जाना,

इसे अंजाम तक लाना इसे नाकाम मत करना ।

जरूरत है नहीं मुझको ज़रा भी चाँद तारों की,
न ख़्वाहिश है मुझे हीरे जड़े सोने के हारों की ।

मुझे खुश देखने कोई गलत तुम काम मत करना ।

हमेशा प्यार करना बस यही तुमसे गुज़ारिश है ।
ज़मीं जब गर्म होती है तो उसकी चाह बारिश है ।

हमेशा काम करना तुम कभी आराम मत करना ।

अवधेश-14042020

वक़्त ये भी हमारा निकल जाएगा

ग़ज़ल 
वक़्त ये भी हमारा निकल जाएगा ।

देख ज़र की चमक वो फिसल जाएगा ।
पेट का राज भी वो उगल जाएगा ।

आईना साफ करके जरा देखना,
चेहरा जिंदगी का बदल जाएगा ।

झूठ में ही सही पर सराहो कभी,
दिल हमारा इसी से बहल जाएगा ।

तुम हसीनों की महफ़िल में मत ले चलो,
दिल किसी पर हमारा मचल जाएगा ।

देखना तुम नहीं जंग की तसवीरें,
देख कर दिल तुम्हारा दहल जाएगा ।

मत सुना दास्तां मुश्किलों की हमें,
मोम सा दिल हमारा पिघल जाएगा ।

आ गयीं जो मुसीबत चली जाएंगीं,
वक़्त ये भी हमारा निकल जाएगा ।
अवधेश-14042020





करिश्मे हमें वो दिखाता बहुत है ।

ग़ज़ल 
करिश्मे  हमें वो दिखाता बहुत है ।

करिश्मे  हमें वो दिखाता बहुत है ।
इनायत वो अपनी लुटाता बहुत है ।

मिले हार या जिंदगी जीत जाए,
ख़ुदा खेल सबको खिलाता बहुत है ।

शरारत करे शोख़ शैतान बच्चा,
बड़ा चुलबुला है हँसाता बहुत है ।

घरों में सभी के  लगे आज ताले,
सड़क पर चले जो रुलाता बहुत है ।

ज़रा रूठ जाएं अगर हम कभी तो,
बड़े प्यार से वो मनाता बहुत है ।

हमें ख्वाब वो दिखाता मिलन के,
हक़ीक़त में तो वो सताता बहुत है ।

भुगतना पड़े अब नतीज़े बला के,
ख़ुदा सीख सबको सिखाता बहुत है ।

अवधेश-15042020






अहीर मात्रिक छंद

अहीर मात्रिक छंद
ऐसा तू कर काम, छूटें यहाँ निशान ।
अपना तू कर नाम, हो देश पर कुर्बान ।
बोलना जय किसान, बोलना जय जवान ।
सब हैं एक समान, मेरा देश महान ।

और न हो नुकसान, सुन लेना भगवान ।
सबके बनें मकान, सबकी चले दुकान ।
विकसित हो विज्ञान, साफ हो आसमान ।
होंठो पर मुस्कान,  पूरे हों अरमान ।

