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परिचय

 नाम -इंजी. अवधेश कुमार सक्सेना पिता का नाम- स्व.श्री मुरारी लाल सक्सेना शैक्षणिक योग्यता - DCE(Hons.),B.E.(Civil), MA ( Sociology), LL.B., ...

Thursday, October 22, 2020

अनुक्रमणिका

 अनुक्रमणिका

1 खा रहीं हैं रोटियॉँ

2 अकेली डगर से

3 कतआ

4 गुलाबों सी महक होगी

5 मीठे सपने दिखाकर 

6 मत कहना भगवान नहीं है

7 चाँद तो बढ़ता रहा

8  कहो आपको क्या मुहब्बत नहीं 

9 हसरत एक पलती है

10 मौसम सुहाना याद है

11 न वो मौसम हवाओं के 

12 गेंहूँ की बालियों से 

13 पर्दा बस निगाहों का रहे

14 गंगा में नहाया जाए

15 सँवरने की ज़रूरत  क्या है 

16 आप घर का कभी पता देते

17 वो मनाता भी नहीं

18 परम्परा एक डाल देंगे

19 ये सबक बढ़िया मिला

20 अहसास पर्वत के

21 भगवान साथ चलता है

22 पाक मुहब्बत है

23 वो आया निखरकर ही

24 मील के पत्थर 

25 गुनगुनाते रहे हैं

26 प्यार के सिलसिले हो गए

27 ये पर्दा हटा दो

28 रंगत बदलती जा रही है 

29 गीत हमने खुशी के गाए हैं 

30 कहीं और दिल को लगाया कहाँ है

31 जनता को रुलाते देखा

32 देश से मुहब्बत की

33 हमें देख वो मुस्कुराने लगे हैं

34 बाग में फूलों के जैसे तितलियाँ

35 अगर हमसे मुहब्बत है

36 सूरत दिलनशीं की

37 दिल तो मिलाओ कभी

38 आंखे

39 हर जंग जीतते हैं

40 कत आ -कभी मांगते थे

41 तुझे मैं चाँद ला दूँगा

42 मामला क्या है

43 अकेले सफ़र में

44 रिश्ता नहीं निभाया है

45 आदमी मैं आम था

46 शिकायत क्या

47 देखो ज़रा नज़ारे

48 वक़्त ये भी हमारा निकल जाएगा

49 करिश्मे हमें वो दिखाता है

50 प्यार का तोहफ़ा हो गया

51 जगाते रहो

52 पत्थर हटाते रहो

53 ख़िलाफ़त रहे

54 मिलेगी खुशी कभी

55 गाते हुए सुनाना

56 वीर मरते नहीं

57 इनायत हो रही है

58 कौन समझेगा हमारी बेकसी को

59 दिल बेकरार शामिल है

60 ज़रा अहसान कर दो 

61 बंद मैखाना हुआ

62 सफ़र ज़िन्दगी

63 प्यार का इज़हार है

64 वो इतराते हैं

65 ये खुशी कैसे कहूँ

66 फूल तो खिला नहीं

67 सम्हलना चाहिए था

68 ज़ख्म दिखाया नहीं गया

69 बस इक ख़ुदा से डरते हैं

70 किस्सा नहीं है

71 ख़्वाब तू माँ बाप के साकार कर

72 रोशनी रह गई  

73 तुम्हीं से प्यार करना है

74 सोच से नफ़रत निकल कर जो गई

75 बेवफ़ाओं से प्यार कौन करे

76 आपको मुझसे कहो कोई शिकवा तो नहीं

77 ख़ुदा का काम है यारो

78 तीरगी जब इधर हो गई

79 प्रेम रस का गीत फिर गाना हमें

80 दोस्ती करके दगा की

81 वक़्त अपना यूँ नहीं जाया करो

82 हिमालय को पिघलना चाहिए था

83 कली खिली जो ज़रा चमन में 

84 आरज़ू मिट गई आसरा मिल गया

85 परेशाँ हैं पाबंदियों से

86 जीतना हो युद्ध अगर अधिकार का

87 मर्ज़ बढ़ते रहे पुराने भी

88 आज बीरान हैं जो शहर थे यहाँ

89 आँसुओं से शमाँ जलाई है

90 किनारे मैं देखता जा रहा हूँ

91 जब मिला धोखा मिला है

92 नादान मुसाफ़िर को बेख़ौफ़ गुज़रने दो

93 दूर हो तुमने बना लीं दूरियाँ 

94 वो नज़र आ रही रोशनी की तरह

95 पास में हमको बिठाया कीजिए

96 भागती मुश्किलें और डर देखिए

97 सुलह के कुछ नहीं आते नज़र आसार 

98 आस के दीप पास जलते हैं

99 क्या पता क्या गिला हो गया

100 चलो आस का एक दीपक जलाएँ

101 जल रहा था वो दिया

102 याद आते नहीं 

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फोटो


 

परिचय

 नाम -इंजी. अवधेश कुमार सक्सेना

पिता का नाम- स्व.श्री मुरारी लाल सक्सेना

शैक्षणिक योग्यता - DCE(Hons.),B.E.(Civil), MA ( Sociology), LL.B., PGD Rural Development

विधा-  1-छंद (मात्रिक एवं वर्णिक) 2-गीत, 3-मुक्तक, 4-छंद मुक्त, 5-हाइकु, 6-माहिया, 7-कहमुक़री, 8-क्षणिका, 9-टांका, 10-पिरामिड, 11-स्वसृजित मौलिक विधा "प्रियामृतावधेश" 12-ग़ज़ल, 13-नज़्म, 14-रुबाई, 15-क़तआ, 16-कहानी, 17-उपन्यास, 18-व्यंग्य, 19-लघु कथा, 20-संस्मरण, 21-निबंध, 22-तकनीकी आलेख, 23-रिपोर्ताज़, 24-एकांकी, 25-नाटक, 26-नृत्य नाटिका 27-यात्रा विवरण 28-शोध पत्र 29-समीक्षा 30- संवाद 31- प्राकृतिक स्वास्थ्य, योग, तकनीकी, ज्योतिष विषयों पर पुस्तक लेखन साहित्यिक उपलब्धि- 12 साल की उम्र में चंपक,  लोटपोट, वीर अर्जुन में बाल कविताएं प्रकाशित, समाचार पत्रों और पत्रिकाओं में लेख, कविताएं, लघु कथा, कहानी प्रकाशित होती रही हैं ।अभियंता विश्व, चित्रांजलि, चित्रांश चेतना पत्रिकाओं के प्रधान संपादक का दायित्व निभाया,पानी रोकने के आसान तरीके, हरियाली के अंग, प्रोजेक्ट मैनेजमेंट, निरोगी रहने के उपाय, जलग्रहण मार्गदर्शिका पुस्तकें प्रकाशित हुयीं ।  काव्य संग्रह " मैं ही तो हूँ ईश " अमेज़ॉन किंडल पर ई बुक के रूप इन प्रकाशित हो चुका है  गीत संग्रह "प्यार की यही कहानी", "गीता के प्रेरक संदेश और जीवन प्रबंधन " एवं " महायोगी " उपन्यास प्रकाशनाधीन हैं ।  मेरा ये प्रथम ग़ज़ल संग्रह "अकेले सफ़र में" प्रकाशित होकर आपके हाथों में है ।   BCR सिने अवार्ड दिल्ली  में मल्टी टेलेंटेड पर्सनॉलिटी अवार्ड से सम्मानित,कलम बोलती है मंच से श्रेष्ठ रचनाकार का सम्मान, काव्य सरिता मंच द्वारा सम्मान, आई आई टी भुवनेश्वर अल्मा फिएस्टा और हिंदी पंक्तियां का अल्फाज़ सम्मान प्राप्त, हाइकु मंजुषा द्वारा बेस्ट हाइकुकार सम्मान, आगमन प्राइम का स्टार राइटर सम्मान, उत्कृष्ट रचनाकार का सम्मान और कोरोना वारियर का सम्मान प्राप्त, ऑनलाइन कवि सम्मेलन में सहभागिता के कई सराहना पत्र भी प्राप्त हुए हैं,काव्यांकुर साहित्यिक मंच द्वारा काव्य रत्न सम्मान,

निवास का पता  -65, इंदिरा नगर शिवपुरी मध्य प्रदेश 473551

ई मेल awadheshsaxena29@gmail.com 

नाम पता

अवधेश कुमार सक्सेना

65, इंदिरा नगर 

शिवपुरी मध्य प्रदेश- 473551


Awadhesh Kumar Saxena

65, Indira Nagar

Shivpuri MP- 473551


awadheshsaxena29@gmail.com

7999841475


समर्पित

 


मेरे परम पूज्य माता-पिता


स्वर्गीय श्रीमती प्रेमदेवी सक्सेना

स्वर्गीय श्री मुरारी लाल सक्सेना


को याद करते हुए


मेरा ये ग़ज़ल संग्रह

मेरे सभी प्रियजन और मित्रों के साथ-साथ 

आप सभी पाठकों को समर्पित करता हूँ ।


इंजी. अवधेश कुमार सक्सेना

शिवपुरी, मध्य प्रदेश

अपनी बात

 अपनी बात


बचपन से ही कविताएँ / ग़ज़लें पढ़ने का शौक लग गया था, शहर में होने वाले कवि सम्मेलनों और मुशायरों को सुनना बहुत अच्छा लगता था, लगभग 12 वर्ष की उम्र से बाल कविताएँ लिखना शुरू कीं जो बाल पत्रिकाओं में प्रकाशित भी हुईं और उनका पारिश्रमिक भी मिला । युवावस्था में समाचार पत्रों में विभिन्न विषयों पर आलेख प्रकाशित हुए, चित्रांजलि और अभियंता विश्व पत्रिकाओं के प्रधान संपादक का दायित्व निभाया । इंजीनियरिंग सेवा में आने के कारण साहित्य सृजन के लिए समय की कमी होने से अपनी कविताओं और ग़ज़लों को संकलित रूप में प्रकाशित कराना संभव नहीं हो पा रहा था लेकिन अब समय मिला तो मेरा काव्य संग्रह "मैं ही तो हूँ ईश "अमेज़ॉन किंडल पर 2 अक्टूबर 2020 को  ई-बुक के रूप में प्रकाशित हो गया है और अब मेरा ये ग़ज़ल संग्रह "अकेले सफ़र में" प्रकाशित होकर आपके हाथ में है । आप इसमें पढ़ेंगे मेरी वो ग़ज़लें जो  प्रेम, करुणा, अध्यात्म, प्रेरणा, प्रकृति आदि विभिन्न विषयों पर बोलचाल वाली हिंदी-उर्दू में लिखीं गईं हैं ।

मुझे विश्वास है कि मेरी ग़ज़लें आपको पसंद आएँगीं ।

मेरा ये प्रथम ग़ज़ल संग्रह है जिसमें आपको कुछ त्रुटियां मिल सकतीं हैं, कृपया त्रुटियों से मुझे अवगत कराएंगे तो मैं इनमें सुधार कर सकूँगा । आपके अमूल्य सुझाव प्राप्त होने पर मुझे खुशी होगी और सुझावों के आधार पर मैं सुधार भी कर सकूँगा ।


साभार धन्यवाद,


आपका ही,


अवधेश कुमार सक्सेना

ग़ज़ल ख़्याल जाते नहीं

 #ग़ज़ल #अवधेश_की_ग़ज़ल #अवधेश_की_शायरी


#ख़्याल_जाते_नहीं 


फोन हमको कभी तुम लगाते नहीं ।

क्या कभी हम तुम्हें याद आते नहीं ।


प्यास पल में बुझे प्यार की प्यार से,

पास अपने कभी तुम बुलाते नहीं ।


नींद सुख की लगे हम कभी पास हों,

पास अपने कभी तुम सुलाते नहीं ।


फूल कैसे खिलें धूम कैसे मचे,

खुद लिखे सुर सजे गीत गाते नहीं ।


स्वाद आता नहीं अब किसी भी चीज में,

अब कभी हाथ से तुम खिलाते नहीं ।


हम समझते यही चाहते हो हमें,

प्यार दिल से किया पर जताते नहीं ।


हम तुम्हें याद कर हैं परेशाँ बहुत,

आ गए जो कभी ख़्याल जाते नहीं ।


इंजी.अवधेश कुमार सक्सेना-19102020

शिवपुरी, मध्य प्रदेश 

ग़ज़ल जल रहा था वो दिया

 #ग़ज़ल #अवधेश_की_ग़ज़ल #अवधेश_की_शायरी


#जल_रहा_था_वो_दिया 

मैं बना अच्छा सभी के साथ अच्छा ही किया ।

ज़ख्म दे डाले किसी ने कुछ ने ज़ख्मों को सिया ।


हम झुके आगे सभी के ख़ास इज़्ज़त बख़्शने,

किस कदर बेइज़्ज़ती का पर जहर हमने पिया ।


छोड़ कर हमको अचानक क्यों बना लीं दूरियाँ,

आप तो ऐसे नहीं थे आपने ये क्या किया ।


जिस किसी ने भी वतन के वास्ते जब जान दी,

मर नही सकता कभी भी वो रहे हरदम ज़िया ।


जब तलक मज़बूत थे हम इक जगह पर थे जमे,

पैर उखड़े जो हमारे अब नहीं मिलता ठिया ।


हम वफ़ा करते रहे पर आपने समझा ग़लत,

किस ख़ता का आपने फ़िर इस तरह बदला लिया ।


आँधियाँ चलती रहीं थीं बारिशें होती रहीं,

जो रखा मुंडेर पर था जल रहा था वो दिया ।


इंजी. अवधेश कुमार सक्सेना

शिवपुरी मध्य प्रदेश 


माहिया

 #माहिया

1

मंदिर पे तुम आना

इसी बहाने से

तुम दरश दिखा जाना ।


2

बदनाम न हो जाएं 

मिलना छुप-छुप कर

मंदिर पे जब आएं


3

तुम हो थोड़ी मोटी 

ध्यान रखो अपना

कम खाओ तुम रोटी 


4

तुम थोड़े पागल हो

उड़ते ही रहते 

आवारा बादल हो


इंजी. अवधेश कुमार सक्सेना

शिवपुरी मध्य प्रदेश

प्रियामृतावधेश विधा

प्रियामृतावधेश

पिरामिड को प्रियामृत भी कहते हैं, वास्तु विज्ञान कहता है कि प्रियामृत के अंदर जो भी वस्तु रखी जाती है, वो संरक्षित रहती है ।

किसी दृश्य या घटना को देखकर हमारे मन में कभी कभी विशेष विचार आते हैं, कुछ नई अनुभूति होती है,ऐसे विचार, ऐसी अनुभूति को अपने भावों में शब्दों के माध्यम से प्रकट कर दिया जाए तो अन्य लोगों तक इन विचारों और अनुभूतियों का सम्प्रेषण हो सकता है ।

इसी सम्प्रेषण को कविता रूप में लिखने के लिए #प्रियामृतावधेश ऐसी विधा है, जिसमें लिखे गए शब्दों के माध्यम से किसी विचार या अनुभूति को अमर किया जा सकता है ।

अंक शास्त्र में 9 के अंक का महत्व सभी जानते हैं ।

छंद शास्त्र में मात्राओं के संयोजन का महत्व है, जो एक विज्ञान है, आदिदेव महादेव और वेद शास्त्रों से लेकर आधुनिक काव्य शास्त्र तक कथ्य को रोचकता प्रदान करने के लिए छंद रचना की जाती रही है ।


इंजी.अवधेश कुमार सक्सेना-16102020

शिवपुरी,मध्य प्रदेश

शिवचरण छंद

 #अवधेश_कुमार_सक्सेना द्वारा सृजित

#शिवचरण_छंद #मात्रिक_छंद

कुल आठ चरण

विषम चरण की मात्राएँ कुल मात्राएँ 24,  सभी विषम चरण सम तुकांत

21 221 2221 22221, (अनिवार्य वाचिक भार)

सम चरण की मात्राएँ कुल मात्राएँ 24, 

12 122 1222 12222 ।(अनिवार्य वाचिक भार)

सभी सम चरण सम तुकांत ।

विषम और सम चरणान्त पर यति ।


#शिवचरण_छंद

कवि लिखेगा स्वयं के ही ह्रदय की आवाज़, 

नए-नए छंद से रचना सृजित तब होगी  ।

गीत संगीत सुर से भी सजेंगे जब साज,

नई नई धुन बनेंगीं राग लय जब होगी ।

चाँद बढ़ता चला आकाश पर करने राज,

प्रकाश की हर किरण की चाँदनी अब होगी ।

जब सजेगा सही सिर पर सफलता का ताज,

खुशी मिलेगी हमें पर रात वो कब होगी ।


इंजी. अवधेश कुमार सक्सेना- 14102020

शिवपुरी मध्य प्रदेश

ग़ज़ल चलो आस का एक दीपक जलाएँ

 #ग़ज़ल #अवधेश_की_ग़ज़ल #अवधेश_की_शायरी 

#चलो_आस_का_एक _दीपक_जलाएँ


चलो आस का एक दीपक जलाएँ ।

घना छा रहा जो अँधेरा भगाएँ ।


इबादत ख़ुदा की करें आज ऐसे,

किसी ग़मज़दा शख़्स को हम हँसाएँ ।


बिका जा रहा है सभी कुछ यहाँ पे,

युवा शक्ति को नींद से अब जगाएँ ।


रहें कैद क्यों ये परिंदे घरों में,

निकालें इन्हें आसमाँ में उढ़ाएँ ।


ख़फ़ा हो गए गर किसी बात पर वो,

झुकें माँग माफ़ी उन्हें हम मनाएँ ।


मुहब्बत भरे दिल में रहता खुदा है,

जुदा प्रेमियों के दिलों को मिलाएँ ।


हवा अग्नि आकाश पानी व पृथ्वी,

इन्हें साफ़ कर फ़र्ज़ अपना निभाएँ ।


इंजी. अवधेश कुमार सक्सेना- 16102020

शिवपुरी, मध्य प्रदेश


    

ग़ज़ल खाली

 #ग़ज़ल #अवधेश_की_ग़ज़ल #अवधेश_कुमार_सक्सेना द्वारा सृजित #मुकरी_छंद  #छंद #अवधेश_की_कविता 

