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परिचय

 नाम -इंजी. अवधेश कुमार सक्सेना पिता का नाम- स्व.श्री मुरारी लाल सक्सेना शैक्षणिक योग्यता - DCE(Hons.),B.E.(Civil), MA ( Sociology), LL.B., ...

Tuesday, June 30, 2020

रोशनी रह गयी

ग़ज़ल 
रोशनी रह गयी 

चाँद रातें गयीं तीरगी रह गयी । 
जुगनुओं की मगर रोशनी रह गयी । 

जो लगे ऐश के दाग़ सब धुल गए, 
दिल पे लिक्खी मगर सादगी रह गयी । 

जो अदावत कभी थी पुरानी यहाँ, 
देख वो मिट गई दोस्ती रह गयी । 

आपने प्यार से बात जो मान ली, 
आज इज्ज़त हमारी ढँकी रह गयी । 

इश्क़ में हो गयी खूब रुसवाई थी, 
छाप जो लग गयी लगी रह गयी । 

रोग ऐसा लगा ये हमें इश्क़ का, 
होश जाता रहा बेख़ुदी रह गयी । 

हम जुदा क्या हुए आपको छोड़कर, 
ये जहाँ लुट गया ज़िन्दगी रह गयी । 

 अवधेश सक्सेना 06062020

Monday, June 29, 2020

ख़्वाब तू माँ बाप के साकार कर

ग़ज़ल
ख़्वाब तू माँ बाप के साकार कर 

 ख़्वाब तू माँ बाप के साकार कर ।
 प्यार उनसे है अगर इज़हार कर । 

क्या कहा तूने मुझे मैंने तुझे, 
अब नहीं इस बात पर तकरार कर । 

चाहता लिखना असर वाली ग़ज़ल, 
तेज अपनी तू कलम की धार कर । 

आग नफ़रत की अगर बुझती नहीं, 
प्यार की बूँदों भरी बौछार कर ।

है बुरी आदत नशे की मान ले, 
चल नहीं इस राह पे इंकार कर । 

देख चलती है हवा अब किस तरफ, 
रुख बदलने तू उसे तैयार कर । 

हुस्न देखा और पागल हो गया, 
इश्क़ तुझको भी हुआ इक़रार कर । 

 अवधेश सक्सेना-28062020

Sunday, June 28, 2020

मात प्रेम ने बालक जन्मा नाम रखा अवधेश

सरसी छंद में वर्षा ऋतु और अपने जन्म के सम्बंध में कुछ पद लिखे हैं । 

 मात प्रेम ने बालक जन्मा नाम रखा अवधेश 

जून महीना बड़ा सुहाना, ऋतु आए बरसात । 
कभी धूप है कभी छाँव है, होती शीतल रात । 

वर्षा वाला जून महीना, दिवस रहा उनतीस । 
सोमवार की रात घनेरी, बजे मिनट दस बीस ।

मात प्रेम ने बालक जन्मा, जन्म राशि है मेष । 
पिता मुरारी ले हाथों में, नाम रखा अवधेश । 

वर्षा के दिन जब भी आते, लाते कुछ सौगात । 
ताल तलैया सब भर जाते, जगते फ़िर जज़्बात । 

 नदी ताल में जमकर तैरे, बचपन की है बात । 
हरियाली मन को हर्षाती, आते हैं नव पात । 
 
मानसून की हवा निराली, चलती है चहुँ ओर । 
कड़के बिजली गिरती बूंदें, खूब मचातीं शोर । 
 
आओ मिलकर हम सब गाएं, हरियाली के गान । 
जगह जगह हम पेड़ लगाएं, यही बचाते जान । 
 
पानी रोको और बचाओ, भर लो पोखर ताल । 
फसलें इनसे सिंचित होंगीं, कृषक रहें खुशहाल । 
 
सावन के सब पावन दिन हैं, शिव का कर लो ध्यान । 
शिव सत्य हैं शिव सुंदर हैं, देते हर वरदान । 

 अवधेश सक्सेना शिवपुरी मध्य प्रदेश 9827329102

Saturday, June 27, 2020

ग़ज़ल किस्सा नहीं है ।

ग़ज़ल 
किस्सा नहीं है । 

 खुली आँखों दिखा सपना नहीं है । 
हकीकत की वयां किस्सा नहीं है । 

समंदर इश्क़ का गहरा बहुत है, 
जो डूबा आज तक उबरा नहीं है । 

सभी अपने लिए ही जी रहे हैं, 
यहाँ कोई मेरा अपना नहीं है । 

बिठाना चाहते हम आसमाँ पे, 
तुम्हारा कद मगर ऊँचा नहीं है । 

चमकता आसमाँ में आज जैसे, 
सितारा आपसा देखा नहीं है । 

किए हैं क़त्ल उसने मुस्कुरा के, 
कहीं इस बात की चर्चा नहीं है । 
 
बने थे ख़ास रिश्ते जो हमारे, 
निभाना पर उन्हें आता नहीं है । 

अवधेश सक्सेना-27062020

परिचय

मेरा नाम अवधेश कुमार सक्सेना जिला शिवपुरी मध्य प्रदेश में रहता हूँ । मेरी शिक्षा -DCE (Hons.), B. E.(Civil), M. A. ( Sociology), LL.B., PGD (Rural Dev.) मैं जिला पंचायत शिवपुरी में जिला परियोजना अधिकारी, जिला परियोजना प्रबंधक, जिला संयोजक हरियाली, जिला संयोजक जलाभिषेक और ग्रामीण विकास का राज्य स्तरीय प्रशिक्षक रह चुका हूँ, वर्तमान में जल संसाधन विभाग में SDO के पद पर कार्यरत हूँ । अन्य- सोसायटी ऑफ इंजीनियर्स का प्रांताध्यक्ष, इंजीनियर्स एसोसिएशन का प्रांतीय मंत्री और जिलाध्यक्ष भी रह चुका हूँ । शिवपुरी विकास समिति, जय हिंद मिशन और संत रैदास कल्याण समिति का संरक्षक हूँ । श्रीमंत माधौ महाराज समिति का महासचिव हूँ । भारतीय साहित्य सृजन पीठ का संस्थापक और संयोजक हूँ । अभियंता विश्व, चित्रांश चेतना और चित्रांजलि पत्रिकाओं के प्रधान संपादक का दायित्व निभाया है । जलग्रहण मार्गदर्शिका, पानी रोकने के आसान तरीके, हरियाली के अंग और निरोगी रहने के उपाय नाम की पुस्तकें लिखीं हैं जो ग्रामीण विकास विभाग द्वारा प्रशंसित होकर उपयोग में लायी गयीं हैं । मेरा ग़ज़ल संग्रह "अकेले सफ़र में " उपन्यास महायोगी, कहानी, संस्मरण और लघु कथा संग्रह, गीत संग्रह, प्रियामृतावधेश संग्रह प्रकाशन में हैं और शीघ्र ही अमेजन, फ्लिपकार्ट आदि ग्लोबल प्लेटफॉर्म के माध्यम से उपलब्ध होंगे । मेरी पत्नी शासकीय उच्चतर माध्यमिक विद्यालय में अंग्रेजी विषय की व्याख्याता हैं, बड़ा बेटा B.Tech (CSE), M. B. A. Public Service Management & E-Gov. वर्तमान में सूचना प्रसारण मंत्रालय भारत सरकार में ( आय. आय. एस. ) सहायक निदेशक के पद पर कार्यरत है । छोटा बेटा B.Tech (Hons.) M.S. IIIT हैदराबाद से करके आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस में अपना स्वयं का कार्य करता है । एक बेटी है जिसने M.A. हिंदी, PGDCA और B. Ed. किया है । गीत, ग़ज़ल, कविता, कहानी लिखना मेरा शौक है । राष्ट्रीय और स्थानीय पत्र पत्रिकाओं, समाचार पत्रों में भी मेरी रचनाएं और लेख प्रकाशित होते रहे हैं । 13 वर्ष की उम्र में ही चंपक, लोटपोट जैसी पत्रिकाओं में मेरी कविताएं छप चुकी हैं । वीर अर्जुन, आचरण, स्वदेश, अमर उजाला, आगमन वेब पत्रिका आदि समाचार पत्र पत्रिकाओं में मेरी रचनाएं और लेख प्रकाशित हुए हैं । आकाशवाणी शिवपुरी पर भी कई बार वार्ता, फोन इन आदि कार्यक्रमों में शामिल होने का अवसर मिला है । BCR Film एसोसिएशन दिल्ली द्वारा BCR सिने अवार्ड समारोह में गत वर्ष मुझे मल्टी टेलेंटेड पर्सनलिटी का अवार्ड मिल चुका है । ज्योतिष शास्त्र, आयर्वेद शास्त्र, योग, ध्यान, प्राणायाम और प्राकृतिक चिकित्सा पर शोधपरक कार्य किये हैं । NCC में सीनियर अंडर ऑफिसर रहा हूँ और इस दौरान रायफल शूटिंग में अचूक निशाने लगाकर अपने ट्रेनर से भी ज्यादा सटीक निशाने लगाकर निशानेबाजी में अब्बल रहा हूँ । 303 की पूरी गोलियां टारगेट की बुल आई में पहुंचा कर देखने वालों को हतप्रभ किया है ।तैराकी में निपुणता प्राप्त है । कितने भी गहरे पानी की सतह पर बिना हाथ पैर चलाए पद्मासन या सुखासन में कई घण्टों तक या जब तक चाहूँ लेटे रह सकता हूँ । आपदा प्रबंधन पर ग्रामीण जन, वालिंटियर,पुलिस और होम गार्ड को ट्रेनिंग देता रहा हूँ । EVM मशीन का जिले का प्रथम मास्टर ट्रेनर रहा हूँ । महिला विकास, ग्राम संपर्क अभियान आदि के प्रशिक्षण भी दिए हैं । स्कूल, कॉलेज के NSS, NCC के छात्रों को मोटिवेशनल स्पीच दीं हैं । कोरोना पर मेरे डांस का वीडियो, अपने बालों की कटिंग अपने ही हाथ से करने वाला वीडियो, रुमाल और रबर बेंड से मास्क बनाकर पहनने वाला वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो चुके हैं । पत्रिका समाचार पत्र ने मुझे पत्रिका चेंज मेकर बनाया है । समाज सेवा, राष्ट्र प्रेम और पर्यावरण के क्षेत्र में सक्रिय संस्थाओं के माध्यम से और व्यक्तिगत रूप से भी समय-समय पर आगे बढ़कर कार्य करता हूँ । मेरे द्वारा बिना किसी शासकीय मदद के केवल जन भागीदारी से बनवाए गए कई तालाब और विभिन्न स्थानों पर लगवाए गए लाखों पेड़ पर्यावरण के प्रति मेरे लगाव के वारे में बताते हैं । लोगों को इनसे लाभान्वित होते देख मुझे अत्यंत प्रशन्नता और संतुष्टि होती है ।आवश्यकता अनुसार रक्त दान का अवसर भी मुझे मिला है । गरीब कन्यायों के विवाह, आदिवासी क्षेत्रों में वस्त्र दान, मजदूरों की आवश्यकतानुसार मदद और गरीब बच्चों की शिक्षा में मदद के अवसर भी ईश्वर की कृपा से मिले हैं । माँ की अध्यक्षता में संस्थापित समिति द्वारा संचालित स्कूल में 1986 से अभी तक लगभग 10000 बच्चों को आधी फीस और 1500 गरीब बच्चों को मुफ्त शिक्षण की व्यवस्था ईश्वरीय कृपा से करायी है । मुख्य मंत्री श्री शिवराज सिंह जी, तत्कालीन केंद्रीय मंत्री स्व. श्रीमन्त माधव राव सिंधिया जी, श्रीमन्त ज्योतिरादित्य सिंधिया जी, प्रदेश के कैबिनेट मंत्री श्री नरोत्तम मिश्रा जी और श्रीमंत यशोधरा राजे जी, मुख्य सचिव, प्रमुख सचिव, संभागायुक्त, मुख्य अभियंता, कलेक्टर आदि के कई शासकीय कार्यक्रमों का मंच संचालन करने का अवसर मिला है ।★★★★★★★★★★★★★★★★★💝💝💝💝💝💝💝💝💝💝 सम्मान और उपलब्धियां । कलम बोलती है मंच से श्रेष्ठ रचनाकार का सम्मान, काव्य सरिता मंच द्वारा सम्मान, आई आई टी भुवनेश्वर अल्मा फिएस्टा और हिंदी पंक्तियां का अल्फाज़ सम्मान प्राप्त, हाइकु मंजुषा द्वारा बेस्ट हाइकुकार सम्मान, आगमन प्राइम का स्टार राइटर सम्मान, उत्कृष्ट रचनाकार का सम्मान और कोरोना वारियर का सम्मान प्राप्त, ऑनलाइन कवि सम्मेलन में सहभागिता के कई सराहना पत्र भी प्राप्त हुए हैं, काव्यांकुर साहित्यिक मंच द्वारा काव्य रत्न सम्मान,

Friday, June 26, 2020

छंद मुक्त मैं तो कब से हूँ तैयार

#छंद_मुक्त #रचना 
 #मैं_तो_कब_से_हूँ_तैयार 

 मैं जब खोलता हूँ, 
अपने दिल का, दरवाजा । 
 रखता हूँ ध्यान, 
आवाज न हो, ज़्यादा । 
 पर उन्हें आहट, 
हो ही जाती है । 
 उनके दिल का, 
दरवाजा, 
खुलने की आवाज, 
मुझे आती है । 
 सोचता हूँ, 
 कोई दो जगह, 
कैसे रहता है । 
 जो दिल के अंदर है, 
वही बाहर भी है । 
 उसका भी दिल है, 
उस दिल का भी, 
दरवाजा है ।
मुझे यक़ीन है, 
मैं भी, 
दो जगह रहता हूँ,
यहाँ भी हूँ,
और उनके,
दिल में भी । 
 उन्हें भी यकीन है, 
पर कह नहीं पाते, 
कैसे कहें, 
कहे बिना, 
कैसे रहें । 
 दिल के अंदर जो हैं, 
उनसे कहता रहता हूँ । 
 चलो चार कदम तुम भी,
 चलूँ चार कदम मैं भी ।
 वो जो बाहर हैं, 
वो अगर चल दें कदम चार, 
मैं तो कब से हूँ तैयार । 
 मैं जो उस दिल में हूँ, 
वो जो इस दिल में हैं,
मिल पाएंगे,
अगर दिल हमारे, 
पास हों । 
 हम भी,
आस-पास नहीं, 
पास-पास हों । 