अवधेश-16042020

प्यार का तोहफ़ा

ग़ज़ल
प्यार का तोहफा हो गया ।

ग़म हमारा दफ़ा हो गया ।
प्यार का तोहफ़ा हो गया ।

आपका हुस्न भर देख कर,
दिल मेरा आपका हो गया ।

सच ज़रा ही कहा जब उसे,
मुझ से वो फिर ख़फ़ा हो गया ।

ख्वाब ज्यादा हसीं हो गए,
इश्क़ में ये नफ़ा हो गया ।

बात उलफ़त की जिसने की थी,
वो सनम बेवफा हो गया ।

रूह को हम समझ जो गए,
खूब ये फ़लसफ़ा हो गया ।

वायरस ने गज़ब कर दिया,
देश कितना सफ़ा हो गया ।

अवधेश-16042020







जगाते रहो

ग़ज़ल 
मीठे सपने दिखाकर सुलाते रहो ।
सुर सजीले सुनाकर जगाते रहो ।

जिंदगी में खुशी या मिले गम कभी 
गुनगुनाते रहो मुस्कुराते रहो ।

देख कर आपको जिंदगी चल रही,
आप मेरी गली रोज आते रहो ।

तुम रहो एक मासूम बच्चा बने,
खुद हँसों और सबको हँसाते रहो ।

साथ चलना जरूरी जमाने के है,
आप खिचड़ी अलग मत पकाते रहो ।

दूर से देखने से नहीं फायदा,
पास जाकर उसे तुम रिझाते रहो ।

नफरतों से बचाते रहो देश को,
प्रेम का पाठ सबको पढ़ाते रहो ।

मुश्किलों से मिला साथ उनका तुम्हें,
पाक रिश्ते बने जो निभाते रहो ।

कुछ नहीं ये समझ पा रहे बात को,
इनसे बेकार भेजा खपाते रहो ।
अवधेश-19042020

पत्थर हटाते रहो

#ग़ज़ल 

पत्थर हटाते रहो 

तुम कदम आगे अपने बढ़ाते रहो ।
देश को दुश्मनों से बचाते रहो ।

कुछ नहीं ये समझ पा रहे बात को,
इनसे बेकार भेजा खपाते रहो ।

बाप से एक बच्चा यही कह रहा,
गोद में ले मुझे तुम झुलाते रहो ।

मर मिटेंगे हँसी पर तुम्हारी सनम,
तुम अदाओं से अपनी लुभाते रहो ।

बस इबादत समझ कर खुदा की इसे,
इश्क को हुस्न से तुम मिलाते रहो ।

आसमाँ को अगर नापना हो उन्हें,
पंख देकर उन्हें तुम उड़ाते रहो ।

आ रहे जो मुसाफ़िर बड़ी दूर से,
प्यास उनकी हमेशा बुझाते रहो ।

मंजिलों की तरफ जा रहे जो बढ़े, 
राह की उनके पत्थर हटाते रहो ।
अवधेश-19042020


ख़िलाफ़त रहे

ख़िलाफ़त रहे 

किसी से नहीं अब अदावत रहे ।
नहीं अब किसी से हिक़ारत रहे ।

हुक़ूमत करो तो करो इस तरह,
गरीबी मिटाने सियासत रहे ।

दुआ मांगते हैं ख़ुदा से यही
ये जोड़ी हमेशा सलामत रहे ।

मिलेगा वही जो हमें चाहिए, 
ख़ुदा की जो होती इबादत रहे ।

किसी और की क्या जरूरत हमें,
हमें आपसे बस मुहब्बत रहे ।

नहीं ज़ुल्म हो अब किसी शख्स पर,
नहीं बागियों की बगावत रहे ।

बड़ी मुश्किलों से ये दौलत मिली,
इसे खर्चने में किफ़ायत रहे ।

बहुत सह चुके अब हटाओ इसे,
नहीं और इसकी हिमाक़त रहे ।

गरीबों से धोखा करे जो यहाँ,
उसी की हमेशा ख़िलाफ़त रहे ।

अवधेश 

Saturday, May 30, 2020

पुलिस सबसे महान है उल्लाला छंद

उल्लाला छंद में गीतिका
पुलिस सबसे महान है ।
कोरोना की जंग के, शहीदों को सलाम है ।
ख़ाकी वर्दी पहन के, सेवा जिनका काम है ।
बीबी बच्चे छोड़ के, ड्यूटी सुबहो शाम है ।
भोजन पानी त्याग के, आराम तो हराम है ।

मीडिया या पब्लिक हो, सबको इनसे आस है ।
नेता या फिर बॉस हो, इनके भी ये पास है ।
खुद को भले जोखिम हो, दूसरे को प्रयास है ।
सुना कि इनसे  दूर हो, कोइ न इनका खास है ।

नमन पुलिस आरक्षक को, पुलिस हमारी आन है ।
नमन पुलिस निरीक्षक को,पुलिस हमारी वान है ।
नमन पुलिस अधीक्षक को, पुलिस हमारी शान है ।
हम करें नमन पुलिस को, पुलिस सबसे महान है ।

अवधेश-21042020


मिलेगी खुशी कभी


ग़ज़ल
मिलेगी ख़ुशी कभी ।

पथराई आँख में भी दिखेगी नमी कभी ।
जब तुम सुनोगे बात हमारी कही कभी ।

दिल पर पड़े निशान हमारे मिटे नहीं,
आती तो होगी याद उसे भी कभी कभी ।

नापाक हरकतों से पड़ोसी कहाँ रुके,
हम आँख फोड़ देंगे इधर जो उठी कभी ।

बिखरा जो आसपास तुम्हारे हसीन है,
क्या वो शबाब देख ग़ज़ल भी लिखी कभी ।

नफ़रत भरी हवा से भड़कती रही यहाँ,
कितनी बुझाई आग बता क्या बुझी कभी ।

ये हाल देख देश के क्या कुछ हुआ नहीं,
क्या आग इंकलाब की दिल में जली कभी ।

ग़म और मुश्किलों में सदा ज़िन्दगी कटी,
उम्मीद बरकरार मिलेगी ख़ुशी कभी ।

अवधेश-21042020

डॉक्टर की महिमा छप्पय छंद

छप्पय छंद में डॉक्टर की महिमा 

1
डॉक्टर की महिमा, तुमको मैं सुनाता हूँ ।
गॉड इन्हें मानते, कारण मैं बताता हूँ ।
अपना शीश इनके, चरणों में झुकाता हूँ ।
इनकी ही बजह से, ख़ुशियाँ मैं मनाता हूँ ।
रोगी की सेवा करें, खुद की परवाह न करें ।
परिवार का त्याग करें, हमारा उपचार करें ।
2
बड़ी कठिन परीक्षा, पास करनी पड़ती है ।
जवानी की प्रेक्षा, किताबों पर रहती है ।
इनकी जिंदगानी, मुश्किल से गुजरती है ।
ताकत आसमानी, इनका भाग्य गढ़ती है ।
रोगी की जांच करते, हँस कर ये बात करते ।
रोग का निदान करते, सही से इलाज़ करते ।
3
होली या दिवाली, छुट्टी नहीं मनाते हैं ।
रात हो या काली, इनको जब बुलाते हैं ।
जल्दी नींद भगा के, जल्दी से ये आते हैं ।
अपने गम भुला के, रोगी को हँसाते हैं ।
बीमारी या दुर्घटना, इनके पास पहुंचना ।
जन्म मरण की घटना, जरूरी इनका रहना ।
4
सफाई कर्मी को, सब जन नमन करते हैं ।
स्वास्थ्य के रक्षक को, हम सब नमन करते हैं ।
डॉक्टर और नर्स को, शत शत नमन करते हैं ।
असली भगवान को, झुक कर नमन करते हैं ।
डॉक्टर्स के सम्मान में, कभी कमी न आएगी ।
इनकी ही प्रशंसा में, दुनिया गाने  गाएगी ।

अवधेश-22042020




गाते हुए सुनाना

ग़ज़ल
गाते हुए सुनाना

दिल की लगी हुयी क्या तुमसे हमें छुपाना ।
क्या दिल में है तुम्हारे तुम भी हमें दिखाना ।

ताले लगे हुए हैं मंदिर में दिल के उनके,
आसाँ नहीं किसी के दिल में जगह बनाना ।

भूले नहीं कभी हम बचपन के उन दिनों को,
छत पर बड़े मज़े से बरसात में नहाना ।

वो जो सुना रहे हैं हमको बड़े यकीं से,
आधी हक़ीक़तें हैं आधा ही है फ़साना ।

अब याद आ रहे हैं दिन जो बहार के थे,
मिलता नहीं पुराना जो खो गया ज़माना ।

मुद्दत हुयी किसी ने आवाज़ ही नहीं दी,
गर तुम बुला सको तो हमको कभी बुलाना ।

मेरी ग़ज़ल तुम्हारे दिल में उतर रही है,
तुम भी इसे किसी को गाते हुए सुनाना ।

अवधेश-23042020

दोहे पुस्तक दिवस

विश्व पुस्तक दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं ।
दोहे-
1
विश्व पुस्तक दिवस मना, खुश हैं रचनाकार,
पुस्तकों की महिमा का, खूब करो प्रचार ।
2
खूब पढ़ो तुम पुस्तकें, बढ़े तुम्हारा ज्ञान,
विषय हों मन पसंद के, कला कहो विज्ञान ।
3
सबसे अच्छी मित्र ये, सदा निभातीं साथ ।
यही तो गुरु ग्रन्थ हैं, टेको अपना माथ ।
4
इनको पढ़कर ही बने, मानव कई महान,
इनको लिखकर ही मिले, लेखक को सम्मान ।
5
हर भाषा की पुस्तकें, भाषा की पहचान,
विश्व की ये धरोहरें,  इनका हो गुणगान ।