खाली ।

थाली ।

ठोको,

ताली ।

गंदी,

नाली ।

प्यारी,

साली ।

शंका,

पाली ।

सुन ली,

गाली ।

आदत,।

डाली ।

बूढ़ा,

माली ।

संध्या,

लाली ।

स्वर्णिम,

बाली ।

राधा,

आली ।

प्रतिमा,

ढाली ।

माता,

काली।

खप्पर,

वाली ।

इंजी. अवधेश कुमार सक्सेना- 13102020

शिवपुरी मध्य प्रदेश

ग़ज़ल नाम है

 #ग़ज़ल #छंद #कोकिला_छंद 

#नाम_है 


दाम है ।

नाम है ।


हाथ में,

काम है ।


ढल रही,

घाम है।


झूमती,

शाम है ।


पक रहा,

आम है ।


खुल रहा,

जाम है ।


प्रेम का,

धाम है ।


साथ में,

राम है ।


यश दशों,

याम है ।


इंजी. अवधेश कुमार सक्सेना - 13102020

शिवपुरी मध्य प्रदेश

प्रियामृतावधेश

 #प्रियामृतावधेश 


वो

जिसको

समझा था

हरदम अपना

ज़रूरत पर वही

धोखा दे गया मुझे

जब तक था मतलब उसको

हर   काम  किया  उसने  मेरा

कोई किसी का नहीं बिना स्वार्थ ।

छोड़ के  आशा  करना  परमार्थ ।

रखो नहीं किसी से अपेक्षा

रहना नहीं कभी आश्रित  

खुद करो अपने काम 

सम्बन्ध भुलाओ

छोड़ो उनको 

झूठे हैं

अपने 

जो


इंजी. अवधेश कुमार सक्सेना-09102020

शिवपुरी मध्य प्रदेश

दोहे

 #दोहे #अवधेश_की_कविता


बीज अंकुरित तो हुआ, बढ़ा नहीं दो फीट ।

खाद पानी मिला नहीं, खाते इसको कीट ।


अब तक गंगा में बहा, कितना पावन नीर ।

लग न सका पर आपका, सही निशाने तीर ।


गुरु की महिमा मान लो, ले लो उनसे ज्ञान ।

सीखो जिनसे कुछ यहाँ, रखना उनका मान ।


दोहे सुंदर तब बनें, पालन करें विधान ।

मात्राएँ पूरी लगें,  तुक का भी हो ध्यान ।


हिंदी की ईंटें लगें, देशी बालू सान ।

शब्द नए सीमेंट से, बढ़िया बने मकान ।


इंजी. अवधेश कुमार सक्सेना- 07102020

शिवपुरी मध्य प्रदेश

Wednesday, September 30, 2020

मुक्तक जब तुम्हारे राज में

 #मुक्तक #अवधेश_की_कविता  

जब तुम्हारे राज में जुर्म इतने हो रहे।

तुम स्वयं अपराधियों के खून धब्बे धो रहे ।

शर्म आती हो अगर तो शीघ्र कुर्सी छोड़ दो ।

न्याय बेटी को दिलाओ वर्ग बंधन तोड़ दो ।


भक्त हो गर राम के तो सीख भी लो राम से ।

दंड दो अपराधियों को राम के ही धाम से ।

ढोंग करना छोड़ दो अब बात मेरी मान लो ।

योग करना राज करना हैं अलग ये जान लो।


इंजी. अवधेश कुमार सक्सेना

शिवपुरी मध्य प्रदेश

मत्त सवैया छंद काम नहीं कुछ आ सकती

 #अवधेश_की_कविता #मत्त_सवैया_छंद में एक रचना 


काम नहीं कुछ आ सकती जब,

ये धन दौलत और कमाई ।

तो फिर क्यों करता रहता श्रम,

क्यों फिर इसमें जान फँसाई ।

छोड़ सभी जग के अब बंधन,

झूठ इन्हें कहते सब भाई ।

मान उसे जिसने यह सुंदर,

जीवन की बगिया महकाई ।


नाम जपें  जब राम सिया तब,

काम सभी बनने लगते हैं ।

ध्यान लगे जब कृष्ण पदों पर,

कष्ट सभी मिटने लगते हैं ।

भक्ति करें जब ध्यान लगा कर,

राम कृपा करने लगते हैं ।

प्रेम रहे बस ईश्वर से तब,

पुष्प सुधा खिलने लगते हैं ।


इंजी. अवधेश कुमार सक्सेना- 28092020

शिवपुरी मध्य प्रदेश

Thursday, September 24, 2020

ग़ज़ल क्या पता क्या गिला हो गया

 #ग़ज़ल #अवधेश_की_ग़ज़ल #अवधेश_की_शायरी #हिंदुस्तानी_ग़ज़ल

#क्या_पता_क्या_गिला_हो_गया ।


क्या पता क्या गिला हो गया ।

आशना क्यों ख़फ़ा हो गया ।


अब हमें होश आता नहीं,

क्या पिया जो नशा हो गया ।


हम वफ़ा पर वफ़ा कर रहे,

पर सनम बेवफा हो गया ।


आसरा इल्म सबको दिया,

फ़र्ज़ अपना अदा हो गया ।


ज़िंदगी में उन्हें पा लिया,

प्यार का सिलसिला हो गया ।


इश्क़ में जो ज़रा शक हुआ,

बीच में फासला हो गया ।


जो हुआ वो नहीं था सही,

ये गलत फ़ैसला हो गया ।


इंजी. अवधेश कुमार सक्सेना-24092020

शिवपुरी मध्य प्रदेश

ग़ज़ल आस के डदीप पास जलते हैं

 #ग़ज़ल #अवधेश_की_ग़ज़ल #अवधेश_की_शायरी #हिंदुस्तानी_ग़ज़ल

#आस_के_दीप_पास_जलते_हैं ।


आस के दीप पास जलते हैं ।

दूर गम के चिराग बुझते हैं ।


फोन देता नहीं ज़रा फ़ुर्सत,

अब कहाँ हम किताब पढ़ते हैं । 


तुम करो बैंक में जमा खुशियाँ,

हम भी गम बेमिसाल रखते हैं ।


झोंक देते तमाम ताकत हम,

तब कहीं ये इनाम मिलते हैं ।


रात भर नींद क्यों नहीं आती,

ख़्वाब अच्छे बुरे मचलते हैं ।


काम करते ख़राब वो अक्सर,

इसलिए ही सवाल उठते हैं ।


कुछ भी हासिल हमें नहीं होता,

आजमाईश खूब करते हैं ।


बेवफा याद जब हमें आते,

आब-ए-चश्म तब निकलते हैं ।


कर्ज़ का बोझ चढ़ गया सर पर,

इससे दबकर किसान मरते हैं ।


इंजी. अवधेश कुमार सक्सेना- 24092020

शिवपुरी मध्य प्रदेश

 

ग़ज़ल सुलह के कुछ नहीं आते नज़र आसार जाने क्यूँ

 #ग़ज़ल #अवधेश_की_ग़ज़ल #अवधेश_की_शायरी #हिंदुस्तानी_ग़ज़ल

#सुलह_के_कुछ_नहीं_आते_नज़र_आसार_जाने_क्यूँ 


सुलह के कुछ नहीं आते नज़र आसार जाने क्यूँ ।

उन्होंने तो बना ली बीच में दीवार जाने क्यूँ ।


लगाते हम हमेशा दम किसी भी खेल में पूरी,

अधूरी जीत मिलती है अधूरी हार जाने क्यूँ ।  


जिसे था खेलना दिल से खिलौना सा समझ तोड़ा,

हुआ था उस हसीना से हमें भी प्यार जाने क्यूँ ।


हकीमों की दवा भी तो असर कुछ अब नहीं करती,

सफाखाने हुए खुद ही बहुत बीमार जाने क्यूँ ।


कभी जो प्यार से बातें मुलाकातें किया करते,

ज़रा सी बात पर करते वही तक़रार जाने क्यूँ ।


किसी को मारकर कुछ भी कभी हासिल नहीं होता,

मगर फ़िर भी सभी रखते यहाँ हथियार जाने क्यूँ ।


परेशानी मिटाने को हमें हिम्मत दिलाते जो,

वही अब वक्त के हाथों हुए लाचार जाने क्यूँ ।


इंजी. अवधेश कुमार सक्सेना- 24092020

शिवपुरी मध्य प्रदेश 

ग़ज़ल भागती मुश्किलें और डर देखिए

 #ग़ज़ल #अवधेश_की_ग़ज़ल #अवधेश_की_शायरी #हिंदुस्तानी_ग़ज़ल

#भागती_मुश्किलें_और_डर_देखिए ।


भागती मुश्किलें और डर देखिए ।

माँ करे दुआ तो असर देखिए ।


रूठना छोड़कर मुस्कुराओ जरा,

इक नज़र प्यार से फ़िर इधर देखिए ।


देख मौसम हुआ फ़िर सुहाना बहुत,

साथ उनके किया जब सफ़र देखिए । 


पास उसके रहें डर नहीं है हमें, 

छोड़ वो भी रही सात घर देखिए ।


तुम तरसते रहे देखने को जिसे,

बाद मुद्दत मिले आँख भर देखिए ।


हर तरफ़ आग ही फैलती दिख रही,

देख पाते नहीं हम उधर देखिए ।


ज़िन्दगी आप का नाम ले कट रही,

जान हाज़िर करूँ इक नज़र देखिए ।


इंजी. अवधेश कुमार सक्सेना-24092020

शिवपुरी मध्य प्रदेश

ग़ज़ल पास में हम को बिठाया कीजिए ।

 #ग़ज़ल #अवधेश_की_ग़ज़ल #अवधेश_की_शायरी #हिंदुस्तानी_ग़ज़ल 


#पास_में_हमको_बिठाया_कीजिए 


पास में हमको बिठाया कीजिए ।

कुछ सुनो फिर कुछ सुनाया कीजिए ।


जब निराशा घेर ले तुमको कभी,

आस का दीपक जलाया कीजिए ।


आपके बिन हम नहीं रह पाएँगे,

यूँ नहीं हमको पराया कीजिए ।


मत लुटाओ आप दौलत इस तरह,

वक्त आड़े को बचाया कीजिए ।


साथ बीबी के रहोगे चैन से,

नाज नखरे भी उठाया कीजिए ।


रात गहरी नींद उड़ती हो कभी,

ख़्वाब में हमको बुलाया कीजिए ।


रो मचल सर पर उठाए आसमाँ,

हाथ झूले में झुलाया कीजिए ।


दूध का हो खून का या प्यार का,

कर्ज़ जो भी हो चुकाया कीजिए ।


इंजी. अवधेश कुमार सक्सेना

शिवपुरी मध्य प्रदेश

 


Wednesday, September 23, 2020

ग़ज़ल वो नजर आ रही रोशनी की तरह

 #ग़ज़ल 

#अवधेश_की_ग़ज़ल #अवधेश_की_शायरी #हिंदुस्तानी_ग़ज़ल 


#वो_नज़र_आ_रही_रोशनी_की_तरह ।


वो नज़र आ रही रोशनी की तरह ।

अब्र गम के हटे तीरगी की तरह ।


जानवर बन गए सब हवस में यहाँ,

आदमी न रहा आदमी की तरह ।


पास आने लगे जब हमारे सनम,

होश जाने लगा बेख़ुदी की तरह ।


याद रहती यहाँ जिस तरह रंजिशें,

दोस्ती भी निभा दोस्ती  की तरह।


आशना जो हमारा यहाँ था कभी,

अश्किया वो मिला अजनबी की तरह।


दूसरों के लिए जान हाज़िर करों,

देश सेवा करो बंदगी की तरह ।


सब भुलाकर जपो नाम बस राम का,

तुम इबादत करो आशिकी की तरह।


 इंजी. कुमार सक्सेना- 23092020

शिवपुरी मध्य प्रदेश

Sunday, September 20, 2020

ग़ज़ल दूर हो तुमने बना लीं दूरियाँ

 #ग़ज़ल #अवधेश_की_ग़ज़ल #अवधेश_की_शायरी #हिंदुस्तानी_ग़ज़ल 

#दूर_हो_तुमने_बना_लीं_दूरियाँ 


दूर हो तुमने बना लीं दूरियाँ ।

रास मुझको आ रहीं तनहाइयाँ ।


हार दुश्मन को मिलेगी अब यहाँ,

दोस्ती जीतेगी सारी बाजियाँ ।


जब कभी गुस्सा बहुत आने लगे,

ठीक रहतीं तब बहुत खामोशियाँ ।


हम समझते हैं तुझे तू मत चला,

चल नहीं सकतीं तेरी चालाकियाँ ।


चाल है कोई बड़ी ये आपकी,

कर रहे इतनी यहाँ पर सख्तियाँ ।


खुद गिरोगे एक दिन इनमें कभी,

खोद नफ़रत की रहे जो खाइयाँ ।


जब बिगड़ता काम इनसे आपका,

मत करो फिर से वही तुम गलतियाँ ।


मिट गईं चिंता किसानों की सभी,

देख गेंहूँ की सुनहरी बालियाँ ।


ताल गहरा है बहुत मोती भरा,

तुम उतर कर नाप लो गहराइयाँ ।


इंजी. अवधेश कुमार सक्सेना- 20092020

शिवपुरी मध्य प्रदेश

Saturday, September 19, 2020

ग़ज़ल नादान मुसाफ़िर को बेख़ौफ़ गुजरने दो

 #ग़ज़ल #अवधेश_की_ग़ज़ल #अवधेश_की_शायरी #हिंदुस्तानी_ग़ज़ल 

#नादान _मुसाफ़िर_को _बेख़ौफ़_गुजरने_दो 


नादान मुसाफ़िर को बेख़ौफ़ गुजरने दो ।

अरमान रखो दिल में हालात बदलने  दो ।


आवाद मुहब्बत है मज़बूत इरादे हैं,

दिलदार बनो दिल के जज़्बात मचलने दो ।


मत रोक लगाना तुम मत टोक लगाना तुम,

सावन को ज़रा खुल के इस बार बरसने दो ।


माँ बाप बुढ़ापे में अशफ़ाक तुम्हारे हैं,

अत्फाल बनो अच्छे उनको न तड़पने दो ।


आकाश बहुत नापा आराम ज़रा करने,

आज़ाद परिंदों को छत पर भी उतरने दो ।


मजबूर हुए हैं वो गमगीन बहुत ज़्यादा,

आगोश भरो उनको मत और सिसकने दो ।


इस पाक मुहब्बत में बेचैन बहुत हैं हम,

दीदार हमें करने मत और तरसने दो ।


इंजी. अवधेश कुमार सक्सेना-19092020

शिवपुरी मध्य प्रदेश

*अशफ़ाक =सहारा

** अत्फाल= बच्चे

Friday, September 18, 2020

ग़ज़ल जब मिला धोखा मिला है अब मुहब्बत क्या करूँ

 #ग़ज़ल #अवधेश_की_ग़ज़ल #अवधेश_की_शायरी #हिंदुस्तानी_ग़ज़ल

#जब_मिला_धोखा_मिला_है_अब_मुहब्बत_क्या_करूँ 


जब मिला धोखा मिला है अब मुहब्बत क्या करूँ ।

गिर गई नीचे बहुत ही अब सियासत क्या करूँ ।


माँगना क्या अब ख़ुदा से क्या नहीं उसने दिया,

जब तुम्हें ही पा लिया है और चाहत क्या करूँ ।


काम सारे कर रहा मैं बस ख़ुदा के मानकर,

काम से फ़ुरसत नहीं है अब इबादत क्या करूँ ।


ये कलम हथियार बनकर लिख रही है खून से,

हिल गई सत्ता किसी की अब बग़ावत क्या करूँ ।


मज़हबी बातें सुनीं पर सोच मेरी ये बनी,

खून उनका लाल ही है उनसे नफ़रत क्या करूँ ।


जब अदालत ही नहीं अब कर रहीं इंसाफ है,

अब मुवक्किल की तरफ से मैं वक़ालत क्या करूँ ।


कर रहे हैं नाच नंगा वो नज़र के सामने,

खुल गई सब पोल जिनकी उनकी इज़्ज़त क्या करूँ ।


इंजी. अवधेश कुमार सक्सेना- 18092020

शिवपुरी मध्य प्रदेश

ग़ज़ल किनारे देखता मैं जा रहा हूँ ।

 #ग़ज़ल #अवधेश_की_ग़ज़ल #अवधेश_की_शायरी #हिंदुस्तानी_ग़ज़ल

#किनारे_देखता_में_जा_रहा_हूँ  ।


किनारे देखता मैं जा रहा हूँ ।

नदी की धार को दौड़ा रहा हूँ ।


गया जो दूर मुझको छोड़कर वो,

शबे फुरकत बहुत घबरा रहा हूँ ।


खिला हूँ कई सदी के बाद आकर,

चमन गुलशन सभी महका रहा हूँ ।


रुलाती है मुझे दुनिया बहुत पर,

हँसी मैं हर तरफ बिखरा रहा हूँ ।


नहीं डरना किसी भी बात से अब,

तुम्हें अपना बनाने आ रहा हूँ ।


बहुत गाये मुहब्बत के तराने,

भजन अब राम के मैं गा रहा हूँ ।


मुझे है हर खबर सारे जहां की,

किताबें मैं बहुत पढ़ता रहा हूँ ।


झलक तेरी बड़ी राहत दिलाती,

तेरे दीदार को आता रहा हूँ ।


रहें खुशहाल वो कर बेवफ़ाई,

वफ़ा के दर्द मैं सहता रहा हूँ ।


इंजी. अवधेश कुमार सक्सेना- 18092020

शिवपुरी मध्य प्रदेश 

ग़ज़ल आँसुओं से शमाँ जलाई है ।

 #ग़ज़ल #अवधेश_की_ग़ज़ल #अवधेश_की_शायरी #हिंदुस्तानी_ग़ज़ल #आँसुओं_से_शमाँ_जलाई_है 


