#ग़ज़ल #अवधेश_की_ग़ज़ल #अवधेश_की_शायरी #हिंदुस्तानी_ग़ज़ल
#जब_मिला_धोखा_मिला_है_अब_मुहब्बत_क्या_करूँ
जब मिला धोखा मिला है अब मुहब्बत क्या करूँ ।
गिर गई नीचे बहुत ही अब सियासत क्या करूँ ।
माँगना क्या अब ख़ुदा से क्या नहीं उसने दिया,
जब तुम्हें ही पा लिया है और चाहत क्या करूँ ।
काम सारे कर रहा मैं बस ख़ुदा के मानकर,
काम से फ़ुरसत नहीं है अब इबादत क्या करूँ ।
ये कलम हथियार बनकर लिख रही है खून से,
हिल गई सत्ता किसी की अब बग़ावत क्या करूँ ।
मज़हबी बातें सुनीं पर सोच मेरी ये बनी,
खून उनका लाल ही है उनसे नफ़रत क्या करूँ ।
जब अदालत ही नहीं अब कर रहीं इंसाफ है,
अब मुवक्किल की तरफ से मैं वक़ालत क्या करूँ ।
कर रहे हैं नाच नंगा वो नज़र के सामने,
खुल गई सब पोल जिनकी उनकी इज़्ज़त क्या करूँ ।
इंजी. अवधेश कुमार सक्सेना- 18092020
शिवपुरी मध्य प्रदेश
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