अवधेश-23042020

माहिया

#माहिया 
अब शहर हरा होगा 
नारंगी था जो
वायरस डरा होगा 

ताला बंद  न माने
पब्लिक भारत की
राम नतीजा जाने 

गरीब का क्या होगा
मजदूर क्या करे
पता नहीं क्या होगा

प्रधान मंत्री कहते
समझा समझा कर
लोग घर में न रहते 

क्या है ये कोरोना 
हम से हारेगा 
इसको  होगा रोना 

अवधेश 24042020

दोहे

दोहे 
अर्जित ज्ञान शक्ति करें, ज्ञात रखो उपयोग ।
अगर ज्ञान होगा नहीं, असफल रहें  प्रयोग ।

शुभकर्म दुष्कर्म  किये, सुयोग या दुर्योग ।
राम बने रावण बने, जो बने महायोग ।

अवधेश-25042020

मुक्तक


मुक्तक

फूल जो तुम तोड़ कर ले जा रहे हो साथ अपने ।
क्या पता है पेड़ ये किसने लगाया हाथ अपने  ।
सींच कर पानी बड़ा किसने किया क्या जानते हो,
अब उसी माली के कदमों में रखो तुम माथ अपने ।

अवधेश-25042020

वीर मरते नहीं

ग़ज़ल 

वीर मरते नहीं ।

चोट कितनी लगे आह भरते नहीं ।
देश पे जान दे वीर मरते नहीं ।

हक़ मिला गर नहीं छीन कर ले लिया,
हम ज़माने से फरियाद करते नहीं  ।

वो नहीं अब करें बात मीठी कभी, 
सुर्ख कोमल लबों से फूल झरते नहीं ।

आपदा तो हमें देती मौके नए, 
हम कभी भी चुनौती से डरते नहीं ।

माँस के बिना भूख से लड़ मरे, 
जंगली शेर हैं घास चरते नहीं ।

अवधेश

मुक्तक आरोग्य सेतु

मुक्तक
आरोग्य सेतु

आरोग्य सेतु ऐप सभी, डाउन लोड अभी करें ।
कोरोना से बचे रहें, सहयोग देश का करें ।
सरकार अपने साथ है, डरना नहीं कभी कहीं,
जीतेंगे ये यकीं रखें, भारत पे विश्वास करें ।

अवधेश-26042020

इनायत हो रही है

ग़ज़ल
इनायत हो रही है ।

हुक़ूमत की ख़िलाफ़त हो रही है ।
बड़ी घटिया सियासत हो रही है  ।

मुहब्बत में नजर आया ख़ुदा है,
मुहब्बत से मुहब्बत हो रही है ।

सभी खुश हैं हमारे फैसलों से,
तुम्हें ही बस शिकायत हो रही है ।

वफ़ा का खून करने की ख़ता की,
तुम्हें अब क्यों ख़जालत हो रही है ।

इबादतगाह में जाना मना है,
घरों में ही इबादत हो रही है ।

कहानी सुन रखी थी जो पुरानी,
वही देखो हक़ीक़त हो रही है ।

जहाँ झुकते सभी आगे हमारे,
वहीं पर अब ज़लालत हो रही है

कभी जो झोंपड़ी थी इस जगह पर,
वही ऊंची इमारत हो रही है ।

क़दम रखते ही मंजिल मिल रही है,
ख़ुदा की अब इनायत हो रही है ।
अवधेश-26042020

हमारी बेक़सी को

ग़ज़ल
कौन समझेगा हमारी बेक़सी को ।

इक्तिका की इक्तिज़ा हो जिस किसी को,
आशियाना तुम बनाकर दो उसी को ।

पल बदलते रंक या राजा बना दे,
वक़्त क्या से क्या बना दे आदमी को ।

छेड़ते जैसे लफंगे युवतियों को,
बांध लेते अश्क़िया बहती नदी को ।

सदियां गुज़रीं नहीं इतलाफ़ ऐसा,
क्या कहें इक्कीसवीं आसिम सदी को ।

फूल झरते हैं तुम्हारे इन लबों से,
तुम कभी मत रोकना अपनी हँसी को ।

तुम रहोगी साथ मेरे इस तरह से,
चाँद रखता साथ जैसे चाँदनी को ।

क्या करें जाएं कहाँ दिल रो रहा है,
कौन समझेगा हमारी बेक़सी को ।
अवधेश-27042020

मुक्तक

मुक्तक
नया सवेरा हुआ यहाँ पर, 
जो चाहती थी मिला मुझे है ।
सुहाग की प्रथम रात थी ये,
जो माँगती थी मिला मुझे है ।
पिया वही तो मिले मुझे हैं,
जो दिल में मेरे बसे हुए हैं ।
यहाँ बसेरा रहे हमेशा,
जो सोचती थी मिला मुझे है ।

सभी रहें खुश यही हमेशा,
दिया जला कर दुआ करूँगी ।
कभी सेवा में कमी न होगी,
लगन लगा कर किया करूँगी ।
ननद ससुर सास और देवर,
बहन पिता मात भाई जैसे,
इन्ही से रिश्ते बने रहेंगे,
सभी से मिलकर रहा करूँगी ।
-अवधेश सक्सेना 
28042020


दिल बेक़रार शामिल है

ग़ज़ल
दिल बेक़रार शामिल है ।

प्यार में अब करार शामिल है ।
इसमें दिल बेकरार शामिल है ।

मानते क्यों बुरी भली बातें,
तल्ख़ बातों में प्यार शामिल है ।

लॉक डाउन गरीब को मारे,
सोच में क्या विचार शामिल है ।

हर तरफ़ उठ रही सदाओं में,
बेबसों की पुकार शामिल है ।

योजना क़ायदा बनाने को,
कौन सा जानकार शामिल है ।

देश का धन चुरा रहे उनमें,
बैंक का कर्ज़दार शामिल है ।

बाँट रोटी मिले खुशी उसमें,
भूख की लूटमार शामिल है ।

दिल से जो मैं लुटा रहा उसमें,
अत्फ़ भी बेशुमार शामिल है ।

अब कहीं काम मिल नहीं पाता,
प्लान में रोजगार शामिल है ।
अवधेश-28042020 (*अत्फ़ =दया, प्रेम)

आसान जर दो


ग़ज़ल
मेरे ऊपर जरा अहसान कर दो ।
सवालों को ज़रा आसान कर दो ।

तुम्हारी याद में जो मर रही है,
"हमारी जान को जान कर दो ।"