आँसुओं से शमाँ जलाई है ।

तीरगी हर तरफ़ मिटाई है ।


वो लगा के चले गए ठोकर,

चोट गहरी किसी ने खाई है ।


ज़िंदगी में बहुत अँधेरा था,

रोशनी आपने दिखाई है ।


इश्क़ में क्या मिला हमें अब तक,

ये जवानी मगर गँवाई है ।


हो गए दूर वो नज़र से पर,

याद उनकी नहीं भुलाई है ।


हो गया इश्क़ अब उन्हें हमसे,

हमने ऐसी ग़ज़ल सुनाई है ।


दीप से दीप अब जलाए हैं,

प्रेम गंगा नई बहाई है ।


इंजी. अवधेश कुमार सक्सेना- 18092020

शिवपुरी मध्य प्रदेश

Thursday, September 17, 2020

ग़ज़ल आज बीरान हैं जो शहर थे यहाँ

 #ग़ज़ल #अवधेश_की_ग़ज़ल

#अवधेश_की_शायरी 

#हिंदुस्तानी_ग़ज़ल 


#आज_बीरान_हैं_जो_शहर_थे_यहाँ


आज बीरान हैं जो शहर थे यहाँ ।

खण्डहर से हुए हैं जो घर थे यहाँ ।


वो वहीं से हमें प्यार करते रहे,

हम मगर आज तक बेखबर थे यहाँ ।


छाँव जिनकी घनी मिल रही थी हमें,

अब नहीं दिख रहे जो शज़र थे यहाँ ।


हाथ खाली हुए बंद धंधे सभी,

था उसे काम जिसमें हुनर थे यहाँ ।


राह मुश्किल बड़ी दूर मंज़िल खड़ी,

हमसफर था नहीं पर सफ़र थे यहाँ ।


झुक गई है कमर झुर्रियाँ पड़ गईं,

देख जर्ज़र हुए जो अज़र थे यहाँ ।


कँपकँपा रहे सर्द दिन थे कभी,

साथ में गर्म से दोपहर थे यहाँ ।


इंजी. अवधेश कुमार सक्सेना-18092020

शिवपुरी मध्य प्रदेश

ग़ज़ल मर्ज़ बढ़ते रहे पुराने भी

 #ग़ज़ल #अवधेश_की_ग़ज़ल #अवधेश_की_शायरी #हिंदुस्तानी_ग़ज़ल #hinfustanigazal


#मर्ज़_बढ़ते_रहे_पुराने_भी ।


मर्ज़ बढ़ते रहे पुराने भी ।

कुछ किया न असर दवा ने भी ।


कर रहे वो नई नई बातें,

हम सुनाते रहे फ़साने भी ।


पाप पे पाप जो किये जाता,

जाए गंगा में वो नहाने भी ।


रूठने पर कभी मनाता था,

वो लगा अब मुझे सताने भी ।


गलतियाँ भी बड़ी बड़ी उनकी,

अब बनाते बड़े बहाने भी ।


इंजी.अवधेश कुमार सक्सेना- 17092020

शिवपुरी मध्य प्रदेश

 


ग़ज़ल जीतना हो अगर युद्ध अधिकार का

 #ग़ज़ल #अवधेश_की_ग़ज़ल #अवधेश_की_शायरी #hindustanigazal #हिंदुस्तानी_ग़ज़ल


#जीतना_हो_अगर_युद्ध_अधिकार_का


जीतना हो अगर युद्ध अधिकार का ।

तब मिलेगा तुन्हें साथ परिवार का ।


लुत्फ़ भी तो लिया था कभी प्यार का,

अब मज़ा भी  चखो आप  तक़रार का ।


और कुछ कर सको या नहीं कर सको,

पूछ लेना कभी हाल बीमार का ।


सीख बिल्कुल सही दे रहे आपको,

थाम लेना कभी हाथ लाचार का ।


हर सुबह शाम में फ़र्क़ कितना दिखा,

वो पलटते रहे पेज अखबार का ।


बेच सकते यहाँ हर नई चीज तुम,

भाँप लोगे अगर मन खरीदार का ।


रोज जाने लगे मंदिरों में सनम,

ये तरीका लिया ढूँढ़  दीदार का ।


इंजी. अवधेश कुमार सक्सेना- 17002020

शिवपुरी मध्य प्रदेश

ग़ज़ल परेशाँ हैं सभी पाबंदियों से

 #ग़ज़ल #अवधेश_की_ग़ज़ल #अवधेश_की_शायरी #हिंदुस्तानी_ग़ज़ल  

 #ग़ज़ल #अवधेश_की_ग़ज़ल


परेशाँ हैं सभी पाबंदियों से ।


परेशाँ हैं सभी पाबंदियों से ।

धुँआ उठने लगा है बस्तियों से ।


बनेंगे भीड़ में अपने पराए,

बचोगे कब तलक तन्हाइयों से । 


अकेलापन डराता है हमें भी,

तड़कती बादलों की बिजलियों से।


बिगड़ते ही रहे हैं काम सारे,

नसीहत भी मिली है गलतियों से।


नया पत्ता उगा जो शाख पर है,

उसे  क्या डर  हवा या आँधियों से ।


तड़पते थे कभी जो पास आने,

डरे हैं आज वो नजदीकियों से ।


भरोसा है हमें पूरा ख़ुदा पर,

नहीं डरते किसी की धमकियों से ।


इंजी.अवधेश कुमार सक्सेना- 17092020

शिवपुरी मध्य प्रदेश


इंजीनियर्स डे पर कविता

 #इंजीनियर #इंजीनियर्स_डे #अभियंता #अभियंता_दिवस #अवधेश_की_कविता 


घर बनाना हो कहीं पर, शोध या विज्ञान है ।

हो मशीनों की जरूरत, या उड़ाना यान है ।

हर कठिन परिकल्पना को, पूर्ण करते हैं सदा,

ज़िन्दगी इंजीनियर से, बन रही आसान है ।


ये गणित के सूत्र जानें, भौतिकी के सार को ।

ये रसायन की क्रिया से, जानते संसार को ।

खोज करके शोध करके, ये बनाते नव नगर,

कर रहे कितना सरल ये, दूर के संचार को ।


आप भी उपयोग करते, वस्तु जो आराम की ।

वो किसी इंजीनियर ने, ही बनाई काम की ।

श्रम लगा तकनीक डाली, तब छुआ है आसमाँ,

ये बढ़ाते हैं प्रतिष्ठा, देश भारत नाम की ।


चाँद मंगल पर पहुँचना, देश का अरमान है ।

युद्ध में हथियार हैं तो, साहसी कप्तान है ।

कृषि कृषक उन्नत करें जब, उपकरण उन्नत मिलें,

इसलिए इंजीनियर का, हर जगह सम्मान है ।


आज संरचना बनीं हैं, बाँध पुल सड़कें भवन ।

अर्थ या फिर वित्त ज्ञानी, कर रहे पूरे सपन ।

मीडिया या फ़िल्म वाले, चाहते तकनीक नव,

सर झुका इंजीनियर को आज करते सब नमन ।


इंजी. अवधेश कुमार सक्सेना- 15092020

(इंजीनियर्स डे)

शिवपुरी मध्य प्रदेश 

हिंदी दिवस कविता

 हिंदी_दिवस

#हिंदी #राष्ट्र_भाषा 


बारह खड़ी बच्चे पढ़ें, हिंदी लिखें बोलें सभी ।

हिंदी प्रचारित हम करें, बन्धन अभी खोलें सभी ।


इसको प्रसारित भी करें, इस देश के हर गाँव में,

हम शब्द जो बोलें सभी, शीतल करें वो छाँव में ।


हो यांत्रिकी विज्ञान या, शिक्षा चिकित्सा ज्ञान की ।

हिंदी बने माध्यम यहां, है बात ये सम्मान की ।


परिपत्र या आदेश हों, संगीत या फिर गीत हों ।

जब मातृ भाषा में बनें, लगते हमें  मनमीत हों । 


है राजभाषा देश की, हिंदी हमारी जान है ।

माँ संस्कृत से जन्म ले, समृद्ध इसकी शान है ।


कब राष्ट्र भाषा ये बने,  हम देखते सपना यही।

अब विश्व भाषा ये बने, हो प्रयत्न बस अपना यही ।


अवधेश सक्सेना- 14092020

शिवपुरी म. प्र.


ग़ज़ल आरजू मिट गई आसरा मिल गया

 ग़ज़ल #अवधेश_की_ग़ज़ल 


आरजू मिट गई आसरा मिल गया ।


आरजू मिट गई आसरा मिल गया ।

अज़नबी भीड़ में आश्ना  मिल गया ।


जब रखा आपने हाथ सर पे ज़रा,

आसमाँ नापने हौसला मिल गया ।


शेर बन आपके होंठ छूते रहें,

उस ग़ज़ल का हमें काफ़िया मिल गया ।


ढूंढते हम रहे ज़िंदगी भर जिसे,

वो मिला ही नहीं पर ख़ुदा मिल गया ।


हम भटकते रहे इस गली उस गली,

आप जो दिख गए बस पता मिल गया ।


शाम जब भी हुई याद आने लगी,

मयकशी के लिए मैकदा मिल गया ।


चाँद पे हम रहेंगे बना आशियाँ,

साथ हमको अगर आपका मिल गया ।


इंजी. अवधेश कुमार सक्सेना- 17092020

शिवपुरी मध्य प्रदेश

Monday, September 7, 2020

मुक्तक हिना हाथों रची

 #मुक्तक #अवधेश_की_मुक्तक #अवधेश_की_कविता 


हिना हाथों रची मेरे तुम्हारे नाम की प्रियतम।

लगाओ देर मत बिल्कुल चले आओ मेरे हमदम।

बनो दूल्हा चढ़ो घोड़ी सजी बारात ले आओ,

बनी दुल्हन सपन देखूँ मिलेंगे शीघ्र ही तुम हम ।


अवधेश कुमार सक्सेना-07092020

शिवपुरी मध्य प्रदेश

Sunday, September 6, 2020

गीत रखूँ कदमों में सर उनके

 #गीत #अवधेश_की_कविता 

#रखूँ_कदमों_में_सर_उनके_यही _अरमान_है_मेरा ।


मिले शिक्षक बड़े ज्ञाता बढ़ाया ज्ञान है मेरा ।

मिली शिक्षा मुझे ऐसी हुआ सम्मान है मेरा ।


कभी भूला नहीं उनको बदौलत आज मैं उनकी ।

अगर चाहें कभी वो तो  बनूँ आवाज मैं उनकी ।

रखूँ कदमों में सर उनके यही अरमान है मेरा ।


चिकित्सक नर्स वैज्ञानिक बना कोई यहॉं यंत्री ।

दुकनदारी करे कोई बने कोई  यहॉं मंत्री ।

सभी पर छाप शिक्षक की सही अनुमान है मेरा ।


सिखाने को लगा देते सभी कुछ दाँव पर अपना ।

मिटा खुद को करें पूरा मगर हर शिष्य का सपना ।

बने माली यहाँ शिक्षक फला  बागान है मेरा ।


अगर सीखा किसी से कुछ सदा गुरु हम उसे मानें ।

बढाना ज्ञान चाहें जब सदा बन शिष्य सब जानें ।

नमन करते हुए गाएं  यही जो गान है मेरा ।


अवधेश कुमार सक्सेना - 05092020

( शिक्षक दिवस )

शिवपुरी मध्य प्रदेश

मुक्तक मुँह को कब तक बंद रखोगे

 


किसको जिम्मेदार कहोगे


#मुक्तक 


मुँह को कब तक बंद रखोगे, कितना अत्याचार सहोगे ।

खतरे में अब जान तुम्हारी, क्या अब भी चुप चाप रहोगे ।

कोरोना तो एक बहाना, असली मकसद सिर्फ सताना,

हाथों में अब काम नहीं है, किसको जिम्मेदार कहोगे।


अवधेश कुमार सक्सेना - 04092020

शिवपुरी मध्य प्रदेश

ग़ज़ल कली खिली जो जरा चमन में

 #ग़ज़ल


#अवधेश_की_ग़ज़ल

#हिन्दुस्तानी_ग़ज़ल

#अवधेश_की_शायरी 


#कली_खिली_जो_जरा_चमन_में ।


कली खिली जो जरा चमन में ।

भ्रमर खुशी से उड़े गगन में ।


महक बहेगी कहाँ कहाँ अब,

गली गली में घुली पवन में ।


यहाँ अभी जो बहार आई,

हसीन दिखते सभी सपन में ।


झलक जरा सी हमें दिखा दो,

बसा रखेंगे तुम्हें नयन में ।


असर हमेशा बना रहेगा,

अगर कहो सच मिला बचन में ।


सजन सलौना चला गया तो,

बदन जलेगा विरह अगन में ।


किलो पढ़ो तब लिखो मिली तुम,

वजन बढ़ेगा ग़ज़ल कहन में ।


(*किलो और मिली इकाई मात्रा वाले शब्द हैं ।)


अवधेश कुमार सक्सेना-06092020

शिवपुरी मध्य प्रदेश

Awadhesh Kumar Saxena

Thursday, September 3, 2020

प्रियामृतवधेश #अवधेश_की_कविता #झूठी_माया #सुंदर_काया

 प्रियामृतवधेश #अवधेश_की_कविता 

#झूठी_माया #सुंदर_काया


छुप

पीछे

किसी ओट

चलाके तीर

मार रहे सबको

दिखा के झूठे स्वप्न

लूट लिया अपनों तक को

कुर्सी पाकर कर रहे  मौज

समझो तो सब झूठी माया है ।

मिट जानी ये सुंदर काया है ।

मत भूलो जो भी बोला है

माहौल बिगड़ने मत दो 

अब ग़लतियाँ मत करो 

व्यवस्था  सुधारो 

अन्यथा हटो

सुनो जरा

सब की

चुप


अवधेश कुमार सक्सेना- 04092020

 


Wednesday, September 2, 2020

साभार आचार्य श्री संजीव वर्मा सलिल विश्व वाणी संस्थान जबलपुर का शोधालेख

 शोधालेख: 

छंद की आधार भूमि काव्य 

संजीव वर्मा 'सलिल'

*

छंद: 


छंद की आत्मा ध्वनि और काया काव्य है। काव्य के बिना छंद की प्रतीति दुष्कर और छंद के बिना काव्य का लालित्य / चारुत्व नहीं होता। काव्य के विविध तत्व ही छंद की जड़ें ज़माने के लिए भूमि और छंद की फसल उगने के लिए उर्वरक का कार्य करते हैं। छंद-चर्चा के पूर्व काव्य और छंद के अंतर्संबंध तह काव्य के गुण-दोषों पर दृष्टिपात करना उचित होगा। 


मात्रा, वर्ण, विराम/यति, गति, लय तथा तुक (समान उच्चारण) आदि के व्यवस्थित सामंजस्य को छंद कहते हैं। छंदबद्ध कविता सहजता से स्मरणीय, अधिक प्रभावशाली व हृदयग्राही होती है। छंद के २ मुख्य प्रकार मात्रिक (जिनमें मात्राओं की संख्या निश्चित रहती है) तथा वर्णिक (जिनमें वर्णों की संख्या निश्चित तथा गणों के आधार पर होती है) हैं। छंद को लौकिक-वैदिक, हिंदी-अहिंदी, भारतीय-विदेशी, वाचिक आदि वर्गीकरण भी हैं। छंद के असंख्य उपप्रकार हैं जो ध्वनि विज्ञान तथा गणितीय समुच्चय-अव्यय पर आधृत हैं। वाचस्पतय संस्कृत शब्दकोष के अनुसार 'छदि' में 'इयसुन' प्रत्यय लगने से प्राप्त 'छन्दस' का अर्थ आच्छादित करनेवाला होता है। 'छंदोबद्ध पदं पद्यं' अर्थात छंदबद्ध पंक्ति ही अद्य है। छंद शिव से क्रमश: विष्णु, इंद्र, ब्रहस्पति, मांडव्य, सैतव, यास्क आदि के माध्यम से पिंगल को प्राप्त होना बताया गया है।


वेद को सकल विद्याओं का मूल माना गया है। वेद के ६ अंगों १. छंद, २. कल्प, ३. ज्योतिऽष , ४. निरुक्त, ५. शिक्षा तथा ६. व्याकरण में छंद का प्रमुख स्थान है।


छंदः पादौतु वेदस्य हस्तौ कल्पोऽथ कथ्यते।

ज्योतिऽषामयनं नेत्रं निरुक्तं श्रोत्र मुच्यते।।

शिक्षा घ्राणंतुवेदस्य मुखंव्याकरणंस्मृतं।

तस्मात् सांगमधीत्यैव ब्रम्हलोके महीतले।।


वेद का चरण होने के कारण छंद पूज्य है। पग/चरण के बिना मनुष्य कहीं जा नहीं जा सकता, कुछ जान या देख नहीं सकता। चरण /पद के बिना काव्य व छंद को नहीं जाना जा सकता और छंद को जाने बिना वेद में गति नहीं हो सकती। इसलिए छंदशास्त्र का ज्ञान न होने पर मनुष्य पंगुवत है, वह न तो काव्य की यथार्थ गति समझ सकता है न ही शुद्ध रीति से काव्य रच सकता है। छंदशास्त्र को उसके आदिप्रणेता महर्षि पिंगल के नाम पर पिंगल तथा पर्यायवाची शब्दों सर्प, फणि, अहि, भुजंग आदि नामों से संबोधित कर शेषावतार कहा गया है। जटिल से जटिल विषय छंदबद्ध होने पर सहजता से कंठस्थ ही नहीं हो जाता, आनंद भी देता है। सर्प की फुंफकार में ध्वनि का आरोह-अवरोह, गति-यति की नियमितता और छंद में इन लक्षणों की व्याप्ति भी छंद को सर्प व पर्यायवाचियों से संबोधन का कारण है। 


नरत्वं दुर्लभं लोके विद्या तत्र सुदुर्लभा।

कवित्वं दुर्लभं तत्र, शक्तिस्तत्र सुदुर्लभा।।


अर्थात संसार में नर तन दुर्लभ है, विद्या अधिक दुर्लभ, काव्य रचना और अधिक दुर्लभ तथा सुकाव्य-सृजन की शक्ति दुर्लभतम है। काव्य के पठन-पाठन अथवा श्रवण से अलौकिक आनंद की प्राप्ति होती है।


काव्यशास्त्रेण विनोदेन कालो गच्छति धीमताम।

व्यसने नच मूर्खाणां निद्रया कलहेन वा।।


भाषा का सौंदर्य उसकी कविता में निहित होता है। प्राचीन काल में शिक्षा का प्रचार-प्रसार कम होने के कारण काव्य-सृजन केवल कवित्व शक्ति संपन्न प्रतिभावान महानुभावों द्वारा किया जाता था जो श्रवण परंपरा से छंद की लय व प्रवाह आत्मसात कर अपने सृजन में यथावत अभिव्यक्त कर पाते थे। श्रवण, स्मरण व सृजन के अंतराल में स्मृति भ्रम के कारण विधान उल्लंघन होना स्वाभाविक है। वर्तमान काल में शिक्षा का सर्वव्यापी प्रचार-प्रसार होने, भाषा व काव्यशास्त्र से आजीविका न मिलने तथा इन क्षेत्र में विशेष योग्यता अथवा अवदान होने पर भी राज्याश्रय या अलंकरण न होने के कारण सामान्यतः अध्ययनकाल में इनकी उपेक्षा की जाती है तथा कालांतर में काव्याकर्षण होने पर भाषा का व्याकरण-पिंगल समझे बिना छंदहीन व दोषपूर्ण काव्य रचनाकर कवि आत्मतुष्टि पाल लेते हैं जिसका दुष्परिणाम आमजनों में कविता के प्रति अरुचि के रूप में दृष्टव्य है। काव्य के तत्वों रस, छंद, अलंकार आदि से संबंधित सामग्री व उदाहरण पूर्व प्रचलित संस्कृत व अन्य भाषा/बोलियों में होने के कारण उनका आशय हिंदी के वर्तमान रूप तक सीमित जन पूरी तरह समझ नहीं पाते । प्राथमिक स्तर पर अंग्रेजी माध्यम से शिक्षा के चलन ने हिंदी की समझ और घटाई है। छंद रचना के भाषा आधार भूमि का कार्य करती है। 