 अवधेश सक्सेना-27062020

तन_पिंजड़ा प्रियामृतावधेश

मेरी मौलिक विधा #प्रियामृतावधेश में एक रचना कुल 18 पंक्तियां पंक्तियों में मात्राएं बढ़ते और घटते क्रम में 2,4,6,8,10,12,14,16,18 18,16,14,12,10,8,6,4,2 पहली और आखिरी 2 मात्राओं वाली पंक्तियां सम तुकांत, 18 मात्राओं वाली पंक्तियां सम तुकांत । #तन_पिंजड़ा जल जीवन अग्नि जले आकाश पले प्राण वायु बहती पृथ्वी से मिल चारों प्रकृति समरूप हो जाते सुंदर पिंजड़ा बनाते हैं तन पिंजड़ा आत्मा करती वास । खुश रहने का दे रही आभास । आज़ाद परिंदा जब होता पृथ्वी हाड़ वायु सांसें आकाश ही आस है अग्नि ऊर्जा बनी जल जीवन चक्र पंचभूत फिर से चल अवधेश सक्सेना-26062020 शिवपुरी मध्य प्रदेश

Thursday, June 25, 2020

सार छंद दुश्मन पर चढ़ जाना

सार छंद 

 चीनी सेना लांघे सीमा, उठो बढ़ो मुँह तोड़ो ।
 उठती हों गर छोटी आंखें, उसी समय जा फोड़ो । 
 
गोला गोली खूब चलाना, आगे तुम बढ़ जाना । 
जल थल नभ से हमला करना, दुश्मन पर चढ़ जाना । 

 अवधेश सक्सेना 25062020

संस्मरण जीवन संघर्ष

संस्मरण जीवन संघर्ष एक विधवा माँ अपने 8-9 साल के बेटे के साथ सर्किट हाउस के बाहर भीड़ में खड़ी थी, उसके हाथ में एक आवेदन था जो एक बुजुर्ग सज्जन ने सहानुभूति पूर्वक लिख दिया था, भीड़ में खड़े खड़े बहुत देर हो गयी थी तभी थोड़ी हलचल हुई, कारों का काफ़िला सर्किट हाउस पर आकर रुका, मुख्यमंत्री जी आ चुके थे, पुलिस ने आवेदन देने वालों की लाइन लगवा दी थी, माँ बेटे लाइन में लगे थे, ये माँ अपने छोटे बेटे को हर जगह अपने साथ ले जाती थी, बड़ा बेटा तो कहीं न कहीं काम करने जाता था, पति के देहांत के बाद अपने दोनों बेटों वाले छोटे से परिवार के भरण पोषण के लिए हर संभव प्रयास करने वाली माँ अपने पति की मृत्यु उपरांत मिलने वाली परिवार पेंशन की स्वीकृति के लिए मुख्य मंत्री को आवेदन देने आयी थी । छोटा बेटा सोच रहा था कि मुख्यमंत्री जी हमारी समस्या को जरूर हल कर देंगे, माँ को परिवार पेंशन मिलने लगेगी । हमारी आर्थिक हालत में कुछ सुधार होगा । लाइन में लगे हुए बहुत देर हो गयी थी, महिलाओं की लाइन हालांकि छोटी थी लेकिन मुख्यमंत्री जी सभी को ध्यान से सुन रहे थे इसलिए भी समय लग रहा था । माँ बेटे भी अपना नम्बर आने पर मुख्यमंत्री के सामने पहुंचे तो बेटे ने देखा कि माँ ने मुख्यमंत्री जी के हाथ में आवेदन देकर अपने पति की मृत्यु और दोनों बेटों के साथ आर्थिक तंगी झेलने जैसी बातें बतायीं और मुख्यमंत्री जी के सामने जमीन पर उनके पैरों से थोड़ी दूर अपना सिर रख दिया और रोते रोते पेंशन मंजूर करने के लिए कहने लगी । बेटे को मन ही मन इस परिस्थिति पर बहुत क्रोध आ रहा था कि उसकी माँ को इस तरह से सर झुका कर किसी से कुछ माँगना पड़ रहा है । मुख्यमंत्री जी ने पूरी बात ध्यान से सुनी, परिवार पेंशन कुछ दिन मिलने के बाद सरकार के किसी आदेश के कारण बंद कर दी गयी थी और इस आदेश से कई परिवार प्रभावित हुए थे । मुख्यमंत्री जी ने आवेदन पर कुछ लिखा और उसे अपने पास खड़े एक अधिकारी को दे दिया और माँ से कहा कि आप चिंता मत करो हमारी सरकार आपके साथ है, आपकी पेंशन बहुत जल्दी मंजूर हो जाएगी । वो माँ बेटे खुशी खुशी वहाँ से वापिस घर आए और उम्मीद करने लगे कि मुख्यमंत्री जी ने कहा है तो पेंशन जल्दी मंजूर हो जाएगी । समय निकलता गया, उम्मीद जाती रही । पेंशन मंजूर न हो सकी । लगभग 20 साल बाद सरकार ने ऐसे परिवारों की पेंशन चालू करने के लिए एक आदेश निकाला जिसका समाचार अखबार में छपा जिसे उस छोटे बेटे ने पढ़ा और उसके अनुसार माँ की तरफ से आवेदन बनाया, पिता के कार्यालय में संपर्क कर उनके सर्विस रिकॉर्ड से पूरी जानकारी सत्यापित कराके आवेदन स्वीकृति के लिए भेजा और माँ की परिवार पेंशन स्वीकृत हो गयी, माँ को इस परिवार पेंशन का पिछला पूरा एरियर भी मिला । खुशी मिली क्योंकि ये उस माँ के पति के नाम से जो थी । बेटों को मिलने वाली वेतन की तुलना में ये बहुत कम राशि थी लेकिन बेटों को भी बहुत अच्छा लगा, इस पेंशन को उन्होंने अपने वेतन से लाख गुना अधिक माना । छोटे बेटे के मष्तिष्क में इस परिवार पेंशन के लिए मुख्यमंत्री के सामने जमीन पर सर रखती हुई माँ का वो दृश्य उभर आया । ये दृश्य कभी भुलाया भी नहीं जा सकता । अवधेश सक्सेना-24062020 शिवपुरी मध्य प्रदेश

डायरेक्टरी के लिए परिचय

सम्मानीय महोदय डायरेक्टरी में प्रकाशन हेतु मैं अपना परिचय दे रहा हूँ । कृपया प्रकाशित करके मुझे अनुग्रहीत करें । नाम -इंजी. अवधेश कुमार सक्सेना पिता का नाम- स्व.श्री मुरारी लाल सक्सेना जन्मतिथि -- 29 जून शैक्षणिक योग्यता - DCE(Hons.),B.E.(Civil), MA ( Sociology), LL.B., PGD Rural Development विधा- 1-छंद (मात्रिक एवं वर्णिक) 2-गीत, 3-मुक्तक, 4-छंद मुक्त, 5-हाइकु, 6-माहिया, 7-कहमुक़री, 8-क्षणिका, 9-टांका, 10-पिरामिड, 11-स्वसृजित मौलिक विधा "प्रियामृतावधेश" 12-ग़ज़ल, 13-नज़्म, 14-रुबाई, 15-क़तआ, 16-कहानी, 17-उपन्यास, 18-व्यंग्य, 19-लघु कथा, 20-संस्मरण, 21-निबंध, 22-तकनीकी आलेख, 23-रिपोर्ताज़, 24-एकांकी, 25-नाटक, 26-नृत्य नाटिका 27-यात्रा विवरण 28-शोध पत्र 29-समीक्षा 30- संवाद 31- प्राकृतिक स्वास्थ्य, योग, तकनीकी, ज्योतिष विषयों पर पुस्तक लेखन साहित्यिक उपलब्धि- 10 साल की उम्र में चंपक, लोटपोट, वीर अर्जुन में बाल कविताएं प्रकाशित, समाचार पत्रों और पत्रिकाओं में लेख, कविताएं, लघु कथा, कहानी प्रकाशित होती रही हैं । अभियंता विश्व, चित्रांजलि, चित्रांश चेतना पत्रिकाओं के प्रधान संपादक का दायित्व निभाया, पानी रोकने के आसान तरीके, हरियाली के अंग, प्रोजेक्ट मैनेजमेंट, निरोगी रहने के उपाय, जलग्रहण मार्गदर्शिका पुस्तकें प्रकाशित हुयीं । ग़ज़ल संग्रह "अकेले सफ़र में" एवं गीत संग्रह "प्यार की यही कहानी", गीता की सीख प्रेरक संदेश एवं महायोगी उपन्यास प्रकाशनाधीन BCR सिने अवार्ड दिल्ली में मल्टी टेलेंटेड पर्सनॉलिटी अवार्ड से सम्मानित कलम बोलती है मंच से श्रेष्ठ रचनाकार का सम्मान, काव्य सरिता मंच द्वारा सम्मान, आई आई टी भुवनेश्वर अल्मा फिएस्टा और हिंदी पंक्तियां का अल्फाज़ सम्मान प्राप्त, हाइकु मंजुषा द्वारा बेस्ट हाइकुकार सम्मान, आगमन प्राइम का स्टार राइटर सम्मान, उत्कृष्ट रचनाकार का सम्मान और कोरोना वारियर का सम्मान प्राप्त, ऑनलाइन कवि सम्मेलन में सहभागिता के कई सराहना पत्र भी प्राप्त हुए हैं, काव्यांकुर साहित्यिक मंच द्वारा काव्य रत्न सम्मान, निवास का पता 65, इंदिरा नगर शिवपुरी मध्य प्रदेश 473551 मोबाइल नम्बर 9827329102 ईमेल awadheshsaxena29@gmail.com

Tuesday, June 23, 2020

देश प्रेम पर वीर छंद में एक रचना

देश प्रेम पर वीर छंद में एक रचना 
 
गणपति हो तुम बुद्धि प्रदाता, ये लो लड्डू मेवा पान ।
 प्रथम आपको ही हम पूजें, रखो हमारा पूरा ध्यान । 
 
शारद माता के चरणों में, शीश नवाकर मांगे ज्ञान । 
शुद्ध करो माँ लेखन वाणी, रहे हमारी ऊंची शान ।

देश प्रेम
 1
देश हमारा सबसे प्यारा, इस पर सब कुछ है कुर्बान ।
लाखों वीर शहीद हुए थे, आज़ादी के गाते गान । 
अलग अलग हैं भाषा बोली, जिनसे इसकी है पहचान । 
हिन्दू मुस्लिम सिख ईसाई, मिलकर बनता हिंदुस्तान । 
गर्मी कभी कभी है सर्दी, सूखा कहीं कहीं बरसात ।
कदम कदम पर मौसम बदले, जगह जगह बदले दिन रात ।
 4 
राम कृष्ण अवतार यहीं थे, बुद्ध यहीं यहीं महावीर । 
राह दिखाएं नानक मीरा, खुसरो तुलसी और कबीर । 
राणा और शिवा की गाथा, भर देती वीरों में जोश । 
एक वीर जब सौ को मारे, दुश्मन के उड़ जाते होश ।
 6
मंगल पांडे ने सुलगाई, आज़ादी की पहली आग ।
 मिलकर लड़ते लक्ष्मी तात्या, जाते गोरे डर के भाग । 
विवेकानंद ने दुनिया को, दिया धर्म का सच संदेश । 
परम धर्म है सत्य अहिंसा, गांधी जी के हैं उपदेश । 
आज़ादी के थे मतवाले, बिस्मिल भगत और आज़ाद । 
राजगुरु सुखदेव के जैसे, अमर शहीद रहेंगे याद ।
 9 
चले मशाल क्रांति की लेकर, लाखों भारत माँ के लाल । 
लाठी खाने आगे लाला, क्रांति दूत पाल और बाल । 
10 
सुभाष चन्द्र थे देश नेता, आज़ाद हिंद फ़ौज महान ।
 अंग्रेजों को मार भगाया, प्राणों का देकर बलिदान । 
11
 सत्य अहिंसा की ताकत से, गांधी करते थे एलान, 
अंग्रेजो भारत को छोड़ो, घर तुम्हारा इंग्लिशतान । 
12
हुआ देश आज़ाद हमारा, नेहरू बने प्रथम प्रधान ।
पटेल ने दायित्व निभाया, एक बनाया हिंदुस्तान । 

 अवधेश सक्सेना-23062020

सार छंद मन मंदिर झंकाती

सार छंद में एक श्रृंगार गीत 
 छम छम करती वो जब आती, मन मंदिर झंकाती । 
गाल गुलाबी नैन शराबी, चाल चले मदमाती । 

 चोटी लंबी होंठ रसीले, प्रेमारस छलकाती । 
माथा चमके बिंदी ऐसी, घर भर को दमकाती । 

 नाक सजी है नथ सोने की, रूप किरण बिखराती । 
कान झूमते मोती बाला, स्वर लहरी फैलाती । 

 हार गले का है हीरे का, रहे ध्यान भटकाती । 
सजी कलाई कंगन चूड़ी, छन छन छन छनकाती । 
 
माँग भरे है वो सिंदूरी, गर्वित हो इठलाती । 
मेंहदी लगे जब हाथों में, रंग देख मुस्काती । 
 
बोले मुँह में मिश्री घोले, मधुर भजन भी गाती । 
लेप लगाती चंदन का वो, गौर बदन महकाती । 
 
उसका आना सब मिल जाना, हृदय प्रेम भर जाती । 
सूखे मन को सिंचित करने, रूप धार बरसाती । 