अगर चाहो जरा ये काम कर दो,
गरीबों के खतम *अहज़ान कर दो ।

बड़ी मुद्दत हुयी देखा नहीं है,
कभी पूरे मेरे अरमान कर दो ।

जरूरत देश को है अब तुम्हारी,
इसी पे ज़िन्दगी कुर्बान कर दो ।
*अहज़ान= दुःख

अवधेश सक्सेना-29042020

बंद मैखाना हुआ

ग़ज़ल
बंद मैखाना हुआ ।

जब यहाँ पर बंद मैखाना हुआ ।
देख खाली जाम पैमाना हुआ ।

फिर बताना क्या कहा तुमने अभी,
लग रहा है नाम पहचाना हुआ ।

आशिक़ों में नाम शामिल हो गया,
उनको देखा और दीवाना हुआ ।

फड़फड़ाने लौ लगी रोती हुयी,
जब फ़ना शम्मा पे परवाना हुआ ।

एक तो मौसम सुहाना और तू,
मन मचल कर और मस्ताना हुआ ।

याद करते हम उन्हें हरदम रहें,
सिलसिला इख्लास रोजाना हुआ ।

कल तलक जिनसे अदावत खूब थी,
अब हमारा उन से याराना हुआ ।

अवधेश-29042020

प्यार की यही कहानी- रोला छंद

रोला छंद 
गीतिका- प्यार की यही कहानी
1
पिया मिलन की आस, लगी है प्यास निराली ।
मुझको है विश्वास, रहेगी दुआ न खाली ।
2
मावस की है रात, मगर बिंदी चमकेगी ।
यहाँ गिरे बरसात, वहाँ बिजली कड़केगी ।
3
उनसे होगी बात, बड़ा आनंद मिलेगा ।
उजड़ा है जो बाग, उसी में पुष्प खिलेगा ।
4
रहकर उनके पास, उन्हें देखती रहूंगी ।
वही तो मेरे खास, उनकी सेवा करूँगी ।
5
बड़े दिनों के बाद, बदन की अगन बुझेगी ।
नदिया बहती आज, सागर में जा रुकेगी  ।
6
मिले मुझे सरताज़, मिलन ये याद रहेगा ।
क्षितिज करेगा राज, धरा से गगन मिलेगा ।
7
मन की है आवाज़, मिलेगी मुझे निशानी ।
बज रहे है साज़, प्यार की यही कहानी ।
8
खुशियाँ हों आबाद, मिलन के गीत बुनेंगीं ।
सखियाँ मेरे साथ, मधुर संगीत सुनेंगीं ।

अवधेश-30042020

इरादा कभी

तुम निभाते अगर यार वादा कभी,
छोड़ने का न करते इरादा कभी ।
अवधेश-30042020

ज़िंदगी

ग़ज़ल
ज़िन्दगी

जा रही है शान से गुज़र ज़िन्दगी ।
कर रही है हमेशा सफर जिंदगी ।

दूर के मुसाफ़िर कहाँ रुक गए,
जा रही है कहाँ छोड़कर ज़िन्दगी ।

ढूंढते हम रहे रोशनी के लिए,
अब न जाने मिलेगी किधर ज़िन्दगी ।

तुम चलो तो ज़रा कुछ क़दम साथ में,
सामने आएगी फिर नज़र ज़िन्दगी ।

मिल मिलाकर समेटे रहो तुम इसे,
अब न जाए कहीं फिर बिखर ज़िन्दगी ।

वक्त की कद्रदानी हमेशा करो,
जाने किस वक्त जाए ठहर ज़िन्दगी ।

इक तरफ़ प्यार है और सब इक तरफ,
या इधर ज़िन्दगी या उधर ज़िन्दगी ।

अवधेश-30042020

इरादा कभी

212 212 212 212
तुम निभाते अगर यार वादा कभी ।
छोड़ने का न करते इरादा कभी ।
अवधेश-30042020

कुंडलियाँ छंद

#कुंडलियां छंद
कड़केगी विद्युत तड़क, जैसे बैरन सास ।
आस मिलन जगने लगी, पीतम हैं अब पास ।
पीतम हैं अब पास, लगी है प्यास निराली ।
बुझेगी जलती आग, रहेगी दुआ न खाली ।
मावस की है रात, मगर बिंदी चमकेगी ।
इधर बरसते मेघ, उधर विद्युत  कड़केगी ।

अवधेश-01052020

दोहा


दोहा
संदेह तुम करो नहीं, मानो  मेरी  बात ।
मेरे मन में तुम बसीं, दिन हो या फिर रात ।
अवधेश-01052020

कहमुक़री

कहमुकरी 
1जब देखो तब ही समझावे ।
मातृभक्ति का पाठ पढ़ावे ।
बनके रहता सदा फटीचर ।
क्या सखि साजन ?
ना सखि टीचर ।
2गावे नाचे और नचावे ।
बड़ा मधुर संगीत सुनावे ।
मिटे कभी न उसकी तृष्णा ।
क्या सखि साजन ?
ना सखि कृष्णा ।
3गुस्सा उसका सहा न जाता ।
नशा बगैर वो रह न पाता ।
गुस्से में वो लगे भयंकर ।
क्या सखि साजन ? 
ना सखि शंकर ।
4आँखें जैसे खिला कमल है ।
मन उसका बिल्कुल निर्मल है ।
मर्यादा में करे वो काम ।
क्या सखि साजन ?
नहीं सखि राम ।
5बाहर वो निकलने न देता ।
बार बार देता वो चेता ।
याद दिलाता वो अनुशासन ।
क्या सखि साजन
ना सखि शासन  ।
अवधेश-02052020

गीत अपना प्यारा भारत


22 22 22 22 22 22
गीत
विषय अपना प्यारा भारत

अपना प्यारा भारत दुनिया में न्यारा है ।
इसके ही गुण गाता रहता जग सारा है ।
भाषा बोली रहना कपड़े पानी खाना,
थोड़ी दूरी पर बदले बहती धारा है ।

हिन्दू मुस्लिम सिख ईसाई मिलकर रहते ।
ये सब मिलजुलकर जय जय जय भारत कहते ।
आ जाती गर कोई मुश्किल अनचाही सी,
भारतवासी आगे आकर इससे लड़ते ।