भाषा:


अनुभूतियों से उत्पन्न भावों को अभिव्यक्त करने के लिए भंगिमाओं या/तथा ध्वनियों की आवश्यकता होती है। भंगिमाओं से नृत्य, नाट्य, चित्र आदि कलाओं का विकास हुआ। ध्वनि से भाषा, वादन एवं गायन कलाओं का जन्म हुआ।


चित्र गुप्त ज्यों चित्त का, बसा आप में आप।


भाषा सलिला निरंतर करे अनाहद जाप।।


भाषा वह साधन है जिसके माध्यम से हम अपने अनुभूतियाँ, भाव एवं विचार अन्य लोगों तक पहुँचा पाते हैं अथवा अन्यों की अनुभूतियाँ, भाव और विचार गृहण कर पाते हैं। यह आदान-प्रदान वाणी के माध्यम से (मौखिक) या लेखनी के द्वारा (लिखित) होता है।


निर्विकार अक्षर रहे मौन, शांत निः शब्द।


भाषा वाहक भाव की, माध्यम हैं लिपि-शब्द ।।


लिपि: विविध ध्वनियों को लेखन सामग्री के माध्यम से किसी पटल पर विशिष्ट संकेतों द्वारा अंकित कर पढ़ा जा सकता है। इन संकेतों को लिपि कहते हैं। लिपि ध्वनि का अंकित रूप है। हिंदी भाषा को देवनागरी लिपि में लिखा जाता है। 


व्याकरण (ग्रामर):


व्याकरण: (वि+आ+करण) का अर्थ भली-भाँति समझना है। व्याकरण भाषा के शुद्ध एवं परिष्कृत रूप सम्बन्धी नियमोपनियमों का संग्रह है। भाषा के समुचित ज्ञान हेतु वर्ण विचार (ओर्थोग्राफी) अर्थात वर्णों (अक्षरों) के आकार, उच्चारण, भेद, संधि आदि, शब्द विचार (एटीमोलोजी) याने शब्दों के भेद, उनकी व्युत्पत्ति एवं रूप परिवर्तन आदि तथा वाक्य विचार (सिंटेक्स) अर्थात वाक्यों के भेद, रचना और वाक्य विश्लेष्ण को जानना आवश्यक है।


वर्ण शब्द संग वाक्य का, कविगण करें विचार।


तभी पा सकें वे 'सलिल', भाषा पर अधिकार।।


वर्ण /अक्षर: ध्वनि का लघुतम उच्चारित रूप वर्ण है। वर्ण के दो प्रकार स्वर (वोवेल्स) तथा व्यंजन (कोंसोनेंट्स) हैं।


अजर अमर अक्षर अजित, ध्वनि कहलाती वर्ण।


स्वर-व्यंजन दो रूप बिन, हो अभिव्यक्ति विवर्ण।।


स्वर (वोवेल्स):


स्वर वह मूल ध्वनि है जिसे विभाजित नहीं किया जा सकता, वह अक्षर है। स्वर के उच्चारण में अन्य वर्णों की सहायता की आवश्यकता नहीं होती। यथा - अ, आ, इ, ई, उ, ऊ, ऋ ए, ऐ, ओ, औ, अं, अ:. स्वर के दो प्रकार १. हृस्व ( अ, इ, उ, ऋ ) तथा दीर्घ ( आ, ई, ऊ, ए, ऐ, ओ, औ, अं, अ: ) हैं।


अ, इ, उ, ऋ हृस्व स्वर, शेष दीर्घ पहचान।


मिलें हृस्व से हृस्व स्वर, उन्हें दीर्घ ले मान।।


व्यंजन (कांसोनेंट्स):


व्यंजन वे वर्ण हैं जो स्वर की सहायता के बिना नहीं बोले जा सकते। व्यंजनों के चार प्रकार १. स्पर्श (क वर्ग - क, ख, ग, घ, ङ्), (च वर्ग - च, छ, ज, झ, ञ्.), (ट वर्ग - ट, ठ, ड, ढ, ण्), (त वर्ग त, थ, द, ढ, न), (प वर्ग - प,फ, ब, भ, म) २. अन्तस्थ (य वर्ग - य, र, ल, व्, श), ३. (उष्म - श, ष, स ह) तथा ४. (संयुक्त - क्ष, त्र, ज्ञ) हैं। अनुस्वार (अं) तथा विसर्ग (अ:) भी व्यंजन हैं।


भाषा में रस घोलते, व्यंजन भरते भाव।


कर अपूर्ण को पूर्ण वे मेटें सकल अभाव।।


शब्द: अक्षरों का ऐसा समूह जिससे किसी अर्थ की प्रतीति हो शब्द कहलाता है। यह भाषा का मूल तत्व है।


अक्षर मिलकर शब्द बन, हमें बताते अर्थ।


मिलकर रहें न जो 'सलिल', उनका जीवन व्यर्थ।।


१. अर्थ की दृष्टि से शब्द प्रकार :


अ. सार्थक शब्द : जिनसे अर्थ ज्ञात हो यथा - कलम, कविता आदि एवं


आ. निरर्थक शब्द : जिनसे किसी अर्थ की प्रतीति न हो यथा - अगड़म बगड़म आदि ।


२. व्युत्पत्ति (बनावट) की दृष्टि से शब्द प्रकार :


अ. रूढ़ / स्वतंत्र शब्द: यथा भारत, युवा, आया आदि।


आ. यौगिक शब्द: दो या अधिक शब्दों से मिलकर बने शब्द जो पृथक किए जा सकें यथा - गणवेश, छात्रावास, घोडागाडी आदि एवं


इ. योगरूढ़ शब्द : जो दो शब्दों के मेल से बनते हैं पर किसी अन्य अर्थ का बोध कराते हैं यथा- दश + आनन = दशानन = रावण, चार + पाई = चारपाई = खाट आदि ।


३. स्रोत या व्युत्पत्ति के दृष्टि से शब्द प्रकार :


अ. तत्सम शब्द: तद+सम अर्थात उसके समान, मूलतः हिंदी की जननी संस्कृत के शब्द जो हिंदी में यथावत प्रयोग होते हैं यथा- अंबुज, उत्कर्ष, कक्षा, अग्नि, विद्या, कवि, अनंत, अग्राज, कनिष्ठ, कृपा, क्रोध आदि।


आ. तद्भव शब्द: तत+भव अर्थात संस्कृत से उद्भूत शब्द जिनका परिवर्तित रूप हिंदी में प्रयोग किया जाता है यथा- निद्रा से नींद, छिद्र से छेद, अर्ध से आधा, अग्नि से आग, अंगुष्ठिका से अंगूठी, अद्य से आज, ग्राम से गाँव, दंड से डंडा, वरयात्रा से बरात, श्यामल से सांवला, सुवरण से स्वर्ण/सोना आदि।


इ. अनुकरण वाचक शब्द: विविध ध्वनियों के आधार पर कल्पित शब्द यथा- घोड़े की बोली से हिनहिनाना, बिल्ली की बोली से म्याऊँ कौव से काँव-काँव, कुत्ते से भौंकना आदि।


ई. देशज शब्द: आदिवासियों अथवा प्रांतीय भाषाओँ से लिये गये शब्द जिनकी उत्पत्ति का स्रोत अज्ञात है यथा- खिड़की, कुल्हड़ आदि।


उ. द्रविड़ परिवार की भाषाओँ से गृहीत शब्द: तमिल के काप्पी से कोफी, शुरुट से चुरुट, तेलुगु से पिल्ला, अर्क काक, कानून, कुटिल, कुंद, कोण, चतुर, चूडा, तामरस, तूल, दंड, मयूर, माता, मीन मुकुट, लाला, शव आदि।


ऊ. विदेशी शब्द: संस्कृत के अलावा अन्य भाषाओँ से लिये गये शब्द जो हिन्दी में जैसे के तैसे प्रयोग होते हैं। यथा- फ़ारसी से कमीज़, पाजामा, देहात, शहर, सब्जी, अंगूर, हलवा, जलेबी, कुर्सी. सख्त, दावा, मरीज़, हकीम आदि लगभग ३००० शब्द। अरबी से अदालत, किताब, कलम, कागज़, शैतान मुकदमा, फैसला आदि। तुर्की से बहादुर, कैंची, बेगम, बाबा, करता, गलीचा, चाकू, गनीमत लाश, सुराग आदि। पश्तो से पठान, गुंडा, डेरा, गड़बड़, नगाड़ा, हमजोली मटरगश्ती आदि। पुर्तगाली से आलमारी, स्त्री, आया, कनस्तर, गोदाम, चाबी, गमला, तौलिया, परात, तंबाकू आदि। जापानी से हाइकु, स्नैर्यु, सायोनारा आदि। अंग्रेजी से इंजिन, मोटर, कैमरा, रेडिओ, फोन, मीटर, होस्टल, फीस, स्टेशन, कंपनी, टीम, परेड, प्रेस, अपील, टाई आदि लगभग ३००० शब्द।


४. प्रयोग के आधार पर:


अ. विकारी शब्द: वे शब्द जिनमें संज्ञा, सर्वनाम, क्रिया या विशेषण के रूप में प्रयोग किये जाने पर लिंग, वचन एवं कारक के आधार पर परिवर्तन होता है। यथा - लड़का, लड़के, लड़कों, लड़कपन, अच्छा, अच्छे, अच्छी, अच्छाइयाँ आदि।


आ. अविकारी शब्द: वे शब्द जिनके रूप में कोई परिवर्तन नहीं होता। इन्हें अव्यय कहते हैं। यथा - यहाँ, कहाँ, जब, तब, अवश्य, कम, बहुत, सामने, किंतु, आहा, अरे आदि। इनके प्रकार क्रिया विशेषण, सम्बन्ध सूचक, समुच्चय बोधक तथा विस्मयादि बोधक हैं।


नदियों से जल ग्रहणकर, सागर करे किलोल।


विविध स्रोत से शब्द ले, भाषा हो अनमोल।।


कविता के तत्वः कविता के २ तत्व बाह्य तत्व (लय, छंद योजना, शब्द योजना, अलंकार, तुक आदि) तथा आंतरिक तत्व (भाव, रस, अनुभूति आदि) हैं।


कविता के बाह्य तत्वः


अ. लयः भाषिक ध्वनियों के उतार-चढ़ाव, शब्दों की निरंतरता व विराम आदि के योग से लय बनती है। कविता में लय के लिये गद्य से कुछ हटकर शब्दों का क्रम संयोजन इस प्रकार करना होता है कि वांछित अर्थ की अभिव्यक्ति भी हो सके। संगीत में समय की समान गति को लय कहते हैं। लय के ३ प्रकार विलंबित, मध्य तथा द्रुत हैं। विलंबित लय अति धीमी और गंभीर होती है। मध्य लय सामान्य होती है। द्रुत लय के ३ प्रकार दुगुन, तिगुन तथा चौगुन हैं। साहित्य में लय से आशय विशिष्ट भाषिक प्रवाह से है। साहित्य में लय का आशय विशिष्ट भाषिक प्रवाह है। 


ताल: संगीत में समय की माप ताल से की जाती है। ताल के हिस्सों को विभाग या 'टुकड़ा' कहा जाता है जो छोटे-बड़े हो सकते हैं। टुकड़ा के बोल भारी होने पर उसकी पहली मात्रा पर ताली और हल्के होने पर खाली होती है। ताल की पहली मात्रा को 'सम' कहते है। तबला वादन इसी स्थान से आरंभ होता है तथा गायन इसी स्थान पर समाप्त होता है। 


मात्रा: काव्य में ध्वनि को उसके उच्चारण में लगे कम या अधिक समय के आधार पर लघु तथा दीर्घ मात्रा में विभाजित किया गया है। ध्वनि को स्वर-व्यंजन के माध्यम से व्यक्त किये जाने पर अक्षर का उच्चारण होता है। इन्हें ह्रस्व, लघु या छोटा तथा दीर्घ या गुरु कहा जाता है। इनका मात्रा भार क्रमश: १ व २ होता है। संगीत में ध्वनि की उपस्थिति ताल से होती है इसलिए ताल की इकाई को मात्रा कहा जाता है। मात्रा समूह से साहित्य में छंद तथा संगीत में ताल की उत्पत्ति होती है किंतु ये एक दूसरे के पर्याय नहीं सर्वथा भिन्न है।


मात्रा गणना नियम: 


१. किसी ध्वनि-खंड को बोलने में लगनेवाले समय के आधार पर मात्रा गिनी जाती है। एकल ध्वनि जैसे चुटकी बजने में लगा समय ईकाई माना गया है। 


२. कम समय में बोले जानेवाले वर्ण या अक्षर की एक तथा अधिक समय में बोले जानेवाले वर्ण या अक्षर की दो मात्राएँ गिनी जाती हैंं। तीन मात्रा के शब्द ॐ, ग्वं आदि संस्कृत में हैं, हिंदी में नहीं। एक मात्रा का संकेत I, तथा २ मात्रा का संकेत S है। 


३. अ, इ, उ, ऋ तथा इन मात्राओं से युक्त वर्ण की एक मात्रा गिनें। उदाहरण- न = १, अब = १+१ = २, उधर = १+१+१ = ३, ऋषि = १+१= २, उऋण १+१+१ = ३, अनवरत = ५ आदि।


४. शेष वर्णों की दो-दो मात्रा गिनें। जैसे- गा = २, आम = २+१ = ३, काकी = २+२ = ४, पूर्णिमा = ५, कैकेई = २+२+२ = ६, ओजस्विनी = २+२+१+२ = ७, भोलाभाला = २+२+२+२ = ८ आदि।


५. शब्द के आरंभ में आधा या संयुक्त अक्षर हो तो उसका कोई प्रभाव नहीं होगा। जैसे गृह = १+१ = २, प्रिया = १+२ =३ आदि।


६. शब्द के मध्य में आधा अक्षर हो तो उसे पहले के अक्षर के साथ गिनें। जैसे- क्षमा १+२, वक्ष २+१, विप्र २+१, उक्त २+१, प्रयुक्त = १+२+१ = ४ आदि।


७. रेफ को आधे अक्षर की तरह, पूर्वाक्षर के साथ गिनें। बर्र = २+१ = ३, पर्व = २+१ = ३, बर्रैया २+२+२ = ६ आदि।


८. अपवाद स्वरूप कुछ शब्दों के मध्य में आनेवाला आधा अक्षर उच्चारण के आधार बादवाले अक्षर के साथ गिना जाता है। जैसे- तुम्हें = १+ २ = ३, कन्हैया = क+न्है+या = १+२+२ = ५आदि।


९. अनुस्वर (आधे म या आधे न के उच्चारण वाले शब्द) के पहले लघु वर्ण हो तो गुरु हो जाता है, पहले गुरु होता तो कोई अंतर नहीं होता। यथा- अंश = अन्श = अं+श = २+१ = ३. कुंभ = कुम्+भ = २+१ = ३, झं+डा = झन्+डा = झण्+डा = २+२ = ४ आदि।


१०. अनुनासिक (चंद्र बिंदी) से मात्रा में कोई अंतर नहीं होता। धँस = १+१ = २आदि। हँस = १+१ =२, हंस = हं+स = २+१ = ३ आदि। 


शब्द-योजनाः कविता में शब्दों का चयन विषय के अनुरूप, सजगता, कुशलता से इस प्रकार किया जाता है कि भाव, प्रवाह तथा गेयता से कविता के सौंदर्य में वृद्धि हो ।


तुकः काव्य पंक्तियों में अंतिम वर्ण तथा ध्वनि में समानता को तुक कहते हैं। अतुकांत कविता में यह तत्व नहीं होता। मुक्तिका या ग़ज़ल में तुक के २ प्रकार तुकांत व पदांत होते हैं जिन्हें उर्दू में क़ाफि़या व रदीफ़ कहते हैं। हिंदी और उर्दू रचनाओं में ध्वन्याक्षरों की भिन्नता के कारण तुक भिन्नता होती है। हिंदी में 'ह' ध्वनि के लिए एक ही वर्ण है जबकि उर्दू में २ 'हे' तथा 'हमजा' पदांत में दो भिन्न वर्ण वाले शब्द नहीं होना चाहिए। इसलिए उर्दूवाले 'हे' तथा 'हमजा' वाले शब्दों की तुक गलत मानते हैं जबकि हिंदी में दोनों के लिए एक ही वर्ण 'ह' है। अत: हिंदीवाले ऐसी तुक सही मानते हैं।तुकांतता देखते समय केवल अंतिम अक्षर नहीं अपितु उसके पूर्व के अक्षर भी देखे जाते हैं।


एकाक्षरी तुकांत: एकांत-दिगंत, आभास-विश्वास, आनन - साजन, सजनी - अवनी, आदि।


दो अक्षरी तुकांत: दिनकर - हितकर, सफल - विफल, आदि।


तीन अक्षरी तुकांत: प्रभाकर - विभाकर आदि।


छंद मंजरी में सौरभ पाण्डेय जी ने तुकांत निर्वहन के ३ प्रकार बताये हैं:


उत्तम: खाइये - जाइये, नमन - गमन आदि।


मध्यम: सूचना - बूझना, सुमति - विपति आदि।


निकृष्ट: देखिये - रोइये, साजन - दीनन आदि।


अलंकारः अलंकार से कविता की सौंदर्य-वृद्धि होती है और वह अधिक चित्ताकर्षक प्रतीत होती है। अलंकार की न्यूनता या अधिकता दोनों काव्य दोष हैं। अलंकार के ३ मुख्य प्रकार शब्दालंकार, अर्थालंकार तथा उभयालंकार के अनेक भेद-उपभेद हैं। अग्निपुराण तथा भोज कृत कंठाभरण के अनुसार: शब्दालंकार: जाति, गति, रीति, वृत्ति, छाया, मुद्रा, उक्ति, युक्ति, भणिति, गुम्फना, शैया, पथिति, यमक, श्लेष, अनुप्रास, चित्र, वाकोन्यास, प्रहेलिका, गूढ़, प्रश्नोत्तर, अध्येय, श्रव्य, प्रेक्ष्य, अभिनय आदि अर्थालंकार जाति, विभावना, हेतु, अहेतु, सूक्ष्म, उत्तर, विरोध, संभव, अन्योन्य, निदर्शन, भेद, समाहित, भरन्ति, वितर्क, मीलित, स्मृति, भाव, प्रत्यक्ष, अनुमान, आप्त वचन, उपमान, अर्थापत्ति, अभाव आदि तथा उभयालंकार उपमा, रोपक, सामी, संशयोक्ति, अपन्हुति, समाध्ययुक्ति, समासोक्ति, उत्प्रेक्षा, अप्रस्तुत प्रस्तुति, तुल्ययोगिता, उल्लेख, सहोक्ति, समुच्चय, आक्षेप, अर्थान्तरन्यास, विशेष परिष्कृति, दीपक, क्रम, पर्याय, अतिशय, श्लेष, भाविक तथा संसृष्टि हैं। विविध आचार्यों ने शताधिक अलंकार बताए हैं। 