 अवधेश सक्सेना-24062020 शिवपुरी मध्य प्रदेश

Monday, June 22, 2020

दोहे महाभारत

दोहे
 1 वेद व्यास रचना करें, लेखन करें गणेश । 
महा काव्य ये जो बना, चर्चित है चहुँदेश ।
 2 
कौरव पाण्डव युद्ध की, पढ़ लो कथा विशेष । 
जिसको सुनकर धन्य हैं, ब्रह्मा विष्णु महेश । 
दुर्योधन से कृष्ण ने, कहा बहुत समझाय । 
पाँच गाँव दे दो इन्हें, युद्ध अभी टल जाय । 
दुर्योधन ने तब कहा, चाहे करूँ प्रपंच । 
पाँच गाँव तो क्या इन्हें, दूँ न भू एक इंच । 
कृष्ण कहें फिर क्रोध में, दुर्योधन ले जान ।
कौरव वंश का रण में, टूटेगा अभिमान । 

अवधेश-13062020

शालिनी छंद मैं तुम्हे प्यार

शालिनी छंद मैं तुम्हें प्यार दूँगी । हे गोपाला, नंदलाला कहाँ हो । हे गोविंदा, हे मुरारी कहाँ हो । मेरी आँखें, ढूँढती मोहना को । आ भी जाओ,देख लो सोहना को । मेरे प्यारे, माँ यशोदा दुलारे । गोरी राधा, आज कान्हा पुकारे । जो मेरा है, कृष्ण पे वार दूँगी । वंशी वाले, मैं तुम्हें प्यार दूँगी । अवधेश सक्सेना-14062020 शिवपुरी मध्य प्रदेश

गाय सुख देती

गाय सुख देती हर चाहत में । 

 ममता का रंग नहीं होता, 
ये तो पानी जैसी है । 
बच्चों को दूध पिलाती माँ, 
मिलती सानी जैसी है । 

देवों का वास रहे इसमें, 
पालें इसको गोपाला, 
माँ कहती गाय हमारी माँ, 
फिर तो नानी जैसी है । 

 कंडों को थाप मिले ईंधन, 
घर को लीपें गोबर से । 
रोगी गौ मूत्र अगर पीले, 
अच्छा हो वो भीतर से । 

गायों का ध्यान रखा करते,
 भारत में खुशहाली है, 
सदियों से रोज मिला करती,
रोटी इसको हर घर से । 
 
खाने को काट रहे इसको, 
दंडित हों वो भारत में । 
जो कोई कष्ट इसे देगा, 
दुख पाता हर हालत में । 

अब तो कानून बने ऐसा, 
गायों का संरक्षण हो, 
माता जो गाय हमारी है, 
सुख देती हर चाहत में । 

 अवधेश-15062020

दोहे

वीर शहीद बना गए, पुण्य भूमि गलवान । सबक मिलेगा चीन को, व्यर्थ न हो बलिदान । मनुज रूप में देव थे, अमर रहें सुर लोक । रहे देश इनका ऋणी, करे न कोई शोक । अवधेश सक्सेना शिवपुरी 19062020

ग़ज़ल बस इक ख़ुदा से डरते हैं ।

ग़ज़ल 
बस इक ख़ुदा से डरते हैं । 

हम तो बस इक ख़ुदा से डरते हैं । 
अब नहीं हम जफ़ा से डरते हैं । 

चोट दिल पे लगी है अपनों से, 
दोस्तों की वफ़ा से डरते हैं । 

काम हमसे बिगड़ नहीं जाए, 
सिर्फ़ अपनी ख़ता से डरते हैं । 

क़त्ल कर देते हुस्न वाले ही, 
क़ातिलाना अदा से डरते हैं । 

ज़ुर्म उनसे कभी नहीं होता, 
जो ख़ुदा की सज़ा से डरते हैं । 

डूब कर जो शराब को पीते, 
वो कहाँ मैकदा से डरते हैं । 

खींच कर जो हमें गिरा देती, 
रात की उस सदा से डरते हैं । 

आँधियों का मुक़ाबला करते, 
नफ़रतों की हवा से डरते हैं । 

सौंप कश्ती जिसे चले हम थे, 
अब उसी नाख़ुदा से डरते हैं ।

ग़ज़ल ज़ख्म दिखाया नहीं गया ।

ग़ज़ल 
 ज़ख्म दिखाया नहीं गया । 

सपना पराई आँख सजाया नहीं गया । 
गहरा मिला जो ज़ख्म दिखाया नहीं गया । 

पैदल चले मुक़ाम की मीलों तलाश में, 
अब तक हमारे पाँव का छाला नहीं गया । 

वो जब निकल रहे थे हमारी गली से तो, 
चाहा बहुत बुलाते बुलाया नहीं गया ।  

कोई भी शख़्स ख़ास हमें याद ही नहीं, 
दिलचोर बेवफ़ा को भुलाया नहीं गया । 

जिसने कभी ज़रा भी हमारी नहीं सुनी, 
उसको मगर नज़र से गिराया नहीं गया । 

आहों भरी पुकार थी उस बेजुबान की, 
मरना किसी चरिंदा का देखा नहीं गया । 

इक चाँद ज़िंदगी से ज़रा दूर क्या हुआ, 
सूरज उगे हज़ार अँधेरा नहीं गया । 

मरता रहा किसान सभी देखते रहे, 
उसको किसी मदद से बचाया नहीं गया । 

बर्बाद हम हुए थे किसी हुस्न पर कभी, 
वादा किया जो प्यार में तोड़ा नहीं गया ।

ग़ज़ल सम्हलना चाहिए था ।

ग़ज़ल सम्हलना चाहिए था । 
 पुराना घर बदलना चाहिए था । 
नई दुनिया बसाना चाहिए था । 
 मुहब्बत थी अगर हमसे कभी तो, 
उन्हें इज़हार करना चाहिए था । 
 सदर पे आ गयी कितनी चमक है, 
शहर को भी निखरना चाहिए था ।
 खिले हैं फूल गुलशन में सनम के, 
उन्हें अब तो सँवरना चाहिए था । 
 पतंगा जल रहा था प्यार में जब, 
शमाँ को भी पिघलना चाहिए था । 
 तुम्हारे बात करने से हुआ क्या, 
नतीजा भी निकलना चाहिए था । 
 लगी ठोकर गिरे कच्ची सड़क पे, 
तुम्हें खुद ही सम्हलना चाहिए था । 

 अवधेश सक्सेना- शिवपुरी मध्य प्रदेश

Thursday, June 18, 2020

आल्हा /वीर छंद में महारानी लक्ष्मी बाई के बलिदान दिवस पर पुण्य स्मरण

आल्हा /वीर छंद में महारानी लक्ष्मी बाई के बलिदान दिवस पर पुण्य स्मरण

गणपति हो तुम बुद्धि प्रदाता,
ये लो लड्डू मेवा पान ।
प्रथम आपको ही हम पूजें,
रखो हमारा पूरा ध्यान ।

शारद माता के चरणों में,
शीश नवाकर मांगे ज्ञान ।
शुद्ध करो माँ लेखन वाणी,
रहे हमारी ऊंची शान ।

मणिकर्णिका नाम था प्यारा,
मनु कहते जो करते प्यार ।
कहते बाजीराव छबीली,
मिला पिता का खूब दुलार ।

शस्त्रों शास्त्रों की शिक्षा तो,
बचपन में ही ली भरपूर ।
मनु के कौशल की चर्चा तो, 
होती रहती थी सब दूर ।

था गंगाधर राव मराठा,
जिसका था झांसी पर राज ।
मिलन हुआ मनु का राजा से,
बजे विवाह सुरीले साज ।

हुआ नाम अब लक्ष्मी बाई,
झांसी की रानी विख्यात ।
माँ बनी इक पुत्र की रानी,
बीत रहे सुख से दिन रात ।

काल चक्र कुछ ऐसा घूमा,
पुत्र जिया न महीना चार ।
राज काज सम्हाले रानी,
गंगाधर रहते बीमार ।

दत्तक पुत्र लिया रानी ने,
नाम रखा दामोदर राव ।
रानी पर विपदाएं टूटीं,
बचे नहीं गंगाधर राव ।

हड़प नीति से अंग्रेजों ने,
झाँसी पर कर दिया प्रहार ।
अंग्रेज अदालत में हारे,
जब्त किया पर कोष अपार ।

काट दिया रानी का ख़र्चा,
जिसका हुआ बुरा परिणाम ।
छोड़ा किला महल में आई,
किये वहीं से सारे काम ।

आज़ादी की प्रथम लड़ाई,
रानी ने की थी प्रारंभ ।
लोह चने थे पड़े चबाने,
अंग्रेजों का टूटा दम्भ ।

अपनी झाँसी कभी न दूँगी,
रानी का गूंजा ऐलान ।
बनी लड़ाकू नारी सेना,
झलकारी जिसकी कप्तान ।

अंग्रेजों ने हमला बोला,
रानी भी करती प्रतिघात ।
काल्पी पहुँची थी फिर रानी,
बिगड़े ज़्यादा जब हालात ।

मिले वहाँ पर तात्या टोपे,
योद्धा थे जो बड़े महान ।
युद्ध गुरिल्ला की शैली से,
जीते सारे रण मैदान ।

तात्या रानी की सेना ने,
किया ग्वालियर पर अधिकार ।
आई फिर अंग्रेजी सेना,
रानी करती थी प्रतिकार ।

बनी महा रण चंडी रानी,
दुश्मन मारे कई हजार ।
लहू पिया जिसने गोरों का,
चमक रही थी वो तलवार ।

विजय जरा सी दूर खड़ी थी,
अंग्रेजों में हाहाकार ।
हुआ तभी रानी से धोखा,
छूट गया पल में संसार ।

आज़ादी की वो चिंगारी,
रानी का था जो संग्राम ।
भड़क उठी थी ऐसी ज्वाला,
कर दी अंग्रेजों की शाम ।

रानी तुमको याद रखेगा,
देश हमेशा  हिंदुस्तान ।
नमन तुम्हें सौ बार करेंगे,
अमर तुम्हारा है बलिदान ।

अवधेश सक्सेना
शिवपुरी मध्य प्रदेश
18062020
(महारानी लक्ष्मी बाई का बलिदान दिवस)

Wednesday, June 17, 2020

संस्मरण जा पर कृपा राम की-2

संस्मरण 
जा पर कृपा राम की-2

एक बालक जिसकी उम्र उस समय लगभग 9-10 साल थी, अपने दोस्तों के साथ खेलता था तो दोस्तों के नए-नए कपड़े और कई तरह की नई-नई चीजें देखकर अपनी गरीबी के वारे में सोचकर मन मसोस कर रह जाता था, उसके सबसे खास दोस्त जिसके साथ उसका ज्यादातर समय खेलकूद में निकलता था, संपन्न परिवार का था । उस दोस्त के पिताजी ने दोस्त को एक नई साइकल दिलवाई जिसे ये दोस्त बहुत जल्दी चलाना सीख गया और एक दिन इस बालक को भी सायकल के डंडे पर बिठाकर बाजार ले गया, इसे भी नई सायकल पर बैठने में बहुत मजा आ रहा था । दोनों दोस्त बाजार से जब लौट रहे थे तो संकरे रास्ते पर जैसे ही  एक पुलिया के पास पहुँचे तो सामने से एक ट्रक आ रहा था, पुलिया की पैरापिट वॉल और ट्रक के बीच लगभग 2 फीट जगह थी जिसमें इनकी सायकल आगे बढ़ रही थी, इस बालक के दोस्त का संतुलन बिगड़ा और सायकल ट्रक के नीचे आ गयी, सायकल चला रहा इस बालक का दोस्त तो पैरापिट वॉल  पकड़ कर खड़ा रह गया लेकिन डंडे पर बैठा ये  बालक सायकल के साथ नीचे गिर गया, सायकल ट्रक के अगले पहिये के आगे  निकलने के बाद गिरी थी और पिछला पहिया सायकल और इस बालक तक जैसे ही आया, बालक को भगवान याद आ गए, ट्रक रुक चुका था, ट्रक ड्राइवर ने साइड ग्लास में सायकल गिरते देख ली थी । ट्रक रुकने पर ये बालक भी जल्दी से उठ खड़ा हुआ और सायकल उठाकर दोनों दोस्त अत्यंत घबराए हुए वहां से आगे बढे तो ट्रक ड्राइवर की डांट भी खानी पड़ी । अब दोनों दोस्तों का डर के मारे बुरा हाल था, इस बालक के सायकल वाले दोस्त को बहुत डर लग रहा था कि ये घर पर बता देगा तो उसे बहुत डांट पड़ेगी, उसने इस बालक से घर पर न बताने को कहा । ये बालक दोस्ती निभाने के लिए हर बात मानने को तैयार था, कई दिनों तक घटना की भयावहता के बारे में दिमाग में विचार आते रहे लेकिन उसने घटना के वारे में किसी को नहीं बताया । इस बालक ने भी सायकल चलाना सीखने के लिए घर की पुरानी सायकल निकाली जिसकी सीट पर बैठना संभव नहीं था लेकिन कैंची बनाकर एक हाथ से हेंडिल और दूसरे से सीट पकड़कर एक पैर अंदर डालकर पैडल पर रखा और दूसरा पैर जमीन से टिकाते हुए ढालू सड़क पर चल दिया और बिना किसी सहायता के अपने आप पहले ही दिन सायकल चलाना सीख गया, उसके बाद तो दोस्तों के साथ उनकी नई सायकलों के बीच ये अपनी पुरानी सायकल चलाते हुए आनंदित होता था ।
15 -16 साल की उम्र में इंजीनियरिंग के प्रथम वर्ष में जब NCC जॉइन की तो EME बटालियन होने से मिलिट्री ट्रक के इंजन की वर्किंग और ट्रक ड्राइविंग सीखी, इस बालक पर ईश्वरीय कृपा के परिणाम ये रहे कि पहले ही दिन ग्राउंड में संतुलन के साथ अपने इंस्ट्रक्टर को ट्रक चलाकर बता दिया जबकि अन्य कैडेट को इस स्थिति तक आने में 15 दिन लग गए ।