अवधेश-02052020

गीत

गीत
गीत हमने बनाया तुम्हारे लिए

दीप मैंने जलाया तुम्हारे लिए ।
द्वार को भी सजाया तुम्हारे लिए ।

दोस्ती दुश्मनी भूल जाना पड़ी,
दोस्त दुश्मन बनाया तुम्हारे लिए ।

तुम गए छोड़ हमको अकेला सनम,
बोझ दिल पे उठाया तुम्हारे लिए ।

दिल लगा कर मिला क्या हमें आज तक,
दर्द दिल का जगाया तुम्हारे लिए ।

तुम जिसे गा सको याद करके हमें,
गीत हमने बनाया तुम्हारे लिए ।

अवधेश-2052020
@Awadhesh Kumar Saxena

भक्ति

2122 2122 2122 2122
भक्ति
राम की हनुमान ने की भक्ति ऐसी भाव वाली ।
बन गए भगवान जो हमको बनाते शक्तिशाली ।

अवधेश-03052020

लावणी छंद जल ही जीवन


लावणी छंद 16, 14
जल ही जीवन 

जल ही जीवन, जीवन जल है,
जल को मत बरवाद करो ।
जल को खोजो, जल को पूजो,
जल से जन आवाद करो ।

जल की महिमा, बड़ी निराली,
जल बिन यहाँ, कुँवा खाली,
जल को निर्मल ही रहने दो,
जल पर नहीं विवाद करो ।

अवधेश-04052020


दोहे -सुनो हमारी राम

j

सुनो हमारी राम 


राम तुम्हारे देश में, बंद हुए सब काम ।
हाथ कटे मजदूर के, जीना हुआ हराम ।

वोट जुगाड़न में लगे, नेता अब चहुँ ओर ।
राशन बांट गरीब को, खूब मचाते शोर ।

शादी अब कैसे करें, वर कन्या से दूर ।
परमीशन मिलती नहीं, वो तो हैं मजबूर ।

क्या होगा अब देश का, खाली है सब कोष ।
वेतन के लाले पड़े, जनता में है रोष ।

आना जाना बंद है, मुर्दे तक लाचार ।
अस्थि विसर्जन के लिए, कर रहीं इंतजार ।

कोविड से भी ये बड़ी, ताला बंदी मार ।
धंधे सब चौपट हुए, मिले नहीं उपचार ।

घर में कब तक यूँ रहें, तन मन हुए खराब ।
हम से तो हैं वो भले, जो पी रहे  शराब ।

मंदिर मस्जिद बंद हैं, मदिरालय गुलजार ।
कैसे ये निर्देश हैं, सोचो तो सरकार ।

सद्बुद्धि प्रभु मिले इन्हें, भले करें ये काम ।
हाथ जोड़ विनती करें, सुनो  हमारी राम ।

अवधेश-07052020

प्यार का इज़हार है

ग़ज़ल
प्यार का इज़हार है ।

गिर नहीं सकता मकाँ मजबूत जब आधार है ।
बाप दादों से मिला रहवास का अधिकार है ।

गर बचाना है कहीं हर कौम को नुकसान से,
अब यहाँ पर इक बड़े बदलाव की दरकार है ।

दे दिया अधिकार सारा जब तुम्हारे हाथ में,
फ़िर अगर हालात बिगड़े तो तुम्हे धिक्कार है ।

जो नहीं माने हमारे देश के कानून को,
वो सज़ा पाए कड़ी जो देश का गद्दार है ।

बात समझाई उसे हमने बहुत ही प्यार से,
आदतें बदलीं नहीं उसकी बड़ा मक्कार है ।

दुश्मनों से जंग में लड़ना मेरा भी धर्म है,
मारने उनको कलम मेरी बनी हथियार है ।

बीच भव सागर हमारी नाव जब डगमग करे,
फ़िक्र क्या जब रामजी के हाथ में पतवार है ।

जब हुई रहमत ख़ुदा की हम तुम्हारे साथ हैं,
हो रही ऊपर हमारे प्यार की बौछार है ।

हाथ में जब हाथ हैं तो और फिर क्या चाहिए,
हो गया दोनों तरफ़ से प्यार का इज़हार है ।

अवधेश-08052020




मुक्तक

मुक्तक-
सो रहे थे चैन से थक कर जरा मजदूर ये ।
दर बदर भटके यहाँ पहुंचे बड़े मजबूर ये । 
चढ़ गयी जो माल गाड़ी उनके ऊपर बेधड़क,
लॉक डाउन से मरे क्या है ख़ुदा मंजूर ये ।

अवधेश-08052020

मुक्तक

मुक्तक
क्या अच्छा और क्या बुरा है, कैसे मंजिल पाना ।
तुमने गर ये समझ लिया है,हमको भी  बतलाना ।
तुमको इतना ज्ञान अगर है, हमारा भी बढ़ाओ, 
तुम ने जो कुछ भी समझा है,सब हमको समझाना ।
अवधेश-09052020

कहमुक़री

#कहमुक़री 
1
आने पर उसके मैं उठती ।
दिन में उससे बच के रहती ।
वो न बिगाड़ दे मेरा रूप ।
क्या सखि साजन ?
नहीं सखि धूप ।
2
उसको देखूँ मैं मुस्काऊँ ।
अपने ऊपर मैं इतराऊँ ।
उसके आगे रूप समर्पण ।
क्या सखि साजन ?
ना सखि दर्पण ।
3
माँ की वो हर बात मानता ।
लड्डू बड़े  चाव से खाता ।
दूर करे वो हर विघ्न क्लेश ।
क्या सखि साजन ?
ना सखि गणेश ।
4
उसके बिना रह नहीं सकती ।
वो मिले तो प्यास है बुझती ।
जीवन उसके बिन बेमानी ।
क्या सखि साजन ?
ना सखि पानी ।
5
घर में सब उससे डरते हैं ।
साफ सफाई भी रखते हैं ।
उसकी बजह साफ हर कोना।
क्या सखि साजन ?
ना कोरोना ।