कविता के आंतरिक तत्वः


रस: राजशेखर कृत काव्य मीमांसा के अनुसार काव्य विधा शिव से ब्रम्हा, तथा ब्रम्हा से १८ अधिकरण भिन्न-भिन्न ऋषियों को प्राप्त हुए जिन्होंने इनका विकास तथा प्रसार किया "रूपक निरूपणीयं भरत, रसाधिकारिकं नन्दिकेश्वर:"। ये नंदिकेश्वर जबलपुर के समीप बरगी ने निकट के वासी थे।इनका गाँव बरगी बाढ़ के जलाशय में डूब गया तथा इनके द्वारा पूजित शिवलिंग समीपस्थ पहाडी पर शिवालय में स्थापित किया गया है। काव्य को पढ़ने या सुनने से जो अनुभूति (आनंद, दुःख, हास्य, शांति आदि) होती है उसे रस कहते हैं । रस को कविता की आत्मा (रसात्मकं वाक्यं काव्यं), ब्रम्हानंद सहोदर आदि कहा गया है। यदि कविता पाठक को उस रस की अनुभूति करा सके जो कवि को कविता करते समय हुई थी तो वह सफल कविता कही जाती है। रस के ९ प्रकार श्रृंगार, हास्य, करुण, रौद्र, भयानक, वीर, वीभत्स, शांत तथा अद्भुत हैं। कुछ विद्वान वात्सल्य को दसवाँ रस मानते हैं। 


अनुभूतिः गद्य की अपेक्षा पद्य अधिक हृद्स्पर्शी होता है चूंकि कविता में अनुभूति की तीव्रता अधिक होती है इसलिए कहा गया है कि गद्य मस्तिष्क को शांति देता है कविता हृदय को।


भावः रस की अनुभूति करानेवाले कारक को भाव कहते हैं। हर रस के अलग-अलग स्थायी भाव इस प्रकार हैं। श्रृंगार-रति, हास्य-हास्य, करुण-शोक, रौद्र-क्रोध, भयानक-भय, वीर-उत्साह, वीभत्स-जुगुप्सा/घृणा, शांत, निर्वेद/वैराग्य, अद्भुत-विस्मय तथा वात्सल्य-ममता।


काव्य लक्षण: आचार्य भारत ने अपने ग्रंथ 'नाट्य शास्त्र में ३६ काव्य लक्षण बताए हैं: भूषण, अक्षरसंघात, शोभा, उदाहरण, हेतु, संशय, दृष्टांत, प्राप्ति, अभिप्राय, निदर्शन, निरुक्त, सिद्धि, विशेषण, गुणानिपात, अतिशय, तुल्यतर्क, पदोच्चय, दृष्ट, उपद्रुष्ट, विचार, त्द्विपर्यय, भ्रंश, नौने, माला, दाक्षिण्य, गर्हण, अर्थापत्ति, प्रसिद्धि, पृच्छा, सारूप्य, मनोरथ, लेश, क्षोभ, गुणकीर्तन, अनुक्तसिद, प्रिय वचनं। 


काव्य प्रयोजन / उद्देश्य: १. प्रीति: 'मुत प्रीति: प्रमदो हर्षो प्रमोदामोद संमदा:' - अमरकोश२/२४। यहाँ प्रीति से आशय काव्यकलाजनित आनंद से है।


आचार्य भरत इसे 'विनोद्जन्य आनंद' कहते हैं। डंडी इसका अर्थ 'काव्यास्वादन व काव्य-विहार कहते हैं। भामह 'कलात्मक उन्मेष व आनंद' को पर्यायवाची मानते हैं। कुंतक प्रीति को 'अन्त्श्चमत्कृति' का फल बताते हैं तो मम्मट 'परिनिवृत्ति' को प्रीति कहते हैं। आनंदवर्धन प्रीति को 'आनंद' कहते हैं। अभिनव गुप्त 'कलात्मक आनंद' को सर्वोच्च मानते हैं। जगन्नाथ इसे 'विनाशोपरांत अद्वैतानंद' कहते हैं। इस मनोदशा को रक्षेखर 'भावसमाधि' कहते है और आचार्य रामचंद्र शुक्ल 'भाव योग' कहते हैं। २. लोकहित: काव्य को लोकहित का माध्यम कहा गया है। राजशेखर के अनुसार काव्य का जन्म विविध कलाओं के योग से है। वामन के अनुसार 'कवि को रचना कर्म में प्रवृत्त होने के लिए विविध कलाओं का ज्ञान होना चाहिए'। भामह की ६४ कलाओं की सूची में 'काव्य लक्षण का ज्ञान' भी है। ३. यश / कीर्ति: कालिदास "मंद: कवि यशप्रार्थी' कहकर यश की कामना करते हैं। डंडी 'यावच्चन्द्रदिवाकरौ' शशि-रवि रहने तक यश की कामना करते हैं। भामह पृथ्वी तथा आकाश में कवि का यश रहने तक देव पद की प्राप्ति बताते हैं। 


काव्य दोष: दोषों को गुणों का विपर्यय (एव एव विपर्यस्ता गुणा) कहते हुए १० दोष (गूढ़ार्थ, अर्थान्तर, अर्थविहीन, भिन्नार्थ, एकार्थ, अभिलुप्तार्थ, न्यायदपेत, विषम, विसंधि, शब्दहीन) बताये हैं। आचार्य मम्मट के अनुसार: मुख्यार्थहतिर्दोषो रसश्च मुख्यस्तदाश्रयाद्वाच्यः। / उभयोपयोगिनः स्युः शब्दाद्यास्तेन तेष्वपि सः।। अर्थात् मुख्यार्थ का अपकर्ष करनेवाला कारक दोष है और रस मुख्यार्थ है तथा उसका (रस का) आश्रय वाच्यार्थ का अपकर्षक भी दोष होता है। शब्द आदि (वर्ण और रचना) इन दोनों (रस और वाच्यार्थ) के सहायक होते हैं। अतएव यह दोष उनमें भी रहता है।


आचार्य विश्वनाथ कविराज अपने ग्रंथ साहित्यदर्पण दोष का लक्षण करते हुए कहते हैं- रसापकर्षका दोषाः, अर्थात् रस का अपकर्ष करनेवाले कारक दोष कहलाते हैं।


काव्य प्रदीपकार के शब्दों में नीरस काव्य में वाक्यार्थ के चमत्कार को हानि पहुँचानेवाले कारक दोष हैं- 'नीरसे त्वविलम्बितचमत्कारिवाक्यार्थप्रतीतिविघातका एव दोषाः।' स्पष्ट है कि मुख्यार्थ शब्द, अर्थ और रस के आश्रय से ही निर्धारित होता है। इसलिए काव्य-दोषों के तीन भेद किए गए हैं- शब्ददोष, अर्थदोष और रसदोष। चूँकि शब्ददोष होने से काव्य में प्रयुक्त पद का कोई भाग दूषित होने से पद दूषित होता है, पद के दूषित होने से वाक्य दूषित होता है। अतएव, शब्ददोष के पुनः तीन भेद किए गए हैं- पद-दोष, पदांश-दोष और वाक्य-दोष। दूसरे शब्दों में जो पददोष हैं वे वाक्यदोष भी होते हैं और वाक्यदोष अलग से स्वतंत्र रूप से भी होते हैं। इसके अतिरिक्त एक समास-दोष होते हैं, पर संस्कृत भाषा की समासात्मक प्रवृत्ति होने के कारण ये दोष संस्कृत-काव्यों में ही देखने को मिलते हैं, हिंदी में बहुत कम पाया जाते हैं। अतएव जितने पददोष हैं वे समासदोष भी होते हैं। समास के कारण कुछ दोष स्वतंत्र रूप से समासदोष के अंतर्गत आते हैं। इन दोषों को दो भागों में बाँटा गया है: नित्य-दोष और अनित्य-दोष। नित्य-दोष वे दोष हैं जो सदा बने रहते हैं, उनका समर्थन अनुकरण के अतिरिक्त और कुछ नहीं होता, जैसे च्युतसंस्कार आदि। अनित्य-दोष वे होते हैं जो एक परिस्थिति में दोष तो हैं, पर दूसरी परिस्थिति में उनका परिहार हो जाता है, जैसे श्रुतिकटुत्व आदि।श्रुतिकटुत्व दोष श्रृंगार वर्णन में दोष है, जबकि वीर, रौद्र आदि रस में गुण हो जाता है। 


निम्नलिखित तेरह दोषों को पददोष कहा गया हैः श्रुतिकटु, च्युतसंस्कार, अप्रयुक्त, असमर्थ, निहतार्थ, अनुचितार्थ, निरर्थक, अवाचक, अश्लील, संदिग्ध, अप्रतीतत्व, ग्राम्य और न्यायार्थ।


इसके अतिरिक्त तीन दोष- क्लिष्टत्व, अविमृष्टविधेयांश और विरुद्धमतिकारिता केवल समासगत दोष होते हैं। काव्यप्रकाश में इन्हें दो कारिकाओं में दिया गया है-


दुष्टं पदं श्रुतिकटु च्युतसंस्कृत्यप्रयुक्तमसमर्थम्।

निहतार्थमनुचितार्थं निरर्थकमवाचकमं त्रिधाSश्लीलम्।।

सन्दिग्धमप्रतीतं ग्राम्यं नेयार्थमथ भवेत् क्लिष्टम्।

अविमृष्टविधेयांशं विरुद्थमतिकृत समासगतमेव।।


आचार्य मम्मट के अनुसार काव्य के मुख्य अर्थ (रस) के विधात (बाधक) तत्व ही दोष हैं। आचार्य विश्वनाथ प्रसाद ने साहित्यदर्पण में "रसापकर्षका दोष:" कहकर रस का अपकर्ष करने वालो तत्वों को दोष बताया है। 


काव्य दोषों का विभाजन: काव्यप्रकाश में ७० दोष बताए गये हैं जिन्हें चार वर्गो में विभाजित किया गया है:- 


१-शब्ददोष। २- वाक्य दोष। ३- अर्थ दोष। ४- रस दोष। 


हिंदी में रीति-काव्य का आधार संस्कृत के लक्षण-ग्रंथ हैं। संस्कृत में कवि और आचार्य, दो अलग-अलग व्यक्ति होते थे, किंतु हिंदी में यह भेद मिट गया। प्रत्येक कवि आचार्य बनने की कोशिश करने लगा, जिसका परिणाम यह हुआ कि वे सफल आचार्य तो बन नहीं पाए, उनके कवित्व पर भी कहीं-कहीं दाग लग गए। इन रीति-ग्रंथकारों में मौलिकता का सर्वथा अभाव रहा। परिणामस्वरूप उनका शास्त्रीय विवेचन सुचारु रूप से नहीं हो सका। काव्यांगों का विवेचन करते हुए हिंदी के आचार्यों ने काव्य के सब अंगों का समान विवेचन नहीं किया । शब्द-शक्ति की ओर किसी का ध्यान ही नहीं गया। रस में भी केवल श्रृंगार को ही प्रधानता दी गई। लक्षण पद्य में देने की परंपरा के कारण इन कवियों के लक्षण अस्पष्ट और कहीं-कहीं अपूर्ण रह गए हैं। आचार्य रामचन्द्र शुक्ल का निष्कर्ष द्रष्टव्य है - "हिंदी में लक्षण-ग्रंथों की परिपाटी पर रचना करने वाले सैकड़ों कवि हुए हैं, वे आचार्य की कोटि में नहीं आ सकते। वे वास्तव में कवि ही थे।" लक्षण ग्रंथों की दृष्टि से कुछ त्रुटियाँ होते हुए भी इन ग्रंथों का कवित्व की दृष्टि से बहुत महत्त्व है। अलंकारों अथवा रसों के उदाहरण के लिए जो पद्य उपस्थित किए गए हैं, वे अत्यंत सरस और रोचक हैं। श्रृंगार रस के जितने उदाहरण अकेले रीतिकाल में लिखे गए हैं, उतने सम्पूर्ण संस्कृत साहित्य में भी उपलब्ध नहीं होते। इनकी कविता में भावों की कोमलता, कल्पना की उड़ान और भाषा की मधुरता का सुंदर समन्वय हुआ है। 


काव्य गुण: ध्वनिखंडों के संवेदनात्मक आवेग की आनुभूतिक प्रतीति (सेंसरी आस्पेक्ट ऑफ़ सिलेबल्स) ही काव्य गुण का आरंभ है। काव्य गुण की परिकल्पना काव्य में अभिव्यक्त विविध मन: स्थितियों का बोध करने हेतु ही है। आचार्य भरत के अनुसार १० काव्य गुण श्लेष, प्रसाद, समता, माधुर्य, सुकुमारता, अर्थव्यक्ति, उदारता, ओज, कांति तथा समाधि हैं। भामह तथा आनंदवर्धन ओज (श्लेष, उदारता, प्रसाद, समाधि), प्रसाद (कांति, सुकुमारता) तथा माधुर्य ३ काव्यगुण बताते हैं। वामन १० शब्द गुण व १० अर्थ गुण मानते हैं तो अग्निपुराणकार गुण के ३ भेद शब्द गुण (श्लेष, लालित्य, गांभीर्य, सुकुमारता, उदारता, सत्य, योगिकी), अर्थ गुण (माधुर्य, संविधान, कोमलता, उदारता, प्रौढ़ि, सामयिकत्व) व उभय गुण (प्रसाद, सौभाग्य, यथासंख्य, प्रशस्ति, पाक, राग) बताता है। जगन्नाथ अर्थ गुणों की संख्या अनंत मानते हैं। 

आशा है काव्यात्मा छंद से परिचय के पूर्व छंद की देह काव्य का सामान्य परिचय उपयोगी होगा। 

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शब्दार्थ: पद = पंक्ति, पदादि पंक्ति के आरंभ में, पदांत = पंक्ति के अंत में, पद = पंक्ति समूह सूर के पद, पदादि = पंक्ति का आरंभ, पदांत = पंक्ति का अंत, गति = एक साथ पढ़े जाना, यति दो शब्दों के बीच विराम, चरण = पंक्ति/पद का अंश, श्लेष = संश्लिष्ट पद योजना, प्रसाद = असंश्लिष्ट पद योजना, समता = असमस्त पद योजना, ओज = समस्त पद योजना, माधुरी = रस सिक्त अनुद्वेजक शब्दावली, अर्थ व्यक्ति = अर्थ स्पष्ट करनेवाली शब्दावली, सुकमार्ता बोलने में सुलभ, उदारता कवियों का सुंदर कथन, कांति = शब्दार्थ रूप काव्य का सुंदर कथन, समाधि = वाक्य; अर्थ; भाव आदि का एकाकार हो जाना, गुण = मन को रस दशा तक पहुँचाने का भाषिक आधार। 

*

संदर्भ: १. भारतीय काव्य शास्त्र -डॉ. कृष्णदेव शर्मा, २. आलोचना शास्त्र -मोहन बल्लभ पंत, ३. कव्य मनीषा -डॉ. भगीरथ मिश्र, ४. आधुनिक पाश्चात्य काव्य और समीक्षा के उपादान -डॉ. नरेंद्र देव वर्मा, ५. भारतीय एवं पाश्चात्य काव्य सिद्धांत -डॉ. गणपतिचंद्र गुप्त, ६. पाश्चात्य काव्यशास्त्र: सिद्धांत और वाद -सं. राजकुमार कोहली, ७. भारतीय काव्य शास्त्र योगेन्द्र प्रताप सिंह, ८. अग्नि पुराण गीताप्रेस गोरखपुर।

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ग़ज़ल हिमालय को पिघलना चाहिए था

 #ग़ज़ल #अवधेश_की_ग़ज़ल #अवधेश_की_शायरी #हिन्दुस्तानी_ग़ज़ल 

#हिमालय_को_पिघलना_चाहिए_था ।


हिमालय को पिघलना चाहिए था ।

ज़रा सूरज चमकना चाहिए था ।


अटरिया पर बने इन घोंसलों में,

परिंदों को चहकना चाहिए था ।


मुहब्बत थी अगर हमसे कभी तो, 

उन्हें इजहार करना चाहिए था ।


सदर पे आ गई कितनी चमक है,

शहर को भी निखरना चाहिए था ।


खिले हैं फूल गुलशन में सनम के,

उन्हें अब तो सँवरना चाहिए था ।


पतंगा जल रहा था प्यार में जब,

शमाँ का मोम बहना चाहिए था ।


उन्होंने प्यार में धोखा दिया तो,

तुम्हें उनसे झगड़ना चाहिए था ।


अगर वो पास में आ ही गए थे,

उन्हें कस के जकड़ना चाहिए था ।


खिलौना मांगने अब खेलने को,

कोई बच्चा मचलना चाहिए था ।


अवधेश कुमार सक्सेना - 02092020

शिवपुरी मध्य प्रदेश

Tuesday, September 1, 2020

ग़ज़ल #हिंदुस्तानी_ग़ज़ल #अवधेश_की_शायरी

 #ग़ज़ल #अवधेश_की_ग़ज़ल

#हिंदुस्तानी_ग़ज़ल #अवधेश_की_शायरी 


#वक्त_अपना_यूँ_नहीं_जाया_करो ।


वक्त अपना यूँ नहीं जाया करो ।

कामयाबी के हुनर पैदा करो ।


दूसरों को ही फ़लक दिखला रहे,

खुद के वारे में कभी सोचा करो ।


तुम ख़ुदा के बाग के इक फूल हो,

बाँटने ख़ुशियाँ यहाँ महका करो ।


ये मिली है बस तुम्हें इक बार ही,

ज़िन्दगी से तुम नहीं शिकवा करो ।


सुन चुके हम ढेर सारी आपकी,

बात छोड़ो काम भी अच्छा करो ।


देश में अब चैन से सब रह सकें,

सैनिकों का हौसला ऊँचा करो ।


मामले पल में सुलझ जाते सभी

छोड़ झगड़ा प्यार से चर्चा करो ।


हो गई गलती अगर तुमसे यहाँ,

शर्म डर की बात क्या तौबा करो ।


जीतना गर चाहते हो खेल में,

हो बढ़ा कितना हदफ़ पीछा करो ।


अवधेश कुमार सक्सेना -02092020

शिवपुरी मध्य प्रदेश

*हदफ़=लक्ष्य


ग़ज़ल #दोस्ती करके दगा की

 #ग़ज़ल

#हिन्दुस्तानी_ग़जल #अवधेश_की_ग़ज़ल

#अवधेश_की_शायरी

#दोस्ती_करके_दगा_की_कुछ_जरूरत_के_लिए 


दोस्ती करके दगा की कुछ ज़रूरत के लिए ।

अब सजा उसको मिलेगी नीच हरकत के लिए ।


देश की ख़ातिर जिन्होंने जान भी कुर्बान की,

सर झुका है उन शहीदों की शहादत के लिए ।


दूसरों के काम में हम इस कदर मशगूल हैं,

वक्त बचता ही नहीं है अब अदावत के लिए ।


रो रहे शिशु को हँसाना या गरीबों की मदद,

ये तरीका ही सही है अब इबादत के लिए ।


जीत लोगे इस जहाँ को नफ़रतों के दौर में,

कुछ जगह दिल में रखो तुम गर मुहब्बत के लिए ।


सर झुका कर तुम ख़ुदा से माँग लो जो चाहिए,

शुक्रिया करते रहो उसकी इनायत के लिए ।


मुश्किलों से है कमाई आज ऊँची शान है,

दाँव पर सब कुछ लगा दो अपनी इज्ज़त के लिए ।


अवधेश कुमार सक्सेना-02092020

शिवपुरी मध्य प्रदेश

 