जा पर कृपा राम की होई ।
ता पर कृपा करें सब कोई ।

अवधेश सक्सेना
शिवपुरी मध्य प्रदेश

आल्हा / वीर छंद

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आल्हा /वीर छंद
मात शारदा वीणा वाली, रखना हम पे अपना हाथ ।
बुद्धि वाणी ज्ञान की देवी, कंठ कलम के रहना साथ ।

अंदर आकर चीनी सेना, कब्जा रही बड़ा  भूभाग ।
झटका दिया देश ने ऐसा, साफ न होंगे उसके दाग़ ।

हुआ बुलंद स्वदेशी नारा, बिके नहीं अब चीनी माल ।
भूल करेगा वासठ जैसी, नहीं चलेगी उसकी चाल ।

वीरों का है ऊँचा माथा, खड़े हुए हैं सीना तान ।
रहे देश की रक्षित सीमा,रहे हमारी ऊंची शान  ।

रक्त बहाते गोली खाते, करें देश पे सब कुछ दान ।
अगर पुकारे भारत माता, दे दें इस पर अपनी जान ।

शेरों जैसी ताकत वाले, युद्ध भूमि में रहे दहाड़ ।
दुश्मन जो भी लड़ने आता, देते पल में उसे पछाड़ ।

एक इंच भी आगे आया, उसको देंगे सबक सिखाए ।
एक वीर मारेगा सौ सौ, देंगे उसको मार भगाए ।

अवधेश 16062020

मील के पत्थर ।

ग़ज़ल
मील के पत्थर  ।

मील के पत्थर बने हम रास्ता दिखला रहे हैं ।
इक जगह पर ही खड़े हैं, मंज़िलें मिलवा रहे हैं ।

सामने से आ रहे जो उन सभी को दें सलामी,
देखते हम चाल सबकी खैर हम मनवा रहे हैं ।

आ गए थे पास इतने दूरियाँ सब मिट गयीं,
फ़िर अचानक क्या हुआ जो छोड़ के वो जा रहे हैं ।

तुम मिले ख़ुशियाँ मिलीं थीं जो बिछड़ कर तुम गए तो,
ये जहाँ वीरान लगता गीत ग़म के गा रहे हैं ।

हो सके तो लौट आना हम यहीँ पर ही मिलेंगे,
फ़िर तुम्हीं से ही मिलन के ख़्याल मन भरमा  रहे हैं ।

ज़िन्दगी कैसी पहेली जो समझ आती नहीं है,
जो ख़ुदा ने की इनायत हम इसे सुलझा रहे हैं ।

प्यार में धोखा मिला है चाँद भी देगा गवाही,
अब अदालत में ख़ुदा की हम मुक़दमा ला रहे हैं ।

अवधेश-16062020

नफ़रत के रंग

नफ़रत के रंग में डूब चुके लोग अपनों से भी नफ़रत करने लगते हैं ।
नफ़रत फैला कर हित साधन करने वालों ने पढ़े लिखे लोगों का भी ब्रेन वाश कर दिया है और इन साफ दिमागों का नियंत्रण अपने हाथ में ले लिया है, नियंत्रणकर्ता जिस विचार को इन साफ दिमागों में डालता है ये उसी विचार को फैलाने लगते हैं । इन्हें पता ही नहीं रहता कि ये किसी अन्य नियंत्रकर्ता के नियंत्रण में नफ़रत भरी बातें फैलाने में लगे हैं ।
एक ही बात एक साथ जब कई स्रोत से आपके पास आए तो समझ जाओ कि इसे फैलाने वाले केवल शरीर हैं जो किसी अन्य दिमाग के लिए काम कर रहे हैं ।
ईश्वर से यही प्रार्थना है कि ऐसे लोगों की बुद्धि वापिस इन्हें मिले, अन्य किसी नियंत्रणकर्ता के नियंत्रण से मुक्त होकर सही गलत का अंतर समझने लगें, देश प्रेम, मानव प्रेम की परिभाषा को समझें, नफ़रत में डूबे रहने से इनका ही नुकसान होता है, इस बात को समझें और नफ़रत के स्थान पर प्रेम की बात करें । 
भागवत कथा में दत्तात्रेय भगवान के 24 गुरुओं वाली कथा से समझें कि जिन्हें दूसरे बुरा बताते हैं उनमें भी अच्छाई देखी जा सकती है और उनसे भी शिक्षा ली जा सकती है ।

मुक्तक

मुक्तक
गाय
सुख देती हर चाहत में ।
1
ममता का रंग नहीं होता, ये तो पानी जैसी है ।
बच्चों को दूध पिलाती माँ, मिलती सानी जैसी है ।
देवों का वास रहे इसमें, पालें इसको गोपाला,
माँ कहती गाय हमारी माँ, फिर तो नानी जैसी है ।

2
कंडों को थाप मिले ईंधन, घर को लीपें गोबर से ।
रोगी गौ मूत्र अगर पीले, अच्छा हो वो भीतर से ।
गायों का ध्यान रखा करते, भारत में खुशहाली है,
सदियों से रोज मिला करती,रोटी इसको हर घर से ।

3
खाने को काट रहे इसको, दंडित हों वो भारत में ।
जो कोई कष्ट इसे देता, दुख पाता हर हालत में ।
अब तो कानून बने ऐसा, गायों का संरक्षण हो,
माता जो गाय हमारी है, सुख देती हर चाहत में ।

अवधेश-15062020

अनंत चलना

अनंत चलना
8 Walking

हम सभी जानते हैं कि पैदल चलने से हम स्वस्थ रहते है, हृदय रोग, रक्तचाप, मधुमेह, अस्थमा आदि कई बीमारियों से बचने के लिए और इनके प्रभाव को कम करने के लिए 30-40 मिनट प्रतिदिन पैदल चलने की सलाह दी जाती है । 
हमें इस तरह की सलाह को मानते हुए प्रतिदिन पैदल चलने की आदत डालनी ही चाहिए ।
मैं प्रतिदिन लगभग 5 किलोमीटर पैदल चलता हूँ । पैदल चलने के लिए इंटरनेट पर मुझे बहुत अच्छी जानकारी मिली जिसे मैं आपसे बाँटना चाहता हूँ ।
इंटरनेशनल जर्नल ऑफ फिजिकल हेल्थ एंड स्पोर्ट्स के अनुसार जिस तरह वाहन चलाने का लाइसेंस 8 के आकार में वाहन चलाने पर मिल जाता है तो 8 के आकार में पैदल चलने से जिंदगी भर स्वस्थ रहने का लाइसेंस भी मिल जाता है । चुम्बकीय क्षेत्र को हम 8 के आकार से समझते हैं, पृथ्वी में गुरुत्वाकर्षण है क्योंकि इसके उत्तर और दक्षिण ध्रुव की एक्सिस पर ये घूमती है । अगर हमें भी अपने को सिद्ध करके अपने अंदर आकर्षण पैदा करना है तो हमें स्वस्थ रहना जरूरी है क्योंकि  स्वस्थ शरीर में ही आकर्षण होता है । 
इस सरल विधि को समझ लीजिए और इसके अनुसार पैदल चलने की आदत डालिए ।
आप अपने घर के बाहर, आँगन, खुले पार्क या छत पर उत्तर-दक्षिण दिशा में 20'x16'या 10'x8' की जगह में 8 ( अनंत) का आकार निश्चित कर लीजिए इसमें नीचे वाले मध्य बिंदु को दक्षिण में रखते हुए बिंदु 1 मानिए और घड़ी की विपरीत दिशा में चलते हुए पूर्व दिशा नीचे के गोले के मध्य में बिंदु 2 मानिए और घड़ी की विपरीत दिशा में चलते हुए ऊपर और नीचे के गोलों के मिलने वाले मध्य बिंदु 3 से होते हुए घड़ी की दिशा में ऊपर वाले गोले के मध्य पश्चिम दिशा की तरफ बिंदु 4 मान कर आगे चलते हुए उत्तर दिशा की तरफ मध्य में बिंदु  5 मानते हुए घड़ी की दिशा में चलते हुए ऊपर के गोले के पूर्व दिशा वाले मध्य बिंदु 6 से होते हुए ऊपर के गोले के नीचे वाले मध्य बिंदु 3 पर आकर नीचे के गोले में घड़ी की विपरीत दिशा में चलते हुए पश्चिम दिशा के मध्य बिंदु 7 से होते हुए प्रारंभ बिंदु 1 पर पहुंचकर एक चक्कर पूरा करिए और इसी तरह न तेज न धीमी रफ्तार से नंगे पैर चलते हुए लगभग आधा घण्टा चलिए, चलते समय ध्यान साँसों पर रखें । प्राणायाम के कुछ अभ्यास भी चलते-चलते कर सकते हैं ।
42 दिन ऐसा करिए और सुखद परिणाम देखिए, आपकी जवानी स्थिर हो जाएगी और अगर बुढापा आ गया है तो वापिस चला जाएगा । आप पूरी तरह स्वस्थ रहेंगे ।
अस्वस्थ व्यक्ति अपने डॉक्टर की सलाह अवश्य ले लें ।

अवधेश सक्सेना
शिवपुरी मध्य प्रदेश
14062020

दोहे

#दोहे #कविता #महाभारत #महाभारतचरित्र #hindipoetry #अवधेश_की_कविता
दोहे
1
वेद व्यास रचना करें, लेखन करें गणेश ।
महा काव्य ये जो बना, चर्चित है चहुँदेश ।
2
कौरव पाण्डव युद्ध की, पढ़ लो कथा विशेष ।
जिसको सुनकर धन्य हैं, ब्रह्मा विष्णु महेश ।
3
दुर्योधन से कृष्ण ने, कहा बहुत समझाय ।
पाँच गाँव दे दो इन्हें, युद्ध अभी टल जाय ।
4
दुर्योधन ने तब कहा, चाहे करूँ प्रपंच ।
पाँच गाँव तो क्या इन्हें, दूँ न भू एक इंच ।
5
कृष्ण कहें फिर क्रोध में, दुर्योधन ले जान ।
कौरव वंश का रण में, टूटेगा अभिमान ।
अवधेश-13062020

हम करें ये वंदना


हरिगीतिका छंद 

हम करें ये वंदना

हे शिव हमारी ओर देखो,कर रहे हम साधना ।
हो आपकी कृपा हमेशा, हम करें ये वंदना ।
हे हिम दुलारी के पति तुम, गणपति के हो पिता,
हम भक्त जन की आपसे है, मोह की कुछ कामना ।

रावण तुम्हारी भक्ति करके, पा गया वरदान था ।
वो राम को समझा नहीं था, छा गया अभिमान था ।
सीता हरण उसने किया तो, राम का दुश्मन बना,
वो राम के हाथों मरा था, जो महा बलवान था ।

आराध्य हैं जो आपके भी, राम उनका नाम है ।
आया तपस्या भंग करने, मिट गया वो काम है ।
अपमान जब देखा सती ने, यज्ञ में आहुति हुयीं,
उन माँ सती का स्थान है जो, शक्ति का वो धाम है ।

कैलाश पर्वत पर रहो या, हो हमारे पास में ।
हम तो रहेंगे हर हमेशा, आपकी ही आस में ।
हम वेलपत्री और जल से, कर रहे अभिषेक हैं ।
अब आपकी ही भक्ति करते, आपके आवास में ।

अवधेश-11062010

त्रिभंगी छंद

त्रिभंगी छंद 
भोले गंगाधर, हे शिव शंकर, भक्तों के दुख, दूर करो ।
कैलास निवासी, घट-घट वासी, चिंताओं को, शीघ्र हरो ।
बाघाम्बर धारी, हे त्रिपुरारी, हम पर भी कुछ, ध्यान धरो ।
गौरी पति गोरे, हर-हर मोरे, मन के अंदर, भक्ति भरो ।
अवधेश-11062020

अपनों_संग #प्रियामृतावधेश

मेरी मौलिक विधा #प्रियामृतावधेश में एक रचना 
9 पंक्तियां 2,4,6,8,10,12,14,16,18 मात्राएं
9 पंक्तियां 18,16,14,12,10,8,6,4,2 मात्राएं
आदि और अंत तुकांत
18 मात्राओं वाली पंक्तियां तुकांत ।

#अपनों_संग

जब
आँखें
खुलीं सुबह
खिड़की में से
सूरज झाँक रहा 
मैं रोज जगाता था
आज मुझे वो  जगा रहा
नींद बहुत अच्छी आई थी
रात जो गुजरी थी अपनों संग ।
खिलखिलाए  झूमे  मेरे   अंग ।
अपने तो अपने होते हैं 
बाकी तो सपने होते 
तन मन अच्छा रखने
अपनों से बातें
जरूर करना 
मन भरना
तुम भी
अब

अवधेश सक्सेना -12062020
शिवपुरी मध्य प्रदेश

Friday, June 12, 2020

चौपाई छंद विधान

प्रति चरण सोलह-सोलह मात्राओं का ऐसा छंद है जिसके कुल चार चरण होते हैं. यानि प्रत्येक चरण में सोलह मात्रायें होती हैं.
चौपाई के दो चरणों को अर्द्धाली कहते हैं. यह अति प्रसिद्ध छंद है.

इसका चरणांत जगण (लघु गुरु लघु यानि ।ऽ। यानि 121) या तगण (गुरु गुरु लघु यानि ऽऽ। यानि 221) से नहीं होता. यानि चरणों के अंत में किसी रूप में गुरु पश्चात तुरत एक लघु न आवे.

इस लिये चरणांत गुरु गुरु (ऽऽ यानि 22) या लघु लघु गुरु (।।ऽ यानि 112) या गुरु लघु लघु (ऽ।। यानि 211) या लघु लघु लघु लघु (।।।। यानि 1111) से होता है.

1. इस छंद में कलों के संयोजन पर विशेष ध्यान रखा जाता है. यानि द्विकल या चौकल के बाद कोई सम मात्रिक कल अर्थात द्विकल या चौकल ही रखते हैं.