अवधेश-09052020

माँ

माँ

माँ आज फिर तुम्हारी हम याद कर रहे हैं ।
हर बात सोच कर जल से आंख भर रहे हैं ।
हम पेट में रहे जब नौ माह तक तुम्हारे ।
कश्ती चल रही हो मांझी के जस सहारे ।
अब दर्द को तुम्हारे महसूस कर रहे हैं ।
घुटनों चले कभी हम तुतला के बोलते थे ।
कृष्णा बने कभी हम माखन भी चोरते थे ।
मुस्कान माँ यशोदा की याद कर रहे हैं ।
गिरते सम्हलते तब चलना हमें सिखाया ।
माँ शारदा बनीं हमको बोलना सिखाया ।
लोरी वही पुरानी हम याद कर रहे हैं ।
स्कूल भेज कर या घर पर हमें पढ़ाया ।
अच्छा हमें हमेशा ही रास्ता दिखाया ।
अँगुली पकड़ चले थे वो याद कर रहे हैं ।
बीमार जब हुए तो सिरहाने बैठती थीं ।
जब मानते नहीं हम तो खूब रूठती थीं ।
वो रूठना मनाना हम याद कर रहे हैं ।
पापा हमें कभी जब गुस्से में डांटते थे ।
माँ बीच में पड़ीं तो फिर प्यार बांटते थे ।
वो प्यार माँ पिता का हम याद कर रहे हैं ।
माँ आज फ़िर तुम्हारी हम याद कर रहे हैं ।
जब भी किसी परीक्षा में पास हम हुए थे ।
हर बार माँ तुम्हारे गम और कम हुए थे ।
वो गर्व से उठा सिर हम याद कर रहे हैं ।
पहली कमाई जब माँ के हाथ में रखी थी ।
वो भाव क्या कहें जो माँ को मिली खुशी थी ।
परसाद फ़िर चढ़ाना हम याद कर रहे हैं ।
शादी हुई हमारी माँ को खुशी मिली थी ।
बच्चे हुए हमारे माँ फूल सी खिली थी ।
बच्चे भी आज दादी को याद कर रहे हैं ।
मुश्किल घड़ी हमेशा आसान तुमने की थीं ।
गलती बड़ी बड़ी भी माँ माफ तुमने की थीं ।
तप साधना तुम्हारी हम याद कर रहे हैं ।
तुम राम की पुजारिन प्रभु धाम में रहोगी ।
हर जन्म में हमें तुम माँ रूप में मिलोगी ।
भगवान से यही हम फरियाद कर रहे हैं ।

कुछ दोहे

कुछ दोहे-

चारण भाटों से सदा, खुश रहते सरकार ।
शोषण दमन दिखे नहीं, बने हैं पत्रकार ।

नेतन की विरुदावली, लिख रहे कलमकार ।
मजदूर यहाँ मर रहे, औरन की जयकार ।

दीन विचारा क्या करे, डरे बेरोजगार ।
कुछ भी कह सकते नहीं, लुप्त हुए अधिकार ।

व्यापारी अब क्या करे, चौपट है व्यापार ।
दुकानें भी बंद हुयीं, रो रहे  दुकनदार ।

घर-घर में चर्चा चली, क्या होगा इस बार ।
अब क्या करें क्या न करें, होगा सोच विचार । 

अवधेश-12052020

गुलाबों की महक होगी

ग़ज़ल
गुलाबों की महक होगी

तपेगा आग में  सोना तभी उसकी चमक होगी ।
मेरी ये बात अनुभव की तुम्हे अच्छा सबक  होगी ।

ज़रा दाना ज़रा पानी कभी रखना सकोरों में, 
तुम्हारे घर के आंगन में चिरैयों की चहक होगी ।

तुम्हारी ही मुहब्बत में गुजारे रात दिन हमने,
मगर तुमसे न मिल पाए यही दिल में कसक होगी ।

कभी आने की उनके जब खबर हमको मिलेगी तो,
तकेंगे रास्ता अपलक बड़ी सुंदर झलक होगी ।

गगन में चाँद के आगे घिरा आता कभी बादल,
लटकती भाल पर उनके  सजीली सी अलक होगी ।

बिगड़ता आज मौसम है गरज भी है चमक भी है,
यहाँ गर गिर रही बिजली वहाँ भी तो तड़क होगी ।

बहुत ही दूर है मंजिल मगर पाना जरूरी है,
तुम्हे चलना उसी पर है ले जाती जो सड़क होगी ।

सफलता शोर कर देगी अगर कोशिश करोगे यूँ,
जो कानों में किसी के भी नहीं बिल्कुल भनक होगी ।

जहाँ में सबसे अच्छा है मिलेगा वो तुम्हे तब ही,
अगर तुमको उसे शिद्दत से पाने की ललक होगी ।

रहेगा देश ये महफ़ूज गर इसके जवानों में,
जो दुश्मन को लड़ाई में हराने की सनक होगी ।

मिला है जीत कर वैभव रहेगा वो नहीं हरदम,
तुम्हे जो इस क़दर अपनी हुकूमत की हनक होगी ।

कभी तुम दूसरों को भी चमन के फूल तो बांटो,
तुम्हारे  हाथ में  भी तो गुलाबों की महक होगी ।।

अवधेश-18052020

खा रहीं हैं रोटियाँ

खा रहीं हैं रोटियाँ ।

भूखे हमारे पेट को अब खा रहीं हैं रोटियाँ ।
पैदल चले तो साथ में अब जा रहीं हैं रोटियाँ ।

जो दान करने के लिए तुम बाँटते हो मुफ़्त में,
इज्ज़त गयी मजदूर की पर भा रहीं हैं रोटियाँ ।

अब काम हाथों में नहीं मजबूर कितने हो गए,
पर दान के या भीख के गुण गा रहीं हैं रोटियाँ ।

घर में सभी खुश हों वहाँ मैं तो सफर में चल रहा,
पर याद फ़िर बातें वही तो ला रहीं हैं रोटियाँ ।

जब चाँद को उम्मीद है बिखरे यहाँ पर चाँदनी,
काली अमावस रात ले फिर आ रहीं हैं रोटियाँ ।

मौसम बदलने फिर लगा फूल भी खिलते नहीं,
उजड़ा चमन कैसा यहाँ फल पा रहीं हैं रोटियाँ ।

दिखता नहीं कुछ भी कहीं आगे कहो कैसे बढ़ें,
सबके दिलों पर धुंध सी अब छा रहीं हैं रोटियाँ ।

अवधेश-21052020

मुक्तक

मुक्तक 
1
एक से बढ़कर हुए जब लाख बस दो माह में ।
अर्थ इसका जान लो तुम और उतरो थाह में । 
इस गणित से आगे  कितने लाख होंगे देखना,
अब यहाँ कोविड दिखेगा देश की हर राह में ।
2
बात डरने की नहीं कुछ बस जरा बचते रहो ।
आत्म निर्भर तुम बनो अब काम सब करते रहो ।
अश्वगंधा रोज खाना जो दवा इस रोग की,
शक्ति अंदर की बढ़ाओ तेज तुम चलते रहो ।
3
वायरस को हम हराकर विश्व को दिखलाएंगे ।
देश अपना है निराला चीन को बतलाएंगे ।
अंत में होंगे सफल बस कुछ दिनों की बात है,
हम सफलता के तरीके विश्व को सिखलाएँगे । 

