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परिचय

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Sunday, September 6, 2020

ग़ज़ल कली खिली जो जरा चमन में

 #ग़ज़ल


#अवधेश_की_ग़ज़ल

#हिन्दुस्तानी_ग़ज़ल

#अवधेश_की_शायरी 


#कली_खिली_जो_जरा_चमन_में ।


कली खिली जो जरा चमन में ।

भ्रमर खुशी से उड़े गगन में ।


महक बहेगी कहाँ कहाँ अब,

गली गली में घुली पवन में ।


यहाँ अभी जो बहार आई,

हसीन दिखते सभी सपन में ।


झलक जरा सी हमें दिखा दो,

बसा रखेंगे तुम्हें नयन में ।


असर हमेशा बना रहेगा,

अगर कहो सच मिला बचन में ।


सजन सलौना चला गया तो,

बदन जलेगा विरह अगन में ।


किलो पढ़ो तब लिखो मिली तुम,

वजन बढ़ेगा ग़ज़ल कहन में ।


(*किलो और मिली इकाई मात्रा वाले शब्द हैं ।)


अवधेश कुमार सक्सेना-06092020

शिवपुरी मध्य प्रदेश

Awadhesh Kumar Saxena

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