2. विषम मात्रिक कल होने पर तुरत एक और विषम मात्रिक कल रख कर सम मात्रिक कर लेते हैं. यह अनिवार्य है. यानि दोनों त्रिकलों को साथ रखने से षटकल बन जाता है जो कि सम मात्रिक कल ही होता है.

3. किसी त्रिकल के बाद कोई सम मात्रिक कल यानि द्विकल या चौकल किसी सूरत में न रखें.

4. यह अवश्य है, कि किसी त्रिकल के बाद का चौकल यदि जगण (लघु गुरु लघु यानि ।ऽ। यानि 121) के रूप में आ रहा हो तो कई बार क्षम्य भी हो सकता है. क्यों कि जगण के पहली दो मात्राएँ उच्चारण के अनुसार त्रिकल का ही निर्माण करती हैं.
जैसे, राम महान कहें सब कोई .. .
 
यहाँ, राम (21) यानि त्रिकल के बाद महान (121) का चौकल आता है लेकिन इसके जगण होने के कारण महान के महा से राम का षटकल बन जाता है तथा महान का बचा हुआ  अगले शब्द कहें (12) के त्रिकल के साथ चौकल (न-कहें) बनाता हुआ आने वालों शब्दों सब और कोई के साथ प्रवाह में आजाता है.
यानि उच्चारण विन्यास हुआ -
राम महा - न कहें - सब - कोई .. अर्थात
षटकल - चौकल - द्विकल - चौकल .. इस तरह पूरा चरण संयत रूप से सम मात्रिक शब्दों का समूह हो जाता है.

कलों के विन्यास के अनुसार निम्नलिखित व्यवहार याद रखना आवश्यक है :
1. सम-सम सम-सम सम रखते हैं .. कुल 16 मात्राएँ
2. विषम-विषम पर सम रखते हैं .... . कुल 16 मात्राएँ
3. विषम-विषम पर शब्द रखेंगे .... .... कुल 16 मात्राएँ

चौपाई छंद के समकक्ष पादाकुलक छंद आता है जिसके प्रत्येक चरण में चार चौकल समूह बनते हैं. पादाकुलक छंद के लिए यह अनिवार्य शर्त है. अर्थात हर पादकुलक चौपाई छंद ही है जबकि हर चौपाई पादाकुलक नहीं हो सकती.
इस विषय पर गहराई से आगे के आयोजनों में प्रकाश डालेंगे जब अन्य सोलह मात्रिक छंदों चर्चा होगी.

उदाहरणार्थ कुछ चौपाइयाँ :
छाता छाता मेरा छाता । बादल जैसा छाया छाता ॥
आरे बादल काले बादल । गर्मी दूर भगा रे बादल ॥ ........ ... . ..... (अज्ञात)

या,
जय हनुमान ज्ञान गुण सागर । जय कपीश तिहुँ लोक उजागर ॥
राम दूत अतुलित बल धामा । अंजनि पुत्र पवन सुत नामा ॥ .... . (तुलसी)

या,
दैहिक दैविक भौतिक तापा । राम राज नहिं काहुँहि व्यापा ॥
सब नर करहिं परस्पर प्रीती। रहहिं स्वधर्म निरत स्रुति नीती॥ ...... (तुलसी)

आगे, कुछ कहने के पूर्व मैं यह कहता चलूँ  कि चौपाई में कई लोगों के लिए चरण और पद अक्सर गड्डमड्ड हो जाते हैं. कारण कि, तुकान्त पंक्तियों के अपने-अपने भागों में कोई यति नहीं होती.
यथा,
जय हनुमान ज्ञान गुण सागर ।  जय कपीश तिहुँ लोक उजागर ॥
<-----------चरण--------------->।<------------चरण-------------------->

<------------------------------पद/अर्द्धाली--------------------------------->
उपरोक्त एक-एक पंक्ति को लोग अलग-अलग यानि दो चरणों की तरह बताते हैं. यानि, उपरोक्त एक पद में दो चरण हुए. लेकिन, परेशानी तो तब होती है जब कुछ विद्वान इन पंक्तियों को दो पदों का होना बताते हैं.  

इसे दोहा छंद के माध्यम से इसे समझना उचित होगा.
दोहा छंद के एक पद में दो चरण होते हैं. यानि एक पद के बीच एक यति आती है जो किसी एक पद को दो भागों में बाँटती है. ये दो भाग अलग-अलग चरण कहलाते हैं.
किन्तु, जैसा कि स्पष्ट किया गया है, चौपाई के मामले में यह बात नहीं होती. इसकी दो पंक्तियों में तुकान्तता तो होती है लेकिन उन पंक्तियों में यति नहीं आती. यहाँ तुकान्त ही यति है. सारी उलझन यहीं और इसी कारण से है.

मैं ऐसे इसलिए कह रहा हूँ कि अगल-अलग छंद-विद्वानों ने चरण और पद जैसे शब्दों को अपने-अपने ढंग से इस्तमाल किया है.

तो हमें किसी एक स्कूल को मजबूती से पकड़े रहना होगा. तथ्य के एक बार स्पष्ट हो जाने के बाद फिर कोई परेशानी नहीं होती. जैसे, गुरुवार कहिये या वीरवार मतलब वृहस्पतिवार से है.

अब आइये, चौपाइयों की असली गिनती पर.
इस लेख में कहा ही गया है कि दो चरणों की अर्द्धाली होती है. यानि, यह आधी चौपाई होती है.

जैसे,
जय हनुमान ज्ञान गुण सागर ।
जय कपीश तिहुँ लोक उजागर ॥
उपरोक्त दो चरणों की हुई एक अर्द्धाली. यही एक पद भी हुआ.
इस तरह से आप देखियेगा कि हनुमान चालीसा में कुल 80 पंक्तियाँ यानि 40 अर्द्धालियाँ हैं. इ

इन्हीं 40 पदों के कारण चालीसा नाम पड़ा है.

Thursday, June 11, 2020

विकास पथ पर बढ़ते रहो


सावधानियां अच्छी हैं ।सर्दी जुकाम बुखार से बचे रहने के लिए भी हम सावधानी रखते हैं, आयर्वेद और प्राकृतिक चिकित्सा और प्राकृतिक सिद्धांतों को मानने वाला देश जिसके वेदों, शास्त्रों, योग, ध्यान, प्राणायाम, अध्यात्म के उपयोग से पश्चिम के भी कई लोग लाभान्वित हो रहे हैं, पुस्तकें लिख रहे हैं, शोध कर रहे हैं और कई देश इन्हीं पर चलकर न तो लॉक डाउन कर रहे न ही डर फैला रहे और एक भी मृत्यु इस महामारी से नहीं हुई है ।
ज्यादा डर से पैदा की गईं अव्यवस्थाओं से देश को जो नुकसान हुआ है उसकी क्षतिपूर्ति संभव नहीं है, कोरोना से प्रभावित होने वाले अभी तक कुछ हजार हैं लेकिन लॉक डाउन से करोड़ों लोग प्रभावित हुए हैं ।
इंटरनेट और मीडिया का उपयोग सही जानकारियां हासिल करने में होना चाहिए, जो आसानी से उपलब्ध नहीं होतीं क्योंकि इस पर जो कचरा है उसी में उलझ कर रह जाते हैं ।
इस वायरस का कोई इलाज नहीं है, इसकी कोई वैक्सीन नहीं है, इसकी जांच किट 100 प्रतिशत सही रिपोर्ट नहीं देतीं हैं, इसकी मृत्यु दर अन्य वायरल फीवर के लगभग बराबर है । 97 प्रतिशत में बिना किसी दवा के ठीक हो जाता है । मरने वालों में अधिकांश वो लोग हैं जिनकी रोग प्रतिरोधक क्षमता कम होने, अन्य गम्भीर बीमारियां होने या मांसाहारी और अल्कोहल का सेवन करने वाले हैं ।
डर के आगे जीत का मतलब डर का डर नहीं निडर होना है ।
हर दवा के साइड इफेक्ट होते हैं, मास्क लगाने के भी साइड इफेक्ट्स हैं, इसको लगाए रखने  से कई लोग गम्भीर रूप से बीमार हो सकते हैं ।
ये वायरस एक व्यक्ति से अधिकतम 3 लोगों को संक्रमित करता है, संक्रमित को आइसोलेट करना आवश्यक है । सामान्य लोगों को सामान्य जीवन जीने देना चाहिए, देश को विकास पथ पर बढ़ते रहना चाहिए ।
एलोपैथी में इलाज ही नहीं है और आयुर्वेदिक दवाइयों से इसे ठीक किया जा सकता है तो फिर आयुर्वेदिक को महत्व दिया जाना चाहिए । कई बातें हैं जो आपकी मीडिया जनित बनी सोच के विपरीत हैं, आप क्या बड़े बड़े नीति निर्माता, नियंता नहीं समझ पा रहे या समझते हुए अन्य कारणों से मानना नहीं चाहते ।

इंस्पेक्टर राज से मनवाने वाली बातें सही नहीं हैं क्योंकि न तो निगरानी संभव है और लोकतांत्रिक देश में इंस्पेक्टर राज होना भी नहीं होना चाहिए ।
लॉक डाउन बिल्कुल नहीं होना चाहिए ।
हर्ड इम्युनिटी से ही जब इस वायरस से लड़ा जाना है तो इसके संक्रमण का प्रचार-प्रसार बंद होना चाहिए ।
बिना लक्षण वाले किसी भी व्यक्ति की जांच की आवश्यकता नहीं होनी चाहिए ।
कोरोना संक्रमित के नाम, पहचान, आंकड़े, क्षेत्र की जानकारी स्वास्थ्य विभाग सार्वजनिक न करे ऐसे नियम बनें । मीडिया को मजदूरों, किसानों, बेरोजगारों, दुकानदारों, छोटे व्यापारियों की समस्यायों, खेती, सड़क, पानी, शिक्षा, संस्कृति, राष्ट्रीय सुरक्षा के मुद्दों पर ध्यान देना चाहिए ।

Tuesday, June 9, 2020

जा पर कृपा राम की -1


संस्मरण 
जा पर कृपा राम की -1
एक 9 वर्ष का बालक घर से लगभग 400 मीटर दूरी पर स्थित मंदिर परिसर में बने हुए चोपड़ा में तैरना सीखने के लिए एक दिन अपने हम उम्र दोस्तों  के साथ गया था, उस दिन पहला ही दिन था, उसके दोस्तों में से 2-3 दोस्त तैरना सीख चुके थे, वह जब चोपड़ा में दूसरे बच्चों को तैरते हुए देखता था तो उसकी भी इच्छा होती थी कि वो तैरना सीखे, उसने भी दोस्तों के साथ तैरना सीखने के लिए जाना उचित समझा था । घर में माँ काम में लगीं रहतीं थीं, बड़े भाई किसी काम के लिए निकल जाते थे, पिता के परलोकगामी होने के बाद केवल माँ और भाई ही थे जिनका थोड़ा डर रहता था, लेकिन दोस्तों के साथ खेलने के बहाने घर से निकल कर बच्चे कहाँ जा रहे हैं ये घर वाले नहीं समझ पाते ।
चोपड़ा जैसा कि नाम से स्पष्ट होता है एक चौकोर आकार का मानव निर्मित पानी का ताल, सरोवर या स्रोत होता है, जिसमें भूजल भरा रहता है । मंदिर में चूंकि एक कुँआ भी है इसलिए चोपड़ा को उस समय केवल नहाने के लिए ही उपयोग किया जाता था । मोहल्ले के बड़े बड़े बच्चे इसमें तैरते रहते थे । चारों ओर सीढ़ियां बनीं थीं जिनमें उतरते हुए कम गहराई से अधिक गहराई में पहुंच जाते थे, एक सीढ़ी उतरना यानि एक फुट उतरना 5 सीढ़ी उतरने पर बड़े बच्चे भी डूब जाएं इतनी गहराई थी और सीढ़ियों के बाद बीच में हाथी डूबने जितनी गहराई थी । 
उस बालक को पानी की गहराई और गहराई के डर की पूरी जानकारी थी । 
एक तरफ की सीढ़ियों के बाद एक दालान बनी थी उस दालान का फर्स लेबल ऐसा था कि उस पर बस 2-3 फ़ीट पानी ही रहता था, बच्चे इसी दालान में पहुंचकर तैरना सीखते थे, लेकिन दालान तक पहुंचने के लिए किसी की सहायता लेनी पड़ती थी, दालान और पहली सीढ़ी के बीच की दूरी इतनी थी कि छोटे बच्चे सीधे दालान में नहीं पहुंच सकते थे । 
उस बालक के साथी दालान में पहुंच गए और तैरने के लिए दालान के कम पानी में इधर-उधर हाथ पैर चलाते हुए तैरना सीखने में लग गए ।
उस बालक ने भी कपड़े उतारकर एक तरफ रखे और अति उत्साह में दालान तक पहुंचने के लिए बिना किसी की मदद लिए सीढ़ियों पर उतरना शुरू कर दिया, पहली सीढ़ी, दूसरी और तीसरी सीढ़ी तक पानी गले तक आ गया तो उसने सोचा कि अब थोड़ा आगे बढ़कर दालान तक पहुंच जाऊंगा लेकिन अचानक जैसे ही पैर उठे वो पानी में डूबने लगा, पानी मुंह से अंदर जाने लगा और उसे लगा कि अब बचना मुश्किल है, माँ और भगवान राम याद आ गए, इतने में ही किसी ने पकड़ कर जोर से ऊपर उठा लिया और पानी के बाहर कर दिया और डांट लगाई, देखा तो वो मोहल्ले के ही उस बालक से उम्र में 6-7 साल बड़े लड़के  थे और चोपड़ा में घण्टों तैरना उनका शौक था, उन्होंने बताया कि उनकी नज़र अचानक उस पर पड़ गयी थी और वो तेजी से तैरते हुए आए और उसे पानी में से ऊपर उठा लिया । उसके बाद उन्होंने उस बालक को दालान तक पहुंचा दिया और उस बालक ने उसी दिन तैरना सीख लिया । इसके बाद शहर के बड़े बड़े तालाबों में कूदना, तैरना, गोता मारना उस बालक की दिनचर्या में शामिल हो गया । एक बार एक साधु को एक तालाब में पानी की सतह पर आराम से लेटे देखा तो उस बालक ने भी अभ्यास किया और ये कला भी सीख ली, अभी भी ये बालक कितने भी गहरे पानी की सतह पर बिना हाथ पैर चलाए घण्टों तक या जब तक चाहे सुखासन या पद्मासन में लेटे रह सकता है ।
वो बालक आज भी उन देवदूत को याद रखता है और हृदय से आदर और सम्मान देता है जिनकी बजह से उसका जीवन बच गया था ।
तुलसी दास ने सच ही लिखा है -
जा पर कृपा राम की होई ।
ता पर कृपा करहिं सब कोई ।