#ग़ज़ल #अवधेश_की_ग़ज़ल #अवधेश_की_शायरी #हिन्दुस्तानी_ग़ज़ल

 #ग़ज़ल #अवधेश_की_ग़ज़ल #अवधेश_की_शायरी #हिन्दुस्तानी_ग़ज़ल

#प्रेम_रस_का_गीत_फिर_गाना_हमें ।


#ग़ज़ल #अवधेश_की_ग़ज़ल

प्रेम रस का गीत फिर गाना हमें ।

अब उसे हर हाल में पाना हमें ।


हम हमेशा आपके ही साथ थे,

आपने कुछ देर से जाना हमें ।


आप जो भी काम बोलो वो करें,

पेट भरने चाहिए दाना हमें ।


आज भागीरथ हिमालय से कहे,

अब नई गंगा बहा लाना हमें ।


भूख खुशियों की लगी थी जोर की,

ज़िन्दगी के गम पड़े खाना हमें ।


ठोकरें खाते रहे थे राह में,

अब जहां भर ने खुदा माना हमें ।


आपकी खातिर जमाने से लड़े,

मारते हो आप ही ताना हमें ।


खूब अपनापन दिखाकर आपने,

कर दिया फिर आज बेगाना हमें ।


अवधेश कुमार सक्सेना -01092020

शिवपुरी मध्य प्रदेश


Monday, August 31, 2020

#ग़ज़ल #तीरगी_जब_इधर_हो_गई

 #ग़ज़ल


#तीरगी_जब_इधर_हो_गई ।


तीरगी जब इधर हो गई ।

रोशनी तब उधर हो गई ।


तंगहाली हुई क्या  इधरज़रा,

अजनबी हर नज़र हो गई ।


आशना तो मिला ही नहीं,

पर कहानी अमर हो गई ।


काम थोड़ा हमें जो मिला,

बस हमारी गुजर हो गई ।


हम भटकते यहां आ गए,

अब यहीं पे बसर हो गई ।


बोझ ढोते रहें ता उमर,

आज टेड़ी कमर हो गई ।


जो कभी था सुहाना सफ़र,

आज मुश्किल डगर हो गई ।


अवधेश कुमार सक्सेना -31082020

शिवपुरी मध्य प्रदेश



 #अवधेश_की_कविता

#हरि_गीतिका_छंद

#चित्राभिव्यक्ति

1

कच्चे घड़े उल्टे रखे हैं, ईंट की दीवार है ।

चुपचाप इकतारा पड़ा है, सोच में गुलनार है ।

नवयौवना बैठी अकेली, जो किसी के ख्याल में ।

श्रृंगार सोलह आज करके, क्या करे इस हाल में ।


2

भोंहें बनीं काजल नयन में, कान कुंडल झूलते ।

सपने सुहाने याद आते, क्यों नहीं वो भूलते ।

मोती जड़े चूढ़े पहन कर, हाथ दोनों क्या करें ।

लाली रसीले होंठ पर है, फूल पर कैसे झरें ।


3

माथे लटकता मांग टीका, केश सज्जा खास है ।

नव वस्त्र के ये रंग फबते, स्वच्छ ये आवास है ।

नवरत्न वाला हार पहना, कंठ में पर प्यास है ।

प्रीतम मिलेंगे शीघ्र उसको, कर रही वो आस है ।


अवधेश सक्सेना

शिवपुरी मध्य प्रदेश

31082020

Awadhesh Kumar Saxena


Sunday, August 30, 2020

मदद मजलूम की करना खुदा का काम है यारो

 #ग़ज़ल

#अवधेश_की_ ग़ज़ल

मदद मज़लूम की करना ख़ुदा का काम है यारो ।

ख़ुशी बाँटो जहाँ में तुम यही पैग़ाम है यारो ।


मुहब्बत के लिये जीना मुहब्बत के लिये मरना,

ख़ुदा से हो मुहब्बत तो,  तुम्हारा नाम है यारो ।


बिना उम्मीद के मिलती, जहां हर चीज  है हमको,

उसी के दर पे अब होती,  सुबह से शाम है यारो ।


लगाकर अक्ल करने से, सफल सब काम होते हैं,

बिना सोचे करे जो शख़्स, वही   नाकाम है यारो । 


उसे मानो उसे पूजो जहां में एक बस वो है,

मिले उससे यहां सबको, खुशी बेदाम है यारो ।


करो खिदमत अगर तुम भी, किसी लाचार रोगी की,

भुला नेकी किया जो भी, यही निष्काम  है यारो ।


ग़ज़ल जो लिख रहा हूं मैं, नहीं उसका कोई सानी,

फलक अवधेश का है अब, ये चर्चा आम है यारो


अवधेश सक्सेना

Sunday, July 26, 2020

#प्रियामृतावधेश #सच

#प्रियामृतावधेश
#सच

बच
पाया 
नहीं यहाँ
कोई उससे
हो चाहे गरीब 
मंत्री या फिर राजा 
भेद नहीं करता इनमें
लिंग जाति धर्म भाषा क्षेत्र  
सब एक जैसे उसकी नज़र में ।
शाख पत्ते जैसे हों  शज़र में  ।
सृजन पालन करता जो यहाँ
वही  संहार  का  कारण
प्रकृति के अपने नियम
इन्हीं से चलता सब
मान लो इन्हें
रह लो खुश
बोलो
सच

अवधेश सक्सेना-26072020

Saturday, July 25, 2020

#अवधेश_की_ग़ज़ल #आपको_मुझ_से_कहो_कोई_शिकवा_तो_नहीं

#ग़ज़ल #अवधेश_की_ग़ज़ल 
#आपको_मुझ_से_कहो_कोई_शिकवा_तो_नहीं ।

आपको मुझ से कहो कोई शिकवा तो नहीं ।
ज़िंदगी कर दी हवाले चाहिए ज़्यादा तो नहीं ।

अब तुम्हारी ही तमन्ना में गुजरते रात दिन,
माँग लूँ तुमको कोई टूटता तारा तो नहीं ।

खूबसूरत वो बला की हो गया उस पे फिदा,
वो कभी मेरी बनेगी कहीं सपना तो नहीं ।

जान हाज़िर है हमारी बोल दो क्या चाहिए,
जो किया वो न निभाया ऐसा वादा तो नहीं ।

ख़्वाहिशें उसकी अजब हैं हो रहीं पूरी मगर,
आदमी है आम जैसा वो निराला तो नहीं ।

इक झलक अपनी दिखाकर वो कहीं फिर खो गया,
आसमाँ में जो चमकता वो सितारा तो नहीं ।

दिल बड़ा कमजोर है ये दे दिया तुमको मगर,
खेल कर तोड़ते हो तुम ये खिलौना तो नहीं ।

अवधेश सक्सेना-25072020

Friday, July 24, 2020

#अवधेश_की_ग़ज़ल #बेवफाओं_से_प्यार_कौन_करे

#अवधेश_की_ग़ज़ल
#बेवफाओं_से_प्यार_कौन_करे

बेवफाओं से प्यार कौन करे ।
ज़िंदगी शर्मशार कौन करे ।

आप कहते जो वो नहीं करते,
आपका एतवार कौन करे ।

इश्क़ जब भी किया मिला धोखा,
फ़िर इसे बार-बार कौन करे ।

अब शिकारी कहीं नहीं मिलते,
शेरनी का शिकार कौन करे ।

आग दिल की लगी जला देगी,
आपको होशियार कौन करे ।

जब बुलाया उन्हें नहीं आए,
उनका अब इंतज़ार कौन करे ।

वो नेता अब नज़र नहीं आते,
जंग अब आरपार कौन करे ।

अवधेश सक्सेना- 25072020
शिवपुरी म प्र

दोहे

दोहे

कितनी सुंदर वाटिका, खिलते सुंदर फूल ।
शूल हृदय के सब मिटें, चुभें नहीं अब शूल ।

भिन्न भाषा धर्म यहाँ, मिल कर बनता देश ।
देश बाग महका करे, कहे यही अवधेश ।

अवधेश सक्सेना- 19072020
💐💐🙏🙏

मुक्तक

#मुक्तक #क़तआ #शायरी 

खूबसूरत है बनाती रूह को ये शायरी ।
दूर रहती शायरों से हर हमेशा कायरी ।
हो वतन की बात या फ़िर प्यार वाले गीत हों,
हल लिखे मसले मिलें मेरी पढ़ो तुम डायरी ।

अवधेश सक्सेना-20072020

मनमोहन छंद पल पल में पग

#मनमोहन छंद
(विधान- 14 मात्राओं के चार चरण
8, 6 पर यति
अंत में नगण अनिवार्य
दो दो चरण या चारों चरण तुकांत ।)
1
पल पल में पग, रहे पलट ।
समस्या नहीं, रही सुलट ।
मन में होती, कसक-मसक ।
जाती उनकी, नहीं ठसक ।

2
चमके सोना, मिले तपन ।
सुगंध बिखरे, चले पवन ।
मिलकर भड़के, पवन अगन ।
सावन आया, जले वदन ।

3
आहुति डालो, करो हवन ।
सत्य सदा ही, करो कथन ।
मीठे बोलो, सदा वचन ।
कर लो अच्छे, यहाँ जतन ।

4
फूल खिले हैं, चमन-चमन ।
जग में आगे, रहे वतन ।
हर तरफा हो, चैन अमन ।
नहीं किसी का, करो दमन ।

5
वीरों को हम, करें नमन ।
गाएँ सब मिल, जन गण मन ।
कभी नहीं हो, अधोगमन ।
पीड़ाओं का, करो शमन ।

अवधेश सक्सेना-20072020

मनमोहन छंद जीतेंगे हम बड़ा समर

#मनमोहन_छंद
#जीतेंगे_हम_बड़ा_समर
1
अखबारों में, छपी खबर ।
चर्चा चलती, नगर नगर ।
कोरोना की, चली लहर ।
कैसा बरपा, रहा कहर ।
2
ताला बंदी, है घर घर ।
सब कुछ ही अब, गया ठहर ।
व्यवस्था हुई, है जर-जर ।
यहाँ हवा में, घुला जहर ।
3
पानी अंदर, रहे मगर ।
इसमें जाना, नहीं उतर ।
दुनिया काँपी, है थर थर ।
भीड़ हुई सब, तितर बितर ।
4
बम बम भोले, हे हर हर ।
नाम तुम्हारा, करे निडर ।
हमने है अब, रखा सबर ।
जीतेंगे हम, बड़ा समर ।

अवधेश सक्सेना-21072020

विजात छंद प्रथम पूजा विनायक की

#विजाता_छंद
1222 1222

प्रथम पूजा विनायक की ।
करें हम लोक नायक की ।
गजानन भक्ति जो करते ।
जगत में वो नहीं डरते । 
धतूरा भाँग खाते जो ।
सदा धूनी रमाते जो ।
करें अभिषेक जल से हम ।
रहें भोले शरण हर दम ।
जिन्हें नंदी घुमाते हैं ।
वही शंकर कहाते हैं ।
हमें किस बात का डर है ।
हमारे साथ शिव हर है ।
शिवा का शेर वाहन है ।
शिवा रक्षक गजानन है ।
हिमालय की दुलारी है ।
शिवा माता हमारी है ।
रहें कैलाश पर भोले ।
शिवा से प्रेम से बोले ।
हमारे जो  सहारे हैं ।
हमें सब भक्त प्यारे हैं ।
महीना है बड़ा पावन ।
जिसे कहते यहाँ सावन ।
चढ़ाएं वेलपत्री हम  ।
जपें भोले कहें बम बम ।
अवधेश सक्सेना- 22072020

#विजात छंद करो पूजा गजानन की

#विजात_छंद 
#करो_पूजा_गजानन_की

1
चतुर्थी शुक्ल सावन की ।
करो पूजा गजानन की ।
हरी दूवा चढ़ाएँगे ।
गजानन को मनाएँगे ।

2
मिलेगा ज्ञान पढ़ने से ।
बढ़ेगा मान लिखने से ।
पढ़ो कुंटल किलो लिखना ।
कभी सस्ते नहीं बिकना ।

3
प्रशंसा चाहते हैं सब ।
बुरा झट मानते हैं सब ।
प्रशंसा भी करेंगे हम ।
बुराई से लड़ेंगे हम ।

4
खुला है आसमाँ ऊपर ।
उड़ो तुम पंख फैलाकर ।
सफलता के शिखर पर हो ।
बड़ों के पाँव पर सर हो ।

5
गले सबको लगाएंगे ।
सही बातें सिखाएंगे ।
सभी में राम रहते हैं ।
यही अवधेश कहते हैं ।

अवधेश सक्सेना- 24072020

#प्रियामृतावधेश #आंखें

मेरी मौलिक विधा #प्रियामृतावधेश में #कविता 

#आँखें

मन
पागल
दीवाना 
हो जाता है
उसकी आँखों से
आँखे जब मिल जातीं
सुध बुध सब खो जाती है
सपने क्या क्या दिखते मुझको
आँखे   कितनी  गहरी  होती  हैं ।
उड़ती   नींदें  पर  वो   सोती  हैं  ।
मिलन कभी तो होगा उससे 
प्यार भरी बातें होंगीं
बिन पलकें झपकाए 
आमने सामने 
आँखों से ही
शीतल हो
तपता
तन

अवधेश सक्सेना- 24072020
Awadhesh Kumar Saxena

Saturday, July 18, 2020

ग़ज़ल सोच से नफरत निकल कर जो गई

सोच से नफ़रत निकल कर जो गई ।
पाप तब गंगा हमारे धो गई ।

जागना था रात को भी साथ में,
नींद उसको आ गई वो सो गई ।

आपके इस नूर ने जादू किया,
रूह मेरी आप में ही खो गई ।

जब ज़रा घूंघट उठाया आपने,
रोशनी चारों तरफ़ तब हो गई ।

ये सियासत ही हुकूमत के लिए,
बीज नफ़रत के यहाँ पर बो गई ।

अवधेश सक्सेना -18072020

Thursday, July 16, 2020

प्रियामृतावधेश पर टीप


#प्रियामृतावधेश #गरीब

मेरीमौलिक विधा #प्रियामृतावधेश  में कविता 
विधान
मात्राएँ पहली से नौंवी पंक्ति तक बढ़ते क्रम में
2,4,6,8,10,12,14,16,18- 
दसवीं से अठाहरवीं पंक्ति तक घटते क्रम में
18,16,14,12,10,8,6,4,2
पहली और अठाहरवीं पंक्ति तुकांत
नौंवीं और दसवीं पंक्ति तुकांत

#गरीब 

जो 
धरती
का टुकड़ा 
जोत कर यहाँ
रोटी  खाता था
उजाड़ा पीटा उसे
मर गया वो पी के जहर 
छोड़ रोते बिलखते बच्चे
इस व्यवस्था को बदलना होगा ।
राज अपने हाथ करना होगा ।
गरीब को दो गज जमीं नहीं
अमीर को आकाश मुफ़्त
सत्ताईस मंजिल मिले 
रोटी कमाना गलत
धन कमाना सही
उठो गरीबो
पहचानो
तुम क्या
हो ।

अवधेश सक्सेना- 17072020

मुक्तक

मुक्तक 
उसी की अब तमन्ना  है  कभी जिसने रुलाया है,
उसी के नाम पर हमने नया इक घर बनाया है ।
मिली है हर खुशी हमको मगर उसकी कमी खलती,
उसे देने सभी खुशियाँ जहाँ हमने बसाया है ।