अवधेश-22052020

वो इतराते हैं

ग़ज़ल 
वो इतराते हैं ।

अच्छी किस्मत वाले जो इठलाते हैं ।
अपनी सुंदरता पर वो इतराते हैं ।

पैसा लेकर खुद को गिरवी रख दें जो,
वो सच्चाई लिखने से कतराते हैं ।

चिकनी चुपड़ी बातों से जो मन हरते,
मौका मिलते ही घर में घुस जाते हैं ।

चालें उनकी सारी खुल जाती हैं तब,
पक्के शातिर भी भोले बन जाते हैं ।

बागों में देखा है फूलों को खिलते,
इक दिन आता है जब वो मुरझाते हैं ।

बातों के राजा हैं बातों बातों में,
सबको वो मीठे सपने दिखलाते हैं ।

जो खुद झूठे हैं वो सच के साथी को,
तर्कों से अपने हरदम झुठलाते हैं ।

अवधेश-22052020


ये खुशी कैसे कहूँ

ग़ज़ल
ये खुशी कैसे कहूँ ।

खूबसूरत वो हसीना कब मिली कैसे कहूँ ।
वो मिली तो सब मिला है ये खुशी कैसे कहूँ ।

गम मिले इतने यहाँ पर जिंदगी मुश्किल हुयी,
इस सिसकती जिंदगी को जिंदगी कैसे कहूँ ।

चाँद लाया चाँदनी पर साथ लाया ज्वार भी,
तीरगी मन में रहे तो रोशनी कैसे कहूँ ।

सुन नहीं पाते कभी जो इक जरा सी बात भी,
उन से इस मासूम से दिल की लगी कैसे कहूँ ।

आज फिर यादें पुरानी अब मुझे आने लगीं,
जो सुनी उस रात मैंने रागिनी कैसे कहूँ ।

तुम कभी तो पास से भी देखना मजदूर को,
पाँव में छाले पड़े हैं बेबसी कैसे कहूँ ।

ये गरीबी और शोषण देख सकता मैं नहीं,
आग सीने में लगी थी वो बुझी कैसे कहूँ ।

अवधेश -23052020








फूल तो खिला नहीं

ग़ज़ल
फूल तो खिला नहीं ।

मुझे जो खींच ले महक वो फूल तो खिला नहीं ।
कठिन जिसे हो जीतना कहीं बना किला नहीं ।

पसंद जो नहीं वही मुझे मिला जहान में,
जिसे मैं चाहता रहा कभी मुझे मिला नहीं ।

हजार दुश्मनों ने दम लगा लिया बहुत मगर,
पहाड़ सा खड़ा रहा कभी ज़रा हिला नहीं ।

गिलास भर शराब पी नशा बहुत चढ़ा इसे, 
हुआ खराब हाल है तू और अब पिला नहीं ।

मैंने किया है प्यार तो न और कुछ भी चाहिए,
मिलो अगर कभी नहीं मुझे कोई गिला नहीं ।

अवधेश-24052020

तुझ से आशा पाली है हास्य रचना

हास्य व्यंग्य रचना है । 
तुझ से आशा पाली है ।

मीठी बातें करती वो, दिखती भोली भाली है ।
सूरत जिसकी गोरी है, मंशा उसकी  काली है ।
कैसी वो बातें करते, सुनकर होता है अचरज,
ज्ञानी वो बन जाते हैं, जिनकी डिग्री जाली है ।
घर में हैं बंदी जैसे, भाजी से रोटी खाते,
बाहर जाना है मुश्किल, जेलर तो घरवाली है ।
बागों की रौनक गायब, सब कुछ लगता है उजड़ा,
खिलने वाले फूलों को, मसले खुद अब माली है ।
कहते हम अच्छी बातें,जिनमें उनका ही हित हो,
पर ऐसा लगता उनको, दे दी जैसे गाली है ।
छेड़ा-छाड़ी वो करते, जोरों से सब पर हँसते,
रिश्ता हो ऐसा जैसे, जनता उनकी साली है ।
उम्मीदें उनसे रखना,छोड़ो अब क्या है रक्खा,
वो क्या दे सकते हमको,जिनका डब्बा खाली है ।
खोले हैं अब मयखाने,पैसा इनसे ही मिलता, 
पीने वालों का क्या है,गिरने उनको नाली है ।
इनकी झूठी बातें भी, मानी सच ही हैं जाती,
जय-जय करती है जनता, आदत ऐसी डाली है ।
मजदूरों की हालत अब, कैसे सुधरे बोलो तो,
सब्जी रोटी को तरसे, खाली-खाली थाली है ।
सत्ता से बाहर हैं जो, लगते  वो सूखे सूखे,
सत्ताधीशों को देखो, गालों पर क्या लाली है ।
भारत माता की जय हो, तेरा वैभव कम न हो, 
तेरे हर वासी ने अब, तुझ से आशा पाली है ।
ग़ज़लें लिख दीं ऐसी हमने,सबको खुश कर देंगीं ये,
पढ़ने सुनने वालों ने, जमकर ठोकी  ताली है ।