गीत कहाँ तब चैन आता था

एक फ़िल्म का दृश्य है -
एक बिछुड़ा हुआ प्रेमी लंबे समय पश्चात जब अपनी प्रेमिका को देखता है तो वह पुरानी यादों में जाकर अपनी प्रेमिका को क्या कहना चाहता है । 

गीत
कहाँ तब चैन आता था

हमारे बिन तुम्हें भी तो कहाँ तब चैन आता था  ।
घड़ी दो चार पल को भी रहा ना दूर जाता था ।

किसी झूठे बहाने से हमारे सामने आना,
अदाएं खूब दिखलाना, खिलाना प्यार से खाना
हमें छूकर चले जाना हमें भी खूब भाता था ।
हमारे बिन तुम्हें भी तो कहाँ तब चैन आता था ।

हमें अपना बना तुमने कहीं का भी नहीं छोड़ा ।
निभाने प्यार का रिश्ता नया रिश्ता नहीं जोड़ा ।
मगर वो मुँह लिया मोड़ा हमीं से जो लजाता था  ।
हमारे बिन तुम्हें भी तो कहाँ तब चैन आता था ।

तुम्हारे सुर्ख लव पर जब खिली मुस्कान रहती थी ।
हमारी जान में ही तब तुम्हारी जान रहती थी ।
हमारे दर्द सहती थी अगर कोई सताता था ।
हमारे बिन तुम्हें भी तो कहाँ तब चैन आता था ।

कहा करतीं हमें जो तुम कि जिंदा रह नहीं सकतीं ।
हुई हमसे जुदाई तो ज़रा भी सह नहीं सकतीं ।
कभी कुछ कह नहीं सकतीं ख़ुदा जब भी मिलाता था ।
हमारे बिन तुम्हें भी तो कहाँ तब चैन आता था ।

सँवरती और सजती थीं हमें खुश देख कर हँसतीं।
खुली बाँहे लिए आतीं हमें ही घेर ख़ुद फँसतीं ।
हमीं पर तंज भी कसतीं हमें कितना सुहाता था ।
हमारे बिन तुम्हें भी तो कहाँ तब चैन आता था ।

अवधेश सक्सेना -09062020

Monday, June 8, 2020

गेंहूँ की बालियों से

गेंहूँ की बालियों से 

बरक़त बहुत बड़ी है देखो शराबियों से ।
मंडी भरी हुयी है गुंडे मवालियों से ।

ठंडक मिली तुम्हें जो कुछ देर ही रहेगी,
फिर से निकल के सूरज आएगा बदलियों से ।

ख़ुशबू बिखर रही है रस भी भरा हुआ है,
मिलना जरूर होगा फूलों का तितलियों से ।

लगता मुझे यही है कुछ चाहती वो कहना, 
फ़िर आज आ रही है आवाज़ चूड़ियों से ।

सीना फुला के चौड़ा सरहद पे हम खड़े थे,
माँ को बचा रहे थे दुश्मन की गोलियों से ।

गर हो हक़ीम तो फिर क्या मर्ज़ है मुझे वो,
छूकर जरा बताना तुम नब्ज़ उंगलियों से ।

ऊँची खड़ी इमारत इस बात की निशानी,
रोटी हुयी थी चोरी जनता की थालियों से ।

चक्कर लगा रहे हैं आशिक़ मियाँ गली में,
झाँको ज़रा कभी तो बाहर भी खिड़कियों से ।

गाड़ा बहा पसीना खेती किसान ने की,
सोना निकल रहा है गेंहूँ की बालियों से ।

अवधेश सक्सेना-08062020

Sunday, June 7, 2020

मेरा परिचय

मेरा नाम अवधेश कुमार सक्सेना 
शिवपुरी मध्य प्रदेश में रहता हूँ ।

मेरी शिक्षा 
DCE (Hons.), B. E.(Civil), M. A. ( Sociology), LL. B., PGD Rural Dev.

मैं जिला पंचायत शिवपुरी में जिला परियोजना अधिकारी, जिला परियोजना प्रबंधक, जिला संयोजक हरियाली, जिला संयोजक जलाभिषेक और ग्रामीण विकास का राज्य स्तरीय प्रशिक्षक रह चुका हूँ, वर्तमान में जल संसाधन विभाग में SDO के पद पर कार्यरत हूँ ।

अन्य
इंजीनियर्स एसोसिएशन का प्रांतीय मंत्री और जिलाध्यक्ष भी रह चुका हूँ ।
शिवपुरी विकास समिति, जय हिंद मिशन और संत रैदास कल्याण समिति का संरक्षक हूँ ।
श्रीमंत माधौ महाराज समिति का महासचिव हूँ ।

अभियंता विश्व, चित्रांश चेतना और चित्रांजलि पत्रिकाओं के प्रधान संपादक का दायित्व निभाया है ।
जलग्रहण मार्गदर्शिका, पानी रोकने के आसान तरीके, हरियाली के अंग और निरोगी रहने के उपाय नाम की पुस्तकें लिखीं हैं जो ग्रामीण विकास विभाग द्वारा प्रशंसित होकर उपयोग में लायी गयीं हैं ।

मेरा ग़ज़ल संग्रह "अकेले सफ़र में " प्रकाशन में है और अगले माह अमेजन, फ्लिपकार्ट आदि के माध्यम से उपलब्ध होगा ।

मेरी पत्नी शासकीय उच्चतर माध्यमिक विद्यालय में अंग्रेजी विषय की व्याख्याता हैं, बड़ा बेटा B.Tech (CSE), M. B. A. Public Service Management & E-Gov. वर्तमान में सूचना प्रसारण मंत्रालय भारत सरकार में ( आय. आय. एस. ) सहायक निदेशक के पद पर कार्यरत है ।
छोटा बेटा B.Tech (Hons.) M.S. IIIT हैदराबाद से करके आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस में अपना स्वयं का कार्य करता है ।
एक बेटी है जिसने M.A. हिंदी, PGDCA और B. Ed. किया है ।

गीत, ग़ज़ल, कविता, कहानी लिखना मेरा शौक है ।
राष्ट्रीय और स्थानीय पत्र पत्रिकाओं, समाचार पत्रों में भी मेरी रचनाएं और लेख प्रकाशित होते रहे हैं । 13 वर्ष की उम्र में ही चंपक, लोटपोट जैसी पत्रिकाओं में मेरी कविताएं छप चुकी हैं । वीर अर्जुन, आचरण, स्वदेश आदि समाचार पत्रों में मेरी रचनाएं और लेख प्रकाशित हुए हैं ।
आकाशवाणी शिवपुरी पर भी कई बार वार्ता, फोन इन आदि कार्यक्रमों में शामिल होने का अवसर मिला है ।

BCR Film एसोसिएशन दिल्ली द्वारा BCR सिने अवार्ड समारोह में गत वर्ष मुझे मल्टी टेलेंटेड पर्सनलिटी का अवार्ड मिल चुका है ।
ज्योतिष शास्त्र, आयर्वेद शास्त्र, योग, ध्यान, प्राणायाम और प्राकृतिक चिकित्सा पर शोधपरक कार्य किये हैं ।

NCC में सीनियर अंडर ऑफिसर रहा हूँ और इस दौरान रायफल शूटिंग में अचूक निशाने लगाकर अपने ट्रेनर से भी ज्यादा सटीक निशाने लगाकर निशानेबाजी में अब्बल रहा हूँ । 303 की पूरी गोलियां टारगेट की बुल आई में पहुंचा कर देखने वालों को हतप्रभ किया है ।

तैराकी में निपुणता प्राप्त है । कितने भी गहरे पानी की सतह पर बिना हाथ पैर चलाए पद्मासन या सुखासन में कई घण्टों तक या जब तक चाहूँ लेटे रह सकता हूँ ।

आपदा प्रबंधन पर ग्रामीण जन, वालिंटियर,  पुलिस और होम गार्ड को ट्रेनिंग देता रहा हूँ ।
EVM मशीन का जिले का प्रथम मास्टर ट्रेनर रहा हूँ । 
महिला विकास, ग्राम संपर्क अभियान आदि के प्रशिक्षण भी दिए हैं ।

स्कूल, कॉलेज के NSS, NCC के छात्रों को मोटिवेशनल स्पीच दीं हैं ।

कोरोना पर मेरे डांस का वीडियो, अपने बालों की कटिंग अपने ही हाथ से करने वाला वीडियो, रुमाल और रबर बेंड से मास्क बनाकर पहनने वाला वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो चुके हैं ।

समाज सेवा, राष्ट्र प्रेम और पर्यावरण के क्षेत्र में सक्रिय संस्थाओं के माध्यम से और व्यक्तिगत रूप से भी समय-समय पर आगे बढ़कर कार्य करता हूँ ।

मेरे द्वारा बिना किसी शासकीय मदद के केवल जन भागीदारी से बनवाए गए कई तालाब और विभिन्न स्थानों पर लगवाए गए लाखों पेड़ पर्यावरण के प्रति मेरे लगाव के वारे में बताते हैं । लोगों को इनसे लाभान्वित होते देख मुझे अत्यंत प्रशन्नता और संतुष्टि होती है ।

आवश्यकता अनुसार रक्त दान का अवसर भी मुझे मिला है ।

गरीब कन्यायों के विवाह, आदिवासी क्षेत्रों में वस्त्र दान, मजदूरों की आवश्यकतानुसार मदद और गरीब बच्चों की शिक्षा में मदद के अवसर भी ईश्वर की कृपा से मिले हैं ।

माँ की अध्यक्षता में संस्थापित समिति द्वारा संचालित स्कूल में 1986 से अभी तक लगभग 10000 बच्चों को आधी फीस और 1500 गरीब  बच्चों को मुफ्त शिक्षण की व्यवस्था ईश्वरीय कृपा से करायी है । 

मुख्य मंत्री श्री शिवराज सिंह जी, तत्कालीन केंद्रीय मंत्री स्व. श्रीमन्त माधव राव सिंधिया जी, श्रीमन्त ज्योतिरादित्य सिंधिया जी, प्रदेश के कैबिनेट मंत्री श्री नरोत्तम मिश्रा जी और श्रीमंत यशोधरा राजे जी, मुख्य सचिव, संभागायुक्त, मुख्य अभियंता, कलेक्टर आदि  के कई शासकीय कार्यक्रमों का मंच संचालन करने का अवसर मिला है ।
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Saturday, June 6, 2020

कोविड19

130 करोड़ जांच किट और वैक्सीन के साथ लाखों की संख्या में  वेंटिलेटर, बेड और भारी मात्रा में  दवाईयां तब बिकेंगे जब इसका डर हर दिमाग में बैठ चुका होगा ।
डर पैदा करो, दिमाग में बैठाओ और डर के इस व्यापार से पैसा कमाओ । 
इसको समझने की जरूरत है ।
3 महीने में 2 लाख हो गए तो 100 करोड़ कितने दिन में हो सकते हैं साधारण गणित से पता कर सकते हो ।
खोज करो कि जांच किट क्या 100 प्रतिशत सही रिपोर्ट देतीं हैं ।
खोज करो कि स्वस्थ व्यक्ति की जांच क्यों और कब की जानी चाहिए । 
खोज करो कि टी बी, हार्ट अटैक, डायबटीज, केंसर, मलेरिया, फाइलेरिया, इन्फ्लूएंजा लाइक डिसीज एवं इसी तरह की कई अन्य बीमारियों में मृत्यु दर क्या है और कोविड-19 की मृत्यु दर क्या है ।
खोज करो कि लॉक डाउन करने वाले देशों में कुल जनसंख्या के कितने प्रतिशत डेथ हुयीं और लॉक डाउन न करने वाले देशों में कितने प्रतिशत डेथ हुयीं ।
खोज करो कि लॉक डाउन पीरियड में किन किन व्यक्ति की आमदनी में इजाफा हुआ ।
खोज करो कि विश्व भर के देशों में किन किन व्यक्ति की राजनीतिक पद प्रतिष्ठा और ताकत में वृद्धि हुई ।
खोज करो कि शासन प्रशासन कितना मजबूत हुआ ।
खोज करो कि लोकतांत्रिक मूल्य कमजोर हुए या मजबूत हुए ।
खोज करो कि आने वाले समय में किन कम्पनियों को बहुत ज्यादा फायदा होने वाला है ।
खोज करो कि कम्पनियों पर किसका नियंत्रण है और कम्पनियों के नियंत्रण में कौन और क्या है ।
खोज करो कि पृथ्वी पर वायरस की संख्या कितनी हो सकती है ।
खोज करो कि वायरस से लड़ने का सही तरीका क्या हो सकता है ।
खोज करो कि मास्क कब, क्यों और किसे लगाना है और किसे, कब और क्यों नहीं लगाना है ।
खोज करो कि दी जाने वाली दवाइयों के साइड इफेक्ट्स क्या हैं ।
खोज करो कि अन्य बीमार लोगों में से कितने लोगों की  सही इलाज न मिलने से मृत्यु हो गयी ।
खोज करो कि कोविड-19 से मरने वालों में ऐसे कितने हैं जिन्हें अन्य कोई गम्भीर बीमारी नहीं थी ।
अगर ये जानकारियां मिल जाएं और इनका विश्लेषण हो जाए तो वास्तविक स्थिति पता लग सकती है ।
बचाव के सभी साधन इस्तेमाल करते हुए उक्त जानकारियां हासिल करें और भयमुक्त रहें ।
योग, प्राणायाम, आयुर्वेद और प्राकृतिक स्वास्थ्य के माध्यम से आप स्वस्थ रह सकते हैं अपनी प्रतिरोधक क्षमता को मजबूत रखते हुए सभी बीमारियों का मुकाबला कर सकते हैं ।
जय हिंद