अवधेश सक्सेना

संस्मरण जा पर कृपा राम की

संस्मरण
जा पर कृपा की राम की
बारिश थमने का नाम नहीं ले रही थी, सात दिन हो गए थे ।
आधा अगस्त निकल चुका था, कॉलेज में क्लास नहीं लग रहीं थीं, मेरी क्लास का अच्छा दोस्त अभी कुछ देर पहले ही मेरे पास बैठकर कुछ पढ़ाई की कुछ राजनीति की बातें करके गया था, कॉलेज में दूसरा साल था और इसी दोस्त ने ग्वालियर में अपने घर के पास मुझे एक मकान में कमरा किराये से दिलाया था, माँ को साथ में रखना था इसलिए हॉस्टल में न रहकर किराए के मकान में रहना जरूरी था । माँ खाना बना देती थीं और मैं अपनी पढ़ाई करता रहता था । सरकारी स्कूल से  हिंदी मीडियम में हायर सेकेंडरी पास करने के बाद इंजीनियरिंग की इंग्लिश में मोटी मोटी किताबें पढ़ना और समझना बढ़ा मुश्किल पड़ रहा था, लेकिन मेहनत का प्रतिफल ये था कि प्रथम वर्ष में 60 छात्रों में से 7 छात्र ही ऐसे थे जो सभी विषयों में पास हुए थे, जिनमें एक नाम मेरा भी था । किराए का कमरा बहुत अच्छा था, क्योंकि दूसरी मंजिल पर था और कमरे के बाहर खुली छत भी थी, मकान के पिछले हिस्से में बना था जिसमें पहुंचने के लिए पत्थर की  सीढ़ियाँ थीं, पूरा मकान ही पत्थर का बना था जो लगभग 50 साल पुराना बना होगा ।
माताजी ने आज हर छठ का व्रत किया था, ये व्रत बेटे के लिए माँ करती हैं । मेरे लिए तोरई की सब्जी और रोटी बनाईं थीं, स्टोव पर तवा रखकर गरम- गरम रोटियाँ बनाकर मुझे खिला रहीं थीं और मैं पास में बैठकर उनसे  कुछ बातें करते हुए  खाना खा रहा था । छत की तरफ खुलने वाले दरवाजे के पास खाना बनाने की जगह बना ली थी, जबकि सीढ़ियों से चढ़कर जिस दरवाजे से कमरे में पहुंचते थे उस तरफ दीवाल में बनी एक खुली अलमारी में मेरी किताबें और कुछ सामान रखा था, यहीं पास में एक छोटी टेबल और एक कुर्सी रखे थे जिस पर बैठकर मैं पढ़ता था । अलमारी के पास ही दीवाल पर एक हनुमान जी का कैलेंडर टंगा था, पढ़ते समय कैलेंडर पर नज़र जाती थी तो  पढ़ाई में सफलता की पूरी उम्मीद हो जाती थी ।
खाना खाकर में उठा और  अपनी किताबों की अलमारी के पास आया तो अचानक दीवाल हिलती हुई दिखी, माताजी की तरफ देखा, कुछ समझ पाता इससे पहले ही पूरा कमरा मेरी आँखों के सामने ही भरभराकर गिर गया और माताजी भी उसके मलबे में दब गईं । मैं जोर से चीखा लेकिन आवाज नहीं निकली । मैं जहाँ खड़ा था वो हिस्सा और एक दीवाल और सीढ़ियों और अलमारी से लगा हिस्सा नहीं गिरा था, मैंने हनुमानजी का कैलेंडर देखा, मन ही मन प्रार्थना की कि माताजी को बचा लो भगवान और सीढ़ियों से उतरकर मलबे के ढेर पर उस जगह जाकर माताजी को निकालने के लिए मलबा हटाने लगा, पानी बरस रहा था, मकान गिरने की आवाज से आसपास भीड़ लग गयी । लोग मुझे मलबे के ढेर पर देखकर मुझे हटने के लिए कह रहे थे, क्योंकि वो बची हुई दीवाल किसी भी क्षण गिर सकती थी, लेकिन मैं तो अपनी माँ को ढूंढ रहा था, मलबा हटाते=हटाते मुझे माँ का चेहरा दिख गया, मेरी जान में जान आयी, माँ ने मुझे देखा तो उन्हें भी तसल्ली हो गयी कि मैं दबा नहीं हूँ । अब मैं उनके ऊपर से मलबा हटा रहा था, लोग चिल्ला रहे थे, उन लोगों में मेरे उस खास दोस्त के चाचा और बड़े भाई भी थे, जो मुझे वहाँ से हटने के लिए कह रहे थे, सबको उस गिरती हुई दीवाल का डर था । मलबा हटाने पर भी माँ का आधा हिस्सा एक बड़े पत्थर छत की पटिया के नीचे दबा था, जिसे मैं नहीं हटा सकता था, मैंने दोस्त के चाचा और बड़े भाई को बोला कि माँ को निकाल लो, वो समझ गए, वो दोनों और तीन चार और लोग हिम्मत करके वहाँ आ गए और उस पत्थर को हटाया, मेरे दोस्त के बड़े भाई बिना देर किए माँ को हाथों में उठाकर मलबे के ढेर से नीचे उतर गए मैं भी उन लोगों के साथ नीचे उतर गया । हम लोग जैसे ही वहाँ से हटे वो दीवाल जो शायद इसी इंतजार में रुकी थी, भरभराकर गिर पड़ी । राम भक्त हनुमान से की गई प्रार्थना कभी खाली नहीं जाती ।
पूरी भीड़ माँ को बचाने के लिए हर जतन करने को साथ में दौड़ रही थी अस्पताल पहुंचने के लिए मुख्य मार्ग पर पहुंचकर कोई साधन जरूरी था, एक मिलिट्री का ट्रक जा रहा था, उसे भीड़ ने रोक कर सारी बात बताई तो ट्रक वालों ने माँ को  अस्पताल ले जाने की बात मान ली, ट्रक में पीछे ही माँ को लेकर जितने लोग  बैठ सके बैठ गए लेकिन परीक्षा अभी भी बहुत कठिन थी, ट्रक स्टार्ट नहीं हुआ, ट्रक ड्राइवर और मिलिट्री वाले परेशान हो गए, साथ में आये लोगों ने कहा कि हम धक्का लगा देते हैं, और भीड़ धक्का लगाकर ट्रक को अस्पताल तक ले आयी ।
कमलाराजा अस्पताल में बहुत जल्दी इलाज शुरू हुआ, चेहरे पर, हाथों में, पैरों में सभी जगह चोटें थीं, कुल 72 टांके लगे थे, शिवपुरी से बड़े भाई खबर मिलते ही आ गए । कुछ दिनों अस्पताल में रहने के बाद छुट्टी मिलने पर भाईसाहब माँ को शिवपुरी ले गए । मेरे दोस्त का पूरा परिवार मुझे अपना ही मानता था, दोस्त की माँ मेरा बहुत खयाल रखतीं थीं, कुछ दिनों तक उन्हीं के यहाँ रहा, मेरी किताबें, कपड़े, बर्तन कुछ भी नहीं बचा था । उस दिन मैं केवल पजामा और बनियान पहने रह गया था । पुराने मकान के पास से नाला निकला था जो लगातार बारिश होने से मकान की नींव को कमजोर करता रहता था, जिसके कारण मकान गिर गया था ।
माँ की धार्मिक आस्थाओं और भगवान पर भरोसे ने उन्हें इतने भयंकर हादसे में भी सुरक्षित रखा और भगवान की कृपा के साथ माँ के  सुरक्षा चक्र से मुझे तो खरोच भी नहीं आई थी ।
माँ पूर्ण स्वस्थ हो गईं लेकिन मुझे हॉस्टल में रहना पड़ा ।
मैं अपने इस सबसे खास दोस्त और इसके परिवार के साथ उन अंजान चेहरों को भी कभी भुला नहीं सकता जिन्होंने मेरी मदद की है ।
जा पर कृपा राम की होई ।
ता पर कृपा करें सब कोई ।

अवधेश सक्सेना- 25072020

बहाती मंद सी ख़ुश्बू पवन है । सुमेरु छंद

सुमेरु छंद
122 212, 221 22

बहाती मंद सी ख़ुश्बू पवन है ।

उठाती पीठ पे चींटी बजन है ।
बहाती मंद सी ख़ुश्बू पवन है ।

समा लेता नदी पूरी समंदर ।
नचे झूमे  करे मस्ती कलंदर ।

पिया की याद फिर मुझको सताती ।
बदन में आग फिर आकर लगाती ।

महीना आ गया सावन सुहाना ।
जवानी चाहती उस पर लुटाना ।

मिलन की आस में अँखिया खुलीं हैं ।
शयन सैया बिछी चादर धुलीं हैं ।

बसे जब से पिया परदेश जाकर ।
तसल्ली कर रही संदेश पाकर ।

टलेगा युद्व तो छुट्टी मिलेगी ।
चमन में फिर कली जूही खिलेगी ।

अचानक छिड़ गया जब युद्ध भारी ।
लड़े जमकर लगा जब शक्ति सारी ।

बचाई आन फिर अपने वतन की ।
गयी पर जान तब बाँके सजन की ।

तिरंगे में लिपट वो  लौट आए ।
मुझे सम्मान अब कितने दिलाए ।

तिरंगे से लिपट सोया करूंगी ।
उन्हीं की याद में खोया करुँगी ।

बड़ा होकर बने बेटा सिपाही ।
करे वो  शत्रु की भारी तबाही ।

यही सपना सदा देखा करुँगी ।
वतन को सौंप कर बेटा मरूँगी ।

अवधेश सक्सेना -16072020

Saturday, July 11, 2020

प्रेतात्मा को रोना पड़ेगा


प्रेतात्मा को रोना पड़ेगा ।
कहानी

गाँव के बाहर एक पुरानी हवेली थी, उस हवेली के वारे में तरह तरह की चर्चाएं चलती रहती थीं, गाँव के लोगों में ये धारणा बन चुकी थी कि हवेली में कोई प्रेतात्मा रहती है, कोई भी उस हवेली में नहीं जाता था, शाम के बाद या रात को तो लोग उस रास्ते पर ही नहीं जाते थे । किसी आदमी को अगर कोई बीमारी होती तो ये मान लेते थे कि ये जरूर उस हवेली के रास्ते पर गया होगा । तीन चार हत्याएं भी उस हवेली के बाहर हो चुकीं थीं ।
प्रशासन और पुलिस के लोग भी इन चर्चाओं से प्रभावित होकर उस हवेली से दूरी बनाकर चलते थे ।
गाँव का जमींदार लोगों को सचेत करता रहता था कि उस हवेली की तरफ कोई नहीं जाएगा, लोगों के दिमाग में हमेशा प्रेतात्मा का डर बैठा रहता था ।  कुछ हिम्मत वाले युवा कभी कोशिश भी करते थे, प्रेतात्मा की हकीकत जानने की तो उन्हें डांट डपट कर वहाँ जाने से रोक दिया जाता था ।
एक बार एक साहसी थानेदार वहाँ के थाने में आया,हवेली की चर्चाएं सुनकर उसे आश्चर्य हुआ कि यहाँ के लोग भूत प्रेत वाली बातों पर विश्वास करते हैं । गाँव के जमींदार के आमंत्रण पर जब वो उनके महल जैसे बने हुए आवास पर पहुंचा तो जमींदार ने अच्छी आव भगत की, चाय नाश्ता कराया, जमींदार ने भी हवेली से जुड़े डरावने किस्से सुनाए ।  उसने सोचा कि वो वहाँ जाकर देखेगा, उसने साथी पुलिस वालों से इस वारे में बात की तो सभी ने वही डरावनी कहानियां सुना दीं और सभी ने वहाँ जाने से साफ मना कर दिया । उससे भी कहा कि वो भी वहाँ जाने का विचार मन से निकाल दे । वो एक साहसी नौजवान था, जितना उसे रोका जा रहा था उतना ही उसका जाने का मन हो रहा था । उसका बचपन का दोस्त पास के शहर में पत्रकारिता करता था । किसी दुर्घटना के सिलसिले में वो उस गाँव के थाने में आया था, दोनों दोस्तों में बातें हुईं, पत्रकार दोस्त को थानेदार ने रोक लिया कि आज ठहर जाओ, कल चले जाना । बातों बातों में हवेली की बात थानेदार ने पत्रकार को बताई । पत्रकार भी उसी की तरह साहसी था और खोजी तो था ही, पत्रकारिता में खोजी लोग ही सफल होते हैं । दोनों मित्रों ने हवेली की हकीकत पता करने का निश्चय कर लिया । दोनों दोस्त उसी रात उस हवेली पर पहुंच गए । गेट पर पुराना जंग लगा ताला लगा था । टॉर्च की रोशनी में बाउंड्री के बाहर से चक्कर लगाते हुए वो लोग एक ऐसी जगह पहुंचे जहाँ बाउंड्री की दीवाल टूटी थी और लकड़ियों से गेट जैसा बना था, वहाँ से अंदर देखा तो अंदर कुछ रोशनी नजर आयी, कुछ सामान खिसकने जैसी आवाजें भी आ रहीं थीं । उन दोनों ने लकड़ी के उस गेट के पास थोड़ी सी जगह में से अंदर जाने के लिए जैसे ही अंदर पैर रखे एक काली बिल्ली उनके बिल्कुल पास से निकल गयी । धीरे-धीरे वो आगे बढ़े और हवेली के अंदर पहुँच गए, रोशनी की तरफ बढ़े तो आवाजें साफ सुनाई देने लगीं, कुछ खुसुर-पुसुर भी सुनाई दी, जैसे कोई बात कर रहा हो । वो अँधेरे से रोशनी की तरफ बढ़ रहे थे, अचानक एक चमगादड़ फड़फड़ाती हुई उनके सिर के ऊपर से निकल गई ।
रोशनी वाले कमरे की तरफ पहुँचे तो दरवाजे की चरचराहट हुई और दरवाजे के पास किसी की परछाईं नजर आयी, वो दोनों सोच में पड़ गए कि इतनी रात को यहाँ कौन हो सकता है । वो छुप कर देखने लगे ।  उन्हें आभास हो गया कि यहाँ कुछ लोग मौजूद हैं ।
थानेदार ये देखकर चौंक गया कि जो जमींदार कुछ दिन पहले उससे इस हवेली में जाने से मना कर रहा था वो खुद यहाँ पर है और किसी अन्य व्यक्ति से कुछ बात कर रहा है । अब वो दोनों ऐसी जगह छुप गए जहाँ से उन्हें अंदर की गतिविधि भी दिखने लगी और उन्हें कोई देख भी नहीं सकता था । उन्होंने देखा कि कुछ लोग छोटे छोटे पॉलीथिन के पाउच में सफेद पाउडर भर रहे हैं । उसे जानकारी मिली थी कि नशे के पॉवडर की सप्लाय इसी इलाके से होती है । उसने बहुत छानबीन की लेकिन कुछ पता नहीं चल रहा था, अब सब कुछ साफ साफ दिख रहा था । दोनों दोस्तों को सारा माजरा समझ में आ गया ।  थानेदार ने रिवॉल्वर निकाली और जल्दी से उन लोगों के सामने पहुंचकर जमींदार पर तान दी । नशे के अवैध कारोबार के जुर्म में जमींदार और उसके आदमियों को गिरफ्तार करके थानेदार थाने में ले आया । क्रमशः....

(कहानी भाग-2)
जमींदार ने थानेदार से विनम्र बनते हुए कुछ बात करने को कहा, थानेदार ने कहा कि बोलो क्या बात करना चाहते हो, उसने कहा कि थानेदार साहब आप तो हुकुम करो आपको क्या चाहिए, जो आप कहोगे आपकी सेवा में हाजिर कर देंगे । हम से मिलकर चलो मालामाल हो जाओगे, आपके इस दोस्त को भी मुँह मांगा इनाम मिल जाएगा । थानेदार ने जमींदार के गाल पर तमांचा जड़ दिया और बोला कि मैं बिकने वाला थानेदार नहीं हूँ, पत्रकार दोस्त जो अपनी डायरी में घटना का विवरण लिख रहा था, जमींदार से बोला कि तुम्हारा खेल खत्म हो गया जमींदार जी मेरे इस दोस्त की ईमानदारी को मैं बचपन से जानता हूँ, स्कूल की फुटबॉल टीम में सिलेक्शन के लिए जब खेल शिक्षक ने एक किलो घी मँगाया था तो इसने टीचर में ही चांटा मार दिया था । कल के अखबार में तुम्हारे इन काले कारनामों की खबर दुनिया पढ़ेगी । थानेदार ने जमींदार को उसके आदमियों के साथ ही लॉक अप में बंद कर दिया । थाने का हवलदार थानेदार के पास आकर बोला कि साहब ये जमींदार ज्यादा बोलता नहीं है, पर है बहुत खतरनाक, इसकी बात न मानने वाले थानेदार इस थाने में टिक नहीं पाते । इतने में फोन की घण्टी बजी, थानेदार ने फोन उठाया, उधर से आदेशात्मक स्वर में  आवाज आई, थानेदार ने जय हिंद बोलकर अभिवादन किया, फोन करने वाले ने बोला कि तुमने जिस जमींदार को पकड़ा है वो नेताजी का खास आदमी है, उस को तुरंत छोड़ दो नहीं तो हम सब मुश्किल में पड़ जाएंगे । थानेदार बोला लेकिन सर, सर उधर से आवाज आई कि मैं कुछ नहीं सुनूँगा जो कहा है वो करो और फोन कट गया । थानेदार को अपना अपमान लगा और तिलमिला उठा, गुस्से से भर गया और लॉक अप में पहुंचकर जमींदार और उसके आदमियों को लात घूंसों से मारते हुए अपना गुस्सा शांत किया । हवलदार को बुलाकर प्रकरण तैयार करने की कार्यवाही करने लगा । हवलदार ने फिर निवेदन की मुद्रा में समझाने की कोशिश की कि साहब मान जाओ, ठीक रहेगा । थानेदार ने हवलदार को डपट दिया कि मैं जो कह रहा हूँ करो ।
थोड़ी देर बाद फिर फोन आया, पूछा कि तुमने बात नहीं मानी, थानेदार बोला कि सर आप मुझे यहाँ से ट्रांसफर करा सकते हैं, लेकिन मैं जब तक यहाँ ड्यूटी पर हूँ, वही करूँगा जो कानूनी रूप से मुझे करना चाहिए । उधर से आवाज आई कि तो फिर तुम्हारी मर्जी, परिणाम भुगतने को तैयार रहो ।
कुछ ही देर बाद कुछ आदमी और एक औरत वहां आए और वो औरत  हवलदार से बोली कि थानेदार और इसके दोस्त ने रात में मेरे घर में जबरदस्ती घुसकर मेरे साथ बलात्कार किया है, मेरा पति जमींदार साहब के घर पर काम करता है और जब ये लौटा तो मैंने इसे सब बता दिया, थानेदार ने डरा दिया था कि किसी को बताया तो जेल में डाल दूँगा । उसका पति बोला कि जब मैंने जमींदार साहब को सब बताया और जमींदार साहब ने थानेदार से बात करनी चाही तो उन्हें पिस्तौल दिखाकर डरा दिया और लॉकअप में बंद कर दिया । हवलदार साहब तुम तो यहाँ सबको जानते हो, देवता जैसे गाँव के जमींदार साहब के साथ ये क्या कर रहा है, इस पापी की रिपोर्ट लिखो और इसे थाने से बाहर करो हम इसको सबक सिखाएंगे ।
कुछ लोग और इकट्ठे हो गए, पूरे गाँव में चर्चा होने लगी कि थानेदार और उसके पत्रकार दोस्त ने जमींदार के घर पर काम करने वाले आदमी की औरत को घर में अकेला पाकर बलात्कार कर दिया और जमींदार के आने पर उस पर भी झूठा केस लगा रहा है । देखते-देखते मशालें लिए हुए भीड़ थाने की तरफ बढ़ी चली आ रही थी, थानेदार ने फोन लगा कर जानकारी देने और सहायता की मांग करना चाही लेकिन किसी ने फोन नहीं उठाया । जमींदार का वो आदमी जिसकी पत्नी बलात्कार की घटना बता रही थी, थानेदार को पकड़ने थानेदार की तरफ बढ़ा तो थानेदार ने पिस्तौल निकालकर हवाई फायर किया, कुछ देर के लिए भीड़ तितर बितर हुई, लेकिन कुछ लोग बहुत गुस्से में थे जिनके हाथ में लाठी, फरसे और बंदूकें भी थीं । उन्होंने थानेदार की पिस्तौल छुड़ानी चाही तो थानेदार ने सामने से छुड़ाने वाले आदमी में गोली मार दी,तब तक कुछ लोगों ने पत्रकार को पकड़कर थाने के बाहर खींच लिया और लात घूंसों से मारने लगे, इधर गोली लगने पर वो आदमी छटपटाकर गिर पड़ा । इतने में एक आदमी ने थानेदार के सिर पर बंदूक की नली रख दी और पिस्तौल छुड़ा ली । पिस्तौल हाथ से छूटते ही कई लोगों ने मिलकर थानेदार को भी बाहर खींच कर लात घूंसों से मारना शुरू कर दिया, थाने के हवलदार और सिपाही एक तरफ खड़े-खड़े सब देख रहे थे, जमींदार के इशारे पर लॉकअप का ताला खोल दिया, जमींदार और उसके आदमी बाहर निकल आए । थानेदार और उसका दोस्त पत्रकार भीड़ से बुरी तरह पिट रहे थे । जमींदार ने दोनों को देखकर कुटिल मुस्कान बिखेरी, एक निगाह अपने लठैतों की तरफ डाली और इशारा समझते ही लठैतों ने दोनों के सिर पर लाठियां मार कर उनकी निर्मम हत्या कर दी । देश के कानून की रक्षा करते हुए एक ईमानदार और साहसी  थानेदार और निर्भीक कर्तव्यपरायण पत्रकार शहीद हो गए । जमींदार गाँव वालों से कह रहा था कि मैंने मना किया था शाम के बाद हवेली वाले रास्ते पर मत जाना, ये माने नहीं और उधर चले गए । प्रेतात्मा इनके अंदर घुस गई और इनसे पाप कराके इन्हें मार भी दिया ।

