#ग़ज़ल
#अवधेश_की_ग़ज़ल
#हिन्दुस्तानी_ग़ज़ल
#अवधेश_की_शायरी
#कली_खिली_जो_जरा_चमन_में ।
कली खिली जो जरा चमन में ।
भ्रमर खुशी से उड़े गगन में ।
महक बहेगी कहाँ कहाँ अब,
गली गली में घुली पवन में ।
यहाँ अभी जो बहार आई,
हसीन दिखते सभी सपन में ।
झलक जरा सी हमें दिखा दो,
बसा रखेंगे तुम्हें नयन में ।
असर हमेशा बना रहेगा,
अगर कहो सच मिला बचन में ।
सजन सलौना चला गया तो,
बदन जलेगा विरह अगन में ।
किलो पढ़ो तब लिखो मिली तुम,
वजन बढ़ेगा ग़ज़ल कहन में ।
(*किलो और मिली इकाई मात्रा वाले शब्द हैं ।)
अवधेश कुमार सक्सेना-06092020
शिवपुरी मध्य प्रदेश
Awadhesh Kumar Saxena
No comments:
Post a Comment