Friday, June 5, 2020

कहमुक़री

  • कहमुक़री

1
धुँआ बिगाड़े इसकी सेहत ।
शुद्ध हवा की इसे जरूरत ।
भाता इसको हरित आवरण ।
क्या सखि साजन? न पर्यावरण ।

2
मांसाहार इसे है भाता ।
राजा भी ये है कहलाता ।
इसके आगे हर एक ढेर ।
क्या सखि साजन ? नहीं सखि शेर ।

3
करता हर दम रहे शरारत ।
उछलकूद है इसकी आदत ।
रहे नहीं ये घर के अंदर ।
क्या सखि साजन ? ना  सखि बंदर ।

इसकी कितनी मस्त चाल है ।
मोटी इसकी बहुत खाल है ।
बन जाता ये सबका साथी ।
क्या सखि साजन ? ना सखि हाथी ।

5
काले काले बालों वाला ।
दिखने में लगता है काला ।
इसको सब कहते हैं कालू ।
क्या सखि साजन ? ना सखि भालू ।

अवधेश-060620

पर्दा बस निगाहों का रहे ।

ग़ज़ल 

पर्दा बस निगाहों का रहे ।

हौसला ऊँची उड़ानों का रहे ।
आसमाँ तो बस परिंदों का रहे ।

जो ख़ुदा से माँग कर हमको मिला,
आपका ये साथ जन्मों का रहे ।

कामयाबी वो मिले जो चाहिए,
इल्म हमको गर किताबों का रहे ।

क्या बिगाड़े दूसरा कोई कभी,
ख़ौलता जो खून रिश्तों का रहे ।

मिल रहा है माल खाने को तुम्हे,
ख़्याल बुझती आग चूल्हों का रहे ।

फूल काँटें दूसरे सब फैंक दो,
बाग़ अपना बस गुलाबों का रहे ।

शर्म इज़्ज़त के लिए तुम ये करो,
आड़ पर्दा बस निगाहों का रहे ।

अवधेश-05062020


प्रियामृतावधेश आम


मेरी मौलिक विधा प्रियामृतावधेश में 
आम

जब
मुझको 
मिला वही 
परिचित गरीब
रास्ते  में   ठहर 
हम बात कर रहे थे 
आम के पेड़ के नीचे 
एक कच्चा आम गिरा वहाँ
जैसे  मुझे छूने की  चाह  में
उसी ने रुकवाया था  राह में
पेड़ भी  आकर्षित  हुए  हैं 
देखो   मेरी    आभा    से 
पर उस आम का भाग्य
मैंने     उसे      दिया 
उस गरीब को 
गरीब खुश 
हम खुश 
अब

अवधेश-05062020

मुक्तक

मुक्तक

कभी मैंने जमीं पे जो फलों का बीज बोया था ।
उसी के पेड़ बनने के बड़े सपने में खोया था ।
बड़ा करने उसे सींचा हुई जब छांव उसकी तो,
दिखा उस छांव के नीचे वहाँ इक चोर सोया था ।
अवधेश-05062020

Wednesday, June 3, 2020

माँ सरस्वती वंदना हरिगीतिका छंद

हरिगीतिका छंद में 

माँ सरस्वती वंदना

माँ शारदे देवी सुनो ये, वंदना जो गा रहे ।
माँ आपकी ही है कृपा तो, ज्ञान को हम पा रहे ।

रागों सजी वीणा बजे तो, साधना हो आपकी ।
ये तूलिका जो भी लिखे तो, कामना हो आपकी ।

माँ श्वेत वस्त्रों से सजी हो, शांति भी लाती रहो ।
जो आपको ही भा रहे हों, गीत वो गाती रहो ।

राजीव पे बैठो सदा ही, हाथ में वीणा लिए ।
विद्या हमें देना सदा मां, हम जलाते नव दिए ।

जो जीभ पे आ बैठतीं तो, बोल मीठे ही बहें ।
जो बुद्धि पे डाका पड़े तो, तीर सी बातें कहें ।

है सोम सा जो  रूप सादा, आपका श्रृंगार है ।
माँ आपके आशीष से ही, प्रेम का संसार है । 

हैं दोष जो वो दूर भागें, जो गुणों की खान दो ।
माँ आपसे ये प्रार्थना है, बुद्धि विद्या ज्ञान दो ।

वाणी हमारी शुद्ध होवे, आप जिव्हा पे रहो ।
ये लेखनी जब भी लिखे तो, आप अक्षर पे रहो ।
अवधेश-04062020

Tuesday, June 2, 2020

जीवन संघर्ष -संस्मरण

संस्मरण
जीवन संघर्ष 

5 वर्ष 10 माह का बच्चा उस रात अपनी माँ की गोद में लेटा था, माँ की आंखों में आंसू थे, पास ही 14 वर्षीय बड़ा भाई भी बैठा था,  कमरे में आस-पड़ोस के कई लोग मौजूद थे, एक खटिया पर उस मासूम बच्चे के पिता लेटे थे जिनकी निगाह इन बच्चों की तरफ ही थी, उन्हें पत्नी और  बच्चों के भविष्य की चिंता थी पर वो बड़े ध्यान से गीता सुन रहे थे, उनके भाई समान मित्र पास में बैठे गीता सुना रहे थे । दिन में ही अस्पताल से उन्हें घर भेज दिया गया था, डॉक्टर्स ने असमर्थता बता दी थी, घर में पलीं 2 गाय लाली और श्यामा भी उनका हाथ लगवा कर ब्राह्मण को दान कर दीं गयीं थीं । इन गायों का दूध, दही और माखन  बच्चों की माँ बच्चों को नियमित देतीं थीं । चूल्हे के लिए लकड़ियां लेकर आने वाली सहरिया जन जाति की महिला को लकड़ी के पैसों के साथ छाछ भी बच्चों की माँ दिया करती थीं, कई वार साड़ी, कपड़े, खाद्य पदार्थ देते हुए भी माँ को बच्चों ने देखा था । मासूम बच्चा उस काली रात को कभी भुला नहीं सकता, गीता के 18 अध्याय सुनने के बाद 4 बजे उसके पिता परलोक गमन कर चुके थे । 
माँ और दो बेटे लंबे जीवन संघर्ष के लिए तैयार थे, मकान के 2 कमरे किराए पर देने पड़े, बच्चों ने माँ के साथ बचपन से ही जिम्मेदारी लेना शुरू कर दिया, आठबीं क्लास में पढ़ने वाले बड़े बच्चे ने प्रिंटिंग प्रेस पर काम किया, टाइपिंग सीखी और मेहनत के साथ कई छोटे-छोटे काम कर गुजर बसर लायक पैसे कमाना शुरू किए, छोटा बच्चा माँ के हर काम में हाथ बंटाने लगा, कुंए से पानी भरना, ईंधन के लिए कंडे थापने के लिए गोबर के  तसले भर कर सिर पर रखकर लाना, दीवालों और फर्स की लिपाई-पुताई के लिए मिट्टी लाना, दुकान पर बैठना, कागज के लिफाफे बनाकर बेचना जैसे काम किये । छोटे बच्चे की उम्र जब लगभग 13-14 वर्ष थी तब घर से लगभग 1 किलोमीटर दूरी पर ही एक नई शुगर फेक्ट्री खुली, शुगर फेक्ट्री में काम करने के लिए मजदूरों की जरूरत थी, मोहल्ले के कई युवा फेक्ट्री में काम पर जाने लगे, घर की मुश्किलों को दूर करने के लिए इस छोटे बच्चे ने भी फेक्ट्री की नाईट शिफ्ट में काम करने की सोची, दिन में स्कूल और दूसरे काम भी जरूरी थे, फेक्ट्री के गेट पर मजदूरों की लाइन लगती थी और एक मेट या मैनेजर टाइप का व्यक्ति मजदूरों को देखकर सिलेक्ट या रिजेक्ट करता था, छोटे बच्चे की उम्र के और भी बच्चे थे, जिनमें से कई को रिजेक्ट कर दिया था, लाइन में लगा ये बच्चा भगवान से प्रार्थना कर रहा था कि उसे सिलेक्ट कर लिया जाए, पैसों के अभाव में कई तरह की परेशानियों का सामना करते हुए परिवार को कुछ तो सहायता मिलेगी । अपने नम्बर की प्रतीक्षा करते हुए उसके मन में न जाने क्या क्या विचार आ रहे थे, रिजेक्ट होने की  शंका थी लेकिन भगवान से जो प्रार्थना कर रहा था उस पर भरोसा था, जब नम्बर आया तो सिलेक्ट करने वाले ने उसे देखा और रिजेक्ट करने की मुद्रा बनाई लेकिन फिर अचानक कुछ सोचते हुए उसे सिलेक्ट कर दिया । उस बच्चे की खुशी  का ठिकाना नहीं था । उस छोटे बच्चे को ट्रक से गन्ने उतारकर सिर पर रख के फेक्ट्री के अंदर ले जाना और गन्ने का रस निकालने वाली मशीन तक ले जाना जैसे काम रात में करने पड़े । घर की जरूरतों को पूरा करने के लिए वो बच्चा हर मुश्किल काम करने को हमेशा तैयार जो था ।
उस माँ की कठिन तपस्या, संघर्ष और हर पल भगवान की प्रार्थना में लगे रहते हुए काम करते रहने के सुखद परिणाम ये रहे कि बड़ा बेटा बैंक में मैनेजर और छोटा बेटा इंजीनियर बनके प्रथम श्रेणी अधिकारी के पद पर पहुंचा और इस इंजीनियर का बेटा भी आई ए एस की परीक्षा पास करके भारत सरकार का प्रथम श्रेणी अधिकारी बन गया है ।
अवधेश-03062020

गंगा में नहाया जाए

ग़ज़ल
गंगा में नहाया जाए

हर मुसीबत से इन्हें आज बचाया जाए ।
इन गरीबों को घरों में ही बसाया जाए ।

अब हक़ीक़त को बयां करके सभी के आगे,
सोए जज़्बात को लोगों के जगाया जाए ।

दुश्मनी छोड़ मिलो तुम भी गले आपस में,
खून अब और न यहाँ पे  बहाया जाए ।

जो ठसक और अकड़ में ही रहा करते,
उँगलियों पे उन्हें भी तो नचाया जाए ।

हो गए काम हमारे भी सभी पूरे तो,
अब चलो चैन से गंगा में नहाया जाए ।

अवधेश-01062020




संवरने की ज़रूरत क्या है

ग़ज़ल

संवरने की ज़रूरत क्या है 

अब नई राह पे चलने की ज़रूरत क्या है ।
मिल गया सब तो भटकने की ज़रूरत क्या है ।

जब ख़तरनाक हुयी आज हवा है बाहर,
बेवज़ह घर से निलकने की ज़रूरत क्या है ।

जब यहाँ फैल रही है आग नफ़रत वाली,
गीत फ़िर प्यार के लिखने की ज़रूरत क्या है ।

जो नहीं सुनते कभी बात तुम्हारी दिल से,
उन दिलोजान से मिलने की ज़रूरत क्या है ।

चाँद खुद रूप तुम्हारा देख शर्माता है,
फिर तुम्हे सजने संवरने की ज़रूरत क्या है ।

अवधेश 16052020

Monday, June 1, 2020

प्रियामृतावधेश राम राज्य

मेरी मौलिक विधा प्रियामृत अवधेश में लिखी गयी कविता #ramrajya #रामराज्य #अवधेश #awadhesh  #प्रियामृत_अवधेश #priyamrit_awadhesh 

राम- राज्य

आज
राम से
हम प्रार्थना 
यही हैं करते
वह करें पुनर्स्थापित 
राम राज्य इस देश में
समरसता की नदी सरयू
बहती रहे निरन्तर भारत में
यहां पर सदा सभी रहें खुशहाल
यहां नागरिक नहीं रहें तंगहाल 
भाई-  भाई में प्रेम झलके 
नारी का सम्मान यहाँ हो
अच्छी शिक्षा हो बच्चों की
स्वास्थ्य बेहतर सभी का
पर्यावरण साफ हो 
भारत बन जाए
अवध जैसा
सम्हालो
राज 
#अवधेश #awadhesh #प्रियामृत #priyamrit #प्रियामृत_अवधेश #priyamrit_awadhesh
25022020

मुक्तक

कुर्सी की खातिर जो तुमने फैलाई नफरत है,

हिन्दू को मुस्लिम से बांटे ये घिनोनी हरकत है ।

निर्दोषों पर असर पड़ा तुम्हारी इन करतूतों का,

नहीं हो दुख किसी मृत्यु पर ये तुम्हारी फितरत है ।

#अवधेश #awadhesh
26022020

प्रियामृतावधेश

मेरी मौलिक विधा #प्रियामृतवधेश #priyamritawadhesh में मेरी कविता ।
9 लाइन 99 मात्राएं 3,5,7,9,11,13,15,17,19 और 9 लाइन 99 मात्राएं 19,17,15,13,11,9,7,5,3

कहो
ये सही
है या गलत
छींक आने पर
भद्रा या चौघड़िया 
या बिल्ली रास्ता काटे
तुमको होती है आशंका 
मुहूर्त देख करते सभी काम
बनते शिक्षित ज्ञानी पढते विज्ञान

समझो सच ज्ञान दूर करो अज्ञान
परमात्मा को जान लिया अगर
सृष्टि की रचना को जानकर
उसकी प्रकृति और नियम 
जब  समझ लिए तुमने 
अंध विश्वास दूर
भगाओ तुम
मत कहीं 
रुको
-#अवधेश #awadhesh 
26022020