                                                   क्रमशः
भाग 3
थानेदार और पत्रकार की हत्या की सूचना जिले के पुलिस और प्रशासन के अधिकारियों तक पहुंच गई, कलेक्टर और एस. पी . भी पुलिस बल के साथ घटना स्थल पर पहुंच गए । पुलिस अधीक्षक ने  दूसरे थानेदार की पदस्थापना थाने में कर दी । कई समाचार पत्रों के संवाददाता भी पहुँचे, मृत थानेदार और पत्रकार के शव पास के शहर में पोस्टमार्टम के लिए भेजे गए और पोस्टमार्टम के बॉस वहीं से उनके परिजनों को  सौंप दिए गए अगले दिन जब दोनों के परिजन उनका अंतिम संस्कार कर रहे थे, समाचार पत्रों में उनके वारे में लोग पढ़ रहे थे कि उन्होंने एक महिला का बलात्कार किया और गुस्साई भीड़ ने उन्हें पीट -पीट कर मार डाला । 
गाँव में पहुँचे नए थानेदार को हवलदार ने पूरी कहानी बताई और जमींदार से पंगा न लेने की सलाह भी दी, थानेदार ने भी जमींदार से मिलकर चलने का निश्चय कर लिया । जमींदार के बुलावे पर थानेदार ने जमींदार से मुलाकात की तो जमींदार ने हवेली की कहानियाँ सुनाईं, थानेदार समझ गया कि जरूर जमींदार का कोई अवैध काम पुरानी हवेली में होता होगा, तो उसने कहा कि जमींदार साहब पुरानी हवेली में आपको जो करना है करो हमें क्या करना, आप तो हमें बताओ कि हम आपके किस काम आ सकते हैं, जैसा आप कहोगे हम बैसा ही करेंगे । जमींदार भी यही चाहता था, दारू मुर्गा की पार्टी हुई और चलते समय जमींदार ने एक लिफाफा थानेदार को थमा दिया । थानेदार भी खुश हो गया । 


कोरोना सोचो ऐसा क्यों

सोचो,ऐसा क्यों ?
"काम किसी का नाम कोरोना का"

" कोरोना एक ऐसी बीमारी जिसका इलाज डॉक्टर नहीं पुलिस कर रही है "

"स्कूल, कॉलेज, मंदिर, मस्जिद में कोरोना तेजी से फैलता है जबकि ऑफिस मीटिंग, राजनीतिक मीटिंग, स्वागत समारोह, उद्धाटन, फीता काटने, माला पहनने, ग्रुप फ़ोटो खिंचाने से नहीं फैलता "

" मशीन बिल्कुल सही रिपोर्ट देगी ये मशीन बनाने वाली कम्पनी नहीं कहती, लेकिन हेल्थ डिपार्टमेंट इन्हें बिल्कुल सही मानकर रिपोर्ट बनाते हैं "

" मीडिया ( सोशल, इलेक्ट्रॉनिक, प्रिंट) बारीक से बारीक चीजों की तह में जाती है, कोरोना की रिपोर्ट को हरिश्चंद्र की रिपोर्ट मानती है "

" धर्म,अध्यात्म, योग, आयुर्वेद पर सबको अटूट भरोसा है, कोरोना के मामले को छोड़कर "

" कोरोना का इलाज वही कर रहे हैं, जो कह रहे है कि इसका कोई इलाज नहीं है "

" लघु, मध्यम उधोगों के चलने से कोरोना फैल सकता है, निर्माण कार्यों और बड़े उधोगों से नहीं "
" किराना, कपड़ा, फोटो कॉपी, वाहन मरम्मत जैसी छोटी दुकानों से कोरोना फैल सकता है, शराब की दुकानों से नहीं"

" बड़े शहरों के बड़े निजी अस्पतालों को करोड़ों रुपए मदद मिल सकती है, जिला स्तर के सरकारी अस्पताल में ऑक्सीजन देने की मशीन नहीं मिल सकती "

" 100 में से 99 बिना इलाज ठीक हो गए इसकी  चर्चा नहीं होगी, कोई एक इसके डर से, गलत उपचार से  या अन्य बीमारी से मर गया तो उसकी चर्चा जोर शोर से करके कोरोना को कारण बता दिया जाएगा "

अगर सोचोगे और समझोगे कि ऐसा क्यों तो व्यवस्था का कड़वा सच और कुरूप चेहरा स्पष्ट नजर आएगा ।

उम्मीद रखो- व्यंग्य

एक आदमी अपने बेटे से कह रहा था, बेटे तुम्हारी नोकरी चली गयी तो क्या हुआ, फिर मिल जाएगी, डीजल,  पेट्रोल 60 से 80 हो गया कोई बात नहीं, विकास के लिए ये जरूरी भी तो है, तुम्हारे दादा जी को उपचार नहीं मिलने से दुनिया छोड़नी पड़ी तो क्या हुआ, उन्हें अब जीकर करना भी क्या था, तुम अपने दोस्त के किसान पिता की हालत की चिंता मत करो और ये मजदूरों, दुकानदारों की भी चिंता बेकार है, ये सब समय के साथ आते-जाते रहने वाली घटनाएं हैं ।
आस पास देखोगे तो ऐसे ही दुखी होते रहोगे, पीजिटिव रहो, मेरी तरह टी वी देखो, अखबार पढ़ो, ये देखो अखबार में सरकार की योजनाओं के वारे में इन विज्ञापनों में सरकार ने बताया है कि उसने जनता के लिए क्या क्या किया है । बिजली का बिल ज्यादा आता है तो बिजली की खपत कम कर लो, घर की पुताई एक साल बाद करा लेंगे, घी से चुपड़ी रोटी तो नुकसान भी करती है, बिना चुपड़ी रोटी खाने में कोई नुकसान नहीं है । फालतू की चिंता करना छोड़ो, हमारा देश कितना विकास कर रहा है, ये देखो, सरकार की नीतियों से आने वाले समय में हर देश वासी को बहुत लाभ होंगे । भरोसा रखो । आज का समाचार पड़ो हमारे देश के महान उद्योगपति मुकेश अम्बानी जी दुनिया के सबसे अमीर 10 लोगों की सूची में छठवें नम्बर पर आ गए हैं, बेटा इन्हीं की बजह से तो हम जैसे  करोड़ों देशवासी सस्ते मोबाइल डेटा का उपयोग कर रात दिन मोबाइल चलाते रहते हैं । इन्हीं की बदौलत देश में लाखों लोगों को काम मिल रहा है । उम्मीद रखो ये हमारे देश को  बहुत आगे लेकर जाएंगे ।
हमारे लिए आज का दिन गर्व करने का दिन है ।

Wednesday, July 8, 2020

कुंडलियाँ छंद

#कुंडलियाँ#छंद

मेरा कहना मान ले, मत कर ऐसे काम ।
प्रेम गली तू छोड़ दे, क्यों होता बदनाम ।
क्यों होता बदनाम, मान मुश्किल से मिलता ।
है ये ऐसा फूल, बड़ी मुश्किल से खिलता ।
कहते कवि अवधेश, नाम होगा तब तेरा ।
बोलेगा जय राम, छोड़ कर तेरा मेरा ।

अवधेश सक्सेना
शिवपुरी मध्य प्रदेश

Tuesday, July 7, 2020

तुम्हीं से प्यार करना है ।

ग़ज़ल
तुम्ही से प्यार करना है ।

मुझे तो आज ये इज़हार करना है ।
तुम्हें चाहा तुम्हीं से प्यार करना है ।

निभाएंगे मुहब्बत हम क़यामत तक,
तुम्हारे सामने इक़रार करना है ।

सुलझते गुफ़्तगू से हैं सभी मुद्दे,
यही करना नहीं तकरार करना है ।

खिलाने फूल ख़ुशबू के चलो यारो,
बहारों से चमन गुलज़ार करना है ।

वतन के नौजवानों को जगाने अब,
हमें पैनी क़लम की धार करना है । 

चाहते हो अगर मंज़िल मिले पहले,
तुम्हें भी तेज फ़िर रफ़्तार करना है ।

अँधेरा भाग जाएगा भरोसा रख,
क़मर को नूर की बौछार करना है ।

बढ़ेगी खूब रौनक़ उनके आने से,
बुलाने को उन्हें इसरार करना है ।

भगाने दुश्मनों को मारकर बाहर,
हमें हथियार हर तैयार करना है ।

अवधेश सक्सेना-07072020

Saturday, July 4, 2020

संस्मरण जा पर कृपा राम की

संस्मरण
जा पर कृपा राम की 
माँ को जब भी कहीं जाना होता था, मुझे साथ ले जाती थीं, पिता के देहांत के बाद हम दो भाई की परवरिश में माँ दिन रात मेहनत करती थीं । उस दिन माँ को घर के लिए कुछ जरूरी सामान बाजार से लाना था, माँ और मैं बाज़ार गए थे । बड़े भाई अपने काम पर निकल गए थे । घर सूना था लेकिन हम लोगों को घर की कोई चिंता नहीं रहती थी क्योंकि मोहल्ले में कभी चोरी या लूटपाट जैसी घटनाएं तब नहीं होती थीं । हम माँ बेटे सामान लेकर घर लौट रहे थे, करीब 3-4 किलोमीटर पैदल चले थे तो घर पहुँचने की जल्दी थी, मुझे भूख भी लगी थी, उस समय मेरी उम्र लगभग 10 साल थी । घर पहुँचने ही वाले थे कि घर के बाहर  भीड़ नजर आयी, थोड़ा और पास पहुँचे तो  घर में आग की लपटें और धुँआ देखकर चीख निकल गयी, माँ कह रही थी- है भगवान, ये क्या हो गया  । कुछ लोग पानी की बल्टियाँ घर पर डाल रहे थे, हम घर के अंदर की अपनी चीजों को बचाना चाहते थे, घर के अंदर जाने की कोशिश की, मगर  लोगों ने रोक लिया । घर के बिल्कुल पास में ही एक अच्छा कुँआ है जिसमें बारह महीने पानी रहता है, पूरा मोहल्ला अपनी रस्सी बाल्टियां लेकर कुँए पर मौजूद था, कुछ लोग पानी खींच रहे थे तो कुछ लोग बाल्टियों से पानी आग पर डाल रहे थे । माँ मुझे हिम्मत बंधा रही थीं । मैं माँ के लिए परेशान था । लगभग एक डेढ़ घण्टे के प्रयास  से लोगों ने आग बुझा दी । आग बुझाने वाले आसपास रहने वाले हमारे अधिकांश मुस्लिम भाई थे । सर्व धर्म सम भाव की शिक्षा मुझे बचपन से ही मिली है क्योंकि घर के पास मस्जिद और जैन मंदिर थे तो थोड़ी दूरी पर हिन्दू मंदिर भी थे, घर के पास रहने वालों में सभी मुस्लिम, जबकि मोहल्ले में हिन्दू, जैन, सिख और ईसाई परिवार भी रहते थे, मेरे बचपन के दोस्तों में मुस्लिम, सिख, ईसाई और  जैन भी शामिल हैं । आग बुझ गयी थी लेकिन सामान कुछ नहीं बचा था, ईश्वर की कृपा थी कि हम तीनों सुरक्षित थे । दीवालों के ऊपर लकड़ी की म्यार  और म्यार के ऊपर लकड़ियां, लकड़ियों के ऊपर पत्थर के पाट रखकर पटोर बनती है, पटोर के पाट और लकड़ियां सब जल चुके थे ।
जो औरत अपने पति के जाने का दुख भुगत चुकी हो, जिन बेटों ने अपने पिता का साया उठने का दुख सह लिया हो, उन्हें अन्य कोई मुसीबत क्या परेशान करेगी । माँ और दोनों बेटे जुट गए अपने घर को बनाने में और कुछ ही दिनों के परिश्रम से घर को फिर से रहने के लिए तैयार कर लिया । वो घर वो कुँआ वो पड़ोसी हमेशा याद रहते हैं । उस घर में माँ के नाम से बनी समिति द्वारा संचालित स्कूल चलता है जिसमें वर्तमान में भी मात्र तीन सौ रुपये प्रति माह फीस ली जाती है और लगभग  आधे बच्चों की इससे भी आधी फीस ली जाती है । 

घर में आग लगने की एक और घटना-

अब हम जिस घर में रहते हैं, उसके आसपास कोई मुस्लिम, सिख, जैन, ईसाई नहीं रहता, सभी एक धर्म को मानने वाले लोग हैं ।
3 साल पहले की घटना है, रात को 3 बजे बहुत जोर की आवाज से नींद खुली खिड़की के कांच से बाहर खम्बे पर आग जलती दिखी, लाइट चली गयी थी, मैं, पत्नी, छोटा बेटा और बेटी जाग गए थे, बड़ा बेटा दिल्ली में अपनी upsc सिविल सर्विस परीक्षा की  तैयारी कर रहा था, इसलिये घर पर नहीं था । हम लोग घर की दूसरी मंजिल पर रहते हैं, नीचे ड्राइंग रूम और स्टोर रूम हैं । मैंने बॉलकनी में आकर देखा तो नीचे की गैलरी से धुँआ निकल रहा था, मैं समझ गया कि नीचे भी आग लग चुकी है । मैंने पत्नी और बच्चों को जल्दी से बाहर निकाल कर घर के बाहर बिठाया, नीचे की गैलरी बाहर से खोली तो मीटर के बोर्ड और आस पास आग लगी हुई थी, गैलरी में  धुँआ भरा हुआ था, गैलरी के दरवाजे के रोशनदान का कांच निकाला तो धुँआ बाहर निकलना शुरू हुआ । घर से बाहर नल है उसमें लेजम लगाकर पानी से आग बुझाने के लिए लेजम गैलरी के अंदर से लानी थी, बेटा झुका हुआ अंदर से लेजम लेकर आया, बिजली की केबल में करेंट न हो इसका डर था । सामने रहने वाले परिवार का एक लड़का उसके घर से सब देख रहा था, मेरे बालकनी में निकलने के पहले से ही वो उसके घर की बाउंड्री पर अंदर खड़ा था । 
अन्य घरों के लोग घरों के अंदर ही थे । मैंने बिजली विभाग के  स्थानीय चाबी घर पर कई बार फोन किया किसी ने फोन नहीं उठाया । 
लेजम से डरते-डरते मैंने पानी से आग बुझाई,  केबल खंबे पर भी जल चुकी थी, इसलिए करेंट नहीं था । मैं अपने वाहन से चाबी घर गया तो वहाँ अंदर से ताला लगा था, किसी ने ताला नहीं खोला बहुत आवाजें लगाईं । बाहर से जाने वाले एक व्यक्ति ने बताया कि ये लोग चौराहे पर 5 बजे चाय की दुकान पर चाय पीने जाते हैं । तब 4 बजे थे, मैं वापिस आ गया, धुँआ अभी भी निकल रहा था, बेटे को मैंने पानी डालने से मना कर दिया था । मैंने फिर सावधानी स लेजम को पकड़ कर आग पर पानी डाला । धुँआ कम हो गया, 5 बजे मैं उस चाय की दुकान पर पहुँचा तो बिजली कर्मचारी मिल गए, अपनी समस्या बताई तो वो वोले कि आपको हेल्पलाइन नम्बर पर कम्प्लेंट दर्ज करानी होगी, उनसे हेल्पलाइन नम्बर लेकर कम्प्लेंट दर्ज कराई तो उनका नसेनी वाला वाहन न होने से वो आने को तैयार नहीं थे, मैं निवेदन करके अपने वाहन से उन्हें लाया कि कम से कम केबल का हिस्सा तो घर से दूर कर दें ।
उन्होंने केबल अलग कर दी, खम्बे पर देखा तो उन्होंने बताया कि केबल खम्बे पर जलकर अलग हो चुकी है ।
दूसरे दिन लाइट चालू हो सकी ।
खम्बे के नीचे मैंने देखा तो मुझे एक लकड़ी के टुकड़े में जली हुई मशाल जैसी मिली, किसी ने लंबे बांस में आगे लकड़ी का टुकड़ा बांध कर पॉलीथिन लपेट कर केबल में आग लगाई थी । कोशिश शायद केवल लाइट बंद करने की रही हो, पर घर में आग लगने पर शायद उस शरारती तत्व को और अधिक खुशी मिली हो । ईश्वर उन्हें सद्बुद्धि दे कि ये खुशी असली खुशी नहीं होती, असली खुशी तो दूसरों की मदद करने पर मिलती है । ईश्वर की कृपा से हम दूसरों की मदद के लिए हाथ बढ़ा पाते हैं और हमें वो असली खुशी मिलती रहती है ।
जा पर कृपा राम की होई ।
ता पर कृपा करें सब कोई ।

अवधेश सक्सेना- 05072020
शिवपुरी मध्य प्रदेश