अवधेश-25052020

अकेली डगर से

ग़ज़ल 
अकेली डगर से ।

हुए तंग जब वो कबूतर बसर से ।
उड़े दूर वो फ़िर पुराने शज़र से ।

मिटाने सभी को वो शैतान आया,
जहाँ को बचा लो ख़ुदाया क़हर से ।

रहें चाँद सूरज अगर साथ मेरे,
तिमिर भाग जाए पलों में इधर से ।

नदी प्यार की हम बहाते रहेंगे,
भले नफ़रतें ही मिलेंगी उधर से ।

बड़े ही मजे से गुजर हो रही थी,
मुसीबत बुलायी न जाने किधर से ।

निकल कर घरों से जहाँ जा रहे हो,
बचोगे वहाँ क्या वबा के असर से ।

कभी तो पकड़ के तुम्हें बाँध लेंगे,
छुपोगे कहाँ तक हमारी नज़र से ।

सभी के दिलों में भरी है लबालब,
खुदा नफ़रतों के बचाना ज़हर से ।

कभी दूर घर से नहीं काम करना, 
मिला ये सबक है अभी के सफ़र से ।

चलेंगे नहीं हम कभी भी अकेले,
लगेगा हमें डर अकेली डगर से ।

अवधेश-25052020
ग़ज़ल
गरीबी तुम मिटाओ 

हमेशा फ़र्ज़ अपना तुम निभाओ ।
गरीबों की गरीबी तुम मिटाओ ।

हुयी बारिश भरा पानी गली में,
चलो इक नाव कागज़ की बनाओ ।

तुम्हारी बात जो सुनते नहीं हैं,
उन्हें जम कर खरी खोटी सुनाओ ।

उखाड़ो पौध नफरत की यहाँ से,
मुहब्बत की फसल हर सूँ उगाओ ।

अगर कुछ काम करना चाहते हो,
हसीनों से कभी दिल मत लगाओ ।

क़लम के जो सिपाही सो रहे हैं,
उन्हें मुश्किल घड़ी में तुम जगाओ ।

करो सेवा हमेशा दूसरों की,
किसी को भी कभी तुम मत सताओ ।

सियासत तो बड़ी गंदी हुयी है,
सियासतदान से भारत बचाओ ।

बहुत तुमने डराया लाठियों से,
हमें अब भभकियों से मत डराओ ।
अवधेश-26052020
पञ्चचामर छंद में एक रचना

बढ़ा चला जवान है 
शहीद देश पे हुआ, वही बना महान है ।
महान देश के लिए, बढ़ा चला जवान है ।
उठो चलो रुको नहीं, जवान जागते रहो ।
किसान खेत में चलो, मचान तानते रहो ।
पसीजता रहे यहाँ, वही महा किसान है ।
महान देश के लिए, बढ़ा चला जवान है ।
सवाल जो करे नहीं, गरीब वो कहाँ रहे ।
कहो उसे कहाँ रहे,  वहाँ रहे यहाँ रहे ।
गरीब के लिए अभी, यहाँ बना मकान है ।
महान देश के लिए, बढ़ा चला जवान है ।
अराति घात जो करे, उसे कड़ा जवाब दो ।
कठोरता बनी रहे, उसे सही हिसाब दो ।
मिसाइलें रखीं यहाँ, मिराज सा विमान है।
महान देश के लिए, बढ़ा चला जवान है ।
चलो वहाँ कली खिले, खिले जहाँ बहार है ।
रहो जहाँ खुशी मिले, कहो ज़रा कि प्यार है ।
बहार और प्यार से, भरा हुआ जहान है ।
महान देश के लिए, बढ़ा चला जवान है ।
उसे न भूख प्यास है, तना हुआ खड़ा रहे ।
हजार गोलियाँ चलें, अडिग वो अड़ा रहे ।
जवान वीर से बनी, सदैव देश शान है ।
महान देश के लिए, बढ़ा चला जवान है ।
चली चली हवा चली, चिड़ी उड़ी गली गली,
दबी दबी नहीं रही, बड़े सुखों रही पली ।
खुला खुला सभी दिशा विशाल आसमान है ।
महान देश के लिए, बढ़ा चला जवान है ।
पुकारके सुभारती, सुना रही कथा हमें ।
चलो सुनें उसे अभी, बता रही व्यथा हमें ।
दुखी कभी रहे न माँ, वही हमार जान है ।
महान देश के लिए, बढ़ा चला जवान है ।
अवधेश-28052020
दोहा-

पानी सींचे पेड़ को, लकड़ी नहीं डुबाए ।

बच्चों को पाले पिता, विपदा दूर भगाए ।

अवधेश -30052020

Tuesday, May 26, 2020

संस्मरण /लघुकथा
खुशी

आज की ही बात है मैं अपनी छत पर टहल रहा था, मेरी नज़र घर के पीछे के खाली मैदान में लगभग 150 मीटर दूरी पर एक कचरा बीनने वाले लड़के पर चली गयी, वो अपने एक हाथ में एक प्लास्टिक का खाली कट्टा लिए था और दूसरे हाथ से यहाँ-वहाँ बिखरे कचरे में से कुछ उठाता, देखता और किसी चीज को कट्टे में डालता और किसी चीज को वापिस फेंक देता । दूसरे घरों के पीछे से इसी तरह प्लास्टिक या लोहे की छोटी छोटी चीजें वो अपने कट्टे में डालता हुआ मेरे घर के पीछे की तरफ आ रहा था ।
मैं सोचने लगा कि ये जिन चीजों को उठाने के लिए झुकता है फिर उठाकर कट्टे में डालता है उनके वजन के हिसाब से एक बार झुकने, उठाने, कट्टे में डालने और आगे बढ़ने में इसको मुश्किल से 50 पैसे की चीज मिल पाती होगी यानि दिन भर भी अगर ये काम करेगा तो ज्यादा से ज्यादा 100 रुपये इसे मिल पाते होंगे । आजकल कचरा गाड़ी गली-गली में आती हैं तो बैसे भी कचरा घर के बाहर डालना बंद हो गया है और कुछ लोग तो प्लास्टिक और लोहे की छोटी- छोटी चीजों को इकट्ठा करके कबाड़ी वालों को बेचते हैं । टहलते हुए और ये सब विचार करते हुए मुझे छत पर ही एक प्लास्टिक की पुरानी बाल्टी दिखी, मैंने सोचा कि ये बाल्टी अब पुरानी हो गयी है और कुछ ही दिन बाद बदलनी ही पड़ेगी, ये विचार आते ही मैंने प्लास्टिक की वो बाल्टी छत से घर के पीछे इस तरह से फेंकी कि वो लड़का मुझे फेंकते हुए न देखे । मैं दूसरे घरों के पीछे से उसे अपने घर के पीछे बढ़ते हुए अपनी छत से ही इस तरह देख रहा था कि उसकी निगाह मुझ पर न पड़े । मैंने देखा कि कचरा बीनने वाला वो लड़का जब मेरे घर के पीछे आया और उसकी नजर उस प्लास्टिक की बाल्टी पर पड़ी तो उसके कदम थोड़े तेज हो गए, उसने प्लास्टिक की बाल्टी को पैर से तोड़ा और उसके टुकड़ों को कट्टे में रख लिया । मैं उसे देख रहा था, उसकी बॉडी लैंग्वेज और चेहरे के भाव से उसको मिली खुशी बता रही थी कि एक बार की मेहनत में 50 पैसे  की जगह अगर 5 रुपये मिल जाएं तो कितनी खुशी होती है ।
उसकी खुशी देखकर मुझे भी खुशी हो रही थी, ये खुशियां ऐसे ही फैलती रहें ।
अवधेश-27052020