प्रियामृतावधेश

मेरी मौलिक विधा #प्रियामृतावधेश #priyamritawadhesh में एक कविता #फूल 

फूल 
मुलायम
शूल कठोर
शूलों से घिरा
हंसता मुस्कुराता 
खिलता खिलखिलाता
तितलियों  को  रस देता
मन मोहक खुश्बू फैलाता
वर माला में पिरोया जाकर
वर से वधु का मधुर मिलन कराता
चरणों में कभी सिर पर  चढ़ जाता
देव पूजा की थाली में आकर 
जीत पर किसी गले में हो
स्वागत का माध्यम बने
शहीदों की समाधि
या शवों पर चढ़
धन्य मानता
आभार
फूल 

#अवधेश #awadhesh
27022020

प्रियामृतावधेश

मेरी मौलिक विधा प्रियामृतावधेश-सम priyamritawadhesh-sam में 9 लाइन मात्राएं 2,4,6,8,10,12,14,16,18 और 9 लाइन 18,16,14,12,10,8,6,4,2 

मैं 
सबको
बतलाता 
सेवा कर लो
प्रेक्षा ध्यान करो
मन को कर लो वश में
करना जो भी कर्म उनको
रख   देना  ईश्वर के  पद में 
तारा ध्रुव जैसी तुम भक्ति करना
सब छोड़ो लोगों  से क्यों  डरना
बलशाली बनकर दिखलाना
केसर   वाला  दुग्ध पीना 
अंग प्रत्यंग पुष्ट बनाना
दबना कमजोरी
रहना तनकर
प्रभु रहते
भुव पर
हैं ।

(प्रियामृतावधेश-सम विधा की इस कविता में मानव जीवन का मंत्र छुपा है, इसे ढूंढें और अपनाएँ आपने ढूंढ लिया हो तो कमेंट में लिखें )

अवधेश awadhesh
28022020

न वो मौसम हवाओं के

#ग़ज़ल 

न वो मौसम हवाओं के ।

न खिलते फूल बागों में न मौसम वो हवाओं के,
कभी जो दिन यहाँ थे वो कहाँ हैं अब बहारों के ।

तटों की रेत पर जैसे लिखा था वो  मिटा डाला,
भुला डाले किये थे जो कभी वादे वफ़ाओं के ।

जरूरत है तभी उनका हमें अब साथ चाहिये,
चला करते कभी हम थे बिना उनके सहारों के ।

हंसो तो फूल झरते हैं, लटें क्या खूब लगती हैं,
"दिवाने हो गए हम भी तुम्हारी इन अदाओं के ।"

दुखों के बाद आते हैं सुखों के पल यहाँ साथी,
नदी की धार क्या जाने दुखों को इन किनारों के ।

शराफत का तकाजा है यहां बदमाश को छोड़ो,
लगे हैं दाग पक्के आज बस्ती में शरीफों के ।

किसी का घर जला घर का दिया भी तो बुझा डाला,
तुम्हारा फायदा इस में लुटे अरमां गरीबों के ।

खुदा को मानते हो तो न मानो और बातों को,
खुदा की बस इवादत हो न जाओ दर मजारों के ।
#अवधेश #awadhesh
01032020

प्रियामृतावधेश

#प्रियामृतावधेश #priyamritawadhes

जो
यदि तू
शोर करे
दान दिखावे 
का प्रचार करके
दुनिया में अपने को 
लाख अच्छा तू कहलाये
राजा हो  या धन वाला हो
है ये  बात  पते की,   इसे   मान
राम को अर्पण कर जो करे दान
धारण कर धैर्य रखना ध्यान
जीवन में जो मिला तुझे
काम में ले भूल जा
भीतर जरा झांक
प्यासा बन जप
राम नाम
है रब
वो
#अवधेश #awadhesh
02032020
(इसमें कृष्ण का वर्णन भी है, ढूंढो और बताओ )

मौसम सुहाना याद है




मौसम सुहाना याद है ।

उस प्यार की बरसात का, मौसम सुहाना याद है ।
उनसे मिले बिछड़े कभी, किस्सा पुराना याद है ।

वादे किए थे वो सभी, तोड़े हमें दुख भी दिया,                    उनका   हमें  यूँ खून के, आंसू रुलाना याद है ।

बागों बहारों में कभी, मिल कर हमारा घूमना,  
सावन   महीने   में   उसे, झूला झुलाना याद है ।

दीदार जो उनका हुआ, बेचैन फिर हम हो गए,
उनका  हमारी  रात की,   नींदें चुराना याद है ।

भूली न जाती बात वो, भूली न जाती रात वो,
उनका हमें वो बोलना,   गोदी सुलाना याद है ।
#अवधेश #awadhesh
04032020

आप घर का कभी पता देते

#ग़ज़ल
आप घर का कभी पता देते ।

आप घर का कभी पता देते ।
आपको आप  से मिला देते  ।

आपका नाम याद रखते सब,
ये गरीबी अगर मिटा देते ।

रोग ऐसा लगा मुझे दिल का,
आप आते  मुझे दवा देते ।

मंजिलें हैं कहाँ मिलें कैसे,
"रास्ता तो मुझे बता देते ।"

हो गया था गुनाह जो तुमसे,
काश उसकी तुम्हे सजा देते ।

#अवधेश #awadhesh
04032020

हसरत एक पलती है


ग़ज़ल 
हसरत एक पलती है

सितारों को यहां कैसी कभी सौगात मिलती है ।
खिजां में भी खुशी की जब कली भी खूब खिलती है ।

बिछा  देते जमीं पर रोशनी की साफ चादर वो,
सवेरा जो हुआ तो फिर कली भी होंठ सिलती है ।

भिगो जाते हमें बादल कभी अंदर यहां आकर,
कभी थी आग इस दिल में कहीं अब और जलती है ।

मिला भरपूर जो चाहा यहां हमको खुदा से सब,
तमन्ना थी न  वाकी आज हसरत एक पलती है ।

कई सूरज करें कोशिश नहीं उसको जला सकते,
जमीं पर आसमाँ पर भी खुदा की शान चलती है । 

निडर होकर रहो उस पर भरोसा छोड़ मत देना,
बिना मर्जी कभी उसकी यहां पत्ती न हिलती है ।

करो पूजा करो सेवा यहाँ माँ ही सहारा है,
सफलता के लिए माँ की दुआ भी खूब फलती है ।

#अवधेश #awadhesh

परम्परा एक डाल देंगे


#ग़ज़ल #gazal #शायरी #shayri

#परम्परा एक डाल देंगे ।

परंपरा एक डाल देंगे । 
इनाम हर एक साल देंगे ।

टपक न जाएं कहीं ये मोती,
सहेजने को रुमाल देंगे ।

करम नहीं हों खराब तो फिर,
कभी नहीं ये मलाल देंगे ।

गिरी कभी गेंद जो यहाँ पर,
तुरन्त ही हम उछाल देंगे ।

शहीद होकर दिखाते उनकी,
"युगों युगों तक मिसाल देंगे ।"

जवाब जिनके नहीं किसी पर,
जवान  ऐसे सवाल देंगे ।

शहीद की याद में जलेगी,
समाधि पर जो मशाल देंगे ।

#अवधेश #awadhesh
06032020

मुक्तक

मुक्तक

रूह को झाँक कर, देखना भी कभी  । 
जो मिले सौंप देना,  खुदा  को  सभी ।
रुख न तुम मोड़ना, आस  मत   छोड़ना,
चाहते   हो  मिलेगा,  यहीं  पर   अभी ।

#अवधेश #awadhesh

मुक्तक

#मुक्तक- #muktak

समझदारी इसी में है कि उस गुलजान को छोड़ूँ ।
मुझे जिसने दिया ऐसा सिला रिश्ता वही तोड़ूँ ।
वफ़ा की बात की थी बेवफा ने खूब हंस-हंस कर,
उसी के घर तरफ की राह से मैं आज रुख मोडूँ ।

#अवधेश #awadhesh
07032020

मुक्तक


भले ही वो करे उपचार दिल का  पा नहीं सकती ।
उसे दिल की कही बातें समझ में आ नहीं सकती ।

जिसे भी दे दिया ये दिल उसी ने कर दिए टुकड़े,
जिसे आदत दिलों को तोड़ने की, जा नहीं सकती ।
#अवधेश #awadhesh
632020

आपको क्या मुहब्बत नहीं


#ग़ज़ल #gazal

कहो आपको क्या मुहब्बत नहीं ?

कहो आपको क्या मुहब्बत नहीं ।
हमारे लिए जो इनायत नहीं ।

घरौंदे बनाए बड़े शौक से,
पिता ने बनाई इमारत नहीं ।

लड़ाई हुई मजहबी अब यहां,
इसे रोक दो ये सियासत नहीं ।

किया जो सही था, दिया भी बहुत,
हुआ सो हुआ अब नदामत नहीं ।

मिला जो उसे यूँ न छोड़ो कभी,
सुनो आपकी ये जहानत नहीं ।

कई बार बोले यहाँ झूठ पर,
सिरों को झुकाती नदामत नहीं ।

मरे देश पर तुम शहीदो नमन,
महात्मा के जैसी शहादत नहीं ।

करो खूब सेवा दुखी दीन की,
बड़ी कोइ इससे सआदत नहीं ।

भुला दो पुरानी सभी नफ़रतें,
हमें भी किसी से अदावत नहीं ।

#अवधेश #awadhesh
07032020

मुक्तक

मुक्तक

कभी माता कभी  बहना कभी बेटी कभी दादी ।
कभी ताई कभी चाची  कभी मामी कभी नानी ।
कभी मौसी कभी फूफी कभी भाभी कभी पत्नी ।
यही देवी महाकाली, महासरस्वती, महालक्ष्मी ।

#अवधेश #awadhesh

चाँद तो बढ़ता रहा


#ग़ज़ल #gazal #शायरी #shayri
चाँद तो बढ़ता रहा ।

आसमाँ में चाँद तो बढ़ता रहा ।
नूर उनका दिन व दिन घटता रहा ।

सुन रहे थे वो बड़े ही ध्यान से,
प्यार की मैं ये ग़ज़ल पढ़ता रहा ।

रुक गए तुम बीच में ही हारकर,
जिंदगी का काफिला चलता रहा ।

जो बहुत ही कीमती होता यहाँ,
वो समय यूँ ही मेरा कटता रहा ।

मानना उनको नहीं था कुछ कभी
जो मुझे कहना था मैं कहता रहा ।

चोट दिल पर जब लगी तड़पा गयी,
दर्द मुझको जो मिला सहता गया ।

आग नफरत की लगी तो सब जला,
ये धुंआ तो देर तक उठता रहा ।

सच नहीं बिकता कभी अब यहाँ,
झूठ इस बाजार में बिकता रहा ।

ये नदी तो सूख कर थम सी गयी,
प्यार का दरिया मगर बहता रहा ।
#अवधेश #awadhesh
08032020

मुक्तक होली मनाते हैं

मुक्तक
चलो होली मनाते हैं ।

भरे जो रंग जीवन में वही सुख दुख कहाते हैं ।
कभी आते कभी जाते हंसाते या रुलाते हैं ।
बढ़ाने सुख घटाने दुख सहारे हम बनाते हैं ।
चलो भूलें सभी रंजिश चलो होली मनाते हैं ।

#अवधेश #awadhesh
09032020

मुक्तक

मुक्तक
कलम बोलती-

राज गहरे बड़े बेहिचक खोलती ।
झूठ या सच सही या गलत तौलती ।
मैं सिपाही कलम का डरूंगा नहीं,
जो सही है वही ये कलम बोलती ।

#अवधेश #awadhesh
10032020

ये सबक बढ़िया मिला

ग़ज़ल
ये सबक बढ़िया मिला ।

जब किया उन पर भरोसा तब हमें धोखा मिला ।
जो हुआ सो हो गया पर ये सबक बढ़िया मिला ।

गर्व से सर को उठाया और हिम्मत बढ़ गयी,
जब रक्षा बंधन मनाने बहन से भइया मिला ।

कब मिला चाहा मुझे क्या मांगते थे क्या मिला,
बारिशों की ख्वाहिशें थीं रेत का दरिया मिला ।

ठीक होता ही नहीं देता बहुत ही दर्द ये,
चोट से दिल पर हमारे घाव जो गहरा मिला ।

जब लगा झटका किसी दिल पर यहाँ कुछ जोर का,
छू लिया जिसका शिखर पर्वत वही हिलता मिला ।

दौर ये आया नया हर इक दबा कुछ बोझ से,
बांटते दुख साथ किसके जो मिला रोता मिला ।

ये नशा मदहोश करता होश वालों को यहाँ,
जो मिला वह प्रेम रस का जाम ही पीता मिला ।

आग नफरत की लगी किसने जहर घोला यहाँ,
देश में कैसी हवा है जो मिला जलता मिला ।

काम धंधा कुछ नहीं मिलता युवाओं को यहाँ,
पेट भरने को यहाँ तुमको  नया वादा मिला ।
अवधेश awadhesh
11032020

अहसास पर्वत के

ग़ज़ल
अहसास पर्वत के ।

नदी छूकर निकलती है कभी अहसास पर्वत के ।
गली से वो गुजरती है बने किस्से मुहब्बत के ।

कभी होंगे यहाँ सच भी दिखे जो ख्वाब रातों में,
खुदा पूरे करेगा जो पले अरमान चाहत के ।

वही बदमाश जो करते यहाँ पर खूब बदमाशी,
दिखे वो आज सड़कों पर बने पुतले शराफत के ।

बनाया था कभी जिनको बहुत ही खास हमराही,
वही तो अब बजाते हैं बिगुल तगड़ी बगावत के ।

कभी ईमानदारी की नहीं उम्मीद यहाँ रखना,
किसे दें दोष अब दस्तूर बदले सब सियासत के ।

नहीं कुछ पास इनके जेब भी खाली मकाँ कच्चे,
गरीबों के इरादे हैं बड़ी ऊंची इमारत के ।

किसानों की मुसीबत का नहीं अंदाज़ है तुमको,
हुई बारिश गिरे ओले सुनो ये दर्द आफत के ।

यहाँ कुछ भी करो तुम झूठ या सच के सहारे से,
सभी को मानना है फैसले उसकी अदालत के ।
अवधेश awadhesh
12032020